Thursday, July 18, 2013

रुद्राक्ष की महिमा

एक बार देवर्षि नारद ने भगवान नारायण से पूछा-“दयानिधान! रुद्राक्ष को श्रेष्ठ क्यों माना जाता है? इसकी क्या महिमा है? सभी के लिए यह पूजनीय क्यों है? रुद्राक्ष की महिमा को आप विस्तार से बताकर मेरी जिज्ञासा शांत करें।” देवर्षि नारद की बात सुनकर भगवान् नारायण बोले-“हे देवर्षि! प्राचीन समय में यही प्रश्न कार्तिकेय ने भगवान् महादेव से पूछा था। तब उन्होंने जो कुछ बताया था, वही मैं तुम्हें बताता हूँ:

“एक बार पृथ्वी पर त्रिपुर नामक एक भयंकर दैत्य उत्पन्न हो गया। वह बहुत बलशाली और पराक्रमी था। कोई भी देवता उसे पराजित नहीं कर सका। तब ब्रह्मा, विष्णु और इन्द्र आदि देवता भगवान शिव की शरण में गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना लगने लगे। 

भगवान शिव के पास ‘अघोर’ नाम का एक दिव्य अस्त्र है। वह अस्त्र बहुत विशाल और तेजयुक्त है। उसे सम्पूर्ण देवताओं की आकृति माना जाता है। त्रिपुर का वध करने के उद्देश्य से शिव ने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र का चिंतन किया। अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर भूमि पर गिर गईं। उन्हीं बूंदों से महान रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। फिर भगवान शिव की आज्ञा से उन वृक्षों पर रुद्राक्ष फलों के रूप में प्रकट हो गए।

ये रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के थे। इनमें कत्थई वाले बारह प्रकार के रुद्राक्षों की सूर्य के नेत्रों से, श्वेतवर्ण के सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की चन्द्रमा के नेत्रों से तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से मानी जाती है। ये ही इनके अड़तीस भेद हैं। 

ब्राह्मण को श्वेतवर्ण वाले रुद्राक्ष, क्षत्रिय को रक्तवर्ण वाले रुद्राक्ष, वैश्य को मिश्रित रंग वाले रुद्राक्ष और शूद्र को कृष्णवर्ण वाले रुद्राक्ष धारण करने चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने पर बड़ा पुण्य प्राप्त होता है। जो मनुष्य अपने कण्ठ में बत्तीस, मस्तक पर चालीस, दोनों कानों में छः-छः, दोनों हाथों में बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्षों को धारण करता है, वह साक्षात भगवान नीलकण्ठ समझा जाता है। 

उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। रुद्राक्ष धारण करना भगवान शिव के दिव्य-ज्ञान को प्राप्त करने का साधन है। सभी वर्ण के मनुष्य रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। रुद्राक्ष धारण करने वाला मनुष्य समाज में मान-सम्मान पाता है। 

रुद्राक्ष के पचास या सत्ताईस मनकों की माला बनाकर धारण करके जप करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है। ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या और पूर्णमासी आदि पर्वों और पुण्य दिवसों पर रुद्राक्ष अवश्य धारण किया करें। रुद्राक्ष धारण करने वाले के लिए मांस-मदिरा आदि पदार्थों का सेवन वर्जित होता है।”

Tuesday, July 16, 2013

टेलीग्राम यानी तार आया

टेलीग्राम यानी तार आया

अब नहीं सुनाई देगी वो आवाज, ‘बाबूजी तार आया है!
14  जुलाई, 2013 भारतीय समाज के लिए एक यादगार तारीख हो गई। इस तारीख के बाद एक ऐसी पीढ़ी होगी, जिसे शायद ये समझाना बड़ा मुश्किल होगा कि डाकिया बाबू का तारलाना क्या होता था? अपने युवा बच्चों को ये बताना कठिन होगा कि उनके जन्म के समय कैसे उनके दादा-दादी, नाना-नानी को तारभेजकर खबर की गई थी? एक पूरी युवा पीढ़ी शायद ये समझ नहीं पाएगी कि तारआने से कभी-कभी घरों में रोना-पीटना शुरु हो जाता था? हमारे देश की पूरी एक पीढ़ी शायद उस अहसास को महसूस ही नहीं कर पाएगी, जो डाकिया बाबू के तारलाने पर होता था? वो दरअसल एक पूरा चित्र-सा होता था। वैसे तो खाकी वर्दी पहनने वाले डाकिया बाबू के चिठ्ठी लाने का वक्त मुहल्ले-दर-मुहल्ले फिक्स होता था, लेकिन यदि वो बे-समय आ जाए, साथ में उनकी साइकिल पर वो बड़ा-सा खाकी झोला ना हो, तो पूरे मोहल्ले की धड़कनें बढ़ जाती थी। अरे, क्या किसी के घर तारआया है?’ पूरे मोहल्ले में सुगबुगाहट शुरु हो जाती थी। देखा जाता था कि खाकी वर्दीधारी डाकिया बाबू किस घर में जाते हैं। अपने जेब से एक पर्ची-सा तारनिकालते हैं, और एक सूची पर दस्तखत करवाते हैं, कि तारसंबंधित व्यक्ति को मिल गया है। उसके बाद शुरु होता था मोहल्ले के लोगों का उस घर में जुटना। तारसे दो ही तरह की खबरें आती थी- या तो अच्छी या बुरी। यदि खुशखबरी होती थी, तो उसी वक्त पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी जाती थी, और यदि किसी के निधन की, मौत की खबर होती थी, कोई बुरा समाचार होता था, तो पूरा मोहल्ला गमगीन हो जाता था। वो दृश्य 14  जुलाई, 2013 से अब कहीं देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि अब नहीं सुनाई देगी वो आवाज, ‘बाबूजी तार आया है!
      ‘तारया टेलीग्राम में संदेश बहुत छोटा-सा होता था- बेटा हुआ है। मन्नू पास हो गया। नौकरी मिल गई। दद्दा नहीं रहे। सब कुशल है, दिल्ली पहुंच गया। छुटकी की सास 4 को आएगी। जैसे कई तरह के संदेश। इसके अलावा टेलीग्राम के कई संदेश ऐसे होते थे, जो हमेशा भेजे जाते थे। जैसे- शादी की बधाई। जन्मदिन मुबारक। शादी की सालगिरह मुबारक। हमारी संवेदना। ऐसे कई कॉमन संदेशों के लिए एक नंबर होता था, जिसे एक निश्ति फीस देने पर संबंधित शहर, कस्बे के तारघर को भेज दिया जाता था, उस नंबर को डिकोड कर तारसंबंधित व्यक्ति तक पहुंचा दिया जाता था। दरअसल उन दिनों चिठ्ठी पहुंचने में कई दिन, कभी-कभी हफ्ते भी लग जाते थे, ऐसे में तारही था, जिसके जरिए 24 घंटे या जल्द से जल्द संदेश देश के किसी भी कोने में भेजा जा सकता था। टेलीग्राम करने के लिए डाकघर याने पोस्ट ऑफिस जाना होता था, क्योंकि छोटे शहरों, कस्बों में दिल्ली,मुंबई, कलकत्ता, मद्रास की तर्ज पर अलग से तारघर नहीं हुआ करते थे। हर डाकघर में तारभेजने के लिए अलग से खिड़की होती थी, जहां बैठे बाबू को आपको एक फार्म भरकर देना होता था, जिसमें तारमें भेजा जाने वाला संदेश या नंबर लिखना होता था। जिसे तारभेजना हो और जो तारभेजता था, उसका नाम और पता लिखा जाता था। कुछ आनाशुल्क से शुरु हुई ये सेवा कई रुपयों तक पहुंची। 30 शब्दों के लिए 28 रुपये तक का शुल्क हो गया। इससे ज्यादा शब्द होने पर प्रति शब्द के हिसाब से भुगतान करना होता था। इसके बाद तार बाबू एक विशेष मशीन के से संबंधित तारघर को मोर्स कोर्ड के जरिए वो संदेश भेजते थे। जिसे वहां एक पर्ची पर प्रिंट कर दिए पते पर तुरंत पहुंचा दिया जाता था। किसी भी वक्त। तारकी यहीं तो एक खासियत थी कि तारबे-वक्त आते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, क्योंकि अब नहीं सुनाई देगी वो आवाज, ‘बाबूजी तार आया है!

तारया टेलीग्राम सेवा की शुरुआत अंग्रेजों ने भारत में की थी। बताया जाता था कि 1850 में सबसे पहले कलकत्ता (अब कोलकाता) से डायमंड हॉर्बर तक टेलीग्राम भेजा गया था। फिर कलकत्ता से डॉयमंड हॉर्बर के बीच 27 मील लंबी टेलीग्राम लाइन डाली गई। वैसे तो टेलीग्राम का अविष्कार सैमुअल एफबी मॉर्स ने अमेरिका में किया था, लेकिन भारत में इसकी शुरुआत एक सर्जन ने की थी। तब के अंग्रेज गर्वनर लॉर्ड डलहौजी इससे इतना प्रभावित हुए कि पूरे देश में टेलीग्राम लाइन डालने की शुरुआत का आदेश दे दिया। इतिहासकारों की मानें तो 1856 आने तक अंग्रेजों ने पूरे देश में चार हजार मील लंबी टेलीग्राम लाइन डाल दी थी, और इस तरह कलकत्ता को दिल्ली, पेशावर, आगरा, बॉम्बे, मद्रास सहित तब की सभी बड़ी अंग्रेज छावनियों, बंदरगाहों से जोड़ दिया था। बताया तो ये भी जाता है कि वो टेलिग्राम सेवा ही थी जिसके चलते अंग्रेज 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को दबाने में कामयाब हो गए थे। जहां-जहां विद्रोह हुए, अंग्रेज हुकूमत को इसकी सूचना टेलीग्राम के जरिए मिलती रही। अंग्रेजों ने तारभेजकर ही विद्रोह के आस-पास की सैनिक छावनियों को आगाह किया, और वहां से सैनिक मदद भेजी जा सकी। यदि ये कहें कि तारके चलते ही 1857 का स्वतंत्रता आंदोलन सफल नहीं हो सका तो गलत ना होगा। या यूं कहें कि यदि तारनहीं होते, तो हम 15 अगस्त 1947 के बदले 1857  में ही आजाद हो चुके होते। इतिहास की इन बातों में कितना सच, या कितना झूठ, ये तो समय ही जानें, लेकिन ये सच है कि अब नहीं सुनाई देगी वो आवाज, ‘बाबूजी तार आया है!

     भारत सरकार ने फैसला किया है कि 14 जुलाई 2013  से टेलीग्राम सेवाएं समाप्त कर दी जाएगी। सरकार का तर्क है कि संचार के आधुनिक साधनों के मुकाबले अब टेलीग्राम सेवाएं पिछड़ती जा रही है और सरकार को सैकड़ों करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। शायद सरकार सच भी हो, क्योंकि आज हमारे पास मोबाइल फोन्स हैं, इंटरनेट है, जिससे हम वो सारे मैसेज भेज रहे हैं, जो कभी हमारे बाप-दादा टेलीग्राम के जरिए भेजा करते थे। एसएमएस दरअसल टेलीग्राम संदेशों का ही आधुनिक रुप बनकर सामने आया। अब वॉट्सअप है, चैटऑन है, ढेरों मैसेंजर सेवाएं हैं, ऐसे में कौन भला पोस्ट ऑफिस जाएगा और अपनों को टेलीग्राम करेगा। भारत में मोबाइल सेवा दुनिया की सबसे सस्ती सेवाओं में शुमार हैं। अब तो हमारे चायवाला, दूधवाला, सेक्यूरिटी गार्ड, सब्जीवाला हर कोई एक मोबाइल फोन अफोर्ड कर सकता है। आंकडो़ं की मानें तो देश में मोबाइल यूजर्स की संख्या करोड़ों में पहुंच गई है। इंटरनेट यूजर्स देश में करोड़ों की संख्या में पहुंच गए हैं। इतना ही नहीं स्मार्टफोन के चलते अब शहर-शहर, गांव-गांव मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से पूरी दुनिया आम आदमी की जद में आ गई है। या यूं कहें तो पूरी दुनिया ही एक ग्लोबल विलेजबन गई है। तेजी से बदलते समय के साथ अब सरकार का पुरानी तकनीक के बदले नई तकनीक को अपनाना जरुरी हो गया है, और ऐसे में हमें कई बदलावों से रुबरु होने के लिए खुद को ढालना होगा। दरअसल तारया टेलिग्राम सेवा का बंद होना हमारे एक युग से दूसरे युग में प्रवेश करने का संकेत है, और जब ऐसा होता है, तो बहुत-सी बातें इतिहास बन जाती है। ऐसी बातें जो फिर दोहराई नहीं जाती। जो एक बार फिर हमारी ज़िंदगी में नहीं आतीं। जैसे अब नहीं सुनाई देगी वो आवाज, ‘बाबूजी तार आया  है!

कुछ महत्वपूर्ण बिंदु --
भारत की तार सेवा 14 जुलाई 2013 को रात दस बजे समाप्त हो गई. 162 साल पुरानी सेवा के इतिहास के पन्नों में दर्ज होने से पहले सैकड़ों लोगों ने टेलीग्राम भेजा.

- भारत में टेलीग्राफ़ सेवा साल 1851 में शुरु हुई जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोलकाता से डायमंड हार्बर तक 48 किलोमीटर लंबी लाइन बिछाई. शुरु के कुछ साल तार सेवा सिर्फ़ आधिकारिक काम के लिए इस्तेमाल होती थी.

--मोबाइल फोन और इंटरनेट जैसे संचार के बेहतर और तेज़ रफ़्तार साधनों के चलते तार के घटते इस्तेमाल और बढ़ते घाटे की वजह से भारत संचार निगम लिमिटेड ने 12 जून को यह फ़ैसला लिया.

--- राजधानी दिल्ली में मोर्स कोड की मशीनों का इस्तेमाल 1970 के दशक तक चला. इसके बाद उनकी जगह दूसरी तकनीकों ने ले ली. दिल्ली के वार म्यूज़ियम में रखी यह मशीन 1915 की है. इसका इस्तेमाल  द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तार भेजने में हुआ था.

1830 से 1840 के दशकों में सेम्युअल मोर्स ने लंबी दूरी के बीच संचार के लिए एक तकनीक विकसित की, जिसके तहत इलेक्ट्रिक सिग्नलों को एक तार के ज़रिए दूसरी जगह पहुंचाया जाता था. मोर्स ने इसके लिए एक कोड तैयार किया. इसमें अंग्रेज़ी के हर शब्द के लिए डैश और डॉट का इस्तेमाल होता था. डैश की अवधि एक डॉट के समय से तीन गुना ज़्यादा होती थी. इसी की मदद से सेम्युअल मोर्स ने 1844 में अमरीका में वाशिंगटन डीसी से बाल्टीमोर के बीच पहला टेलीग्राफ़ संदेश भेजा. बाद में तार के लिए इसी मोर्स कोड मशीन का इस्तेमाल किया जाने लगा. मोर्स पद्धति अभी भी गोपनीयता बनाए रखने के लिए सेना और नेवी में इस्तेमाल होती है. माना जाता है कि इसे डिकोड करना आसान नहीं है. असल में मोर्स कोड पद्धति वायरलेस संचार की आधारशिला रही है और संचार के साधनों में यह सबसे ज्यादा वक्त तक चलने वाली तकनीक भी है.

Sunday, July 14, 2013

पसीने की बदबू का डिओडरेंट ट्रीटमेंट सेफ नहीं

पसीने की बदबू से छुटकारा पाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय बरसों से करते रहे हैं। कभी टेलकम पाउडर का सहारा लिया, तो कभी कपूर का। पिछले कुछ बरसों से डिओडरेंट पुरजोर इस्तेमाल में है। लेकिन खुशबू फैलाने वाले डियो के इस्तेमाल के कुछ नुकसान भी हैं। डियो के नुकसान और उसके विकल्पों बारे में पूरी जानकारी 
कपड़े, बैग और फुटवियर की तरह डिओडरंट भी हमारे रोजमर्रा का एक अहम हिस्सा है। जैसी गर्मी और उमस है इन दिनों, ऐसे में युवा घर से बाहर निकलते वक्त ब्रेकफास्ट करें-न-करें, डियो लगाना कतई नहीं भूलते। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि डियो ने हर मौसम में बदबू को शरीर से दिन भर दूर रख पाने का भरोसा और दूसरों से खुलकर मिलने का कॉन्फिडेंस दिया है, मगर इसके दूसरे पहलू को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बदबू से बचने के लिए डियो और पसीना रोकने वाले उत्पादों पर, जिसे ऐंटिपर्सपिरेंट कहते हैं, लोग साल में हजारों रुपये खर्च कर रहे हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि अनजाने ही उन्होंने एक गलत टैक पकड़ ली है, जिससे वे सख्त बीमार भी पड़ सकते हैं।
पसीना और बदबू
-बदबू हमारे शरीर में पसीने के जरिए पनपती है।-हालांकि पसीना अपने आप में बदबूरहित होता है। जब शरीर पर पनपने वाले माइक्रोस्कोपिक बैक्टीरिया इसके साथ मिलते हैं, तब बदबू पैदा होती है।
-पसीने की बदबू के लिए कई बार शरीर के कुछ हार्मोन जिम्मेदार होते हैं, तो कई बार खानपान या वातावरण इसकी वजह बनता है।
-लेकिन बदबू पनपने की सबसे बड़ी वजह है पसीने के साथ बैक्टीरिया का मिलना, जो हमारे शरीर में ही रहते हैं और पसीने के साथ मिलकर तेजी से बढ़ते हैं।

डियो का रोल
-डियो शरीर में बदबू फैलाने वाले बैक्टीरिया पर असर डालता है। हालांकि यह पसीना आने से नहीं रोक पाता।
-इसमें मौजूद केमिकल्स खुशबू पैदा करते हैं।

डियो से नुकसान
-कंज्यूमर एजुकेशन ऐंड रिसर्च सोसायटी (सीईआरएस) की मैगजीन इनसाइट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक कुछ डियोडरेंट या ऐंटिपर्सपिरेंट स्किन, आंखों और लिवर को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
-डियो में इस्तेमाल होने वाले कुछ केमिकल अल्जाइमर और कैंसर जैसी बीमारियों का कारण भी बन सकते हैं।
-डियो में इस्तेमाल होने वाला ऐंटि-बैक्टीरियल फेफड़े और लिवर डैमेज की वजह बन सकता है।
-यूएस एफडीए के मुताबिक गुर्दे की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए डियो का नियमित इस्तेमाल खतरनाक हो सकता है। इसमें इस्तेमाल होने वाला ऐल्युमिनियम उनके लिए काफी नुकसानदायक हो सकता है।
-डियो से कपड़ों का रंग खराब होने के अलावा कॉटन और लिनेन जैसे फैब्रिक का फाइबर खराब होने का खतरा भी रहता है।

ऐंटिपर्सपिरेंट का रोल
-ऐंटिपर्सपिरेंट हमारे शरीर के पसीने की ग्रंथियों को बंद कर त्वचा तक पसीना पहुंचने से रोकने के लिए डिजाइन किए गए हैं।
-ऐसा मुमकिन होता है ऐंटिपर्सपिरेंट में इस्तेमाल किए जाने वाले ऐल्युमिनियम की वजह से। ऐल्युमिनियम शरीर के रोम छिद्र बंद कर देता है, ताकि पसीना इनसे बाहर न आ सके।

ऐंटिपर्सपिरेंट के नुकसान
-ऐंटिपर्सपिरेंट में ऐल्युमिनियम, जिंक और जिरकोनियम, जो कि ऐस्ट्रिंजेंट सॉल्ट होते हैं, त्वचा में खुजली, जलन, सूजन और रैशेज की वजह बन सकते हैं।
-ज्यादा मात्रा में जिंक, जिरकोनियम और जिरकोनिल अगर सांस के जरिए शरीर के भीतर जाता है, तो फेफड़ों और शरीर के दूसरे अहम अंगों के लिए जहरीला साबित हो सकता है।
-ऐल्युमिनियम वाले कई ऐंटिपर्सपिरेंट से कपड़ों पर पीले दाग पड़ जाते हैं। अगर आप किसी दोस्त या परिवार के सदस्य के कपड़ों पर पीलापन देखकर हैरान होते हैं, तो इसकी वजह ऐल्युमिनियम कॉम्प्लेक्स को पसीने के साथ मिलाइए, जवाब खुद-ब-खुद मिल जाएगा।
-जिन उत्पादों के ऐंटिपर्सपिरेंट और डियो दोनों होने का दावा किया जाता है, इनमें इस्तेमाल होने वाला प्रोपलेंट गैस अगर ज्यादा मात्रा में सांस के जरिए शरीर के भीतर जाता है, तो दिल की धड़कनों को प्रभावित कर सकता है। इसे कार्डिएक एरिद्मिया कहते हैं।
-ऐल्युमिनियम का संबंध ब्रेस्ट कैंसर और अल्जाइमर से भी बताया जाता है। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसकी पुष्टि के लिए और रिसर्च की जरूरत है।

डियो और परफ्यूम का फर्क
-बाजार में मौजूद ज्यादातर डियोडरेंट में अल्कोहल और एंटी बैक्टिरियल होते हैं, ताकि ये आपको बदबू से बचा सकें।
-परफ्यूम से ऐसा नहीं होता, लेकिन उसकी खुशबू लंबे वक्त तक रहती है।
-डियोडरेंट की खुशबू थोड़ी देर बाद ही उड़ जाती है। लगभग सभी तरह के सस्ते-महंगे डियोडरेंट में 6 से 15 पर्सेंट खुशबू वाले ऑइल, 80 पर्सेंट अल्कोहल के साथ मिले होते हैं।
-परफ्यूम में 15 से 25 पर्सेंट खुशबू वाले ऑइल होते हैं।

इनसे भी बचिए अल्कोहल बेस्ड स्प्रे
-डियोडरेंट पसीने की नमी में पनपने वाले बैक्टीरिया से आने वाली दुर्गंध को रोकते हैं। चूंकि ऐल्युमिनियम कंपाउंड्स और अल्कोहल त्वचा पर जल्दी सूखते हैं और ठंडक देते हैं, ऐसे में ज्यादातर डियोडरेंट में इनका इस्तेमाल होता है। -कुछ लोगों में इन चीजों से एलर्जी होती है, जिससे सेहत संबंधी बड़ी दिक्कत हो सकती है।
-इससे अंडर आर्म में जलन होती है और त्वचा दूसरे किसी स्प्रे के लिए भी सेंसेटिव हो जाती है।
-अगर आपको भी ऐसी कोई दिक्कत हो रही है, तो फौरन किसी डर्मेटोलॉजिस्ट से मिलें।

केमिकल्स मिथाइल पैराबीन, प्रोपाइल पैराबीन, इथइल पैराबीन जैसे केमिकल, जो बहुत सारे कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट्स में इस्तेमाल होते हैं, इनसे ब्रेस्ट कैंसर की आशंका रहती है।

डियो के बगैर ऐसा नहीं है कि डियोडरेंट ही पसीने की बदबू दूर करने का एकमात्र तरीका है। अब जब आप इसके नुकसान जान गए हैं, आइए कुछ उन विकल्पों के बारे में जानें, जो डियो के बगैर भी आपको पसीने की बदबू से बचा सकते हैं :

बेकिंग सोडा
-बेकिंग सोडा एक प्राकृतिक क्लींजर और डिओडरेंट है।
- बगल की बदबू से बचाव के नुस्खे के तौर पर इसका काफी इस्तेमाल होता रहा है।
- इसमें प्रयुक्त सोडियम बाईकार्बोनेट पसीना आने से नहीं रोकता, लेकिन बदबू पनपने से जरूर बचा लेता है।
- नहाने से पहले अपने अंडर आर्म में थोड़ा बेकिंग सोडा छिड़कें और असर देखें।
-आप इसे एक साफ कपड़े पर भी छिड़क सकते हैं और जरूरत पड़ने पर इससे अंडर आर्म पोंछ सकते हैं।

एलोवेरा
-एलोवेरा त्वचा की सेहत सुधारता है।
-यही वजह है कि तमाम अच्छे सौंदर्य उत्पादों में इसका इस्तेमाल होता है।
-यह त्वचा को पर्याप्त नमी और पोषण देता और नए स्किन टिश्यू को जल्दी बनने में मदद करता है।
-ज्यादातर लोग एलोवेरा के बाहरी इस्तेमाल से वाकिफ होते हैं, जबकि एलुवेरा जूस पीने से खून की अशुद्धियां दूर होती हैं और त्वचा में कुदरती निखार आता है।
-यह त्वचा की सेहत दुरुस्त कर बदबू वाले बैक्टीरिया के पनपने को काबू कर सकता है।

कपूर
-डियो का एक अच्छा विकल्प कपूर भी है।
-यह आपके स्वेट ग्लैंड पर हानिकारक असर डाले बिना पसीने की बदबू को रोकता है।
-कपूर को आप अंडर आर्म में रगड़ सकते हैं। इसके अलावा पानी में डालकर भी नहा सकते हैं।

फिटकरी
-कपूर की तरह ही इसे भी पानी में डालकर नहाने के अलावा आप अंडर आर्म में रगड़ कर भी लगा सकते हैं।

गुलाब जल
-नहाने के बाद एक मग पानी में गुलाब जल की दस बूंदें मिला कर उसे शरीर पर।
-यह लंबे वक्त तक आपको ताजगी का अहसास कराएगा और डियो के कुदरती विकल्प के तौर पर काम करेगा।

आसान कुदरती तरीका
-सर्दी के दिनों में कम-से-कम एक बार और गर्मी में दो बार जरूर नहाएं। इससे न सिर्फ पसीना धुल जाएगा, बल्कि शरीर पर पनपने वाले बैक्टीरिया भी कम होंगे।
-हर बार साफ धुले हुए कपड़े पहनें।
-सीधे धूप में बैठने से बचें।
-कॉटन जैसे नेचरल फाइबर से बने कपड़े ही पहनें। इसमें हवा आसानी से पास होती है। सिंथेटिक, नायलॉन या लायक्रा जैसे फैब्रिक पहनने से बचें, इनमें हवा की आवाजाही ठीक से नहीं हो पाती।
-योग को अपनी नियमित दिनचर्या में शामिल करें। इससे तनाव कम होगा। गर्मी से तनाव बढ़ता है और इससे पसीना अधिक आता है। ऐसे में योग फायदेमंद हो सकता है।

जब नहा न पाएं
-अगर आपके पास कई बार नहाने का वक्त नहीं है, तो टब में पानी भरें और इसमें 4 चम्मच बेकिंग सोडा डालें। इसके बाद पानी में एक स्पॉंज या वॉश क्लॉथ डुबाएं और इससे रगड़कर पसीने वाली जगहों को साफ कर लें।
-अगर आपके पैरों से बदबू आती है, तो ओडोर-एब्जॉर्बिंग इंसोल अपने फुटवियर में रखकर पहनें। ऐसे इंसोल केमिस्ट की दुकान से मिल सकते हैं।

खान-पान बदलें
-शरीर की बदबू का रिश्ता हमारे खान-पान से भी होता है।
-प्रॉसेस्ड फूड मसलन रिफाइंड शुगर, मैदा और वनस्पति घी जैसी चीजें बदबू की वजह हो सकती है। इनसे परहेज करना चाहिए।
-रेड मीट, लो फाइबर वाली चीजें, अल्कोहल, कैफीन, जीरा और लहसुन जैसी चीजें कम खाएं।
-साबुत अनाज, हरी सब्जियां, फल, सोया प्रॉडक्ट, अंकुरित अनाज और बादाम आदि खाएं।
-अपने नियमित खानपान में मूली शामिल करें।
-शरीर में मैग्नीशियम या जिंक की कमी और मीट, अंडा, फिश लिवर, बींस, प्याज, लहसुन, तली हुई और फैटी चीजों का ज्यादा इस्तेमाल भी बदबू बढ़ा सकता है। इन्हें कम इस्तेमाल में लाएं।
-कुछ मसाले भी सांस और शरीर की बदबू की वजह बन सकते हैं।
-काफी तेज खुशबू वाले मसाले और लहसुन, प्याज अगर ज्यादा मात्रा में लें, तो यह शरीर में जाकर आमतौर पर सल्फर गैस बनाते हैं, जो कि खून में घुल जाते हैं और फेफड़े और रोम छिद के जरिए बाहर निकलते हैं। इनसे तीखी बदबू आती है।

चूंकि बदबू का सीधा रिश्ता पसीने से है, जानिए किसको कितना पसीना आता है :

किसको कितना पसीना
-एक शख्स को कितना पसीना आता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी स्वेट ग्लैंड यानी पसीना छोड़ने वाली ग्रंथियां कितनी सक्रिय हैं।
-लेकिन ऐसा देखा गया है कि एक स्वस्थ पुरुष को एक स्वस्थ महिला की तुलना में ज्यादा पसीना आता है।
-एक समान स्वेट ग्रंथियां सक्रिय होने के बावजूद महिलाओं को कम पसीना आता है।
-एक फिट शख्स को एक्सर्साइज के दौरान ज्यादा पसीना आता है, लेकिन उनके शरीर का तापमान इस दौरान कम रहता है। वहीं अगर एक मोटापे का शिकार शख्स उतनी ही देर मेहनत करता है, तो उसके शरीर का तापमान ज्यादा बढ़ जाता है और पसीना भी ज्यादा आता है।
-मोटापे के शिकार शख्स को सामान्य वजन वाले शख्स की तुलना में वैसे भी पसीना ज्यादा आता है, क्योंकि उनके शरीर का फैट ऊष्मारोधी की तरह काम करता है और इसके चलते शरीर का असल तापमान बढ़ जाता है।
ज्यादा पसीना यानी हाइपरथर्मिया
-कुछ लोगों को बहुत ही ज्यादा पसीना आता है।
-यह एक आम-सी है, जिसे हाइपरथर्मिया कहते हैं।
-इससे पीड़ित लोगों की हथेली, पैर, पीठ और चेहरा हमेशा पसीने से डूबा रहता है। यहां तक कि ठंडे मौसम में भी उन्हें इससे निजात नहीं मिलती।
-अगर ऐसी समस्या है, तो फौरन इलाज के विकल्प जानने के लिए फैमिली डॉक्टर से मिलें।

Thursday, July 11, 2013

एनपीएः परिभाषा एवं परिचय

एनपीएः परिभाषा एवं परिचय

बैंक के कार्य को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता हैः-1. लोगों का पैसा जमा के रुप में स्वीकार करना और 2. उस जमा पैसे को ऋण के रुप में  जरुरतमंद लोगों के बीच वितरित करना। ऋण एक निष्चित अवधि के लिए स्वीकृत किया जाता है, जो मुकर्रर समय के अंदर ब्याज व किस्त के रुप में ऋणी को चुकाना होता है। जब तक ऋणी समय पर ब्याज व किस्त अपने ऋण खाता में जमा करता रहता है, तो उसे निष्पादित परिसंपत्ति या स्टैंडर्ड खाता कहा जाता है, पर जैसे ही उस खाता में ब्याज या किस्त या फिर दोनों जमा होना बंद हो जाता है, तो उसे गैर निष्पादित परिसंपत्ति कहते हैं। बोल-चाल की भाषा में इसे नन-परफोरमिंग असेट (एनपीए) कहा जाता है।

भारत में आधुनिक स्वरुप वाले एनपीए के सिंद्धात का आगमन 31 मार्च, 1993 में हुआ था। इस संकल्पना को अमलीजामा पहनाने के पीछे भारतीय रिजर्व बैंक का उद्देष्य था-बैंकों द्वारा हर साल घोषित किये जाने वाले लाभ में पारदर्शिता लाना। इसके पहले, आमतौर पर बैंक द्वारा वैसी परिसंपत्तियाँ, जिनसे न तो किसी प्रकार की आय होती थी और न ही वसूली की संभावना होती थी, उसे लाभ-हानि के खाते में, लाभ के मद में दर्शाया जाता था। संपत्ति की गुणवत्ता व वसूली की संभावना के मुताबिक एनपीए को पुनः तीन भागों में विभाजित किया गया हैः-1. सब-स्टैंडर्ड असेट, 2. डाउटफुल असेट एवं 3. लॉस असेट। कोई खाता एनपीए न हो इसके लिए उक्त खाता को पहले स्पेशल मेंशन अकाऊंट (एसएमए) में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण को अर्ली वार्निंग सिग्नल की संज्ञा दी गई है। बैंक एसएमए वाले खातों में रिकवरी के प्रति विशेष रुप से सर्तक रहते हैं।

Tuesday, July 9, 2013

सर -क्रीक विवाद

सर -क्रीक विवाद है क्या ?

भारत और पाकिस्तान के बीच सर क्रीक का मुद्दा वर्षो से चल रहा है। यह जल क्षेत्र गुजरात के कच्छ जिले और सिंध की सीमा के पास स्थित है। यह विवाद अरब सागर स्थित कच्छ के रण में 96 किलोमीटर लंबे मुहाने को लेकर है जो गुजरात को पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अलग करता है।सर क्रीक की खाड़ी का विवाद से पुराना रिश्ता रहा है। ईस्ट इंडिया कंपनी के सेना प्रमुख चा‌र्ल्स नैपियर ने 1842 में सिंध को जीतने के बाद उस राज्य का प्रशासन बंबई राज्य को सौंप दिया था। इसके बाद सिंध में अपना प्रशासन चला रही अंग्रेज सरकार ने सिंध और बंबई के बीच सीमारेखा खींची थी चे कच्छ के बीच से गुजरती थी। इसमें यह संपूर्ण खाड़ी सिंध प्रांत में दिखाई गई थी। यानि च्क कच्छ के मूल क्षेत्र से उसे अलग कर सिंध में जोड़ दिया गया था।दूसरी तरफ दिल्ली की अंग्रेज सरकार अपने अधिकृत नक्शे में सिंध और कच्छ के बीच की सीमारेखा को कच्छ के रण तक खींचने के बाद खाड़ी को बंबई राज्य में दिखाती थी। स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान ने संपूर्ण खाड़ी क्षेत्र पर अपना मालिकाना हक जताया। इसके जवाब में भारत का प्रस्ताव चा कि कच्छ के रण से लेकर खाड़ी के मुख तक की एक सीधी रेखा को सीमारेखा मान लेना चाहिए। परंतु यह प्रस्ताव पाकिस्तान को मंजूर नहीं था।इस प्रकार से सर क्रीक खाड़ी का करीब 650 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा आज भी विवादित है। इस क्षेत्र से प्राय: पाकिस्तानी रेंजरों द्वारा भारतीय मछुआरों को उठा ले जाने की खबरें आती रहती हैं। सियाचिन के बाद सर क्रीक भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ाने वाली एक और सीमारेखा है। लेकिन यह विवाद सियाचिन की तरह बराबर सुर्खियों में नहीं रहता है।

Friday, July 5, 2013

पिन कोड का मतलब ?

पिन कोड का मतलब ?

आपके इलाके का पिन कोड तो आपको याद ही होगा। हर किसी को पिन कोड जबानी याद होता है। कोई चिट्ठी भेजनी हो, कोरियर या मनी ऑर्डर पिन कोड की जरूरत तो सभी को पड़ती है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि पिन कोड का मतलब क्या होता है?


पिन कोड एक बहुत ही महत्वपूर्ण कोड होता है। इसकी मदद से आप अपने इलाके की पूरी जानकारी आसानी से निकाल सकते हैं। जब आप अपना पिन कोड किसी को बताते हैं तो इसका मतलब होता है कि आप अपने एरिया की पूरी जानकारी उसे दे रहे हैं।
पिन कोड का जनम 15 अगस्त 1972 को हुआ था। पिन कोड का मतलब होता है पोस्टल इंडेक्स नंबर। 
6 नंबरों को मिलाकर बनाया गया ये कोड आपके एरिया की पूरी जानकारी देता है। इसका हर नंबर कोई खास एरिया की जानकारी देता है। इस जानकारी की मदद से पोस्ट ऑफिस के लोग सही जगह पैकेट को डिलिवर करते हैं।  हमारा पूरा देश 6 खास जोन में डिवाइड किया हुआ है। इसमें से 8 रीजनल जोन हैं और एक फंक्शनल जोन। हर पिन कोड किसी ना किसी खास जोन की जानकारी देता है।

पिन कोड के नंबर-
अगर आपके पिन कोड का पहला नंबर 1 है तो इसका मतलब है कि आप दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश या जम्मू और कश्मीर में से किसी राज्य से हैं। अगर यही नंबर 2 है तो आप उत्तर प्रदेश या उत्तरांचल से हैं। इसी तरह अगर आपके पिन कोड का पहला नंबर 3 है तो आप वेस्टर्न जोन के राजस्थान या गुजरात से ताल्लुक रखते हैं। 4 नंबर से शुरू होने वाला पिन कोड महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का कोड होता है। इसी तरह 5 से शुरू होने वाला कोड आंद्र प्रदेश और कर्नाटक का होता है। अगर आपका पिन कोड 6 से शुरू हो रहा है तो आप केरला या तमिलनाडू के रहने वाले हैं।अब अगर आपके पिन कोड का पहला नंबर 7 है तो आप ईस्टर्न जोन में हैं। यहां आप बंगाल, ओरिसा, और नॉर्थ ईस्टर्न इलाकों में हैं। अगर आपके पिन कोड का पहला नंबर 8 है तो यह इस बात का संकेत है कि आप बिहार या झरखंड में रहते हैं। अब अगर आप 9 नंबर से शुरू होने वाले पिन कोड का प्रयोग करते हैं तो यह इस बात का सबूत है कि आप फंक्शनल जोन में रहते हैं। यह होता है आर्मी पोस्टल सर्विसेज के लिए।

अब ये तो हुई पहले नंबर की बात अब हम बात करते हैं पिन कोड के शुरू के दो नंबरों के बारे में। 11 नंबर दिल्ली का होता है, 12 - 13 हरियाणा, 14 - 16 पंजाब, 17 हिमाचल प्रदेश, 18  और 19 जम्मू और काश्मीर, 20 - 28 उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के लिए, 30-34 राजस्थान, 36-39 गुजरात, 40-44 महाराष्ट्रा, 45-49 मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़, 50-53 आन्द्र प्रदेश, 56-59 कर्नाटक, 60-64 तमिल नाडू, 67-69 केरला, 70-74 बंगाल, 75-77 ओरिसा, 78 आसाम, 79 नॉर्थ ईस्टर्न इलाके, 80-85 बिहार और झारखंड, 90-99 आर्मी पोस्टल सर्विसेज।

पिन कोड के अगले 3 डिजिट उस इलाके की जानकारी देते हैं जहां आपका पैकेट पहुंचना है। इसका मतलब है उस ऑफिस में जहां आपका पैकेट जाएगा। एक बार आपका पैकट सही ऑफिस तक पहुंच गया तो वहां से यह आपके घर तक पहुंचाया जाता है। अब आप समझे पिन कोड कितना महत्वपूर्ण है।


ये पोस्ट दैनिक भास्कर से लिया गया है इस पोस्ट को यहाँ लिखने का मकसद जानकारी को दूसरों तक पहँचाना है।   


Thursday, July 4, 2013

मेरे आदर्श स्वामी विवेकानंद

स्‍वामी विवेकानंद, जिनका नाम आते ही मन में श्रद्धा और स्‍फूर्ति दोनों का संचार होता है। श्रद्धा इसलिये, क्‍योंकि उन्‍होंने भारत के नैतिक एवं जीवन मूल्‍यों को विश्‍व के कोने-कोने तक पहुंचाया और स्‍फूर्ति इसलिये क्‍योंकि इन मूल्‍यों से जीवन को एक नई दिशा मिलती है। आज यानी 4 जुलाई स्‍वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि है। 
         ‘उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रुको’

इन विचारों के साथ युवाओं को प्रेरित करने वाले स्‍वामी विवेकानंद, का नाम आते ही मन में श्रद्धा और स्‍फूर्ति दोनों का संचार होता है। श्रद्धा इसलिये, क्‍योंकि उन्‍होंने भारत के नैतिक एवं जीवन मूल्‍यों को विश्‍व के कोने-कोने तक पहुंचाया और स्‍फूर्ति इसलिये क्‍योंकि इन मूल्‍यों से जीवन को एक नई दिशा मिलती है। अपनी तेज और ओजस्वी वाणी की बदौलत दुनियाभर में भारतीय आध्यात्म का डंका बजाने वाले वाले प्रेरणादाता और मार्गदर्शक स्वामी विवेकानंद एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे। युवाओं के लिए विवेकानंद साक्षात भगवान थे। उनकी शिक्षा पर जो कुछ कदम भी चलेगा उसे सफलता जरूर मिलेगी। अपनी वाणी और तेज से उन्होंने पूरी दुनिया को चकित किया था। आज ऐसे नेताओं की बहुत कमी है जिनकी वाणी में मिठास होने के बाद भी उनमें भीड़ इकठ्ठा करने की क्षमता हो। आइए ऐसे महान व्यक्ति के जीवन पर एक नजर डालें।

ओजस्वी वाणी 

स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के एक क्रांतिकारी संत हुए हैं। 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में जन्मे इस युवा संन्यासी के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था। इन्होंने अपने बचपन में ही परमात्मा को जानने की तीव्र जिज्ञासावश तलाश आरंभ कर दी। इसी क्रम में उन्होंने सन् 1881में प्रथम बार रामकृष्ण परमहंस से भेंट की और उन्हें अपना गुरु स्वीकार कर लिया तथा अध्यात्म-यात्रा पर चल पड़े।

विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो

स्वामी विवेकानंद 11 सितंबर, 1883 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में उपस्थित होकर अपने संबोधन में सबको भाइयों और बहनों कह कर संबोधित किया। इस आत्मीय संबोधन पर मुग्ध होकर सब बडी देर तक तालियां बजाते रहे। वहीं उन्होंने शून्य को ब्रह्म सिद्ध किया और भारतीय धर्म दर्शन अद्वैत वेदांत की श्रेष्ठता का डंका बजाया। उनका कहना था कि आत्मा से पृथक करके जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु से प्रेम करते हैं, तो उसका फल शोक या दु:ख होता है।

अत:हमें सभी वस्तुओं का उपयोग उन्हें आत्मा के अंतर्गत मान कर करना चाहिए या आत्म-स्वरूप मान कर करना चाहिए ताकि हमें कष्ट या दु:ख न हो। अमेरिका में चार वर्ष रहकर वह धर्म-प्रचार करते रहे तथा 1887 में भारत लौट आए। फिर बाद में 18 नवंबर,1896 को लंदन में अपने एक व्याख्यान में कहा था, मनुष्य जितना स्वार्थी होता है, उतना ही अनैतिक भी होता है।

उनका स्पष्ट संकेत अंग्रेजों के लिए था, किंतु आज यह कथन भारतीय समाज के लिए भी कितना अधिक सत्य सिद्ध हो रहा है? स्वामी विवेकानंद ने धर्म को मात्र कर्मकांड की निर्जीव क्रियाओं से निकाल कर सामाजिक परिवर्तन की दिशा में लगाने पर बल दिया। वह सच्चे मानवतावादी संत थे। अत:उन्होंने मनुष्य और उसके उत्थान व कल्याण को सर्वोपरि माना। उन्होंने इस धरातल पर सभी मानवों और उनके विश्वासों का महत्व देते हुए धार्मिक जड़ सिद्धांतों तथा सांप्रदायिक भेदभाव को मिटाने के आग्रह किए।

युवाओं के लिए स्वामीजी का संदेश 

युवाओं के लिए उनका कहना था कि पहले अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाओ, मैदान में जाकर खेलो, कसरत करो ताकि स्वस्थ-पुष्ट शरीर से धर्म-अध्यात्म ग्रंथों में बताए आदर्शो में आचरण कर सको। आज जरूरत है ताकत और आत्म विश्वास की, आप में होनी चाहिए फौलादी शक्ति और अदम्य मनोबल।

शिक्षा ही आधार है 

अपने जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद ने न केवल पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया, बल्कि लाखों लोगों से मिले और उनका दुख-दर्द भी बांटा। इसी क्रम में हिमालय के अलावा, वे सुदूर दक्षिणवर्ती राज्यों में भी गए, जहां उनकी मुलाकात गरीब और अशिक्षित लोगों से भी हुई। साथ ही साथ धर्म संबंधित कई विद्रूपताएं भी उनके सामने आई। इसके आधार पर ही उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि जब तक देश की रीढ़ ‘युवा’ अशिक्षित रहेंगे, तब तक आजादी मिलना और गरीबी हटाना कठिन होगा। इसलिए उन्होंने अपनी ओजपूर्ण वाणी से सोए हुए युवकों को जगाने का काम शुरू कर दिया।

गजब की वाणी 

स्वामी विवेकानंद ने अपनी ओजपूर्ण वाणी से हमेशा भारतीय युवाओं को उत्साहित किया। उनके उपदेश आज भी संपूर्ण मानव जाति में शक्ति का संचार करते है। उनके अनुसार, किसी भी इंसान को असफलताओं को धूल के समान झटक कर फेंक देना चाहिए, तभी सफलता उनके करीब आती है। स्वामी जी के शब्दों में ‘हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए’।

1902 में मात्र 39 वर्ष की अवस्था में ही स्वामी विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए। हां यह सच है कि इतने वर्ष बीत जाने के बावजूद आज भी उनके कहे गए शब्द सम्पू‌र्ण विश्व के लिए प्रेरणादायी है। कुछ महापुरुषों ने उनके प्रति उद्गार प्रकट किया है कि जब-जब मानवता निराश एवं हताश होगी, तब-तब स्वामी विवेकानंद के उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार जन-जन को प्रेरणा देते रहेगे और कहते रहेंगे-’उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रुको।’

सफलता के लिए स्वामी विवेकानंद का मूल-मंत्र:-

1. उठो जागो, रुको नहीं

उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।

2. तूफान मचा दो

तमाम संसार हिल उठता। क्या करूँ धीरे-धीरे अग्रसर होना पड़ रहा है। तूफ़ान मचा दो तूफ़ान!

3. अनुभव ही शिक्षक 

जब तक जीना, तब तक सीखना -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।

4. पवित्रता और दृढ़ता

पवित्रता, दृढ़ता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ।

5. ज्ञान और अविष्‍कार 

ज्ञान स्वयं में वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।

6. मस्तिष्‍क पर अधिकार 

जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।

7. आध्‍यात्मिक दृष्टि 

आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।

8. नैतिक प्रकृति 


हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।

9. स्‍तुति करें या निंदा 

लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो।

10. किसी के सामने सिर मत झुकाना 


तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।