Thursday, May 28, 2009

मुंबई की सुरक्षा में छेद

भारत को मनमोहनी सरकार फ़िर से मिल गयी। लेकिन देश को अब अंतर्राष्ट्रीय स्तरपर एक नयी दिशा व दशा तय करनी होगी। आतंक से जूझ रहे देश को सबसे पहले श्रीलंका से सबक लेकर आतंक की लहलहाती फसल को जड़ से काटना होगा। सबसे ज्यादा आतंक का घिनौनी खेल मुंबई ने देखा है । अगर मुंबई की बात की जाए तो मुंबई न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बड़ा शहर है।बल्कि देश की आर्थिक राजधानी भी है। लेकिन कानून व्यवस्था के ढीलेपन की वजह से हालत बिल्कुल लावारिश मालुम पड़ती है। आतंक, बमबारी, अपराधी गिरोह सभी ने इसका सुख चैन छीन लिया है। सहसा ऐसी वारदात हो जाती है की लोग सिहर उठाते हैं। और भगवान भरोसे मुंबई रहती है। कानून के रखवाले कुम्भकरण की नींद में सो रहे हैं या फ़िर अपराधियों से मिलीभगत है ? कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है की मुंबई के अंतर्राष्ट्रीय विमानतल के कार्गो टर्मिनल से दिनदहाडे चार नकाबपोश लुटेरे १०० किलो सोना चांदीभरे बॉक्स लूट ले जायेंगे। ऐसा द्रश्य अगर किसी फ़िल्म में दिखाई देता तो शायद स्क्रिप्ट राईटर की कल्पना की उड़ान मान लेते। लेकिन वास्तव में जब ऐसी दुस्साहसिक लूट होती है तो वाकईअचम्भा होता है। एअरपोर्ट की सुरक्षा को भेदकर लुटेरे लूट कर चंपत हो गए.आतंक के साए की वजह से एअरपोर्ट में भारी चौकसी रहती है। और वहाँ जांच पड़ताल के चलते पंछीभी पर नहीं मार सकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है की ये लुटेरे वहाँ तक कैसे पहुँच गए। उनसे कोई पूछताछ कैसे नहीं हुई। एअरपोर्ट हाई सिक्योरिटी ज़ोन में आता हैं। कोई बस अड्डा नहीं की टहलते टहलते चाहे जो कोई पहुँच जाए। जिस तरह से लूटेरोंने लूट को अंजाम दिया है उससे यही लगता है की किसी के आंखों से काजल चुराने वाली बात है। क्योंके एक सामान्य यात्री को कई सुरक्षा घेरों से निकला होता है। मुंबई में सुरक्षा के नाम पर पहले भी कई छेद देखे गए है। और इसकी कीमत मुम्बई करों को जान देकर चुकानी पड़ी। अभी आतंक के छर्रे खाया घायल ताज कराह रहा है। की एक बार फ़िर सुरक्षा व्यवस्था तार तार हो गयी। आख़िर मुंबई की सुरक्षा पर कब बंद होगा छेद,अमनचैन के लुटेरों को कब तक मिलेगी छूट , और कब सागर की अथाह गहराई नापने वाले मुंबई को मिलेगी चैन।