Thursday, December 17, 2015

तेल की सुस्ती से ओपेक चिन्तित

तेल की सुस्ती से ओपेक चिन्तित 

कच्चे तेल की गिरती क़ीमतें अब नहीं थम रही हैं. इस वजह से तेल उत्पादक देशों के समूह आर्गेनाईजेशन ऑफ़ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज(ओपेक) में खलबली मची है और सरकारों की कमाई पर असर पड़ रहा है। कच्चे तेल की गिरती क़ीमतों ने अब दुनिया भर के बाज़ारों में भूचाल पैदा कर दिया है. जो लोग कच्चे तेल पर पैनी नज़र रखते हैं उनका मानना है कि गिरती क़ीमत दुनियाभर की कमज़ोर अर्थव्यवस्था के बारे में बता रही है। पिछले हफ़्ते कच्चा तेल 40 डॉलर प्रति बैरल के नीचे चला गया। नाइमेक्स और ब्रेंट की क़ीमतों के आधार पर ये 11 साल में सबसे कम क़ीमत है। गिरती हुई कच्चे तेल की क़ीमतों से ओपेक के 12 देश भी हिल से गए हैं।
अगर क़ीमतें फ़रवरी तक बढ़ती नहीं हैं तो ओपेक ने एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाने का सोचा है ताकि वह ऐसे क़दमों पर विचार कर सके जिससे क़ीमतों में गिरावट को रोक जा सकता है। कच्चे तेल की उत्पादन में कटौती इनमें एक तरीक़ा हो सकता है।ओपेक देश कच्चे तेल के बाज़ार में काफ़ी अहमियत रखते हैं. दुनिया की एक तिहाई कच्चे तेल के उत्पादन करने के कारण वो क़ीमतें बढ़ाने या घटाने की स्थिति में होते हैं। ओपेक में क़तर, लीबिया, सऊदी अरब, अल्जीरिया, नाइजीरिया, ईरान, इराक़, कुवैत जैसे देश इसके सदस्य हैं। इंडोनेशिया दोबारा ओपेक में अगले साल शामिल हो जाएगा। वह उसका तेरहवां सदस्य होगा।
ओपेक देशों के अलावा अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाले कच्चे तेल की खपत पर ख़ास ध्यान देते हैं। दुनिया भर की फैक्ट्रियों में जो भी उत्पादन हो रहा है उसकी मांग को देखते हुए पेट्रोल, डीज़ल की खपत और जहाज़ों की बुकिंग के आंकड़ों को देख कर इस बात का अंदाज़ा लग जाता है कि अर्थव्यवस्था की हालत कैसी है। कच्चे तेल की ख़रीद और पेट्रोल, डीज़ल की खपत देखते ही अर्थशास्त्री ये कह सकते हैं कि मंदी का दौर ख़त्म हो सकता है। लेकिन फ़िलहाल अर्थशास्त्री मांग में बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं कर रहे हैं।
इस कमज़ोर अर्थव्यवस्था का असर रूस जैसे देशों पर भी हो रहा है, जिसकी क़रीब 60 फीसदी सालाना विदेशी मुद्रा की कमाई कच्चे तेल की बिक्री से होती है। क़ीमतें घटने से रूस और उसके जैसे देशों की कमाई भी मारी जाती है। ओपेक देशों में से अल्जीरिया, अंगोला, नाइजीरिया और वेनेज़ुएला जैसे देश अक्सर ये मांग करते हैं कि उत्पादन में कटौती होनी चाहिए क्योंकि उससे गिरती क़ीमतों पर रोक लग सकती है। इन देशों की अर्थव्यवस्था और सरकारी राजस्व कच्चे तेल से होने वाली कमाई पर बहुत ज़्यादा निर्भर है।

ओपेक देशों का लालच भी एक वजह

जैसे-जैसे चीन और भारत की अर्थव्यवस्थाएं अहम होती जा रही हैं, इनकी खपत तेज़ी से बढ़ रही है। कच्चे तेल की क़ीमतों पर खाड़ी और उसके आसपास के देशों में हो रही लड़ाई का भी असर होता है। जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में क़ीमतें गिरने लगती हैं तो ओपेक देशों में थोड़ा लालच भी होता है। ओपेक देश हर साल कम से कम दो बार मिलते हैं। हर मीटिंग में उत्पादन की सीमा पर विचार किया जाता है। लेकिन कुछ देश उससे ज़्यादा कच्चे तेल का भी उत्पादन करते हैं। उन्हें लगता है कि क़ीमतें और भी नीचे जाएंगी तो ऐसे में उन्हें आज ही अपने उत्पाद की बढ़िया क़ीमत मिल जाएंगी।


लगता है कुछ ऐसी ही स्थिति अभी बनी हुई है। ओपेक के मुताबिक़, नवंबर 2015 में उसने 3 करोड़ 17 लाख बैरल का रोज़ाना उत्पादन किया। ये उसके उत्पादन स्तर के मुताबिक़ तीन साल में सबसे ज़्यादा है। कमज़ोर मांग वाले बाज़ार में ओपेक सदस्यों के लालच के कारण शायद गिरती क़ीमतें थम नहीं रही हैं। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमतें पिछले दशक की शुरुआत में 10 डॉलर प्रति बैरल के आसपास हुआ करती थीं। लेकिन खाड़ी देशों के बदलते हालात और बढ़ती मांग के कारण पहली बार कच्चे तेल ने 100 डॉलर प्रति बैरल की क़ीमत जनवरी 2008 में पार कर लिया था। और उस साल जुलाई आते-आते क़ीमतें 147 डॉलर प्रति बैरल के अब तक के रिकॉर्ड के ऊपर पहुंच गई थीं।

Tuesday, September 15, 2015

सयुंक्त राष्ट्र महासभा ( UNGC ) का प्रस्ताव और भारत की दावेदारी


सयुंक्त राष्ट्र महासभा ( UNGC ) का प्रस्ताव और भारत की दावेदारी

कल सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने सुरक्षा परिषद के विस्तार से संबंधित एक प्रस्ताव को मंजूरी दी। इस प्रस्ताव के सवाल पर भारतीय मीडिया में बहुत ही भ्रामक खबरें आ रही हैं और ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे भारत को स्थाई सदस्यता मिलने जा रही है। जबकि इस मामले में दिल्ली ( न्यूयार्क ) अभी बहुत दूर है। कल जो प्रस्ताव पास हुआ है उसके मायने आखिर क्या हैं ?

                    भारत सहित कई देश दुनिया की बदली हुई परिस्थिति में सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार की मांग कर रहे थे। इन देशों में मुख्य रूप से चार देश शामिल हैं, भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील। परन्तु सुरक्षा परिषद के विस्तार का मुद्दा किसी निर्णय पर नही पहुंच पा  रहा था। सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य जिसमे अमेरिका, रूस, चीन, फ़्रांस और ब्रिटेन शामिल हैं इस को लटकाये रखना चाहते थे। ये देश हर रोज अपने भाषणो में अलग  अलग  बातें कहते रहे हैं। इस बातचीत को जिसे एक अंतर सरकार ग्रुप ( IGN ) चला रहा था 2008 से कोई प्रगति नही हो पा रही थी। इसलिए भारत सहित कई देशों ने इस बातचीत के लिए एक लिखित बातचीत ( पाठ  आधारित ) का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के अनुसार तय किये गए पांच मुद्दों पर,  ( जिसमे वीटो पावर का मुद्दा भी शामिल है ) हर देश द्वारा लिखित पक्ष रखने को जरूरी किया गया। इस प्रस्ताव का उद्देश्य बातचीत को भाषणो और आश्वासनों से आगे बढ़ाने का था। P -5 के देशों ने इस प्रस्ताव पर नकारात्मक रुख रखा। उनके अलावा 13 देशों का एक समूह जिसमे पाकिस्तान. इटली और दक्षिणी कोरिया शामिल हैं, ने भी इसके खिलाफ रुख अपनाया।

               सयुंक्त राष्ट्र महासभा के नए अध्यक्ष सैम कुटेसा के आने के बाद और उनके प्रयासों से इसमें तेजी आई। सैम कुटेसा ने इस मामले पर अमेरिका, चीन और रूस द्वारा लिखे गए पत्रों को आम जनता के लिए जारी कर दिया जिसमे इस मामले पर उनका रुख साफ होता है।

अमेरिका का रुख -
                                
अमेरिका ने इस विस्तार में किसी भी नए सदस्य को वीटो पावर का विरोध किया और पुराने सदस्यों की वीटो पावर जैसे की तैसे रखने की बात कही। अमेरिका का मानना है की कई देशों के पास वीटो पावर होने से सुरक्षा परिषद में किसी भी प्रस्ताव को पास करना मुश्किल हो जायेगा।

रूस का रुख ----
                        
रूस ने रुख अपनाया की पहले के स्थाई सदस्यों के किसी भी अधिकार में ( वीटो पावर सहित ) कोई भी कटौती ना की जाये।
चीन का रुख -----
                          
 चीन ने सुरक्षा परिषद के विस्तार पर तो सहमति दिखाई परन्तु उसने कहा की नए स्थाई सदस्य बनाने की बजाए अस्थाई सदस्यों की संख्या बढ़ा दी जाये ताकि छोटे और मध्यम देशों को बारी बारी भूमिका निभाने का मौका मिल सके। व्यवहारिक रूप से चीन को भारत की सदस्यता की बजाय जापान की सदस्यता पर ज्यादा एतराज है जो उसका पारम्परिक विरोधी है।
                      
  लेकिन सैम कुटेसा के प्रयासों से इस प्रस्ताव पर सहमति बन गयी और सभी देशों ने सर्व सम्मति से ये प्रस्ताव पास कर दिया। अब आगे की बातचीत पाठ आधारित होगी और किसी नतीजे पर पहुंचना आसान होगा। इस प्रस्ताव के बाद ये उम्मीद बढ़ गयी है की सुरक्षा परिषद के विस्तार का लम्बे समय से लटका हुआ मुद्दा जल्दी हल होगा।

भारत की स्थिति ----
                               
  अभी जो बातचीत चल रही है वो इस मामले पर है की सुरक्षा परिषद के विस्तार का क्या रूप हो। उसमे कितने देशों को शामिल किया जाये। जो नए देश शामिल किये जाएँ वो स्थाई सदस्य हों या अस्थाई हों। अगर स्थाई सदस्य शामिल किये जाएँ तो उनके अधिकार क्या होंगे और क्या उनको वीटो का अधिकार दिया जायेगा या नही। एक बार इस मुद्दे पर सहमति बनने के बाद और विस्तार का फार्मूला तय हो जाने के बाद देशों की दावेदारी पर विचार करने का नंबर आएगा। इसलिए अभी इसे इस रूप में पेश करना की सयुंक्त राष्ट्र महासभा में भारत की दावेदारी पर विचार हो रहा है, गलत होगा। बात एक कदम आगे जरूर बढ़ी है लेकिन भारत के लिए अभी न्यूयार्क बहुत दूर है।




Monday, September 7, 2015

दैनिक समसामयिकी

दैनिक समसामयिकी


1.जी-20, ओईसीडी ने जारी की नई कापरेरेट गर्वनेंस संहिता:-
छोटे शेयरधारकों के हितों की सुरक्षा और पूंजी जुटाने के वास्ते शेयर बाजार को मुख्य मंच के तौर पर स्थापित करने के लिए जी-20 और ओईसीडी ने शनिवार को सूचीबद्ध कंपनियों और नियामकों के लिए कंपनी संचालन के नए नियमों की घोषणा की। ये नियम भारत सहित सभी सदस्य देशों में लागू होंगे। इस घोषणा के बाद भारत में सेबी सहित दुनिया के सभी नियामकों और नीति निर्माताओं को अपने अपने देशों में सूचीबद्ध कंपनियों के नियमनों में सुधार लाना होगा। सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में नए नियमों को यहां जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक के दौरान जारी किया गया। वित्त मंत्री अरुण जेटली और रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन भी इस बैठक में भाग ले रहे हैं।इन नियमों में निवेशकों के अधिकारों की सुरक्षा और कंपनियों में सीईओ के वेतन को तर्कसंगत रखने के साथ ही निवेशकों के फायदे के लिए उपयुक्त खुलासे पर भी जोर दिया गया है। नए नियमों में विभिन्न देशों के बीच नियामकों के बीच सहयोग बढ़ाने और सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यवस्था बनाने को कहा गया है। नियमों में यह भी कहा गया है कि शेयरधारकों को एक दूसरे से बातचीत करने और शेयरधारकों द्वारा एक देश से दूसरे देश में मतदान की अड़चनों को दूर किया जाना चाहिए। जी-20 और ओईसीडी द्वारा जारी इन नियमों में कंपनियों द्वारा वित्तीय जानकारी उपलब्ध कराने, बड़े वित्तीय संस्थानों के व्यवहार और शेयर बाजारों के कामकाज के बारे में सिफािरशें दी गई हैं। नियमों में नियामकों से संबंधित पक्षों के बीच लेनदेन में आपसी हितों के टकराव के मुद्दों को प्रभावी ढंग से निपटने की हिदायत दी गई है। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के महासचिव एंजेल गुरिया और तुर्की के उप प्रधानमंत्री सेवडेट यिलमाज ने जी-20 देशों की मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान अलग से इस संहिता को जारी किया। यिलमाज ने बाद में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जी-20 कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने के वास्ते पूंजी बाजार की भूमिका को बेहतर बनाना चाहता है। विशेष तौर पर ऐसे समय जब वर्ष 2007-08 के नियंतण्र वित्तीय संकट के बाद बैंकों के सामने समस्या खड़ी हो रही है। हालांकि, कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य नियमों को अपनाना पड़ता है। उन्हें यह सुनिश्चित करना होता है कि जरूरी पूंजी उनके पास हो और शेयरधारकों के हितों को सुरक्षित रखा जा सके।

2. भारत, ईयू के बीच निकलेगी एफटीए की राह:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नवंबर, 2015 में होने वाली पहली ब्रिटेन यात्र में वैसे तो कई आर्थिक मुद्दे उठेंगे, लेकिन भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच मुक्त व्यापार समझौते इसमें काफी अहम रह सकता है। भारत में राजग सरकार के आने के बाद यह पहला मौका होगा, जब दोनों देश लंबित आर्थिक मुद्दों पर आगे बढ़ने की पहल करेंगे। ऐसे में एफटीए की अटकी हुई गाड़ी को फिर आगे बढ़ाने के लिए दोनो देशों के शीर्ष नेताओं से स्पष्ट संकेत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। ब्रिटेन पहले भी ईयू के साथ भारत के एफटीए का बहुत बड़ा समर्थक रहा है। जुलाई, 2015 में यूरोपीय संघ ने 700 से भी ज्यादा भारत निर्मित दवाओं के आयात पर पाबंदी लगाने का फैसला किया था। इसके जबाव में भारत में यूरोपीय संघ के साथ एफटीए पर प्रस्तावित बातचीत को खारिज कर दिया गया था। उसके बाद मोदी यूरोप की यात्र पर जाने वाले भारत के पहले शीर्ष नेता है। ऐसे में भारतीय पक्ष ही एफटीए का मुद्दा उठाना चाहता है। इसके लिए ब्रिटेन की मदद लेने में कोई हिचक नहीं है। भारत और ईयू के बीच वर्ष 2007 से ही मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत का दौर शुरू हुआ था। अभी तक कुल 12 दौर की बातचीत हो चुकी है। कई मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच सहमति भी बन गई थी। हालांकि मोदी सरकार के आने के बाद अभी तक बातचीत का दौर शुरू नहीं हो पाया है। सूत्रों के मुताबिक यह कोई रहस्य नहीं है कि ब्रिटेन भारत के साथ एफटीए को लेकर कितना उत्साहित है। ब्रिटेन की मंशा है कि अगर भारत और ईयू के बीच एफटीए को लेकर बात आगे नहीं बढ़ पाती है तो फिर द्विपक्षीय स्तर पर ही एफटीए को लेकर बातचीत आगे बढ़ाई जाए। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन स्वयं भारत के साथ एफटीए के समर्थक हैं। पिछली बार जब वह भारत की यात्र पर आए थे, तब उन्होंने यह मंशा जताई थी कि दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर तेजी से बात होनी चाहिए। माना यह जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन इस मुद्दे को फिर उठाएंगे। भारत के उद्योग जगत की इस पूरे घटनाक्रम पर खास नजर होगी।

3. जीएसटी आने पर जीडीपी गणना होगी कठिन:- वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) भले ही संसद के गतिरोध से अटक गया हो, लेकिन केंद्र सरकार के अलग-अलग विभाग इसके क्रियान्वयन के लिए जरूरी तैयारियां करने में जुटे हैं। वित्त मंत्रलय के अलावा सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रलय भी प्रमुखता से इस काम को कर रहा है। इस मंत्रलय के अधिकारी जीएसटी के लागू होने पर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना में आने वाली जटिलता को समझने को अभी से जुट गए हैं। मंत्रलय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि जीएसटी के लागू होने के मद्देनजर केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के अधिकारी अभी से वित्त मंत्रलय तथा राज्यों के विभिन्न विभागों के साथ मिलकर जीडीपी की गणना में आने वाली तमाम जटिलताओं को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। राजस्व विभाग ने जीएसटी नेटवर्क तैयार किया है, उस पर भी अधिकारियों को प्रशिक्षण दिए जाने का कार्यक्रम है। इस अधिकारी के मुताबिक, जीएसटी उपभोग आधारित टैक्स होगा। इसलिए किसी राज्य के बाहर कितनी वस्तुएं गई हैं और उक्त सूबे में कितनी वस्तुओं का उपभोग हुआ है, इस बारे में आंकड़े जुटाने का अभी कोई तंत्र उपलब्ध नहीं है। इसलिए जीडीपी के आकलन में जटिलता आने के आसार हैं। मोदी सरकार ने एक अप्रैल, 2016 से जीएसटी लागू करने का लक्ष्य रखा है। एक अनुमान के मुताबिक जीएसटी के लागू होने पर सकल घरेलू उत्पाद में एक से दो प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाएगी। वित्त मंत्री ने जीएसटी को आजादी के बाद अब तक का सबसे बड़ा टैक्स सुधार करार दिया है। वित्त मंत्रलय ने वस्तु व सेवा कर की तैयारियों की दिशा में कदम बढ़ाते हुए एक जीएसटी निदेशालय बनाया है। इसी तरह के निदेशालय राज्यों में भी बनाने का प्रस्ताव है।

4. ओआरओपी लागू, पूर्व फौजी नाराज :- वन रैंक, वन पेंशन (ओआरओपी) के लिए बीते करीब चार दशकों से जोर दे रहे पूर्व सैन्यकर्मियों ने शनिवार को उस वक्त आंशिक विजय हासिल की जब सरकार ने ऐलान किया कि वह इस योजना का कार्यान्वयन करेगी। दूसरी तरफ, पूर्व सैन्यकर्मियों ने इस फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि उनका 84 दिनों से चला आ रहा आंदोलन जारी रहेगा।रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि ओआरओपी को 2013 के कैलेंडर वर्ष के आधार पर एक जुलाई, 2014 से लागू किया जाएगा। सरकार ने पूर्व सैन्यकर्मियों से कहा कि अपना आंदोलन खत्म कर दें क्योंकि उनकी ओआरओपी की मांग स्वीकार कर ली गई है। संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि सरकार इससे संबंधित मुद्दों पर बातचीत करने के लिए तैयार है। पर्रिकर ने ऐलान किया सरकार ने ओआरओपी के क्रियान्वयन का फैसला किया है जिसके तहत हर पांच साल पर पेंशन में संशोधन किया जाएगा, लेकिन इसके दायरे में वे सैन्यकर्मी नहीं आएंगे जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले रखी है। पूर्व सैन्यकर्मी दो साल के अंतराल पर पेंशन की समीक्षा की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ओआरओपी के क्रियान्वयन के विवरण पर काम करने के लिए एक सदस्यीय न्यायिक समिति का गठन कर रही है जो इस जटिल मुद्दे के कई पहलुओं की पड़ताल करने के बाद छह महीने में रिपोर्ट देगी।विशेषज्ञों से होगा विचार-विमर्श : पर्रिकर के अनुसार इस योजना के क्रियान्वयन पर 8,000-10,000 करोड़ रपए का खर्च आएगा। बकाये के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि बकाये की राशि का भुगतान छह-छह माह की चार किश्तों में किया जाएगा। बहरहाल, युद्ध में शहीदों की पत्नियों तथा दूसरे दिवंगत सैन्यकर्मियों की पत्नियों को बकाये की राशि एक किश्त में दी जाएगी। इस योजना के तहत करीब 26 लाख सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों तथा छह लाख से अधिक शहीदों की पत्नियों को लाभ होगा। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार एक माह के भीतर ओआरओपी पर एक विस्तृत आदेश के साथ आएगी। पर्रिकर ने कहा कि सरकार ने विशेषज्ञों के साथ गहन विचार-विमर्श किया है तथा भारी वित्तीय बोझ के बावजूद ओआरओपी लागू करने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकार ने अनुमान लगाया था कि ओआरओपी को 500 करोड़ रपए के बजट के प्रावधान के साथ लागू किया जाएगा। वास्तविकता यह है कि ओआरओपी के क्रियान्वयन पर 8,000 से 10,000 करोड़ का अनुमानित खर्च आएगा और भविष्य में आगे बढ़ता रहेगा।केंद्रीय मंत्रियों ने की आंदोलन खत्म करने की अपील : संसदीय कार्य मंत्री नायडू ने पूर्व सैन्यकर्मियों से आंदोलन खत्म करने की अपील करते हुए कहा, ‘‘सरकार बातचीत की हमेशा इच्छुक है। मुख्य मुद्दे का समाधान कर लिया गया है। बातचीत के जरिए दूसरे मुद्दों को भी हल किया जा सकता है।गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ओआरओपी को लेकर अगर कोई कमी है

5. चीन की सेना से हटेंगे 1.70 लाख अधिकारी:- चीन द्वारा अपने सैनिकों की संख्या में कटौती करने की नए पहल से करीब 1.70 लाख अधिकारी कम हो जाएंगे क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी सेना अपनी वर्तमान सात कमान और तीन कोर में से दो को खत्म करने की योजना बना रही है ताकि सुरक्षा बल को व्यवस्थित किया जा सके। वर्तमान में चीनी सैनिकों की संख्या 23 लाख है।हांगकांग के साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने अज्ञात सैन्य अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि राष्ट्रपति शीन जिनपिंग द्वारा पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को व्यवस्थित करने की योजना में तीन लाख सैनिकों में से करीब आधे अधिकारी हैं जिन्हें हटाया जाना है। पोस्ट ने चीन के अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि वर्तमान सात सैन्य कमान और तीन सैन्य कोर में से दो को खत्म कर देने से चीन की थलसेना में लेफ्टिनेंट से लेकर कर्नल तक 1.70 लाख अधिकारी हटा दिए जाएंगे। उन्हें समय पूर्व सेवानिवृत्ति के पैकेज की पेशकश की जाएगी।हर सैन्य कमान में दो से तीन सैन्य कोर हैं और हर कोर में 30 हजार से 50 हजार सैनिक हैं। दो कमान को हटा देने का मतलब है कि करीब एक लाख 20 हजार सैनिक कम हो जाएंगे। बड़ी संख्या में सैनिकों को कम करने की योजना का उद्देश्य थल सेना के पायलटों का वायुसेना और नौसेना में विलय करना है क्योंकि पीएलए संयुक्त अभियान युद्धकौशल की योजना बना रही है। दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकत पीएलए इस महीने के अंत तक सैनिकों को कम करने के ब्यौरे की घोषणा कर सकता है। जापान के खिलाफ जीत की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर शी द्वारा तीन लाख सैनिकों को कम करने की घोषणा के तुरंत बाद रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता यांग युजुन ने स्पष्ट किया कि इस पहल का उद्देश्य सेना का आधुनिकीकरण और पुनर्गठन करना है तथा कटौती की प्रक्रि या 2017 तक पूरी हो जाएगी। पोस्ट ने खबर दी है कि पेइचिंग सेना को छोड़कर सभी प्रांतीय और निगम की सेनाओं को बंद कर दिया जाएगा और 50 हजार सैनिकों को बर्खास्त किया जाएगा। पेइचिंग सेना पीएलए के शक्तिशाली सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के तहत आती है और राजधानी की रक्षा करती है।सूत्रों ने कहा, चिकित्सा, संचार और कला ब्रिगेड जैसी गैर युद्धक इकाइयों के कम से कम एक लाख सैनिक हटाए जाएंगे और सीमा पर तैनात 50 हजार सैनिकों का पीपुल्स आम्र्ड पुलिस में विलय किया जाएगा। जिन्हें हटाया जाएगा उन्हें अच्छा पैकेज दिया जाएगा और 50 हजार सैनिकों का नागरिक पदों पर स्थानांतरण किया जाएगा। कुछ को जल्द सेवानिवृत्त होने के लिए भी आकर्षक पैकेज मिलेगा। सेना का पुनर्गठन पूरा होने पर पीएलए में पांच मुख्य सैन्य कमान होंगे। अधिकारियों ने बताया, इन पांच कमान के अंदर बचे 15 सैन्य कोर वायुसेना और नौसेना के अधिकारियों की भर्ती कर संयुक्त अभियान कमान को मजबूती देंगे। चीन को अमेरिका और रूस के बाद तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति माना जाता है। दुनिया के सुपर पावर अमेरिका के पास 14 लाख सैन्यकर्मी हैं जबकि 11 लाख रिजर्व सैनिक हैं।

6. अमेरिका, सऊदी जारी रखेंगे सुरक्षा सहयोग:- अमेरिका और सऊदी अरब मध्य पूर्व में विशेषकर ईरान से क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे का मुकाबला करने के लिए सुरक्षा सहयोग जारी रखेंगे। व्हाइट हाउस के मुताबिक, सऊदी अरब के शाह सलमान बिन अब्द अल अजीज ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से साथ मुलाकात की। दोनों देशों ने एक संयुक्त बयान में क्षेत्र में सुरक्षा, संपन्नता और स्थिरता को कायम रखने के प्रयास की जरूरत बताई। शाह ने ईरान और विश्व के प्रमुख छह देशों के बीच समझौते के तहत संयुक्त व्यापक कार्ययोजना का समर्थन किया। दोनों देशों ने कहा कि इसके पूरी तरह लागू हो जाने पर ईरान के परमाणु हथियार बनाने पर रोक लगेगी और क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ेगी। अमेरिका और सऊदी अरब की दोस्ती से केवल दो देशों को फायदा नहीं होगा बल्कि संपूर्ण विश्व को इससे फायदा होगा। दोनों ने आतंकी संगठन आईएस से मुकाबले के लिए भी सैन्य सहयोग जारी रखने का समर्थन किया। ईरान को फिलहाल राहत नहीं : अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आइएईए) द्वारा परमाणु समझौते के सत्यापन तक ईरान को प्रतिबंध से राहत नहीं मिलेगी। अमेरिका के वित्त मंत्री जैकब लिउ ने जापान के उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री तारो असो के साथ मुलाकात के दौरान यह जानकारी दी। जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक से इतर दोनों नेताओं ने संयुक्त व्यापक कार्ययोजना पर भी चर्चा की। लिउ ने कहा कि ईरान के खिलाफ आतंकवाद और क्षेत्रीयता अस्थिरता के खतरे को लेकर लगाया गया प्रतिबंध अभी जारी रहेगा।


Tuesday, August 4, 2015

अटल पेंशन योजना

अटल पेंशन योजना
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) कम लागत पर दी जाने वाली पेंशन योजना हैं यह पेंशन असंगठित एवम छोटे क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगो को आर्थिक रूप से सुरक्षित करने हेतु लॉन्च की गई हैं |यह 60 साल से अधिक की आयु वाले लोगो के लिए की जाने वाली आर्थिक मदद हैं जिसे वे खुद अपनी जवानी में अर्जित करेंगे |
Atal Pension Yojana Launch Date अटल पेंशन योजना तिथी :
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) 1 जून 2015 को शुरू की जाएगी |सरकार का कहना हैं वर्ष 2010-11 में शुरू की गई स्वालंबन पेंशन योजना में कुछ खामी हैं जिन्हें Atal Pension Yojana में दूर कर दिया गया हैं | साथ ही स्वावलंबन योजना से जुड़े लोगों को अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana)से जोड़ दिया जायेगा |
Atal Pension Yojana Features In Hindi:
अटल पेंशन योजना के लिए योग्यता Eligibility Criteria For Atal Pension Yojana
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) से 18 वर्ष से 40 वर्ष तक के नागरिक जुड़ सकते हैं इस तरह इस योजना में नागरिक का योगदान 20 वर्षो का होगा |
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) में धारक का आधार कार्ड होना आवश्यक हैं ताकि योजना के लाभ आसानी से उपभोक्ता को मिले अगर अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) से जुड़ते वक्त उपभोक्ता का आधार कार्ड नहीं हैं तब वह बाद में आधार कार्ड सबमिट कर सकता हैं | अर्थात अटल पेंशन योजना Atal Pension Yojana  में दाखिला लेते वक्त आधार कार्ड रूकावट नहीं बनेगा परन्तु कुछ समय बाद आधार नम्बर देना जरुरी हैं |
सेविंग बैंक अकाउंट होना चाहिये |
अटल पेंशन योजना में कितनी पेंशन मिलेगी (How Much Amount Will Get In Atal Pension Yojana)
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) में 1000 रुपये से 5000 रुपये तक की पेंशन राशि मिलेगी |
यह राशि नागरिक पर निर्भर करेगी अर्थात व्यक्ति किस उम्र में इस अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) से जुड़ा |
दूसरा नागरिक ने कितना योगदान दिया |
देखे कितनी राशि पर कितनी  पेंशन मिलेगी Pension Calculation In Atal Pension Yojana
अगर उपभोक्ता 42 रूपये प्रति माह अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) के तहत जमा करता हैं तब उसे 60 वर्ष की उम्र के बाद 1000 रूपये प्रति माह पेंशन मिलेगी |
अगर उपभोक्ता 210 रुपये प्रति माह अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) के तहत जमा करता हैं तब उसे 60 वर्ष की उम्र के बाद 5000 रूपये प्रति माह पेंशन मिलेगी |
Atal pension Premium Chart
पेंशन आंकड़ा उपभोक्ता के अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) से जुड़ने के समय एवं उनके योगदान पर निर्भर करेगा जो कि निम्न बिन्दुओं में हैं  |
1000 रूपये की मासिक  पेंशन एवं 1.7 लाख उत्तराधिकारी राशि के लिए उपभोक्ता द्वारा किया जाने वाला योगदान जो कि उपभोक्ता की उम्र के अनुसार कितना होगा टेबल में देखे  |
SN अटल पेंशन से जुड़ते वक्त उपभोक्ता की उम्र उपभोक्ता का मासिक योगदान उपभोक्ता का सांकेतिक मासिक योगदान
1 42 42 42
2 40 40 50
3 35 35 76
4 30 30 116
5 25 25 181
6 20 20 291
2000 रूपये की मासिक  पेंशन एवम 3.4 लाख उत्तराधिकारी राशि के लिए उपभोक्ता द्वारा किया जाने वाला योगदान जो कि उपभोक्ता की उम्र के अनुसार कितना होगा टेबल में देखे  |
SN अटल पेंशन से जुड़ते वक्त उपभोक्ता की उम्र उपभोक्ता द्वारा किया जाने वाला योगदान वर्षो में उपभोक्ता का सांकेतिक मासिक योगदान
1 18 42 84
2 20 40 100
3 25 35 151
4 30 30 231
5 35 25 362
6 40 20 582
3000 रूपये की मासिक  पेंशन एवम 5.1 लाख उत्तराधिकारी राशि के लिए उपभोक्ता द्वारा किया जाने वाला योगदान जो कि उपभोक्ता की उम्र के अनुसार कितना होगा टेबल में देखे  |
SN अटल पेंशन से जुड़ते वक्त उपभोक्ता की उम्र उपभोक्ता का मासिक योगदान उपभोक्ता का सांकेतिक मासिक योगदान
1 42 42 126
2 40 40 150
3 35 35 226
4 30 30 347
5 25 25 543
6 20 20 873
4000 रूपये की मासिक  पेंशन एवम 6.8 लाख उत्तराधिकारी राशि के लिए उपभोक्ता द्वारा किया जाने वाला योगदान जो कि उपभोक्ता की उम्र के अनुसार कितना होगा टेबल में देखे  |
SN अटल पेंशन से जुड़ते वक्त उपभोक्ता की उम्र उपभोक्ता का मासिक योगदान उपभोक्ता का सांकेतिक मासिक योगदान
1 42 42 168
2 40 40 198
3 35 35 301
4 30 30 462
5 25 25 722
6 20 20 1164
5000 रूपये की मासिक  पेंशन एवम 8.5 लाख उत्तराधिकारी राशि के लिए उपभोक्ता द्वारा किया जाने वाला योगदान जो कि उपभोक्ता की उम्र के अनुसार कितना होगा टेबल में देखे  |
SN अटल पेंशन से जुड़ते वक्त उपभोक्ता की उम्र उपभोक्ता का मासिक योगदान उपभोक्ता का सांकेतिक मासिक योगदान
1 42 42 210
2 40 40 248
3 35 35 376
4 30 30 577
5 25 25 902
6 20 20 1454
उपभोक्ता किस तरह से अटल पेंशन योजना में योगदान देगा Payment Mode In Atal Pension Yojana
योगदान राशि उपभोक्ता के खाते से बैंक द्वारा ले ली जायेगी | यह प्रक्रिया auto-debit facility के तहत पूरी होगी | इस ऑटो डेबिट फेसिलिटी के कारण समय एवं अन्य खर्चे में बचत होगी साथ ही तारीख याद रखने की परेशानी भी नहीं होगी |
सरकार की तरफ से अटल पेंशन योजना में किया जाने वाला योगदान Contribution By Government In Atal Pension Yojana
31 दिसंबर 2015 से पहले जो व्यक्ति इस अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) का हिस्सा बनते हैं उन्हें सरकार द्वारा 50 % का योगदान दिया जायेगा | यह सरकारी योगदान अधिकतम 1000 रूपये प्रति वर्ष होगा | साथ ही यह योगदान पहले 5 वर्षो तक ही दिया जायेगा |
साथ ही यह फेसिलिटी उन्हीं को दी जायेगी जो आय कर दाता नहीं हैं एवम जिनकी EPF एवम EPS अकाउंट नहीं हैं  |
अटल पेंशन योजना के तहत दंड Penalty Criteria In Atal Pension Yojana In Hindi)
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) के तहत उपभोक्ता द्वारा राशि देने में देरी करने पर बैंक द्वारा दंड राशि ली जाएगी जो कि 1 रुपए से 10 रुपये के बीच होगी |
अटल पेंशन योजना के तहत दंड इस प्रकार हैं
अगर उपभोक्ता ने 100 रुपये तक का भुगतान किया हैं तो दंड 1 रूपये प्रति माह होगा |
अगर उपभोक्ता ने 101 रुपये से 500 रूपये तक का भुगतान किया हैं तो दंड 2 रूपये प्रति माह होगा |
अगर उपभोक्ता ने 501 रुपये से 1000 रूपये तक का भुगतान किया हैं तो दंड 5 रूपये प्रति माह होगा |
अगर उपभोक्ता ने 1000 रुपये से अधिक का भुगतान किया हैं तो दंड 10 रूपये प्रति माह होगा |
अगर अटल पेंशन योजना Atal Pension Yojana के तहत भुगतान में अधिक देरी की जाए तो अकाउंट के साथ की जाने वाली कार्यवाही निम्नानुसार होगी
Rules of Deactivation Account In Atal Pension Yojana In Hindi
अगर 6 महीने तक अकाउंट में पैसा ना डाला गया तो अकाउंट फ्रिज़ किया जायेगा |
अगर 12 महीने तक अकाउंट में पैसा ना डाला गया तो अकाउंट डीएक्टिवेट किया जायेगा |
अगर 24 महीने तक अकाउंट में पैसा ना डाला गया तो अकाउंट बंद कर दिया जायेगा |
अटल पेंशन योजना के तहत कुछ महत्वपूर्ण बिंदु Key Points Of Atal Pension Yojana In Hindi
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana)के तहत पेंशन धारक को 60 वर्ष पूरा करते ही मिलेगी |
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana)के तहत अगर 60 वर्ष की आयु के बाद धारक की मृत्यु हो जाती हैं तब पेंशन उसकी पत्नी अथवा पति को मिलेगी | अगर दोनों की मृत्यु हो जाती हैं तब नॉमिनी को  Corpus अमाउंट  मिलेगा जो कि 1000 रुपये पेंशन के लिए 1.7 लाख एवम 5000 रुपये पेंशन के लिए 8.5 लाख होगा |
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana )के तहत अगर धारक की मृत्यु 60 वर्ष से पहले ही हो जाती हैं तब जमा की गई राशि ब्याज सहित नॉमिनी को दे दी जाएगी और अकाउंट बंद कर दिया जायेगा |
अटल पेंशन योजना के लाभ Advantages Of Atal Pension Yojana In Hindi
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) में धारक को 1 हजार रुपये से 5 हजार रुपये तक की पेंशन मिलने की पूरी गेरेंटी होती हैं |
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) के तहत उन लोगो को फायदा मिलेगा, जो किसी स्ट्रक्चर्ड नौकरी में नहीं हैं |
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) के तहत वे लोग जो करदाता नहीं हैं उन्हें सरकार का योगदान मिलेगा |
अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) गरीबो के लिए लाभकारी हैं |
Atal Pension Yojana In Hindi यह सरकारद्वारा किया गया अहम फैसला हैं क्यूंकि जब तक मनुष्य जवान हैं हर परिस्थिती का सामना कर सकता हैं पर वृद्धावस्था में आई कठिनाई मनुष्य को तोड़ देती हैं | ऐसे में Atal Pension Yojana जैसी योजना जीवन को कुछ हद तक सहारा देती हैं….

Friday, July 10, 2015

खाली पेट पानी पीने के 10 फायदे ..

खाली पेट पानी पीने के 10 फायदे ..

स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के लिए हम दवाओं का सेवन करते हैं,और कई उपाय आजमाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान केवल पानी में छुपा हुआ है। सि‍र्फ पानी पीकर आप खुद को स्वस्थ और उर्जावान बनाए रख सकते हैं। जानिए पानी पीने के यह 10 फायदे-

1 -  विषैले तत्व करे बाहर -  भरपूर मात्रा में पानी पीने से, शरीर में मौजूद हानिकारक एवं विषैले तत्व पसीने व मूत्र द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं। जिससे विषाणुओं से बचाव होता है, बीमारियां नहीं होती। सुबह के वक्त खाली पेट पानी पीने से शरीर की बेहतर सफाई होती है।

2  पेट संबंधी समस्या-  सुबह उठकर खाली पेट पानी पीने से पेट की सारी समस्याएं खत्म हो जाती हैं।इससे कब्ज में राहत मिलती है, आंतों में जमा मल निकलने में आसानी होती है, जिससे पेट पूरी तरह से साफ होता है, और भूख भी खुलती है।

3  तनाव से राहत- सुबह खाली पेट एवं दिनभर पानी पीते रहने से तनाव नहीं होता, और मानसिक समस्याएं भी ठीक हो जाती हैं। जब आप सोकर उठते हैं, तो दिमाग शांत होता है। ऐसे समय पानी पीना दिमाग को ऑक्सीजन प्रदान कर, उसे तरोजाता बनाए रखता है, जिससे दिमाग सक्रिय रहता है।

4  वजन कम करे-  सुबह के वक्त एकदम ठंडा पानी पीने से आपका मेटाबॉलिज्म 24 प्रतिशत तक बढ़ता है, जिससे वजन आसानी से कम होता है, वहीं गरम पानी पीने से भी अतिरिक्त चर्बी कम होती है, और आपका वजन कम हो जाता है।

5  पेशाब संबंधी समस्याएं-  सुबह खाली पेट पिया जाने वाला पानी, रातभर शरीर में बने हानिकारक तत्वों को एक ही बार में पेशाब के जरिए निकालने का काम करता है, इसके साथ ही समय-समय पर भरपूर मात्र में पानी पीते रहने पर, पेशाब में जलन, यूरि‍न इंफेक्शन एवं अन्य समस्याएं समाप्त हो जाती है।

6  त्वचा बने स्वस्थ- खाली पेट पानी पीने से कोशिकाओं को ऑक्सीजन मिलती है, और वे सक्रिय रहती हैं, जिससे त्वचा पर ताजगी बनी रहती है। इसके साथ ही पसीने द्वारा हानिकारक तत्व शरीर से बाहर निकलने पर, त्वचा अंदर से साफ होती है और उसमें नमी बनी रहती है, जिससे त्वचा स्वस्थ व चमकदार दिखाई देती है।

7  शरीर का तापमान- खाली पेट पानी पीने से दिन की शुरूआत से ही आपके शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है, जिससे छोटी- छोटी बीमारियों से शरीर सुरक्षित रहता है।


8   रोग प्रतिरोधक क्षमता-  पानी शरीर में अवांछित तत्वों को रहने नहीं देता, और शरीर के सभी अंगों को स्वस्थ बनाए रखता है। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

9   नई कोशि‍का-  पानी रक्त में हानिकारक तत्वों को घुलने नहीं देता, और उसके शुद्धि‍करण में सहायक होता है, जिससे नई कोशि‍काओं और मांसपेशि‍यों के बनने की प्रक्रिया बढ़ जाती है ।

10  नमी बनाए रखे-  सुगमता से कार्य करने के लिए शरीर के अंगों में नमी को होना बेहद आवश्यक है, जिसे बनाए रखने का कार्य पानी करता है। इसलिए दिन की शुरूआत में ही खाली पेट पानी पीना बेहतर होता है, ताकि पूरा दिन शरीर के सभी अंग सुगमता से कार्य कर सकें ।



Friday, June 26, 2015

बोतलबंद पानी से कमा रहे हैं अरबों डॉलर...

बोतलबंद पानी से कमा रहे हैं अरबों डॉलर...
 
प्रकृति ने मनुष्य को मिट्टी, हवा, पानी, रोशनी जैसी जीवनदायी सुविधाएं मुफ्त में दी थी लेकिन बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा हर बुनियादी वस्तु को उत्पाद बनाकर बेचने की प्रवृत्ति के चलते समूचे जीव जंतुओं की यह सम्पदा कारोबारियों और कंपनियों की तिजोरियां भरने का जरिए बन गई है।

इससे जुड़े बहुत सारे तथ्य ऐसे हैं जिन्हें जानकार आपको हैरानी होगी कि बोतलों में ‍बंद कर बेचे जाने वाला पानी कितने बड़े कारोबार का हिस्सा है। यह कारोबार अंतरराष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक पहुंच गया है। 

आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि पिछले दशक से कुछ अधिक समय के अंतराल में बोतलबंद पानी की बिक्री नाटकीय तरीके से बढ़ी है और यह कारोबार 100 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक राशि का हो गया है। 

वर्ष 1999 से लेकर 2004 तक सारी दुनिया में बिकने वाले बोतलबंद पानी की खपत करीब 118 अरब लीटर से बढ़कर 182 अरब लीटर से अधिक तक हो गई है। 

विकासशील विश्व के बहुत से शहरों में बोतलबंद पानी की खपत बढ़ती जा रही है क्योंकि शहरों का स्थानीय प्रशासन पर्याप्त मात्रा में पानी होने के बावजूद लोगों को समुचित मात्रा में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने में असफल रहा है। इसके परिणाम स्वरूप विकासशील देशों में बोतलबंद पानी का उत्पादन करने वाली कंपनियां बड़े पैमाने पर पैसा कमा रही हैं।

वर्ष 2004 में अमेरिका में बोतलबंद पानी की बिक्री अन्य किसी देश से ज्यादा थी। 30.8 अरब लीटर पानी के लिए 9 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि चुकाई गई। यह मात्रा इतनी अधिक है कि इससे कंबोडिया की समूची जनसंख्या की पानी की सालाना जरूरतें पूरी हो सकती हैं। 

बोतलबंद पानी की सबसे ज्यादा खपत वाले दस शीर्ष देशों में अमेरिका, मेक्सिको, चीन, ब्राजील, इटली, जर्मनी, फ्रांस, इंडोनेशिया, स्पेन और भारत हैं। 

बोतलबंद पानी का उपयोग करने वालों से जब पूछा जाता है कि वे पानी पर इतना अधिक पैसा क्यों खर्च करते हैं जबकि उन्हें नल का पानी आसानी से मुफ्त में मिल सकता है? उनका कहना है कि वे बोतलबंद पानी को इसलिए वरीयता देते हैं क्योंकि वह अधिक शुद्ध और स्वास्थ्यकर होता है। 

ज्यादातर कंपनियां अपने उत्पाद को यह कहकर बेचती हैं कि वह नल के पानी से ज्यादा सुरक्षित है लेकिन इस मामले में विभिन्न अध्ययनों का कहना है कि बोतलबंद पानी से जुड़े नियम वास्तव में इत‍ने अपर्याप्त हैं कि वे शुद्धता या सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं। इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि वास्तव में बोतलबंद पानी में म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के नल के पानी की तुलना में अधिक बेक्टेरिया हो सकते हैं। 

अमेरिका में जिन मानकों के आधार पर पानी को मापा जाता है उसे अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के द्वारा नियमित किया जाता है़, ये मानक वास्तव में नल के पानी से भी नीचे हैं जिन्हें पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी द्वारा तय किया जाता है। 

पानी भरने के काम में आने वाली ज्यादातर बोतलों को रिसाइकल, फिर से नया बनाया जाता है। इन बोतलों को बनाने में जो पोलीएथलीन टेरेप्थलेट (पीईटी) इस्तेमाल किया जाता है, उसका केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही रिसाइकल किया जा सकता है। इसके अलावा पी‍ईटी उत्पादन प्रक्रिया से हानिकारक रसायन निकलते हैं जिससे वायु की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है। 

अनुमानित तौर पर ऐसा माना जाता है कि यूनान में पानी पीने की 1 अरब प्लास्टिक बोतलें प्रति‍वर्ष फेंक दी जाती हैं जोकि वातावरण में प्रतिकूल असर छोड़ती हैं। 

चीन की कम से कम 70 फीसदी नदियां और झीलें प्रदूषित हैं और बोतलबंद पानी की माँग करने वाले ज्यादातर ‍शहरों के निवासी होते हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इतने गरीब हैं कि वे इतना महंगा पानी खरीद कर नहीं पी सकते हैं।

मतलब कहा जा सकता है कि कभी सभी को उपलब्ध साफ पानी अब सर्वसाधारण की संपत्ति नहीं रहा। कैपिटलिज्म के इस जमाने में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता।

Monday, June 8, 2015

स्टार्ट-अप कम्पनी

स्टार्ट-अप कम्पनी 

यह नई संस्कृति का शब्द है। नयापन, अभिनव, नवोन्मेष और नवाचार से मिलता-जुलता शब्द है स्टार्ट-अप। अंग्रेजी में इसके माने हैं नवोदय या अचानक उदय होना, उगना, आगे बढ़ना वगैरह। इसके कारोबारी माने हैं नए और अनजाने बिजनेस मॉडल की खोज। यानी नए किस्म के कारोबार में जुड़ी नई कम्पनियों को स्टार्ट-अप कम्पनी कहते हैं। भारत में ई-रिटेल और इंटरनेट से जुड़ी ज्यादातर नई कम्पनियाँ स्टार्ट-अप हैं। इनकी तकनीक नई है और मालिक और प्रबंधक भी नए किस्म के हैं। उनका काम करने का तरीका नया है। यह शब्द बीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में डॉट-कॉम ‘बूम’ और ‘बबल’ के वक्त ज्यादा लोकप्रिय हुआ। 

सामाजिक दृष्टि से भारत में यह नया चलन है। अमेरिका में बिजनेस प्लान करना, नयी कम्पनी बनाना, उसके मार्फत भारी सफलता पाने का चलन पहले से है। अमेरिका के बिजनेस और इंजीनियरी संस्थानों से निकल कर छात्र कारोबार शुरू करने के बारे में सोचता है। इस चलन के समानांतर एक नई संस्कृति का जन्म हो रहा है, जिसे स्टार्ट-अप कल्चर नाम मिला है। 

भारत में अभी तक नौजवान नौकरी को वरीयता देते हैं। अब स्थितियाँ बदल रहीं हैं। अब तक की समझ है कि कारोबार में जोखिम है। कम उम्र में जोखिम उठाया जा सकता है, यही इस संस्कृति का मूल मंत्र है। माना जा रहा है कि संपन्नता उन्हीं के पास आती है, जो जोखिम उठाते हैं। परम्परागत व्यवसाय की जगह नए कारोबार के आविष्कार में फायदे की गुंजाइश भी ज्यादा है। परम्परागत तरीके से 10 से 15 फीसदी फायदा मिलता है, जबकि नवोन्मेष से 85 फीसदी या उससे भी ज्यादा फायदा मिलता है। 

Friday, June 5, 2015

मैट यानी मिनिमम अल्टरनेटिव टैक्स और उससे जुड़ा विवाद


         इन दिनों मैट को लेकर काफी चर्चा है। यह पिछली बार 1997 में शुरू हुआ था, तब भी
कंपनियों ने इसका खासा विरोध किया था। तब उदारीकरण  केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार थी। वित्तमंत्री रहते हुए पी. चिदंबरम ने इसे फिर शुरू किया था। जब इसकी घोषणा हुई, तब इसे कोई समझ नहीं पाया था, जबकि यह हमारे देश में 1988 में प्रयोग में लाया जा चुका है। लेकिन लागू होने पर  काफी विरोध हुआ और शेयर बाजार में भी खासी गिरावट आई थी। हालांकि अभी भी एक कमेटी इस पर  विचार के लिए बनाई गई है।

मैट क्या है?
भारत में कंपनी दो प्रकार से आय की गणना करती हैं। कंपनी एक्ट के अनुसार, जिसे ‘बुक प्रॉफिट’ कहा जाता है और इनकम टैक्स एक्ट के अनुसार जिसे ‘टैक्सेबल प्रॉफिट’ कहा जाता है। - कई कंपनियां हजारों करोड़ रु. का बुक प्रॉफिट बताती थीं, और शेयरधारकों को डिविडेन्ड देती थीं। लेकिन इनकम टैक्स में मिली छूटों, कटौतियों एवं भत्तों के कारण अपना टैक्सेबल प्रॅफिट शून्य बता कर टैक्स का भुगतान नहीं करती थीं। इन्हें जीरो टैक्स कंपनी कहा जाता था। जिसका श्रेय ये अपने प्रभावी टैक्स मैनेजमेंट को देती थीं।
   इन कंपनियों को कर भरने के लिए बाध्य करने के लिए सरकार ने वर्ष 1988-89 से मैट लागू कर दिया।

वर्तमान में मैट 20 फीसदी

वर्तमान में प्रत्येक कंपनी को कम से कम अपने बुक प्रॉफिट का 18.5 फीसदी (जो कि अब शिक्षा उपकर और सरचार्ज मिलाकर 20 फीसदी है) मैट का भुगतान करना होगा। यदि किसी कंपनी का बुक प्रॉफिट 1000 करोड़ रु. है और टैक्सेबल प्रॉफिट शून्य है, तो भी कंपनी को 200 करोड़ रु. मैट का भुगतान करना होगा।
- 1990 में मैट खत्म कर दिया गया था, जिसे 1 अप्रैल 1997 से पुन: लागू किया गया। भारत में कई कंपनियां जैसे डाबर, गोदरेज कंज्यूमर, एनटीपीसी, जेएसडब्ल्यू एनर्जी आदि मैट का भुगतान
करती हैं।

ऐसे शुरू हुआ मैट:-
अमेरिका में सरकार ने 1969 में पाया कि उच्च आय वाले 155 परिवार आयकर के रूप में कुछ भी नहीं
देते हैं। इन परिवारों ने आयकर कटौतियों का भरपूर लाभ उठाया, जबकि कई मध्यम व निम्न आय परिवार आयकर का भुगतान कर रहे थे। जिन व्यक्तियों व कॉर्पोरेट करदाताओं की आय पूंजी लाभ पर आधारित थी, वे आयकर की कई कटौतियों का लाभ उठा पाए। जबकि उत्पादन व सेवा क्षेत्र से लगभग उतनी ही आय कमाने वाले व्यक्ति व कॉर्पोरेट करदाताओं को ये टैक्स कटौतियां उपलब्ध नहीं थी, जिसके कारण उन्हें कर का भुगतान करना पड़ा। इन्हीं विसंगतियों को दूर करने के लिए अमेरिकी सरकार ने 1970 से मिनिमम टैक्स लागू किया। केवल 155 परिवारों को 1970 में टैक्स भरने को बाध्य करने के लिए इसे शुरू किया गया। वर्तमान में अमेरिका में 40 लाख करदाता मिनिमम टैक्स देते हैं।

मैट की मांग 
अभी तक मैट उन घरेलू कंपनियों पर लगाया जाता था, जिनका स्थायी कामकाज भारत में है और साथ
ही जो भारतीय कंपनी कानून के अनुसार बहीखाते बनाकर रखती हैं। मैट लागू करने के इतने वर्षों बाद आयकर विभाग ने अचानक मार्च 2015 में एफपीआई को मैट की मांग का नोटिस भेजना शुरू कर दिया। जबकि एफपीआई का न तो भारत में स्थायी कामकाज है, न ही ये कंपनियां भारतीय कंपनी कानून के अनुसार बहीखाते या बुक्स ऑफ अकाउंट्स मैंटेन करती हैं। नोटिस मिलने पर कई एफपीआई ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया है।

मामला अदालत में

आयकर विभाग द्वारा नोटिस भेजने का कारण था अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग्स द्वारा केसलटन इंवेस्टमेंट्स के बारे में वर्ष 2012 में दिया गया आदेश, जिसमें कहा गया था कि केसलटन इंवेस्टमेंट्स को मैट का भुगतान करना चाहिए। यह प्रकरण अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग्स की स्थापना
नॉन रेसीडेंट्स के आयकर निर्धारण एवं लंबित मामलों के त्वरित निराकरण के लिए की गई है। वर्ष 2013 में महालेखा परीक्षक ने इस मुद्दे को अपनी रिपोर्ट में उठाया। तब आयकर विभाग ने एफपीआई को मैट मांग का नोटिस भेजना शुरू कर दिया। हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि एफपीआई पर 1 अप्रैल 2015 से मैट आरोपित नहीं किया जाएगा। लेकिन आयकर विभाग एफपीआई से पिछले सात साल, यानी 2008-09 से मैट की मांग कर सकता है, जो कि लगभग 40 हजार करोड़ रु. है।

सरकार द्वारा उठाए कदम
 सरकार ने स्पष्ट किया है कि मैट उन देशों के एफपीआई पर लागू नहीं होगा, जिनकी भारत के साथ कर संधि है। इनमें सिंगापुर व मॉरिशस शामिल हैं। भारत में 30 फीसदी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश कर संधि वाले देशों से आता है। पिछले सप्ताह सरकार ने निर्देश दिया है कि अब राजस्व विभाग नए मैट की मांग नहीं करेगा। साथ ही अभी तक जारी मैट नोटिस पर कोई कार्यवाही नहीं करेगा, जब तक
कि एपी शाह कमेटी विदेशी निवेशकों पर मैट लागू करने के संबंध में अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश नहीं कर देती।
- फैक्ट - भारत में एफपीआई पर अल्पावधि इक्विटी लाभ पर 15 फीसदी, बॉण्ड लाभ पर 5 फीसदी कर लागू है, जबकि लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ पर कोई कर नहीं देना होता है। मेट लगने पर इन सभी लाभों पर एफपीआई को 20% कर देना होगा।

Monday, May 11, 2015

क्या है जीएसटी?

GST  टैक्स सुधार के लिए क्रांतिकारी कदम माना जा रहा जीएसटी देश के हर नागरिक को प्रभावित करने वाला है। जानिए जीएसटी से जुड़े हर सवाल का जवाब।

सवालः क्या है जीएसटी?

जवाबः जीएसटी का पूरा नाम है गुड्स एंड सर्विस टैक्स। ये एक अप्रत्यक्ष कर है यानी ऐसा कर जो सीधे-सीधे ग्राहकों से नहीं वसूला जाता लेकिन जिसकी कीमत अंत में ग्राहक की जेब से ही जाती है। अप्रैल 2016 यानी अगले वित्तीय वर्ष से जीएसटी को लागू होना है। इसे आजादी के बाद सबसे बड़ा टैक्स सुधार कदम कहा जा रहा है। जीएसटी लागू होने के बाद दूसरे कई तरह के टैक्स समाप्त हो जाएंगे और उसकी जगह सिर्फ जीएसटी लगेगा।

सवालः जीएसटी कौन-कौन से टैक्स खत्म करेगा?

जवाबः जीएसटी लागू होने के बाद सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, एडीशनल एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडीशनल कस्टम ड्यूटी (सीवीडी), स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑफ कस्टम (एसएडी), वैट/सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, मनोरंजन टैक्स, ऑक्ट्रॉय एंडी एंट्री टैक्स, परचेज टैक्स, लक्जरी टैक्स खत्म हो जाएंगे।

सवालः तो क्या जीएसटी में कोई टैक्स नहीं लगेगा?

जवाबः जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं एवं सेवाओं पर केवल तीन टैक्स वसूले जाएंगे पहला सीजीएसटी यानी सेंट्रल जीएसटी जो केंद्र सरकार वसूलेगी। दूसरा एसजीएसटी यानी स्टेट जीएसटी जो राज्य सरकार अपने यहां होने वाले कारोबार पर वसूलेगी। कोई कारोबार अगर दो राज्यों के बीच होगा तो उस पर आईजीएसटी यानी इंटीग्रेटेड जीएसटी वसूला जाएगा। इसे केंद्र सरकार वसूल करेगी और उसे दोनों राज्यों में समान अनुपात में बांट दिया जएगा।

सवालः जीएसटी के क्या फायदा होगा?

जवाबः आज एक ही चीज अलग-अलग राज्य में अलग-अलग दाम पर बिकती है। इसकी वजह है कि अलग-अलग राज्यों में उसपर लगने वाले टैक्सों की संख्या और दर अलग-अलग होती है। अब ये नहीं होगा। हर चीज पर जहां उसका निर्माण हो रहा है, वहीं जीएसटी वसूल लिया जाएगा और उसके बाद उसके लिए आगे कोई चुंगी पर, बिक्री पर या अन्य कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा। इससे पूरे देश में वो चीज एक ही दाम पर मिलेगी। कई राज्यों में टैक्स की दर बहुत ज्यादा है। ऐसे राज्यों में वो चीजें सस्ती होंगी।

सवालः क्या पेट्रोल और शराब पर भी लागू होगा फैसला?

जवाबः पेट्रोल-डीजल की कीमतें आज अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं। यही हाल शराब का है। जीएसटी लागू होने के बाद भी फिलहाल ऐसा जारी रहेगा। क्योंकि राज्यों की डिमांड पर केंद्र सरकार शराब को जीएसटी से बाहर रखने पर राजी हो गई है जबकि पेट्रो पदार्थों पर उसने निर्णय लिया है कि ये रहेंगे तो जीएसटी के अंदर लेकिन इनपर राज्य पहले की तरह ही टैक्स वसूलते रहेंगे। यानी पेट्रोल, डीजल और एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में राज्यों में जो अंतर देखने को मिलता है वो मिलता रहेगा।

सवालः जीएसटी पर राज्यों के हाथ से तमाम टैक्स फिसलेंगे उनकी टैक्स भरपाई कौन करेगा?

जवाबः जीएसटी लागू होने से केंद्र सरकार, कारोबारी, दुकानदार व उपभोक्ता सबको तकरीबन फायदा होगा। हालांकि राज्यों को इससे कुछ नुकसान झेलना पड़ सकता है लेकिन उनको जितना नुकसान होगा तीन साल तक उसकी भरपाई केंद्र सरकार करेगी। चौथे साल 75 फीसदी और पांचवें साल 50 फीसदी नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार करेगी। केंद्र सरकार राज्यों को भरपाई की गारंटी देने के लिए इसके लिए संविधान में भी व्यवस्था करने पर भी तैयार हो गई है।

सवालः जीएसटी से सरकार को क्या फायदा होगा?

जवाबः जीएसटी लागू होने के बाद देश की जीडीपी ग्रोथ में तकरीबन दो फीसदी तक का उछाल आने का अनुमान है। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि टैक्स की चोरी रुकेगी क्योंकि अभी टैक्स कई स्तरों पर वसूला जाता है इससे हेराफेरी की, धांधली की गुजाइश ज्यादा रहती है। जीएसटी के चलते टैक्स जमा करना जब सुविधापूर्ण और आसान होगा तो ज्यादा से ज्यादा कारोबारी टैक्स भरने में रुचि दिखाएंगे। इससे सरकार की आय बढ़ेगी। व्यापारियों को भी जब अलग-अलग टैक्सों के झंझट से मुक्ति मिलेगी तो वे भी अपना व्यापार सही से कर पाएंगे। टैक्स को लेकर विवाद भी कम होंगे। अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।

सवालः कैसे वसूला जाएगा जीएसटी?

जवाबः जीएसटी की वसूली ऑनलाइन होगी। वस्तु के मैनुफैक्चरिंग के स्तर पर ही इसे वसूल लिया जाएगा। किसी वस्तु का टैक्स जमा होते ही जीएसटी के सभी सेंटरों पर इस बाबत जानकारी पहुंच जाएगी। उसके बाद उस वस्तु पर आपूर्तिकर्ता, दुकानदार या ग्राहक को आगे कोई टैक्स नहीं देना होगा। अगर माल एक राज्य से दूसरे राज्य जा रहा है तो उसपर चुंगी भी नहीं लगेगा। यानी बॉर्डर पर ट्रकों की जो लंबी कतारें अभी दिखती हैं वे गायब हो जाएंगी।

सवालः जीएसटी की दर कौन तय करेगा?

जवाबः जीएसटी संबंधित फैसले लेने के लिए संवैधानिक संस्था जीएसटी काउंसिल का गठन किया जाएगा। जीएसटी काउंसिल में केंद्र व राज्य दोनों के प्रतिनिधि होंगे। इसके मुखिया केंद्रीय वित्त मंत्री होंगे जबकि राज्यों के वित्त मंत्री सदस्य होंगे। जीएसटी काउंसिल जीएसटी की दर, टैक्स में छूट, टैक्स विवाद, टैक्स दायरे व अन्य व्यवस्थाओं पर सिफारिशें देगी।

सवालः जीएसटी इतना फायदेमंद तो अब तक क्यों अटका हुआ था?

जवाबः जीएसटी को लेकर राज्य सरकारें नुकसान की भरपाई पर अड़ी थीं और तमाम कोशिशों के बावजूद इसका कोई सर्वमान्य फॉर्मूला नहीं निकाला जा सका। अब सरकार ने राज्यों को नुकसान भरपाई का जो फॉर्मूला सुझाया है उसपर राज्यों ने सहमति दी है। केंद्र में मजबूत सरकार और तमाम राज्यों में बीजेपी की सरकार आने से भी स्थिति आसान हुई है।

Wednesday, April 15, 2015

नेट न्यूट्रलिटी का घनचक्कर

.... तो महंगा हो जाएगा व्हाट्‍सएप-फेसबुक चलाना...

मोबाइल पर व्हाट्‍सएप और फेसबुक चलाने वालों को झटका लग सकता है। टेलीकॉम कंपनियां अब इन पर उपभोक्ताओं की जेब पर है। टेलीकॉम कंपनियां ऐसे एप के उपयोग  का ज्यादा पैसा ले सकती हैं, जिसका यूजर्स ज्यादा उपयोग करते हों। अभी फेसबुक और  व्हाट्‍सएप फ्री एप हैं। हो सकता है इन एप्स को चलाने के लिए आपको अलग से डेटा पैक लेना पड़े। यह पूरा मामला नेट न्यूट्रलिटी से जुड़ा है, जो इन दिनों चर्चाओं में है।
क्या है नेट न्यूट्रलिटी :  नेट न्‍यूट्रलिटी को हिन्दी में हम ‘इंटरनेट निरपेक्षता’ या  तटस्‍थता भी कह सकते हैं। मोटे तौर पर यह इंटरनेट की आजादी या बिना किसी  भेदभाव के इंटरनेट तक पहुंच की स्‍वतंत्रता का मामला है।
नेट न्‍यूट्रलिटी या इंटरनेट निरपेक्षता का सिद्धांत यही है कि इंटरनेट सेवा प्रदाता या  सरकार इंटरनेट पर उपलब्‍ध सभी तरह के डेटा को समान रूप से ले। इसके लिए समान  रूप से शुल्‍क हो। इस शब्‍द का सबसे पहले इस्‍तेमाल कोलंबिया विश्‍वविद्यालय में प्रोफेसर टिम वू ने किया था। इसे नेटवर्क तटस्‍थता, इंटरनेट न्‍यूट्रलिटी तथा नेट समानता भी  कहा जाता है।
क्यों उठा ये सारा मामला..
एयरटेल ने हाल ही में मुफ्त इंटरनेट प्लान 'एयरटेल जीरो' लांच किया था। इसे लेकर  विवाद था। इस प्लान के जरिए ग्राहक कई एप्लीकेशन्स को बिना किसी डेटा चार्ज के ही प्रयोग कर सकेंगे, लेकिन ग्राहक केवल उसी वेबसाइट को ब्राउज या डाउनलोड कर सकेंगे  जो एयरटेल के साथ रजिस्टर्ड होंगी। फ्लिपकार्ट ने इसके लिए एयरटेल के साथ करार  किया था। इस करार के अंतर्गत एयरटेल ग्राहकों को फ्लिपकार्ट के दूसरे चुनिंदा एप्स  मुफ्‍त प्रयोग की सुविधा थी।
इसका पैसा ग्राहक से नहीं बल्कि कंपनी से लिया जाता। करार के बाद 51 हजार लोगों  ने एप की रेटिंग 1 की और हजारों ने डिलीट कर दिया। 3 लाख से ज्यादा लोगों ने 3  दिन में ट्राई को ई-मेल भेजा। फ्लिपकार्ट ने करार यह कहते हुए तोड़ दिया कि वह नेट  न्यूट्रलिटी को समर्थन देती है और गहराई से देखा जाए तो यह नेट न्यूट्रलिटी के खिलाफ  है।

तो लेना पड़ेंगे, व्हाट्‍सएप- फेसबुक के लिए डेटा पैक..
लेना पड़ेंगे अलग से प्लान :   इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि डीटीएच  कंपनिया कुछ चैनल फ्री देती हैं और बाकी चैनल के लिए आपको पैक लेना पड़ता है।  जैसे स्पोर्ट्‍स के लिए अलग पैक। अब अगर आपको क्रिकेट देखना है तो यह लेना पड़ेगा  चाहे कंपनी उसका कितना भी चार्ज क्यों न ले। इसी तरह से इंटरनेट में भी हो जाएगा।  कुछ एप फ्री होंगे और कुछ के आपको पैसे चुकाने पड़ेंगे।
व्हाट्‍सएप- फेसबुक के लिए लेना पड़ेंगे पैक : ‍डीटीएच की तरह आपको फेसबुक और  व्हाट्‍सएप के लिए अलग- अलग डेटा पैक लेना पड़ें। अगर ऐसा नहीं हुआ तो टेलीकॉम  कंपनियां यूजर्स की संख्या बताकर इन कंपनियों से पैसे वसूल करे। अगर एप कंपनियां  भी टेलीकॉम कंपनियों को पैसा नहीं देंगी तो हो सकता है उनके लिए इंटरनेट की स्पीड  धीमी हो। स्काइप, वाइबर, चैट ऑन, इंस्टाग्राम, हाइक, वीचैट, ई-कॉमर्स साइट्स  (अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नेपडील), फेसबुक मैसेंजर, ओला, ब्लैकबैरी मैसेनजर, ऑनलाइन वीडियो  गेम्स सबके लिए आपको अलग से इंटरनेट प्लान लेना होगा।

किसका होगा फायदा : नेट न्यूट्रेलिटी में आप अगर किसी साइट पर वीडियो या कंटेंट एक्सेस कर रहे हैं और अगर वह साइट आपकी सर्विस प्रदाता कंपनी से रजिस्टर्ड नहीं है तो आपको धीमी स्पीड मिलेगी। ऐसे में आपकी इंटरनेट की स्वतंत्रता छिन जाएगी क्योंकि आप स्वतंत्र रूप से इंटरनेट इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। आप अगर दूसरी साइट को तेजी से इस्तेमाल करना चाहेंगे तो आपको उसके लिए अलग से डाटा पैक खरीदना होगा। इससे टेलीकॉम कंपनियों का फायदा ही फायदा होगा और आपको इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए मोटी रकम चुकानी होगी।

सरकार का रुख : सरकार ने इस पूरे मामले पर एक कमेटी का गठन किया है जो अगले महीने सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी। ट्राई भी इसके लिए दिशा-निर्देश की बना रहा है। सभी  पक्षों से 24 अप्रैल तक रिपोर्ट मांगी गई है। टेलीकॉम कंपनियों को 8 मई तक का समय दिया गया है। इसके बाद ही इस पर फैसला होगा।

Tuesday, April 14, 2015

अग्निशमन सेवा दिवस...

अग्निशमन सेवा दिवस...
तेज उठती लपटें और उनके बीच किसी के उजड़ते आशियाने को बचाने की मंशा फायरकर्मियों में देखने को मिलती है। वे हर दिन आग से खेलने का काम करते हैं। इस खतरनाक काम को अंजाम देते हुए उन्हें अपनी जान की भी फिक्र नहीं होती। फिक्र होती है तो उन्हें सिर्फ उस जलते मंजर या फिर उसमें धधकती जिंदगी को बचाने की। आग लगने वाली जगहों पर फायरमैन सिर्फ एक फोन कॉल पर दौड़ पड़ते हैं।
दूसरों के हिस्से की तपन को झेलते हुए जनता की रक्षा व सुरक्षा के लिए कृत संकल्पित इस जांबाज फायरमैन दल के लिए अग्निशमन दिवस महज कौशल प्रदर्शन का मंच नहीं है, वरन ये स्मृति दिवस है उन 66 अग्निशमन कर्मचारियों की शहादत का, जिन्होंने जनसेवा करते हुए सहर्ष मृत्यु का वरण किया।
वह14 अप्रैल 1944 का एक धधकता शुक्रवार था,जब विक्टोरिया डाक बंबई में सेना की विस्फोट सामग्री से भरा पानी का जहाज लपटों के आगोश में समा गया। आग पर काबू पाने के लिए बंबई फायर सर्विस के एक सैकड़ा अधिकारी व कर्मचारी घटनास्थल पर भेजे गए।
अटूट साहस और पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए इन जांबाज अग्निशमन कर्मचारियों ने धधकती ज्वाला पर काबू करने का भरसक प्रयत्न किया। आग पर नियंत्रण तो पा लिया गया,लेकिन इस कोशिश में 66फायरमैन को अपनी जान की आहूति देनी पड़ी।
उन्हीं 66शहीद अग्निशमन कर्मचारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए अग्निशमन सेवा दिवस मनाया जाता है।
इस दिवस के विभिन्न आयोजन पूरे सप्ताह भर चलते हैं। सप्ताह के दौरान फायर ब्रिगेड द्वारा विभिन्न कारखानों, शैक्षणिक संस्थाओं,ऑइल डिपो आदि जगहों पर अग्नि से बचाव संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है।

अग्निशमन सप्ताह के अंतर्गत नागरिकों को अग्नि से बचाव तथा सावधानी बरतने के संबंध जागृत करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। इसका उद्देश्य अग्निकांडों से होने वाली क्षति के प्रति नागरिकों को जागरूक करना होता है।