Friday, April 26, 2013

एच1बी वीजा, सपनों को साकार करने का 'टिकट'

अमेरिका एक ऐसा देश है जिसे स्वर्णिम अवसरों का देश भी कहा जाता है। अगर आपमें प्रतिभा और कौशल है तो अमेरिका जैसा देश दोनों हाथों से आपको अपनाने के लिए तैयार रहता है। इसी कारण से हमारे देश के बहुत सारे विशेषज्ञ, डॉक्टर और इंजीनियर अमेरिकी सपनों को पूरा करने के लिए हर वर्ष वहां जाते हैं, जबकि वहां की सरकार ने ऐसे लोगों के लिए काम करने संबंधी नियम और कानून बनाए हैं और कुशल श्रमिकों के लिए तमाम तरह के वीजा की सुविधा भी उपलब्ध कराई है। इन्हीं में से एक सुविधा है एच-1बी वीजा जो हमारे देश में बहुत अधिक लोकप्रिय है और जिसे अमेरिकी नागरिकता पाने की दिशा में पहली सीढ़ी माना जाता है। 

अमेरिका के आप्रवास और राष्ट्रीयता कानून के सेक्शन 101(ए) (15)(एच) के अंतर्गत एच1बी वीजा एक ऐसा नॉन-इमीग्रेंट वीजा होता है जिसके तहत अमेरिकी नियोक्ताओं को कुछ विशेष पेशों के लिए अस्‍थाई तौर पर विदेशी श्रमिकों को रखने की अनुमति मिलती है। अगर कोई एच-1बी दर्जे का विदेशी श्रमिक काम छोड़ता है अथवा उसे प्रायोजक नियोक्ता द्वारा बर्खास्त कर दिया जाता है तो श्रमिक नॉन-इमीग्रेंट दर्जे में बदलाव के लिए आवेदन करना होता है। इसके साथ ही उसे किसी दूसरे नियोक्ता की खोज करनी पड़ती है या फिर अमेरिका ही छोड़ना पड़ता है।
अमेरिकी कानून के तहत उन
'विशेष पेशों' को भी परिभाषित किया गया है जिनके लिए बहुत ऊंचे दर्जे की सैद्धांतिक और प्रायोगिक ज्ञान की जरूरत होती है। ऐसे विशेष कामों में बायोटेक्नोलॉजी, केमिस्ट्री, आर्किटेक्चर, इंजीनियरिंग, गणित, फिजिकल साइंसेज, सोशल साइंसेज, मेडिसिन और स्वास्थ्य, शिक्षा, कानून, लेखापालन, कारोबारी विशेषज्ञताएं, धर्मविज्ञान, और कलाएं शामिल हैं। विदेशी श्रमिक को कम से कम स्नातक डिग्री या इसके समकक्ष योग्यता अवश्य रखना चाहिए।
इसके तहत अमेरिका में प्रवास की अवधि सामान्यतया तीन वर्ष की होती है लेकिन इसे छह वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। कुछ असाधारण मामलों में और विशेष परिस्थितियों में प्रवास की अवधि अत्यधिक भी हो सकती है। असामान्य डिफेंस डिपार्टमेंट प्रोजेक्ट से संबंधित काम के लिए एच-1बी वीजा की अवधि दस वर्ष की हो सकती है।
एच-1बी वीजा रखने वाले अगर छह वर्ष के बाद भी अमेरिका में काम करना चाहते हैं और उन्होंने स्‍थाई निवासी का दर्जा नहीं लिया है तो उन्हें एक और एच1बी वीजा के लिए फिर से आवेदन करना होता है और कम से कम एक वर्ष तक अमेरिका से बाहर रहना पड़ता है। एक व्यक्ति अपने काम पर किसी भी समय तक बना रह सकता है जिसके लिए मूल रूप से वीजा जारी किया गया था। वर्तमान प्रभावी कानून के अनुसार जब नियोक्ता और कर्मचारी के संबंध समाप्त हो जाते हैं तब कोई निर्धारित ग्रेस पीरियड नहीं होता है और कर्मचारी को तुरंत अमेरिका छोड़ना पड़ता है लेकिन अमेरिकी कानून के तहत ऐसे बहुत से प्रावधान भी हैं जिनकी मदद से कर्मचारी इस तरह की मुश्किलों से उबर जाते हैं।
कांग्रेस प्रतिवर्ष वार्षिक संख्यात्मक सीमा तय करती है। फिलहाल यह सीमा विदेशी नागरिकों के लिए 65 हजार है जिन्हें प्रति वित्तीय वर्ष में जारी किया जाता है। इसके अलावा 20 हजार वीजा ऐसे विदेशी नागरिकों के लिए होते हैं जो अमेरिकी विश्वविद्यालयों से मास्टर्स या ऊंची डिग्री रखते हैं। इसी तरह फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्‍स के तहत 1400 वीजा चिली के नागरिकों और 5400 वीजा सिंगापुर के ना‍गरिकों के लिए तय कर दिए जाते हैं
, पर अगर इन आरक्षित वीजाओं का उपयोग नहीं हो पाता है तो वे दूसरे देशों के आवेदकों के लिए उपलब्ध करा दिए जाते हैं।
इस तरह प्रतिवर्ष एच1बी वीजा जारी किए जाने की संख्या 65 हजार की सीमा से कहीं अधिक होती है। इस कारण से वित्तीय वर्ष 2010 में जारी किए वीजाओं की संख्या 117
, 409 थी और अगले वर्ष, 2011 में 129, 134 वीजा जारी किए गए थे। अमेरिका की सिटीजनशिप एंड इमीग्रेशन सर्विसेज अप्रैल माह में अपने काम के पहले दिन से वीजा के लिए आवेदन स्वीकार करने लग जाती है और यह अनुरोध की गई तिथि से छह महीने तक पहले स्वीकृति देती है।
अमेरिकी श्रम विभाग विदेशी श्रमिकों की मौजूदगी के साथ-साथ इस बात के ठोस उपाय करता है कि स्थानीय श्रमिकों को किसी तरह के पक्षपात का सामना न करना पड़े। इतना ही नहीं
, उन्हें विदेशी श्रमिकों की तुलना में अधिक वेतन, भत्ते और सुविधाएं दी जाती हैं भले ही उनका और विदेशी श्रमिक का काम एक जैसा ही क्यों न हो। फिर भी भारतीय कंपनियां इस अमेरिकी सुविधा का अधिकाधिक लाभ उठाती हैं।
ऐसी भारतीय कंपनियों में इन्फोसिस
, बंगलोर, विप्रो, बंगलोर, टाटा कंसलटेंसी, मुंबई, सत्यम कम्प्यूटर सर्विसेज और पाटनी कम्प्यूटर सिस्टम्स मुंबई शामिल हैं जिन्हें प्रतिवर्ष काफी संख्या में एच1बी वीजा जारी किए जाते हैं। पर इन भारतीय कंपनियों पर एच1बी वीजा के दुरुपयोग के आरोप भी समय-समय पर लगते रहे हैं। हाल में व्यापक आव्रजन सुधारों पर कांग्रेस में चर्चा के बीच एक शीर्ष अमेरिकी सीनेटर ने टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो जैसी बड़ी आईटी कंपनियां पर एच1बी वीजा प्रणाली के दुरुपयोग का आरोप लगाया था।
सीनेट की ताकतवर न्यायिक समिति द्वारा आव्रजन सुधारों पर सोमवार को संसदीय सुनवाई के दौरान सीनेटर रिचर्ड डर्बिन ने कहा
, एच1बी वीजा के दुरुपयोग के कुछ विशेष मामले सामने आए हैं। यही नहीं डर्बिन ने तो शीर्ष भारतीय आईटी कंपनियों को आउटसोर्सिंग फर्मों का तमगा भी दे डाला था।
डर्बिन ने आरोप लगाया
, अमेरिकियों को यह जानकर झटका लगेगा कि इन्फोसिस, विप्रो, टाटा और अन्य आउटसोर्सिंग कंपनियों को एच1बी वीजा मिल रहा है। यह वीजा माइक्रोसाफ्ट के पास नहीं जा रहा। डर्बिन ने कहा कि ये कंपनियां मुख्य रूप से भारत की हैं, वे ऐसे कर्मचारियों और इंजीनियरों को ढूंढ़ रही हैं जो तीन साल के लिए अमेरिका में कम वेतन पर काम करने को तैयार हैं और साथ ही इन्फोसिस या अन्य कंपनियों को शुल्क देने को तैयार हैं। डर्बिन ने कहा कि ज्यादातर लोगों को यह जानकर झटका लगेगा कि एच1बी वीजा आप जैसी कंपनियों के पास नहीं जा रहे हैं। ये इन आउटसोर्सिंग कंपनियों की झोली में जा रहे हैं।

भारतीयों का दबदबा : अमेरिका में वर्ष 2011 के दौरान शुरू की गई कंपनियों में से लगभग 30 फीसदी के संस्थापक प्रवासी नागरिक हैं। इसी तथ्य पर ध्यान आकर्षित करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र से जुड़े भारतीय पेशेवरों ने अमेरिकी सांसदों से एच1बी वीजा का कोटा बढ़ाने और ग्रीन कार्ड हासिल करने की प्रक्रिया को आसान करने की अपील की है।

उन्होंने सांसदों को बताया कि आप्रवासी आधारित व्यापार से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को 775 अरब डॉलर से ज्यादा का राजस्व प्राप्त हुआ है। पिछले कुछ दिनों से
नॉर्थ अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ इंडियन आईटी प्रोफेशनल’ (एनएआईआईपी) से जुड़े देशभर में काम कर रहे भारतीय आईटी पेशेवर अपनी बात रखने और व्यापक आव्रजन सुधार के लिए दर्जनों सांसदों से मुलाकात कर रहे हैं।
एच1बी वीजा का कोटा बढ़ाए जाने का आग्रह करने के साथ ही एनएआईआईपी ने अमेरिका में ही इन एच1बी वीजा को पुनर्मान्यीकृत किए जाने की व्यवस्था की भी मांग की है। इसका कहना है कि अगर देश विशिष्ट वीजा प्रणाली को खत्म कर दिया गया तो नियोक्ता अपनी जरूरत के अनुसार किसी भी देश से इस क्षेत्र के ज्यादा अनुभवी कर्मचारियों को यहां ला सकेंगे।
इसके साथ ही इस संघ ने एच1बी कर्मचारियों के वीजा खत्म होने पर वतन वापस भेजे जाने की अवधि को 60 दिन करने का आग्रह किया है। फिलहाल इसमें एक भी दिन की छूट नहीं है और कर्मचारियों को वीजा खत्म होते ही उसी दिन अमेरिका छोड़कर वापस जाना पड़ता है।
अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा (यूएससीआईएस) ने घोषणा की थी कि वह 1 अक्टूबर 2013 से शुरू हो रहे वित्तीय वर्ष 2014 के लिए अब आवेदन स्वीकार नहीं करेगा
, क्योंकि कांग्रेस द्वारा तय किए गए कोटे से अधिक और पर्याप्त संख्या में आवेदन मिले हैं। कांग्रेस ने इस कोटे की संख्या 65000 तय की हुई है। कोटे की निर्धारित संख्या से मिली छूट के तहत भी यूएससीआईएस को 20000 से अधिक आवेदन मिले। यूएससीआईएस ने एक बयान में कहा कि यूएससीआईएस 2014 वित्त वर्ष के लिए 5 अप्रैल 2013 तक मिले आवेदनों के लिए कम्‍प्यूटर के जरिए लॉटरी निकाली जाएगी।
विश्लेषकों को लगता है कि इस पूरी संख्या के लिए पहले सप्ताह के दरमियान ही पूरे आवेदन प्राप्त हो जाएंगे और कोटा खत्म हो जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि नागरिकता और आव्रजन सेवा विभाग (यूएससीआईएस) आवेदनों की संख्या के बारे में दैनिक आधार पर कोई सूचना जारी नहीं करेगा। हां
, एक बार पूरी संख्या के लिए आवेदन प्राप्त हो जाने के बाद इसकी घोषणा कर देगी।
यूएससीआईएस ने 1 अक्टूबर
, 2013 से शुरू होने वाले वित्त वर्ष 2013-14 के लिए 65000 एच1बी वीजा देने की घोषणा की है लेकिन एच1बी वीजा होल्डर्स के परिवार के अन्य सदस्यों, माता, पिता, भाई, बहनों आदि को अमेरिका में बुलाने की सुविधा हासिल थी, उस पर नई समग्र आप्रवास नीति के तहत कैंची चल सकती है। दरअसल अमेरिकी कांग्रेस और सीनेटर चाहते हैं कि एच1बी वीजा को कार्य आधारित वीजा ही बना रहने दिया जाए ताकि उन्हीं लोगों को अमेरिका में ज्यादा से ज्यादा प्रवेश दिया जाए जो वहां काम करके सरकार को टैक्स देने में सक्षम हों।


Thursday, April 25, 2013

कालसर्प दोष के कारण शापित होता है जन्मांक


       राहु व केतु के बीच जब सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्पयोग बनता है। राहु का स्थान वैदिक वांग्मय के आधार पर व चुम्बकीय आधार पर दक्षिण दिशा है। ठीक विपरीत उत्तर दिशा में केतु का स्थान है। राहु-केतु के मध्य लग्न और सप्तम भाव में मध्य अन्यान्य ग्रहों या इनके साथ भी अन्य ग्रह हों तो कालसर्पयोग होता है। जब भी लग्न में या सप्तम भाव में राहु या केतु या राहु से कालसर्पयोग बने व शेष ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि इनके मध्य आ जायं तो पूर्व प्रकाशित कालसर्प दोष होता है। जन्मांग में ग्रह स्थिति कुछ भी हो यदि सर्पयोनि हो तो निश्चय ही कालसर्पयोग बनता है। राहु-केतु के मध्य में शेष छह ग्रह हों एवं एक ग्रह बाहर हो और वह राहु के अंश से अधिक अंश में हो तो कालसर्पयोग भंग होता है। जब-जब राहु की दशा, अंतरदशा, प्रयन्तर दशा आती है। जब भी गोचरवश राहु अशुभ चलता हो। जब भी गोचर से कालसर्पयोग की सृष्टि हो, तो कालसर्प योग दंड देता है। प्रमुख रूप से द्वादश प्रकार के कालसर्प योग हैं। वासुकी, पद्म, कर्कोट, कुलिक, महापद्म, शंखनाद, तक्षक, अनन्त, शंखपाद, पातक, शेषनाग व विषाक्त।

कालसर्प दोष के परिणाम

वासुकी कालसर्प दोष: भाई-बहन व परिवार जनों को कष्ट उठाने पड़ते हैं। मित्रों से धोखा खाएगा। भाग्योदय में निरंतर उठा-पठक व व्यवधान उत्पन्न होंगे। नौकरी में बाधाएं, उन्नति में रुकावट, राजपक्ष से प्रतिकूलता, विदेश प्रवास में भारी कष्ट, कानूनी दस्तावेजों में भावुकतावस हस्ताक्षर कर पछताता है। नास्तिक भाव की प्रधानता रहती है। भाग्य स्थान में भाग्येश, राहु व बुध हों तो राजयोग बनता है। दसवें भाव में जब भी चार ग्रह की युति बनती हो तो जातक परस्त्री गमन करता है तथा बार-बार व्यापार व नौकरी से कष्ट उठाता है। जब आय भाव में कोई ग्रह नीच का हो तथा शत्रुग्रह से युक्त हो तो व्यक्ति के जीवन में बार-बार चोरी, डकैती आदि से धन के नुकसान होने की संभावना रहती है। 12वें भाव में राहु बैठा हो तथा सूर्य की युति हो तो बाल्यकाल में ही पिता की मृत्यु हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में सभी कालसर्पदोष से ग्रसित जातकों को तीर्थस्थान में कालसर्प की शांति, नागबलि तथा नारायणबलि कराने से लाभ होता है।

पद्म काल सर्प योग- पंचम स्थान से एकादश स्थान तक राहु -केतु के मध्य में सभी ग्रह होने पर पद्म काल सर्प योग होता है। जातक को गृहस्थ सुख में बाधाएं आयेंगी। जातक को संतान सुख का अभाव रहता है। वृद्घावस्था कष्टप्रद व्यतीत होती है। शत्रु कदम-कदम पर अहित करने का प्रयास करता है। जेल या कारागार भोगना पड़ता है। गुप्तांग सम्बन्धी रोग जातक को पीड़ा पहुंचाते हैं। रोग कठिन रहता है आय का यथेष्ट भाग दवाइयों में खर्च होता है। पत्नी चरित्रवान मिल जाय इसमें संशय है। सच्चे मित्रों का अभाव रहता है। सट्टे में, जुए में, अशुभ कार्यों में भारी हानि उठानी पड़ती है। 

कर्कोट काल सर्प योग: जब केतु द्वितीय, राहु अष्टम अथवा राहु द्वितीय और केतु अष्टम भाव में हो तो कर्कोट काल सर्प दोष होता है। जातक का अपने जीवन में भाग्योदय होता ही नहीं । नौकरी प्राय: नहीं मिलती। अगर मिलती भी है तो पदोन्नति नहीं होती। अथक प्रयास करने पर भी व्यापार चलता नहीं है। निरन्तर घाटा होता रहता है। चाहकर भी जातक को पैतृक सम्पत्ति मिलती नहीं है। लम्बी असाध्य बीमारी भोगनी पड़ सकती है। आपरेशन, चीर-फाड़ हो सकती है। सच्चे मित्रों का अभाव हरदम रहता है। ऐसे जातक को आकाल मृत्यु हो जाय इसमें संशय नहीं है।
कुलिक काल सर्प योग- केतु द्वितीय और राहु अष्टम भाव में हो तो कुलिक काल सर्प योग होता है। जातक की स्त्री कुरूप, निरमोही, अल्प वहमी होती है। संतान सुख की न्यूनता रहेगी। स्वास्थ्य में निरन्तर गिरावट, मूत्र रोग, गुर्दे में परेशानी। जातक अपने जीवन में अनेक स्त्रियों से संन्सर्ग कर अपमानित होता है। मित्र कदम-कदम पर धोखा देते हैं। पिता की मृत्यु अल्प आयु में हो जाती है।

महापद्म काल सर्प योग- जब राहु षष्टम भाव में व केतु द्वादश भाव में हो तो महापद्म काल सर्प योग होता है। जातक प्रेम प्रकरण में सर्वथा असफल रहता है। पत्नी का विरह योग सहन करना पड़ता है। जातक आयु पर्यन्त रोग, शोक, कष्ट और शत्रु से घिरा रहता है। आय में न्यूनता, धर्म क्षति एवं खर्च की बहुलता रहती है।

शंखनाद काल सर्प योग- जब राहु नवम् भाव में और केतु तृतीय भाव में हो तो शंखनाद काल सर्प योग होता है। जातक को राज्य पक्ष से प्रतिकूलता, मानहानि होती है। गृहस्थ सुख में बाधा एवं भोग से अतृप्त रहता है।

तक्षक काल सर्प योग- जब राहु सप्तम में, केतु लग्न में हो तब तक्षक काल सर्प योग होता है। जातक को संतान का सर्वथा अभाव रहता है। स्त्री परिगामी हो जाती है। जीवन में कई बार जेल की यात्रा करनी पड़ती है।

अनन्त काल सर्प योग- जब लग्न में राहु एवं सप्तम भाव में केतु हो, अनन्त काल सर्प योग होता है। जातक को जीवन में मानसिक शान्ति नहीं मिलती है। जातक नीच भाव का और कपटी होता है। जातक का गृहस्थ जीवन शून्यवत रहता है।

शंखपाद काल सर्प योग- जब राहु सुखस्थ व केतु कर्म भाव में हो तो शंखपाद काल सर्प योग होता है। जातक का धन्य- धान्य, समृद्घि तथा चल-अचल सम्पत्ति बिक ही जाती है। भाई- बहन, माता- पिता से परेशानी होती है। शिक्षा प्राप्ति में जीरो होता है।


पातक काल सर्प योग- जब राहु दशम और केतु चतुर्थ भाव में हो तो पातक काल सर्प योग होता है। जातक व्यापार में बार - बार हानि उठाता है। संतान होकर भी मर जाती है। माता- पिता से शत्रुता होती है।
शेषनाग काल सर्प योग- जब राहु बारहवें एवम केतु षष्ट भाव में हो तो शेषनाग काल सर्प योग होता है। जातक गुप्त शत्रुओं से हमेशा पीड़ित रहेगा। शरीर सुख नहीं रहेगा, स्वास्थ्य उतरता ही रहेगा। कोर्ट- कचहरी में जातक की हार होती है।

विषाक्त काल सर्प योग- जब राहु एकादश भाव में व केतु पंचम भाव में हो, शेष ग्रह इनके मध्य हों तो विषाक्त काल सर्प योग होता है। जातक अपनी आजीविका के लिए घर- परिवार से दूर रहता है। भाइयों से भरपूर विवाद, कोर्ट- कचहरी का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से बड़े भाई से। नेत्र रोग, हृदय रोग आदि से पीड़ित रहता है।

ज्योतिषाचार्य शत्रुंजय शुक्ल, कुशीनगर

Friday, April 19, 2013

शीघ्र विवाह हेतु गौरी साधना

             जातक जिस मंत्र की साधना करना चाहता हो, उसका तथा साधना करने वाले के नाम का पहला अक्षर दोनों यदि एक ही कुल के हों तो वह मंत्र निश्चित फल देने वाला होता है। मंत्र और उसके उपासक की प्रकृति में समानता होने से सफलता की संभावनाएं अधिक होती हैं। यदि इन वर्णों में प्रकृति साम्यता न हो तो फिर प्रकृति मैत्री देखना चाहिए। इसे जानने के लिए कुलाकुल चक्र के अनुसार पृथ्वी आदि पांचों तत्वों में किन-किन तत्वों की किन-किन तत्वों के साथ मित्रता है, यह देख लेना चाहिए। साधक और साध्य मंत्र के अक्षरों में प्रतिकूलता वाले मंत्रों की साधना फलदायी नहीं होती। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पांच तत्वों में वर्णमाला के वर्णों को बांटकर कुलाकुल चक्र की रचना की गई है, जिसमें पृथ्वी एवं जल आदि तत्वों का आकाश तत्व के साथ मैत्री है, वायु तत्व का पृथ्वी तत्व शत्रु है तथा अग्नि तत्व का जल व पृथ्वी तत्व शत्रु हैं। जिस प्रकार एक औषधि के अनेक विकल्प होते हैं, उसी प्रकार एक ही साधना के लिए अनेक मंत्र हैं, इसलिए मंत्रों के चयन में कठिनाई नहीं होती। कुलाकुल चक्र के अतिरिक्त राशि चक्र, अवकहड़ा चक्र, नक्षत्र चक्र व अघट चक्र द्वारा भी अनुकूल मंत्र का निश्चय किया जा सकता है।

मंत्रोच्चारण:   मंत्र का शुद्ध उच्चारण एवं उचित बलाघात मंत्र के प्रभाव को प्रभविष्णुता प्रदान करता है। आज तो ध्वनि विज्ञान के विषय में अनेकानेक क्रांतिकारी और आश्चर्यजनक शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं। मंत्रोच्चारण के समय वाक्य दोष, यदि दोष, विराम दोष आदि का पूर्ण विचार आवश्यक है। इस प्रक्रिया में शब्द, ध्वनि व लय का विशेष महत्व है। महार्थमंजरी के अनुसार- ‘मननमयी निजविभवे त्राणमयी। कवलितविश्वविकल्पा अनुभूति: कापि मंत्रशब्दार्थ:।।’
मंत्रोपासना की प्रारंभिक बातें विनियोग, न्यास और संकल्प आदि हैं, जिन्हें किसी अधिकारी गुरु या आचार्य से पूछना उचित होगा। गोस्वामी तुलसीदास ने मंत्र के विषय में कहा है- ‘मंत्र परम लघु जासु बल, विविहरिहर सुर सर्ब। महामत्त गजराज कहुं, बस कर अंकुस खर्ब।।’ किन्तु मंत्र द्वारा सम्यक लाभ प्राप्ति हेतु उसमें श्रद्धा व विश्वास करना आवश्यक है। अनास्थापूर्ण किया गया कोई भी मंत्र सिद्धि अथवा फल की सीमा तक नहीं पहुंचता। मंत्र की अपरिमिति शक्ति के प्रति हृदय में अगाध आस्था होनी चाहिए। पिंगलामत के अनुसार- ‘मननं विश्व विज्ञानं त्राण संसारबन्धनात्। धृत: करोति संसिद्धिं मंत्र इत्युच्यते तत:।।’
इस आवश्यक वर्णन विस्तार के अनन्तर अब मंत्रों का उल्लेख प्रस्तुत है। पुराकाल से भारतीय जनजीवन वेद जननी गायत्री की अलौकिक शक्ति का श्रद्धालु रहा है। सभी वर्ग व वर्ण के मनुष्य इससे लाभान्वित होते हैं। सौभाग्य संप्राप्ति एवं मनोनुकूल वर हेतु गायत्री उपासना एक अमोघ उपाय है- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

गौरी प्रतिष्ठा विधि और जपादि-         कन्याओं को उत्तम वर शीघ्र प्राप्त हो इसके लिए सर्वाधिक प्रचलित और अनुभव सिद्ध प्रयोग अग्नि महापुराण के गौरी प्रतिष्ठा विधि नामक 17वें अध्याय का है। इस अध्याय में दी गई विधि के अनुसार जपादि करने से 72 दिन से लेकर 180 दिन के भीतर विवाह निश्चित हो जाता है। जप के लिए मंडप आदि की रचना करके देवी की स्थापना करें। पूर्वाेक्त मंत्रों व मूर्त्यदिकों का न्यास करके आत्मतत्व, विद्यातत्व व शिव तत्व की परमेश्वर में स्थापना करें। तदन्तर पराशक्ति का न्यास, होम और जप पूर्ववत करके क्रियाशक्ति स्वरूपिणी पिण्डी का सन्धान करें। इस विधि से पिण्डी की स्थापना करके उसके ऊपर देवी को स्थापित करें। ये देवी परम शक्तिस्वरूपा हैं। उनका अपने ही मंत्र से सृष्टि न्यास पूर्वक स्थापन करें। तदन्तर पीठ में क्रिया शक्ति का और देवी के विग्रह में ज्ञानशक्ति का न्यास करें। इसके बाद सर्वव्यापिनी शक्ति मां का आवाहन करके देवी की प्रतिमा में उनका नियोजन करें। फिर शिवा नाम वाली अम्बिका देवी का स्पर्श पूर्वक पूजन करें।

पूजा के मंत्र इस प्रकार के हैं-

ॐ आं आधारशक्तये नम: ॐ कूर्माय नम:।

ॐ स्कंदाय नम: ॐ ह्रीं नारायणाय नम:।।

ॐ ऐश्वर्याय नम:। ॐ अधरछननाय नम:।

ॐ पद्मासनाय नम:।

तदन्तर केसरों की पूजा करें। तत्पश्चात ॐ ह्रां कार्णिकायै नम:। ॐ क्षं पुष्कराक्षेभ्‍यो नम:।। इन मंत्रों द्वारा कर्णिका एवं कमलाक्षों का पूजन करें। इसके बाद ॐ ह्रां पुष्टयै नम:। ॐ ह्रीं ज्ञानायै नम:। ॐ ह्रां क्रियायै नम:। मंत्रों द्वारा पुष्टि, ज्ञान एवं क्रिया शक्ति का पूजन करें। ॐ नालाय नम:। ॐ रुं धर्माय नम:। ॐ रुं ज्ञानाय वै नम:। ॐ वैराग्याय नम:। ॐ वै अधर्माय नम:। ॐ रुं अज्ञानाय वै नम:। ॐ अवैराग्याय वै नम:। ॐ अनैश्वर्याय नम:। इन मंत्रों द्वारा नाल आदि की पूजा करें।
ॐ हूं वाचे नम:। ॐ ह्रां रागिण्यै नम:। ॐ हूं ज्वालिन्यै नम:। ॐ ह्रां शमायै नम:। ॐ हूं ज्येष्ठायै नम:। ॐ ह्रौं रीं क्रीं नवशक्त्यै नम:। ॐ गौ गौर्यासनाय नम:। इन मंत्रों द्वारा वाक्आदि शक्तियों की पूजा करें।

अब गौरी का मूल मंत्र बताया जाता है-

ॐ गौ गौर्यासनाय नम:। ॐ गौरीमूर्तये नम:।

ॐ ह्रीं स: महागौरि रूद्रदयिते स्वाहा गौर्ये नम:।

ॐ गां हृदयाय नम: ॐ गौ शिरसे स्वाहा।

ॐ गूं शिखायै वषट्। ॐ गैं कवचाय हुम्।

ॐ गौं नेत्रयाय वौषट्। ॐ ग: अस्त्राय फट्।। इन मंत्रों से शिखा आदि का न्यास करें।

ॐ गौं विज्ञान शक्तये नम:। ॐ गूं क्रियाशक्तये नम:। इन मंत्रों से विज्ञान और क्रियाशक्तियों की पूजा करें, पूर्वादि दिशाओं से इन्द्रादि देवताओं का पूजन करें। ॐ सुं सुभगायै नम:। इस मंत्र से सुभगा का और ॐ ललितायै नम:। इस मंत्र से ललिता का पूजन करें। ॐ ह्रीं कामिन्यै नम:, ॐ ह्रं काममालिन्यै नम:। इन मंत्रों से गौरी की प्रतिष्ठा, पूजा और जप करने से उपासक सब कुछ पा लेता है। इस प्रकार मां गौरी देवी की सविधि प्रतिष्ठा के पश्चात निम्नलिखित मंत्रों में से किसी का जप प्रतिदिन एकाग्रता, निष्ठा और विश्वासपूर्वक करें-

ॐ ह्रीं स: महागौरि रूद्रदयिते स्वाहा गौर्ये नम:, ॐ ह्रीं गौर्ये नम:।

अथवा

हे गौरि शङ्करार्धाङ्गि यथा त्वं शङ्करप्रिया।

तथा मां कुर कल्याणि कान्ताकान्तां सुदुर्लभाम्।।

इन मंत्रों का बताई गई विधि के अनुसार जप करने से शीघ्र ही उत्तम, अनुकूल व सच्चरित्र वर की प्राप्ति होती है। यह अनेक बार का परीक्षित प्रयोग है।

आकाश तत्व के मंत्र समस्त कन्या के लिए करणीय हैं। मंत्र जप से पूर्व मां गौरी की श्रद्धापूर्वक अर्चना करनी चाहिए।

ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मानयति कश्चन।

ससत्यकश्चक: सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्।।

पृथ्वी तत्व का प्रमुख यह मंत्र आकाश और जल तत्व प्रधान जातकों के लिए हितकर और वायु प्रधान जातकों के लिए वर्जित है। दुर्गासप्शती से संपुटित करके इस मंत्र का स्वयं पाठ करना चाहिए या किसी सुयोग्य पंडित से कराना चाहिए।

कात्यायनि महामये महायोगिन्यधीश्वरि।

नन्दगोपसुतं देवि! पतिं मे कुरु ते नम:।



Thursday, April 18, 2013

विश्व के एक तिहाई गरीब भारत में: विश्व बैंक



  विश्व के एक तिहाई गरीब भारत में हैं जो रोजाना 1.25 डालर :करीब 65 रुपए: से कम में जीवन यापन करते हैं। विश्वबैंक की एक ताजा रपट में कहा गया है कि दुनिया में 1.2 अरब लोग अभी भी बेहद गरीबी की परिस्थिति में पड़े हैं।
‘विश्व विकास संकेतक’ शीर्षक रपट के आंकड़ों के आधार पर तैयार ‘गरीबों की स्थिति:कहां हैं गरीब, कहां हैं सबसे गरीब’ शीर्षक रपट में कहा गया कि 1981 से 2010 के बीच हर विकासशील क्षेत्र में अत्यधिक गरीब आबादी का अनुपात कम हुआ। इस दौरान इन क्षेत्रों में गरीबी का अनुपात 50 फीसद से घटकर 21 फीसद पर आ गया। विकासशील देशों की जनसंख्या में इस दौरान 59 फीसद की बढ़ोतरी के बावजूद गरीबी का अनुपात कम हुआ है।
    हालांकि विश्व बैंक द्वारा जारी अत्यधिक गरीबी के नए विश्लेषण के मुताबिक अब भी 1.2 अरब लोग बेहद गरीबी में जीवन निर्वाह कर रहे हैं और हाल के वर्षों में अच्छी प्रगति करने के बावजूद उप-सहारा अफ्रीकी क्षेत्र अब भी विश्व की एक तिहाई से अधिक गरीबों का घर है।
विश्वबैंक समूह के अध्यक्ष जिम योंग किम ने कहा ‘‘हमने विकासशील दुनिया में रोजाना 1.25 डालर से कम आय पर जीने वाले लोगों की संख्या कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की है पर अब भी 1.2 अरब लोगों का गरीबी में रहना हमारी सामूहिक चेतना पर कलंक है।’’
उन्होंने कहा ‘‘ ये आंकड़े अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए गरीबी के खिलाफ लड़ाई तेज करने के संकल्प का ठोस आधार बन सकते हैं। हमारा विश्लेषण और हमारी सलाह 2030 तक दुनिया से बेहद गरीबी की स्थिति खत्म कर सकती है।’’
विश्व बैंक के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा ‘‘हमने गरीबी खत्म करने की कोशिश की है लेकिन इतना काफी नहीं है क्योंकि करीब विश्व की आबादी का पांचवां हिस्सा अभी भी गरीबी रेखा से नीचे है।’’

Saturday, April 13, 2013

दाढ़ी का दर्प

      दाढ़ी शब्द सुनते से ही चेहरों पर करोड़ों बालों के जंगल का चित्र मन में उभर आता है। दाढ़ी को परिभाषित करे तो बालों का ऐसा झुंड जिसने गाल को ढक रखा है , कह कर आप मन को सांत्वना दे सकते हैं। लेकिन मन में सवाल उठता है कि ये दाढ़ी आखिर चीज़ क्या है? कुछ लोग दाढ़ी क्यों रखते हैं? सभी लोग दाढ़ी क्यों नहीं रखते? क्या लोग चेहरे की किसी कमी को छुपाने के लिए दाढ़ी रखते है? क्या लोग विद्वान, दार्शनिक, महान दिखने के लिए दाढ़ी रखते है? या लोगों को दढ़ियल कहलाने का शौक होता है? और न जाने कितने सवाल है जो हमारे मन में कौतूहल पैदा करते हैं।
दाढ़ी का अध्ययन pogonology कहा जाता है। इतिहास के पन्ने पलटे तो दाढ़ी को पुरुषों की बुद्धि और ज्ञान, यौन पौरूष, पुरुषत्व, या उच्च सामाजिक स्थिति के प्रतीक के रूप में देखा जाता था।, वहीं दूसरी तरफ दाढ़ी को गंदगी, एक सनकी स्वभाव से भी जोड़ा जाता थाइ प्राचीन इजिप्ट के लोगों को दाढ़ी रखने का शौक था वे लाल और सुनहरे रंग की ढाई लगाकर अपनी दाढ़ी को सजाते थे। 3000 से 1580 BC तक नकली दाढ़ी पहनने का फैशन था। खास मौकों पर राजा और रानी भी नकली दाढ़ी पहनते थे।

मेसोपोटामिया सभ्यता
मेसोपोटामिया सभ्यता के लोग अपनी दाढ़ी को तरह-तरह से सजाते संवारते थे और दाढ़ी को नया लुक देने की कोशिश करते थे। फारसी लोग लंबी दाढ़ी रखते थे। राजा लंबी दाढ़ी को देखकर खुश होते थे।

प्राचीन भारत
प्राचीन भारत में लंबी दाढ़ी सम्मान और विद्वता का प्रतीक मानी जाती थी। साधु-संत लंबी दाढ़ी रखते थे और उनकी दाढ़ी में तपस्या और त्याग का भाव झलकता था। दाढ़ी वाले संतों के प्रति आम जनमानस में विशेष श्रद्धा होती थी। प्राचीन भारत के कुछ इलाकों में दाढ़ी को लेकर विशेष परंपरा प्रचलित थी लोग अपनी दाढ़ी का विशेष ख्याल रखते थे और कई स्टाइल से उसे संवारते थे। यहां तक की दाढ़ी को अपने आत्म सम्मान से जोड़कर देखते थे। दाढ़ी के महत्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कर्ज़ न चुकाने वाले व्यक्ति की सजा के तौर पर आम जनता के समाने दाढ़ी मुंड दी जाती थी। और दाढ़ी को बचाने को लेकर लोगों के मन में इतना भय था कि वे सारा कर्ज चुका देते थे।

सिकंदर महान का समय
सिकंदर महान के समय में क्लीन सेव की परंपरा शुरू हुई और सिकंदर ने अपने सैनिकों को क्लीन सेव रहने का आदेश दिया था।

प्राचीन रोम
प्राचीन रोम की कहानी कुछ अलग है कहा जाता है कि 299BC तक रोम में दाढ़ी बनाने का प्रचलन ही नहीं था। पहली बार 299 BC के लगभग एक नाई को रोम बुलाया गया और Scipio Africanus पहले रोमन नागरिक थे जिन्होंने नाई से दाढ़ी बनवाई। और उसके बाद क्लीन सेव की हवा पूरे रोम में ऐसे फैली कि दाढ़ी के जंगल सपरचट्ट मैदान में रातों-रात तब्दील हो गए और चिकने चेहरे रोम की पहचान बन गये।

प्राचीन जर्मनी
जर्मन में जंगलों में रहने वाली पिछड़ी जनजाति समाज में ये परंपरा थी की जब तक नौजवान अपने समाज के एक दुश्मन को मौत के घाट नहीं उतार देता तब तक वो अपनी दाढ़ी नहीं कटवा सकता था। लोग लंबी दाढ़ी रखते थे और अपनी अपनी दाढ़ी की कसमें खाते थे। और दाढ़ी की कसम खाने का विशेष महत्व समझा जाता था।

प्राचीन यूरोप
15वी शताब्दी में ज्यादातर यूरोपवासी क्लीन सेव थे लेकिन 16वीं शताब्दी में यूरोप में लंबी-लंबी और स्टाईलिश दाढ़ी रखने का फैशन था। ऐसे-ऐसे स्टाइल प्रचलित थे कि अगर आप उस जमाने के लोगों की फोटो देखें तो आपकी नजर सबसे पहले दाढ़ी पर ही पड़ेगी और जितना समय आप उस फोटो को देखेंगे ज्यादा -से- ज्यादा बार आपकी नजर दाढ़ी पर ही टिकी रहेगी। दाढ़ी की कुछ स्टाइल Spanish spade beard, English square cut beard, The forked beard और Stiletto beard यूरोप में प्रचलित थी।
              नेपोलियन के जमाने में दाढ़ी फिर परवान चढ़ी। राजा और सेना के बड़े अधिकारी भी स्टाइलिश दाढ़ी रखने का शौक रखते थे। 19वीं शताब्दी के दौरान का दाढ़ी फैशन आम जनता के बीच खूब प्रचलित था।

हिप्पी आंदोलन 1960
पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में सन 1960 में हिप्पी आंदोलन के दौरान लंबी दाढ़ी समाज के उच्चवर्ग में खासी लोकप्रिय थी।

अमेरिका
19वीं शताब्दी में अमेरिका में दाढ़ी का प्रचलन ज्यादा नहीं था। अब्रहम लिंकन से पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने दाढ़ी का शौक नहीं पाला था। प्रथम विश्व युद्ध के समय सन 1910 में केमिकल हथियारों के प्रयोग की आशंका के चलते सैनिकों को क्लीन सेव रहने की हिदायत दी थी।
वियतनाम युद्ध के समय दाढ़ी को फिर लौटने का मौका मिला। सन 1970 के दौरान हिप्पियों और व्यापारियों ने स्टाइलिश दाढ़ी रख कर अपने चेहरे की रौनक बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। संगीतकारों ने स्टाइलिश दाढ़ी को संगीत के सुर से जोड़ कर ऐसा समा बांधा की सारी दुनिया में मशहूर हो गये। The Beatles और Barry White इसमें अग्रणी हैं। 1909 से 1913 के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति रहे William Howard अंतिम राष्ट्रपति ने जिन्होंने दाढ़ी रखी थी। इस तरह दाढ़ी की दास्तां निराली हैं।

दाढ़ी और धर्म
कई धर्मों में दाढ़ी का विशेष महत्व है।

सिख धर्म
सिख धर्म में दाढ़ी का विशेष महत्व है ऐसी मान्यता है कि दाढ़ी पुरुष के शरीर का अभिन्न भाग है और उसे सम्मान के साथ अच्छे से रखना चाहिए। गुरु गोविंद सिंह ने दाढ़ी को सिखों की पहचान कहा।

हिंदू धर्म

हिंदू धर्म में तपस्वी, साधु-संत लंबी दाढ़ी रखते हैं। ऋषि-मुनि प्राय: जंगल में तपस्या करते थे। चेहरे पर लंबी-लंबी दाढ़ी और सिर पर जटाएं होती थी। हिंदू धर्म में दाढ़ी रखने वाले संतों को आज भी बहुत सम्मान प्राप्त है।

यहूदी धर्म
यहूदी धर्म में रेज़र से दाढ़ी बनाने पर निषेध है। कैची से दाढ़ी के बाल काटे जा सकते हैं। क्लीन सेव रहने के लिए बहुत से यहूदी धर्म के लोग इलेक्ट्रॉनिक रेज़र का इस्तेमाल करते हैं। यहूदी धर्म में दाढ़ी को पवित्रता से जोड़ा जाता है।

ईसाई धर्म
चित्र और मूर्तियों में ईशा मसीह को हमेशा दाढ़ी में दिखाया गया है। ईसाई धर्म के संतों में कुछ लंबी दाढ़ी रखते और कुछ पादरी दाढ़ी नहीं रखते हैं।

मुस्लिम धर्म
मुस्लिम धर्म में दाढ़ी रखने को बढ़ावा दिया जाता है। कुछ लोग दाढ़ी रखते हैं और मूछें नहीं रखते हैं। काज़ी साहब, शाही इमाम ज्यादातर दाढ़ी रखते हैं। इस्लाम धर्म में गहरी आस्था रखने वाले लोग दाढ़ी रखना पसंद करते हैं।

दाढ़ी और पत्रकार
पत्रकार बिरादरी में दाढ़ी की दास्तां गजब की है लगता है कि चूसे हुए आम के चेहरे वाले पत्रकारों ने दाढ़ी रखकर अपने चेहरे को सही शक्ल देने की कोशिश की होगी। कुछ पत्रकारों ने खुद को विद्वान, महाज्ञानी और दार्शनिक दिखने की लालसा में दाढ़ी का जंगल उगाने में कोई कसर नहीं रखी। भले ही बड़ी-बड़ी दाढ़ी में वो कार्टून शो के डरावने किरदार से कम न लगते हो। मंत्री का संत्री गेट पर न रोके इसलिए स्टाइलिश दाढ़ी से ऐसा रोबदार चेहरा गढ़ने में कुछ भाई लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके चक्कर में भले ही वो तालिबानी कुनबे के सदस्य क्यों न लगते हो? कुछ लोगों को हो सकता है अपनी योग्यता पर इतना गहरा शक हो कि जब तक वो दाढ़ी नहीं रखेंगे तब तक लोग उन्हें पत्रकार मानेंगे ही नहीं। कभी - कभी ये सोचकर हैरानी होती है कि अगर दाढ़ी रखने से ही कोई बहुत बड़ा ज्ञानी और विद्वान हो जाता तो शायद दुनिया का पहला दार्शनिक एक बकरा ही होता। खैर आजाद देश के आजाद पत्रकार भाई लंबी-लंबी दाढ़ी रखें पर उसको शैम्पू से जरूर धोएं और इत्र लगाना न भूले ताकी उनके अगल-बगल बैठे भले मानुषों को बदबू का दंश न जेझना पड़े।
दाढ़ी का दंभ
आज कल के दाढ़ी रखने वाले कुछ लोग खुद को क्या समझते हैं? यो वो खुद ही जानते होंगे । पर ऐसा लगता है कि भाई लोगों को रोब झाड़ने का इतना शोक होता है कि दाढ़ी बढ़ाकर खुद को आम दुनिया से अलग समझने लगते हैं और दाढ़ी में हाथ फेरते हुए रौब दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं। दाढ़ी फैलाकर और छाती तान कर ऐसे चलते जैसे दाढ़ी में ही सारा ज्ञान छुपा हो। और जब कभी पहाड़ खोदा जाता है तो चुहिया भी नहीं निकलती। कई लोग तो दाढ़ी बढ़ाकर अपने आपको उस खेमे में शामिल करना चाहते हैं जिससे उनका दूर-दूर तक वास्ता न करनी में न कथनी में होता है। कोई उनकी उपमा महान दार्शनिक या विद्वान से कर दे तो वो फूल के कुप्पा हो जाते हैं। उन्हें लगते लगता है कि विश्व के महान दार्शनिक भी उनके जैसे ही रहे होंगे।

दाढ़ी और पेशा

दाढ़ी का इस्तेमाल लोग दुनिया को उल्लू बनाने में खूब कर रहे हैं। आजकल बाबा बनने की पहली सीढ़ी है आप दाढ़ी बढ़ा ले, लंबी दाढ़ी और लंबे बाल देखकर लोग आपको संत समझने में देर नहीं करेंगे। और फिर आप उपदेश और सतसंग के धंधे में उतर जाएं। मालामाल होने में देर नहीं लगेगी। इतनी तेजी से धन देऊ प्रोफेशन और कोई नहीं है। बाबागीरी के पेशे में आप रातो-रात अपनी झोली भर सकते हैं। और दुनिया के सारे सुख आपको ये दाढ़ी का जंगल दिला सकता है। इसके प्रत्यक्ष उदाहरण आप लोग टीवी में देख रहे होंगे। और आगे भी देखेंगे इसमें कुछ कोई शक नहीं है। इच्छाधारियों की इच्छाओं के बारे में बताने की जरूरत नहीं है। दाढ़ी का असली रहस्य लगता है इन तथाकथित बाबाओं को ही मालूम है बाकी सब फेल हैं।