Wednesday, November 30, 2011

एसएंडपी ने प्रमुख अमेरिकी बैंकों की रेटिंग घटाई

प्रमुख वैश्विक रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स रेटिंग्स सर्विसेज ने कहा कि बैंकों के लिए नए रेटिंग मानदंड लागू करने की प्रक्रिया के एक हिस्से के तौर पर उसने प्रमुख अमेरिकी बैंकों की रेटिंग घटा दी है।रेटिंग एजेंसी ने कहा कि उसने दुनिया के 37 सबसे बड़े बैंकों की फिर से रेटिंग की है। इनमें बैंक ऑफ अमेरिका, सिटीग्रुप, गोल्डमैन सैक्स, वेल्स फार्गो, जेपीमोर्गन चेज और मोर्गन स्टेनले जैसे प्रमुख अमेरिकी बैंक शामिल हैं।एसएंडपी ने एक साल से अधिक समय तक अध्ययन और विश्लेषण करने के बाद पिछले सप्ताह संशोधित रेटिंग मानदंड जारी किए।रेटिंग एजेंसी ने बैंकों के लिए नए मानदंड में निवेश बैंकिंग के साथ जुड़े जोखिम, बैंकों के लिए वित्तीय व्यवस्था और बैंकिंग उद्योग में सरकार और केंद्रीय बैंकों की भूमिका जैसे तत्वों को शामिल किया है।रेटिंग एजेंसी ने बार्कलेज, एचएसबीसी, ल्योड्स और रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड जैसे प्रमुख ब्रिटिश बैंकों की भी रेटिंग घटाई है। लेकिन क्रेडिट सुईस और डॉयश बैंक की रेटिंग में बदलाव नहीं किया गया है।

Monday, May 2, 2011

कांग्रेस की घास कांग्रेस के कीड़े

आज़ाद भारत पर सबसे ज्यादा सालों तक शासन करने का श्रेय कांग्रेस के पास है । घोटालेबाज और महंगाईगीरी में एकाधिकार वर्चस्व स्थापित कर चुकी कांग्रेस के पास एक ऐसी घास है जो पिछले कई दशकों से देश की लक्ष्मी को तो चाट रही है साथ ही भारतीयों को अस्थमा और फोड़े फुंसियां जैसी बीमारियाँ भी बोनस में दे रही है।
दरअसल, आज़ादी के बाद जब देश में गेहूं की कमी हो गयी थी । तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने १९५० में अमेरिका से पी.एल - ४८० किस्म के गेहूं का आयात किया गया था । इस गेहूं के साथ अमेरिका ने एक घास भी भेज दिया था। इस घास का वैज्ञानिक नाम - पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है। भारत में इसे गाजर घास के नाम से जाना जाता है। लेकिन सियासी मैदान में ये घास कांग्रेस घास के नाम से बहुचर्चित है। इस घास को सबसे पहले १९५६ में पुणे में देखा गया था।
कांग्रेस घास पिछले ५५ सालों में देश की करीब ३५० लाख हेक्टेयर भूमि पर फ़ैल चुकी है । इनमें से लगभग २० लाख हेक्टेयर जमीन खेती की है कारगिल से लेकर अंडमान निकोबार और दिल्ली तक इसने अपने पैर पसार लिए हैं।
फसल और इन्सान के लिए खतरनाक - कांग्रेस घास के पौधे की लम्बाई एक मीटर से डेढ़ मीटर तक होती है। एक पौधे में तकरीबन २५-३० हजार बीज पैदा होते हैं। और प्रकीर्णन के माध्यम से दूर - दूर तक पहुँच जाते हैं। जिसका इलाज वैज्ञानिक अभी तक नहीं ढूंढ पाए हैं। इसके कारण त्वचा काली पड़ जाती है। और उस पर फुन्सिया निकल आती हैं। इस घास के बीजों के संपर्क मेंआने से अस्थमा भी हो सकता है । जानवरों के लिए ये घास बेहद खतरनाक है। गाय और बकरी जैसे पशुओं की त्वचा में ये बुरा प्रभाव डालती हैं। दुधारू पशु जब इस घास को खाते हैं तो उनके दूध का स्वाद कसैला महसूस होता हैं। और लम्बे समय तक अगर ऐसे दूध का सेवन किया जाए तो मौत भी हो सकती है। कांग्रेस घास हर तरह की भूमि और जलवायु में उग सकती है। तकरीबन २५-३० डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसका अंकुरण हो सकता है। इस घास का प्रसार अनाज उत्पादन में कमी के लिए भी जिम्मेदार है । यह एक ऐसी खरपतवार है जो फसलों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है।
घास चरने की तैयारी - अब वैज्ञानिकों ने इसका नामो निशान मिटाने के लिए मक्सिको से जायागोग्रेम्मा बाइको लोराटा नाम के कीट के आयात का फैसला किया गया है। यह कीट कांग्रेस घास को चट कर जाता है। इसके ट्रायल के नतीजे अच्छे खासे रहे हैं। केमिकल्स की मदद से भी इसे ख़त्म करने की कोशिशें की जा रही हैं। लोगों को इस घास और इसके दुष्प्रभावों के बारे में बताया जा रहा है । इस कांग्रेस घास ने सरकारी खजाने को भी कायदे से साफ़ किया हैं। अब तक सरकारी खजाने से इस घास ने डेढ़ लाख करोड़ रुपये चाट चुकी है। जानकारों की मानें तो अभी इस घास से मुक्ति पाने के लिए भारी भरकम रकम खर्च करने की ज़रुरत है। जिसमें मजदूरों पर तकरीबन १६,८०० और रासायनों पर ११,900 करोड़ रुपये का मोटा खर्च होने की उम्मीद है।
अब महंगाई के इस सर्पदंश से खेल रहे देश के आम नागरिकों के साथ कांग्रेस की घास औरकांग्रेस के कीड़े क्या नया शिगूफा रचेंगे ये भी देखना दिलचस्प रहेगा।

Tuesday, January 25, 2011

लहराते तिरंगे का सफ़र

देश की आन बान शान लहराता तिरंगा झंडा ने आज 66 साल का सफ़र पूरा कर लिया हैं। देश में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज का दर्जा 22 जुलाई 1947 को मिला। इससे पहले इसे "स्वराज फ्लैग " के नाम से जाना जाता था। और इसका उपयोग कांग्रेस पार्टी किया करती थी।
महात्मा गाँधी ने कांग्रेस के समक्ष पहली बार 1921 में ध्वज का प्रस्ताव रखा। इस ध्वज की डिजाइन कृषि वैज्ञानिक पिंगाली वेंकैया ने तैयार किया था। थोड़ा सा बदलाव करके इस ध्वज को "स्वराज फ्लैग " नाम से 1931 में कांग्रेस ने अपना आधिकारिक ध्वज घोषित कर दिया। स्वराज फ्लैग में तीन रंग केसरिया, सफ़ेद और हरा रंग था और बीच में चरखा बना हुआ था। जब आज़ादी का समय आया तो डॉ राजेंद्र प्रसाद कि अध्यक्षता में एक कमेटी बनायीं गयी। इस कमेटी ने 14 जुलाई 1947 को कांग्रेस पार्टी के स्वराज फ्लैग को राष्ट्रीय ध्वज बनाने का सुझाव दिया गया। और इसके बाद स्वराज फ्लैग से चरखा हटाकर "अशोक चक्र" अंकित किया गया और 22 जुलाई  1947 को राष्ट्रीय ध्वज का दर्जा दिया गया। राष्ट्रीय ध्वज के निर्धारण में इस बात का ख़याल रखा गया कि सभी पार्टियों और धार्मिक समुदायों को स्वीकार्य हो। पूर्व उप राष्ट्रपति ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे परिभाषित किया - जिसमें केसरिया रंग त्याग और सहस, श्वेत रंग शांति और सत्य एवं हरा रंग विश्वास और हरियाली का प्रतीक हैं। इसके अलावा ध्वज के मध्य अशोक चक्र देश कि गतिशीलता व धर्म को दर्शाता हैं। राष्ट्र ध्वज का इस्तेमाल और प्रदर्शन फ्लैग कोड ऑफ इंडिया द्वारा संचालित होता हैं।
क़ानून के तहत अगर कोई व्यक्ति या संस्थान राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करता पाया जाता हैं तो उसे तीन साल की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं । सन 2009 के पहले किसी को भी स्वतंत्रता दिवस या फिर गणतन्त्र दिवस के अलावा अन्य अवसरों पर राष्ट्रीय ध्वज अपने घर या कार्यालय पर फहराने कि इजाज़त नहीं थी। लेकिन 26 जनवरी 2002 से सरकार ने फ्लैग कोड ऑफ इंडिया में संसोधन करके इसकी इजाज़त प्रदान की। इसी तरह राष्ट्रीय ध्वज को रात्रि में फहराने की इजाज़त नहीं थी । मगर 2009 में एक जनहित याचिका की सुनवाई पर सरकार ने विशेष शर्तों के साथ इसे फहराने की अनुमति दे दी।
तिरंगे का इतिहास - पहली बार तिरंगा झंडा 7 अगस्त 1906 में सचिन्द्र बोस ने बंगाल विभाजन के विरोध में बनाया था। इसे " कलकत्ता फ्लैग " का नाम दिया गया . इस ध्वज में केसरिया,पीला और हरा रंग उपयोग में लाया गया। और झंडे के बीच में हिंदी में वन्दे मातरम लिखा हुआ था।
--- इसके बाद होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट ने 1917 में नया ध्वज बनाया । इस ध्वज पर पांच लाल और चार हरी तिरक्षी पट्टियाँ बनीं थी। सात तारों को भी इस पर अंकित किया गया था। यह ध्वज लोगों के बीच ज्यादा प्रसिद्द नहीं हुआ।
इस तरह से तिरंगे ने इतना लंबा सफ़र तय करने के बाद आज भी देश में तिरंगे की हालत बाद से बदतर हैं। प्लास्टिक के झंडे ज्यादा बाज़ार में आ गए हैं। ये नष्ट नहीं होते जिसकी वजह से लोगों के पैरों तले और नालियों में पड़े रहते हैं। अब तो तिरंगे में भी चीन घुस गया है... इन दिनों बाज़ार में सबसे ज्यादा चीनी तिरंगे बिक रहे हैं... धन्य है देश जो आन बान शान में भी चीन...   आज एक बार फिर सभी को देश के प्रति जागरूक होने की ज़रुरत हैं।