Tuesday, November 30, 2010

हमारे समाज का महारोग एड्स

एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम अथवा एड्स पूरी दुनिया में तेजी से पाँव पसार रहा हैं। एचआईवी पाजटिव होने का मतलब आम तौर पर ज़िन्दगी का अंत मान लिया जाता हैं लेकिन यह अधूरा सच हैं और डाक्टरों के मुताबिक एच आई वी पॉजीटिव लोग भी सामान्य आदमी की तरह लम्बे समय तक जीवन जी सकते हैं। न्यूयॉर्क में एड्स की पहचान १९८१ में समलिंगी वयस्क पुरुषों में प्रतिरक्षण क्षमता में कमी एवं उच्च मृत्यु दर के लक्षणों के साथ की गयी। और इसका नाम एड्स रखा गया।
ए- मतलब एक्वायर्ड यानी यह रोग किसी दूसरे व्यक्ति से लगता है।
आई डी-- मतलब इम्यूनो डिफीशिएंसी यानी यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को खत्म कर देता हैं।
एस -मतलब सिंड्रोम यानी कई तरह के लक्षणों से पहचानी जाती हैं।
वास्तव में एड्स वर्तमान समाज में मानव सभ्यता की समझ सबसे बड़ी चुनौती बनकर खडा है। इस बीमारी का लाइलाज होना ही इससे भयाक्रांत होने का सबसे प्रमुख कारण हैं। पूरी दुनिया में अब तक तकरीबन ढाई करोड़ लोग एड्स के गाल में समा चुके हैं और करोड़ों लोग अभी इसके प्रभाव में हैं। एड्स रोगियों में अफ्रीका पहले नंबर में हैं जबकि भारत दूसरे नंबर में हैं। भारत में पहला एड्स मरीज मद्रास में पाया गया था। अमेरिका में ये रोग समलैंगिकता के कारण तेजी से फैला जबकि भारत में असुरक्षित यौन सम्बन्धों के कारण दिनों दिन अपने पैर जमा रहा हैं।
जुलाई २००५ में ब्राजील की राजधानी रियो-डी - जेनेरिया में १२५ देशों के लगभग ५०० विशेषज्ञों ने मिलकर एक सेमिनार का आयोजन किया था। और उसमें २६० शोध पत्र पेश किये गए थे। बीमारी से लड़ने हेतु तमाम सुझाव भी दिए गए थे। शोध के मुताबिक पूरी दुनिया में १४००० लोग हर दिन एड्स की चपेट में आते हैं। ९५ फ़ीसदी लोग मध्यम और कम आय वाले देशों के होते हैं । २००५ में ६.५ मिलियन एड्स से पीड़ित लोगों को उपचार की ज़रुरत थी लेकिन एक मिलियन का ही उपचार हो सका ।
भारत में एड्स के हालत -
यूनिसेफ,यूएन एड्स और विश्व स्वस्थ्य संगठन के ताजे सर्वेक्षण
माता से बच्चों में एचआईवी संक्रमण की रोक -
--- एचआईवी पॉजीटिव गर्भाधारित महिलाओं की संख्या - ६४,०००
-- एचआईवी पॉजीटिव के साथ उत्पन्न बच्चों की संख्या और प्रतिशत - १२,00 {२%}
-- १५ - २४ साल के लोगों में एचआईवी पुरुषों में - ०.३% और महिला ०.३%
-- १५-२४ साल के लोगों में जो पिछले एक वर्ष में एक से अधिक जीवन साथी के साथ लैंगिक सम्बन्ध बनाये उनका प्रतिशत पुरुष - १.६%, महिला ०.१%
-- एचआईवी से ग्रसित अनाथ बच्चों की संख्या २५,०००,०००

इस सच्चाई को जानने के बाद यही कहा जा सकता हैं की एड्स एक बड़ी बीमारी हैं - बेहद खतरनाक भी, लेकिन कोई समाज जितना बीमारियों से नहीं मरता उतना अपने रवैये से नष्ट होता हैं। एड्स का हम मुकाबला कर सकते हैं लेकिन उस डर, उस नासमझ का सामना कैसे करें जो अमानवीय ढंग से हमें अपने ही समाज के कुछ असहाय लोगों से काट डालती हैं । उन्हें अछूत बना डालती हैं। भारत सिर्फ एड्स का नहीं बल्कि कई बीमारियों का घर है। उन्नीसवीं सदी की बीमारियाँ इस इक्कीसवी सदी में पलट कर हमला कर रही हैं। हम प्लेग और पोलियो से भी लड़ रहे हैं। कैंसर एड्स की ही तरह रहस्यमय और जानलेवा बीमारी बना हुआ हैं। डायबिटीज को खामोश महामारी कहा जाता हैं। लेकिन और भी कई खामोश महामारियां से इस समाज को बीमार बनाने में लगी हैं। हमने एक चमकता हुआ भारत बनाया लेकिन इस भारत में कई हाँफते,कराहते,खांसते भारत भी शामिल हैं। वो बेदखल भारत शामिल हैं जो अपने घर परिवार से सैकड़ों मील दूर ज़िन्दगी और रोजगार की जद्दोजहद में रोज खुद को गला रहे हैं। छोटे-छोटे शहरों से देश के महानगरों तक ज़िन्दगी की तलाश में पहुंचे ये लोग अपने जिस्म में मौत के कीड़े लेकर लौटते हैं। और उनके घर वाले जान तक नहीं पाते कि आखिर उन्हें बीमारी है क्या ? ये वो एड्स हैं जो शरीर को नहीं बल्कि समाज को खा रहा हैं। फिर कहना होगा कि एड्स का इलाज सिर्फ एंटी रेट्रो वायरल थेरपी से नहीं हो सकता। इसके लिए पूरे समाज की धमानिया साफ़ करनी होगी उसका रक्त बदलना होगा। ये काम आसान नहीं है इसके बिना हम एड्स और कैंसर के इलाज खोज भी लें तो भी अपने समाज को नहीं बचा पायेंगे। क्यों कि हम इस लिए नहीं मर रहे हैं कि दवाएं नहीं हैं बल्कि इस लिए मर रहे हैं कि उनके पास दवाओं तक पहुंचने का साधन नहीं हैं ।

Wednesday, November 10, 2010

जय हिन्द बराक ओबामा

आखिर ऊँट पहाड़ के नीचे आ ही गया। यानी दुनिया का तानाशाह औकात पर आ गया। कल तक जो भारत की तरफ आँखें तरेरता था अब उसकी आँखों में पानी भर आया हैं। और आँखों में पानी भरने कि वजह भी साफ़ हैं । जब राजा के यहाँ बेरोजगारी मुह फैलाकर खड़ी होने लगी तो भारत कि तरफ आस जागी। और इसी आस के साथ इस व्यापारी ने भारत से कारोबार करके अब अमेरिकी बाज़ार को गुलजार करेगा। " जय हिन्द, बहुत धन्यवाद,नमस्ते" जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके और लच्छीदार भाषण पिलाकर भारत से जो उसे चाहिए था वो ले लिया। और भारत भी उसके इस भाषण से लट्टू हो गया। और भारत को जिस तरह कि उम्मीद थी वो मिल गयी। ओबामा ने आज भारत को विश्व पटल में एक नया आयाम दिया हैं। और इसकी बानगी यही हैं कि भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थाई सदस्यता के लिए ओबामा ने वकालत भी कर दी। यानी सुरक्षा परिषदमें भारत कि दावेदारी पर मोहर लगा दी हैं। सुरक्षा परिषद के क्या दाँव पेंच हैं इसे समझने के लिए सबसे पहले सुरक्षा परिषद के बारे में जाना जरूरी होगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंग
सयुंक्त राष्ट्र संघ के संविधान में इसके छह प्रमुख अंगों का वर्णन किया गया हैं ।
१ - महासभा
२ - सुरक्षा परिषद
३- आर्थिक व सामाजिक परिषद
४- न्याशी परिषद
५- अंतरर्राष्ट्रीय न्यायलय
६- सचिवालय

सुरक्षा परिषद
सुरक्षा परिषद विश्व शांति एवं सुरक्षा से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र संघ के दायित्वों को पूरा करने वाला आदेशात्मक संस्था है। इसके १५ सदस्य हैं। जिनमें पांच स्थायी सदस्य हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, साम्यवादी चीन, फ़्रांस और रूस । अस्थायी सदस्यों को सयुंक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा दो वर्षों के लिए चुना जाता है। अस्थायी सदस्यों में सामान्यतः पांच अफ्रीकी एशियाई देशों से, दो लैटिन अमेरिका, दो पश्चिमी यूरोप तथा एक पूर्वी यूरोप से चुने जाते हैं। अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरों के क्रम से सभी देश एक-एक मास के लिए सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता करते हैं। सुरक्षा परिषद के अंतर्गत प्रक्रिया संबंधी सामान्य विषयों पर किन्ही ९ सदस्यों के समर्थन से कोई प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा से सम्बंधित किसी विषय पर उन नौ सदस्यों में पांचो स्थायी सदस्यों का समर्थन हासिल होना आवश्यक हैं। यदि स्थायी सदस्यों में से किसी ने प्रस्ताव के खिलाफ समर्थन कर दिया तो प्रस्ताव पारित नहीं माना जाएगा। इस प्रकार स्थायी सदस्यों को वीटो शक्ति का निषेधाधिकार दिया गया हैं। जिसका प्रयोग करके वो किसी मुद्दे पर प्रस्ताव पारित करने या किसी कारवाई को रोक देते हैं।
अपने दायित्वों को पूरा करने के क्रम में सुरक्षा परिषद सर्वप्रथम शांतिपूर्ण उपायों से विवादों के समाधान का प्रयास करती हैं। जिनमें विचार विमर्श, मध्यस्थता आदि शामिल हैं। यह क्षेत्रीय संगठनों को भी विवादों के समाधान हेतु प्रोत्साहित करती है। शांतिपूर्ण उपायों द्वारा विवादों का समाधान न होने पर यह दोषी राष्ट्रों के विरुद्ध कूटनीतिक, आर्थिक व वित्तीय दंड निर्धारित करती है एवं अंतिम उपाय के रूप में सैनिक कारवाई का आदेश भी दे सकती है।
सुरक्षा परिषद में सुधार का प्रश्न - वर्तमान समय में विश्व की बदली हुई राजनैतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के अनुरूप सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग लगातार की जा रही हैं। जिससे अफ्रीका, एशिया तथा लैटिन अमेरिकी देशों को उचित प्रतिनिधत्व प्राप्त हो सके । संयुक्त राष्ट्र के अस्तित्व में आने के छह दशकों के दौरान विश्व व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आ गया है। दूसरे विश्व युद्ध के खलनायक देश जापान और जर्मनी की अर्थ व्यवस्था क्रमशः विश्व की दूसरी और तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था बन चुकी है। दूसरी ओर भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, व मैक्सिको जैसे देश विश्व की तेजी से बढ़ती हुई अर्थ व्यवस्था वाले देश बनकर उभरे हैं । जहां तक भारत की सुरक्षा परिषद में दावेदारी का प्रश्न है अमेरिका व चीन को छोड़कर अन्य तीन स्थायी सदस्यों ने खुलकर समर्थन किया हैं ( अमेरिका ने अब समर्थन किया हैं ) । जबकि विश्व के अन्य प्रमुख देशों सहित विकासशील देशों ने ऐसी ही मंशा जतायी हैं। हालाँकि सुरक्षा परिषद में सुधार के स्वरूप को लेकर देशों के बीच मतभेद हैं कुछ का मानना है कि सुरक्षा परिषद के नए सदस्यों को वीटो पावर न दिया जाए। जबकि सदस्यता के इच्छुक भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका,जापान व जर्मनी इस शक्ति के बगैर सुरक्षा परिषद की सदस्यता को उचित नहीं मानते।
लेकिन अब अमेरिका ने भारत के दावेदारी को मजबूती प्रदान कर दी हैं। लिहाजा विरोध झेलना है केवल चीन का । इस लिहाज से स्थायी सदस्यता की राह खुलती नजर आ रही हैं। लेकिन अभी राह आसान नहीं हैं । केवल उम्मीद जाग गयी हैं । और उम्मीद पर तो पूरी दुनिया टिकी है। लेकिन जैसे ही ओबामा ने खुल कर समर्थन किया तो दावेदारी के अन्य सदस्यों की भौंहें तन गयी हैं । इस सीट के लिए प्रबल दावेदारों में शुमार किये जा रहे जापान और जर्मनी ने आरोप लगाया है कि उनकी अनदेखी की जा रही है। भारत के धुर विरोधी पाकिस्तान ने तो अमेरिकी राजदूत से मिलकर अपना विरोध औपचारिक रूप से भी दर्ज करा दिया हैं। जब कि तथ्य यही है कि अभी ये तो दूर की कौड़ी हैं। लेकिन अन्य देशों की नीद हराम हो गयी हैं।

ओबामा की नब्ज - ओबामा ने भारत को एक उभर चुका देश कहा हैं। यानी अब हम विकसित देश की कतार में शामिल हो गए। लेकिन ऐसा नहीं हैं। अमेरिका ने अभी स्थायी सदस्यता के लिए जापान का समर्थन किया है। जब कि जी - ४ का विरोध किया है । इस समूह में जापान, जर्मनी , भारत और ब्राजील शामिल हैं। इस तरह ओबामा ने भारत के दावे का समर्थन करके अपना रूख तो स्पष्ट कर दिया है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि जी- ४ मामले में अमेरिका भारत का समर्थन करेगा।
कौन किसके खिलाफ - सयुंक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता चाहने वालों में आपस में ही एक दूसरे के विरोधी हैं । जैसे - जापान और भारत की दावेदारी के खिलाफ चीन हैं। ब्राजील को मैक्सिकोऔर अर्जेंटीन का विरोध झेलना पड़ रहा है। अफ्रीका में दक्षिण अफ्रीका सबसे प्रबल दावेदार हैं । लेकिन कुछ और देश अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं। इधर इसके स्थायी सदस्य ज्यादातर यूरोपीय देशों के हैं। और वो चाहते हैं कि विश्व के हर हिस्से के देशों को इसका प्रतिनिधत्व दिया जाए ।
इन सब तमाम पेंच को देखकर लगता हैं कि कहीं स्थायी सदस्यता खैनी पुलाव न साबित हो लेकिन ऐसा नहीं होगा। और ओबामा के जय हिन्द ने भारत को एक नयी ऊर्जा दी हैं और उसी सकारात्मक ऊर्जा के साथ भारत को अपने कदम आगे बढ़ाना होगा।

Thursday, November 4, 2010

झंडा ऊंचा रहे हमारा देश फिरै चाहे मारा - मारा

यह कहानी आजाद भारत की हैं। जहाँ तिरंगा भले ही न लहरा रहा हो , लेकिन तिरंगे की कुंडली मारे बैठे देश के राजनीतिक दलों के झंडे लक्ष्मी जी की ऊर्जा से लहरा रहे हैं। सरकार के पास अनाज सडाने का प्रावधान हैं,उसे पानी में बहाने का प्रावधान हैं लेकिन गरीबों में बांटने का प्रावधान नहीं हैं। राजनीतिक पार्टियां मालामाल हैं। आम आदमी फटे हाल हैं। दिन दो गुना रात चौगुना की रफ़्तार से राजनीतिक पार्टियों का खजाना भर रहा हैं। आज़ाद भारत में दो जून की रोटी के लिए जिन्हें लाले पड़ रहे हैं उनसे पूछो आपको आज़ादी के बाद क्या मिला ? और देश के नेताओं से पूछो कि उन्होंने देश की आज़ादी के बाद क्या हासिल किया ? इसका जवाब यही होगा कि देश के राजनीतिक दल आज़ाद भारत का भविष्य चर रहे हैं।
हाल ही में सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी सामने आई हैं । उसका अंदेशा सबको होगा और वही जानकारी मिली हैं जो राजनीतिक दलों से उम्मीद की जा सकती हैं। देश में कांग्रेस पार्टी सबसे अमीर दल के रूप में उभरकर सामने आई हैं । हालाँकि पिछले एक साल के दौरान खजाने में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी सर्व धर्म सुखाय सर्व धर्म हिताय का नारा देने वाली बहुजन समाज पार्टी ने किया हैं। आंकड़ों के अनुसार ३१ मार्च २००९ तक छह सालों के दौरान कांग्रेस को सबसे अधिक ४९७ करोड़ रुपये कि कमाई हुयी है। २००२ से २००९ के बीच कांग्रेस की कुल संपत्ति १५१८ करोड़ रुपये की आंकी गयी हैं। वहीँ २००९ से १० के दौरान भाजपा के खजाने में २२० करोड़ रुपये व बसपा के खजाने में १८२ करोड़ रूपये की कमाई दर्ज हैं। पिछले ६ सालों के दौरान कुल आय वृद्धि दर के मामले में बसपा ने सबको पीछे छोड़ दिया। बसपा ने २००२ से ०९ के बीच ५९ फीसदी की दर से अपनी आय बढाई है। जब कि कांग्रेस की आय ४२ फीसदी की दर से बढ़ी है । कांग्रेस की सहयोगी एन.सी.पी.ने अपना खजाना भरने में ५१% की दर से बढ़ोत्तरी की हैं। वहीँ सपा ने ४४% की वृद्धि दर के साथ खजाना भरा है। असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रेफोर्म्स ( ए.डी.आर.) ने सूचना के अधिकार के तहत सभी राजनीतिक पार्टियों का आयकर और अचल संपत्ति के आधार पर उक्त विश्लेषण किया हैं । केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश के बाद सभी प्रमुख पार्टियों ने अपनी सम्पत्ति और आय का ब्यौरा दिया। वहीँ पिछले एक साल में सीपीआई ने एक करोड़, समाजवादी पार्टी ने ४० करोड़, सीपीएम ने ६३ करोड़ व राजद ने ४ करोड़ का फंड जुटाया।
२००२ - २००३ से लेकर २००९-१० के अंतराल में कुल संपत्ति के मामले में भी कांग्रेस सबसे आगे है । इस दौरान कांग्रेस की कुल संपत्ति १५१८ करोड़ रुपये रही। जब कि भाजपा की इस अवधि में ७५४ करोड़ रुपये की कुल संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर है। बसपा की कुल संपत्ति की कीमत ३५८ करोड़ रुपये आंकी गयी है। पिछले छह सालों के दौरान सीपीएम की कुल संपत्ति ३३९ करोड़ रुपये सपा की २६३ करोड़ रुपये रही जब कि राजद की संपत्ति १५ करोड़ और सीपीआई की कुल संपत्ति महज ७ करोड़ आंकी गयी।
यक्ष अब सवाल यहाँ से ये उठता है कि जो भी पार्टी सत्ता में आती है उसका वित्तीय मामले में रोना शुरू हो जता है। अच्छी योजनाओं के लिए फंड में कमी,कानूनी दांव पेंच जैसे मामले की वजह से योजनायें अधर में लटक जाती हैं। जबकि सत्ता का नशा चढ़ते ही पार्टी मालामाल होना शुरू हो जाती हैं। रिकॉर्ड तोड़ कमाई करने वाली मायावती की पार्टी की बात की जाए तो वो नोटों की माला पहनने में ही सम्मान समझती है। और दलील देती हैं कि दलित की बेटी हूँ। मेरे कार्यकर्ताओं ने धन एकत्र करके दिया है, जब आपके कार्यकर्ताओं में इतनी कूवत है तो उन्हें निर्धन, असहाय लोगों की सेवा में क्यों नहीं लगाया जाता है? उल्टे जूं बन कर उन्हीं का खून चूसने निकल पड़ते है॥ आज हर एक राजनीतिक दल का यही हाल है। बड़े नेता जिस भी अमुक जगह में पहुँचते हैं रुपयों की पोटली बाँध कर विदा किया जाता हैं.जबकि उसी जगह कितने लोग जीवन निर्वाह के लिए अपने शरीर की हड्डियों का ढांचा ढोनेके लिए मजबूर होते हैं। मुंबई में लालकृष्ण आडवाणी के आने पर करोड़ों रुपये की धन राशि दी गयी थी । इसको देने वाले और खर्च करने वाले ही आज देश के भस्मासुर है ।
अब ज़रुरत हैं लोकतंत्र के जिस ढाँचे को पीढ़ियों से ढोया जा रहा है उसमें बदलाव करने की। कितना गलत पढ़ाया जा रहा है कि सरकार जनता ने चुना हैं जबकि जनता ने सिर्फ विधायक और सांसद चुने हैं न कि प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री नहीं। देश का कोई आम नागरिक कह दे कि ,मैंने प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री का चयन किया हैं। और यहीं से भ्रष्टाचार पनपना शुरू हो जाता हैं। और हकीकत जानना है तो कहते हैं बहमत प्राप्त दल के सदस्य अपना नेता चुनते हैं। कितने सदस्यों ने अपना नेता स्वतंत्र रूप से चुना है। आज देश के नेताओं की शैक्षिक योग्यता निर्धारित होना अनिवार्य हैं तभी कहा जाए कि लोकतंत्र प्रधान देश है। नहीं तो संसद भवन में नोटों की गड्डी लहराना अभी तो एक बानगी हैं। आगे क्या होगा देश के मालामाल नेता और मालामाल राजनीतिक दल जानें। क्योंकि भविष्य निर्माता यही हैं। देश का झंडा इन्हें भाता नहीं हैं इनके कार्यालयों में पार्टी का झंडा लहराएगा। इसी लिए राजनीतिक पार्टियों के तरफ से झंडा ऊंचा रहे हमारा देश फिरै चाहे मारा-मारा ।