Wednesday, August 6, 2008

लोकसभा बिकाऊँ है खरीदोगे ?

सरकार गिराने बचाने के खेल का आखिरकार पटाक्षेप हो गया। विरोधी औंधेमुंह गिरे,लेफ्ट में मातम पसर गया। और सत्ताधारियों ने बाजी मार ली। लेकिन इस पूरे खेल में जैसी - जैसी चलें चली गयीं।जैसे - जैसे हथकंडे अपनाए गए।उसने जनतंत्र में जोड़तोड़ का नंगा सच बेनकाब कर दिया।कुर्शी के इस खेल में कौन कितने फायदे में। और कितने नुकसान में ये अलग मुद्दा है। लेकिन एक बात जो उभरकर जो सामने आयी है , वो ये है कि हमाम में सब नंगे हैं।
यानी कि लोकतंत्र के आस्था के इस मन्दिर में भक्तों के ऊपर करोड़ों रूपये का चढावा चढ़ता है। दुनिया के सबसे बडें लोकतंत्र के लिए ये विडम्बना ही कही जायेगी कि जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधि नुमाइंदे खुले बाज़ार में अपनी कीमत ऐसी लगा रहे हैं । जैसे वे व्यावसायिक बाज़ार में बिकने का कोई प्रोडक्ट बन गए हों। मंडी सज चुकी थी। सरकार बनाने की सांसे चल रही थी। कि लोकसभा के इस मन्दिर में वोट की जगह नोट की गड्डियां लहराई जाने लगी। मन्दिर शर्मसार हो गया। पुजारियों में कहीं बयानबाजी , तो कहीं उल्लास तो कहीं सन्नाटा पसर गया। और जनता को शर्म से पानी- पानी होने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा। ऐबी वर्धन ने जब से कहा कि २५- २५ करोड़ रुपये में खरीद जारी है। तब से ही उम्मीद जग गयी थी कि रुपयों की बहार है। दरअसल न्यूक्लियर डील के पहले एक डील आपस में हुई। जब उस डील की गांठे कमजोर पड़ गयीं। तो मन्दिर में नोटों की गड्डियों की बहार आ गयी। और फ़िर इसके बाद एक के बाद गद्दे थैले से बहार निकलकर पुजारी वाहवाही लूट रहे थे। और अपने आपको श्रेष्ठ नुमाइंदे होने का खिताब मँगाने लगे। अब सवाल ये उठता है कि आखिर इतनी भरी रकम आती कहाँ से है? और अगर आती भी है तो देने वाले देते क्यों है? इन सभी सवालों के जवाब सत्ता के उन दलालों के पास होता है । जिनका संबंध राजनैतिक दलों के साथ साथ उन धन्ना सेठों से होता है। जो पैसे तो देते हैं , लेकिन किसी शर्त पर। देश के ये धन्ना सेठ होते हैं कारपोरेट घरानों के महारथी। सभी घरानों की किसी न किसी राजनैतिक दल के साथ के संत-गांठ होती है। हालाँकि सभी राजनैतिक पार्टियां जानती हैं कि कौन सा घराना किसके साथ है। लेकिन कोई भी इस अवैध संबंध को उजागर नहें करना चाहता है। वज़ह ये है कि सभी इस संबंध में भागीदार हैं। अब ऐसे में डर इस बात का सता रहा है कि कहीं ये बिकाऊँ प्रोडक्ट इस बात का नारा न बुलंद कर दे कि लोकसभा बेंचना है खरीदोगे ?