Tuesday, January 25, 2011

लहराते तिरंगे का सफ़र

देश की आन बान शान लहराता तिरंगा झंडा ने आज 66 साल का सफ़र पूरा कर लिया हैं। देश में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज का दर्जा 22 जुलाई 1947 को मिला। इससे पहले इसे "स्वराज फ्लैग " के नाम से जाना जाता था। और इसका उपयोग कांग्रेस पार्टी किया करती थी।
महात्मा गाँधी ने कांग्रेस के समक्ष पहली बार 1921 में ध्वज का प्रस्ताव रखा। इस ध्वज की डिजाइन कृषि वैज्ञानिक पिंगाली वेंकैया ने तैयार किया था। थोड़ा सा बदलाव करके इस ध्वज को "स्वराज फ्लैग " नाम से 1931 में कांग्रेस ने अपना आधिकारिक ध्वज घोषित कर दिया। स्वराज फ्लैग में तीन रंग केसरिया, सफ़ेद और हरा रंग था और बीच में चरखा बना हुआ था। जब आज़ादी का समय आया तो डॉ राजेंद्र प्रसाद कि अध्यक्षता में एक कमेटी बनायीं गयी। इस कमेटी ने 14 जुलाई 1947 को कांग्रेस पार्टी के स्वराज फ्लैग को राष्ट्रीय ध्वज बनाने का सुझाव दिया गया। और इसके बाद स्वराज फ्लैग से चरखा हटाकर "अशोक चक्र" अंकित किया गया और 22 जुलाई  1947 को राष्ट्रीय ध्वज का दर्जा दिया गया। राष्ट्रीय ध्वज के निर्धारण में इस बात का ख़याल रखा गया कि सभी पार्टियों और धार्मिक समुदायों को स्वीकार्य हो। पूर्व उप राष्ट्रपति ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने इसे परिभाषित किया - जिसमें केसरिया रंग त्याग और सहस, श्वेत रंग शांति और सत्य एवं हरा रंग विश्वास और हरियाली का प्रतीक हैं। इसके अलावा ध्वज के मध्य अशोक चक्र देश कि गतिशीलता व धर्म को दर्शाता हैं। राष्ट्र ध्वज का इस्तेमाल और प्रदर्शन फ्लैग कोड ऑफ इंडिया द्वारा संचालित होता हैं।
क़ानून के तहत अगर कोई व्यक्ति या संस्थान राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करता पाया जाता हैं तो उसे तीन साल की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं । सन 2009 के पहले किसी को भी स्वतंत्रता दिवस या फिर गणतन्त्र दिवस के अलावा अन्य अवसरों पर राष्ट्रीय ध्वज अपने घर या कार्यालय पर फहराने कि इजाज़त नहीं थी। लेकिन 26 जनवरी 2002 से सरकार ने फ्लैग कोड ऑफ इंडिया में संसोधन करके इसकी इजाज़त प्रदान की। इसी तरह राष्ट्रीय ध्वज को रात्रि में फहराने की इजाज़त नहीं थी । मगर 2009 में एक जनहित याचिका की सुनवाई पर सरकार ने विशेष शर्तों के साथ इसे फहराने की अनुमति दे दी।
तिरंगे का इतिहास - पहली बार तिरंगा झंडा 7 अगस्त 1906 में सचिन्द्र बोस ने बंगाल विभाजन के विरोध में बनाया था। इसे " कलकत्ता फ्लैग " का नाम दिया गया . इस ध्वज में केसरिया,पीला और हरा रंग उपयोग में लाया गया। और झंडे के बीच में हिंदी में वन्दे मातरम लिखा हुआ था।
--- इसके बाद होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट ने 1917 में नया ध्वज बनाया । इस ध्वज पर पांच लाल और चार हरी तिरक्षी पट्टियाँ बनीं थी। सात तारों को भी इस पर अंकित किया गया था। यह ध्वज लोगों के बीच ज्यादा प्रसिद्द नहीं हुआ।
इस तरह से तिरंगे ने इतना लंबा सफ़र तय करने के बाद आज भी देश में तिरंगे की हालत बाद से बदतर हैं। प्लास्टिक के झंडे ज्यादा बाज़ार में आ गए हैं। ये नष्ट नहीं होते जिसकी वजह से लोगों के पैरों तले और नालियों में पड़े रहते हैं। अब तो तिरंगे में भी चीन घुस गया है... इन दिनों बाज़ार में सबसे ज्यादा चीनी तिरंगे बिक रहे हैं... धन्य है देश जो आन बान शान में भी चीन...   आज एक बार फिर सभी को देश के प्रति जागरूक होने की ज़रुरत हैं।