Tuesday, September 15, 2015

सयुंक्त राष्ट्र महासभा ( UNGC ) का प्रस्ताव और भारत की दावेदारी


सयुंक्त राष्ट्र महासभा ( UNGC ) का प्रस्ताव और भारत की दावेदारी

कल सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने सुरक्षा परिषद के विस्तार से संबंधित एक प्रस्ताव को मंजूरी दी। इस प्रस्ताव के सवाल पर भारतीय मीडिया में बहुत ही भ्रामक खबरें आ रही हैं और ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे भारत को स्थाई सदस्यता मिलने जा रही है। जबकि इस मामले में दिल्ली ( न्यूयार्क ) अभी बहुत दूर है। कल जो प्रस्ताव पास हुआ है उसके मायने आखिर क्या हैं ?

                    भारत सहित कई देश दुनिया की बदली हुई परिस्थिति में सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार की मांग कर रहे थे। इन देशों में मुख्य रूप से चार देश शामिल हैं, भारत, जापान, जर्मनी और ब्राजील। परन्तु सुरक्षा परिषद के विस्तार का मुद्दा किसी निर्णय पर नही पहुंच पा  रहा था। सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य जिसमे अमेरिका, रूस, चीन, फ़्रांस और ब्रिटेन शामिल हैं इस को लटकाये रखना चाहते थे। ये देश हर रोज अपने भाषणो में अलग  अलग  बातें कहते रहे हैं। इस बातचीत को जिसे एक अंतर सरकार ग्रुप ( IGN ) चला रहा था 2008 से कोई प्रगति नही हो पा रही थी। इसलिए भारत सहित कई देशों ने इस बातचीत के लिए एक लिखित बातचीत ( पाठ  आधारित ) का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के अनुसार तय किये गए पांच मुद्दों पर,  ( जिसमे वीटो पावर का मुद्दा भी शामिल है ) हर देश द्वारा लिखित पक्ष रखने को जरूरी किया गया। इस प्रस्ताव का उद्देश्य बातचीत को भाषणो और आश्वासनों से आगे बढ़ाने का था। P -5 के देशों ने इस प्रस्ताव पर नकारात्मक रुख रखा। उनके अलावा 13 देशों का एक समूह जिसमे पाकिस्तान. इटली और दक्षिणी कोरिया शामिल हैं, ने भी इसके खिलाफ रुख अपनाया।

               सयुंक्त राष्ट्र महासभा के नए अध्यक्ष सैम कुटेसा के आने के बाद और उनके प्रयासों से इसमें तेजी आई। सैम कुटेसा ने इस मामले पर अमेरिका, चीन और रूस द्वारा लिखे गए पत्रों को आम जनता के लिए जारी कर दिया जिसमे इस मामले पर उनका रुख साफ होता है।

अमेरिका का रुख -
                                
अमेरिका ने इस विस्तार में किसी भी नए सदस्य को वीटो पावर का विरोध किया और पुराने सदस्यों की वीटो पावर जैसे की तैसे रखने की बात कही। अमेरिका का मानना है की कई देशों के पास वीटो पावर होने से सुरक्षा परिषद में किसी भी प्रस्ताव को पास करना मुश्किल हो जायेगा।

रूस का रुख ----
                        
रूस ने रुख अपनाया की पहले के स्थाई सदस्यों के किसी भी अधिकार में ( वीटो पावर सहित ) कोई भी कटौती ना की जाये।
चीन का रुख -----
                          
 चीन ने सुरक्षा परिषद के विस्तार पर तो सहमति दिखाई परन्तु उसने कहा की नए स्थाई सदस्य बनाने की बजाए अस्थाई सदस्यों की संख्या बढ़ा दी जाये ताकि छोटे और मध्यम देशों को बारी बारी भूमिका निभाने का मौका मिल सके। व्यवहारिक रूप से चीन को भारत की सदस्यता की बजाय जापान की सदस्यता पर ज्यादा एतराज है जो उसका पारम्परिक विरोधी है।
                      
  लेकिन सैम कुटेसा के प्रयासों से इस प्रस्ताव पर सहमति बन गयी और सभी देशों ने सर्व सम्मति से ये प्रस्ताव पास कर दिया। अब आगे की बातचीत पाठ आधारित होगी और किसी नतीजे पर पहुंचना आसान होगा। इस प्रस्ताव के बाद ये उम्मीद बढ़ गयी है की सुरक्षा परिषद के विस्तार का लम्बे समय से लटका हुआ मुद्दा जल्दी हल होगा।

भारत की स्थिति ----
                               
  अभी जो बातचीत चल रही है वो इस मामले पर है की सुरक्षा परिषद के विस्तार का क्या रूप हो। उसमे कितने देशों को शामिल किया जाये। जो नए देश शामिल किये जाएँ वो स्थाई सदस्य हों या अस्थाई हों। अगर स्थाई सदस्य शामिल किये जाएँ तो उनके अधिकार क्या होंगे और क्या उनको वीटो का अधिकार दिया जायेगा या नही। एक बार इस मुद्दे पर सहमति बनने के बाद और विस्तार का फार्मूला तय हो जाने के बाद देशों की दावेदारी पर विचार करने का नंबर आएगा। इसलिए अभी इसे इस रूप में पेश करना की सयुंक्त राष्ट्र महासभा में भारत की दावेदारी पर विचार हो रहा है, गलत होगा। बात एक कदम आगे जरूर बढ़ी है लेकिन भारत के लिए अभी न्यूयार्क बहुत दूर है।




Monday, September 7, 2015

दैनिक समसामयिकी

दैनिक समसामयिकी


1.जी-20, ओईसीडी ने जारी की नई कापरेरेट गर्वनेंस संहिता:-
छोटे शेयरधारकों के हितों की सुरक्षा और पूंजी जुटाने के वास्ते शेयर बाजार को मुख्य मंच के तौर पर स्थापित करने के लिए जी-20 और ओईसीडी ने शनिवार को सूचीबद्ध कंपनियों और नियामकों के लिए कंपनी संचालन के नए नियमों की घोषणा की। ये नियम भारत सहित सभी सदस्य देशों में लागू होंगे। इस घोषणा के बाद भारत में सेबी सहित दुनिया के सभी नियामकों और नीति निर्माताओं को अपने अपने देशों में सूचीबद्ध कंपनियों के नियमनों में सुधार लाना होगा। सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में नए नियमों को यहां जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों की बैठक के दौरान जारी किया गया। वित्त मंत्री अरुण जेटली और रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन भी इस बैठक में भाग ले रहे हैं।इन नियमों में निवेशकों के अधिकारों की सुरक्षा और कंपनियों में सीईओ के वेतन को तर्कसंगत रखने के साथ ही निवेशकों के फायदे के लिए उपयुक्त खुलासे पर भी जोर दिया गया है। नए नियमों में विभिन्न देशों के बीच नियामकों के बीच सहयोग बढ़ाने और सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यवस्था बनाने को कहा गया है। नियमों में यह भी कहा गया है कि शेयरधारकों को एक दूसरे से बातचीत करने और शेयरधारकों द्वारा एक देश से दूसरे देश में मतदान की अड़चनों को दूर किया जाना चाहिए। जी-20 और ओईसीडी द्वारा जारी इन नियमों में कंपनियों द्वारा वित्तीय जानकारी उपलब्ध कराने, बड़े वित्तीय संस्थानों के व्यवहार और शेयर बाजारों के कामकाज के बारे में सिफािरशें दी गई हैं। नियमों में नियामकों से संबंधित पक्षों के बीच लेनदेन में आपसी हितों के टकराव के मुद्दों को प्रभावी ढंग से निपटने की हिदायत दी गई है। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के महासचिव एंजेल गुरिया और तुर्की के उप प्रधानमंत्री सेवडेट यिलमाज ने जी-20 देशों की मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान अलग से इस संहिता को जारी किया। यिलमाज ने बाद में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जी-20 कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने के वास्ते पूंजी बाजार की भूमिका को बेहतर बनाना चाहता है। विशेष तौर पर ऐसे समय जब वर्ष 2007-08 के नियंतण्र वित्तीय संकट के बाद बैंकों के सामने समस्या खड़ी हो रही है। हालांकि, कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य नियमों को अपनाना पड़ता है। उन्हें यह सुनिश्चित करना होता है कि जरूरी पूंजी उनके पास हो और शेयरधारकों के हितों को सुरक्षित रखा जा सके।

2. भारत, ईयू के बीच निकलेगी एफटीए की राह:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नवंबर, 2015 में होने वाली पहली ब्रिटेन यात्र में वैसे तो कई आर्थिक मुद्दे उठेंगे, लेकिन भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच मुक्त व्यापार समझौते इसमें काफी अहम रह सकता है। भारत में राजग सरकार के आने के बाद यह पहला मौका होगा, जब दोनों देश लंबित आर्थिक मुद्दों पर आगे बढ़ने की पहल करेंगे। ऐसे में एफटीए की अटकी हुई गाड़ी को फिर आगे बढ़ाने के लिए दोनो देशों के शीर्ष नेताओं से स्पष्ट संकेत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। ब्रिटेन पहले भी ईयू के साथ भारत के एफटीए का बहुत बड़ा समर्थक रहा है। जुलाई, 2015 में यूरोपीय संघ ने 700 से भी ज्यादा भारत निर्मित दवाओं के आयात पर पाबंदी लगाने का फैसला किया था। इसके जबाव में भारत में यूरोपीय संघ के साथ एफटीए पर प्रस्तावित बातचीत को खारिज कर दिया गया था। उसके बाद मोदी यूरोप की यात्र पर जाने वाले भारत के पहले शीर्ष नेता है। ऐसे में भारतीय पक्ष ही एफटीए का मुद्दा उठाना चाहता है। इसके लिए ब्रिटेन की मदद लेने में कोई हिचक नहीं है। भारत और ईयू के बीच वर्ष 2007 से ही मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत का दौर शुरू हुआ था। अभी तक कुल 12 दौर की बातचीत हो चुकी है। कई मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच सहमति भी बन गई थी। हालांकि मोदी सरकार के आने के बाद अभी तक बातचीत का दौर शुरू नहीं हो पाया है। सूत्रों के मुताबिक यह कोई रहस्य नहीं है कि ब्रिटेन भारत के साथ एफटीए को लेकर कितना उत्साहित है। ब्रिटेन की मंशा है कि अगर भारत और ईयू के बीच एफटीए को लेकर बात आगे नहीं बढ़ पाती है तो फिर द्विपक्षीय स्तर पर ही एफटीए को लेकर बातचीत आगे बढ़ाई जाए। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन स्वयं भारत के साथ एफटीए के समर्थक हैं। पिछली बार जब वह भारत की यात्र पर आए थे, तब उन्होंने यह मंशा जताई थी कि दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर तेजी से बात होनी चाहिए। माना यह जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरन इस मुद्दे को फिर उठाएंगे। भारत के उद्योग जगत की इस पूरे घटनाक्रम पर खास नजर होगी।

3. जीएसटी आने पर जीडीपी गणना होगी कठिन:- वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) भले ही संसद के गतिरोध से अटक गया हो, लेकिन केंद्र सरकार के अलग-अलग विभाग इसके क्रियान्वयन के लिए जरूरी तैयारियां करने में जुटे हैं। वित्त मंत्रलय के अलावा सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रलय भी प्रमुखता से इस काम को कर रहा है। इस मंत्रलय के अधिकारी जीएसटी के लागू होने पर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गणना में आने वाली जटिलता को समझने को अभी से जुट गए हैं। मंत्रलय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि जीएसटी के लागू होने के मद्देनजर केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के अधिकारी अभी से वित्त मंत्रलय तथा राज्यों के विभिन्न विभागों के साथ मिलकर जीडीपी की गणना में आने वाली तमाम जटिलताओं को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं। राजस्व विभाग ने जीएसटी नेटवर्क तैयार किया है, उस पर भी अधिकारियों को प्रशिक्षण दिए जाने का कार्यक्रम है। इस अधिकारी के मुताबिक, जीएसटी उपभोग आधारित टैक्स होगा। इसलिए किसी राज्य के बाहर कितनी वस्तुएं गई हैं और उक्त सूबे में कितनी वस्तुओं का उपभोग हुआ है, इस बारे में आंकड़े जुटाने का अभी कोई तंत्र उपलब्ध नहीं है। इसलिए जीडीपी के आकलन में जटिलता आने के आसार हैं। मोदी सरकार ने एक अप्रैल, 2016 से जीएसटी लागू करने का लक्ष्य रखा है। एक अनुमान के मुताबिक जीएसटी के लागू होने पर सकल घरेलू उत्पाद में एक से दो प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाएगी। वित्त मंत्री ने जीएसटी को आजादी के बाद अब तक का सबसे बड़ा टैक्स सुधार करार दिया है। वित्त मंत्रलय ने वस्तु व सेवा कर की तैयारियों की दिशा में कदम बढ़ाते हुए एक जीएसटी निदेशालय बनाया है। इसी तरह के निदेशालय राज्यों में भी बनाने का प्रस्ताव है।

4. ओआरओपी लागू, पूर्व फौजी नाराज :- वन रैंक, वन पेंशन (ओआरओपी) के लिए बीते करीब चार दशकों से जोर दे रहे पूर्व सैन्यकर्मियों ने शनिवार को उस वक्त आंशिक विजय हासिल की जब सरकार ने ऐलान किया कि वह इस योजना का कार्यान्वयन करेगी। दूसरी तरफ, पूर्व सैन्यकर्मियों ने इस फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि उनका 84 दिनों से चला आ रहा आंदोलन जारी रहेगा।रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि ओआरओपी को 2013 के कैलेंडर वर्ष के आधार पर एक जुलाई, 2014 से लागू किया जाएगा। सरकार ने पूर्व सैन्यकर्मियों से कहा कि अपना आंदोलन खत्म कर दें क्योंकि उनकी ओआरओपी की मांग स्वीकार कर ली गई है। संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि सरकार इससे संबंधित मुद्दों पर बातचीत करने के लिए तैयार है। पर्रिकर ने ऐलान किया सरकार ने ओआरओपी के क्रियान्वयन का फैसला किया है जिसके तहत हर पांच साल पर पेंशन में संशोधन किया जाएगा, लेकिन इसके दायरे में वे सैन्यकर्मी नहीं आएंगे जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले रखी है। पूर्व सैन्यकर्मी दो साल के अंतराल पर पेंशन की समीक्षा की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ओआरओपी के क्रियान्वयन के विवरण पर काम करने के लिए एक सदस्यीय न्यायिक समिति का गठन कर रही है जो इस जटिल मुद्दे के कई पहलुओं की पड़ताल करने के बाद छह महीने में रिपोर्ट देगी।विशेषज्ञों से होगा विचार-विमर्श : पर्रिकर के अनुसार इस योजना के क्रियान्वयन पर 8,000-10,000 करोड़ रपए का खर्च आएगा। बकाये के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि बकाये की राशि का भुगतान छह-छह माह की चार किश्तों में किया जाएगा। बहरहाल, युद्ध में शहीदों की पत्नियों तथा दूसरे दिवंगत सैन्यकर्मियों की पत्नियों को बकाये की राशि एक किश्त में दी जाएगी। इस योजना के तहत करीब 26 लाख सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों तथा छह लाख से अधिक शहीदों की पत्नियों को लाभ होगा। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार एक माह के भीतर ओआरओपी पर एक विस्तृत आदेश के साथ आएगी। पर्रिकर ने कहा कि सरकार ने विशेषज्ञों के साथ गहन विचार-विमर्श किया है तथा भारी वित्तीय बोझ के बावजूद ओआरओपी लागू करने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि पूर्व की सरकार ने अनुमान लगाया था कि ओआरओपी को 500 करोड़ रपए के बजट के प्रावधान के साथ लागू किया जाएगा। वास्तविकता यह है कि ओआरओपी के क्रियान्वयन पर 8,000 से 10,000 करोड़ का अनुमानित खर्च आएगा और भविष्य में आगे बढ़ता रहेगा।केंद्रीय मंत्रियों ने की आंदोलन खत्म करने की अपील : संसदीय कार्य मंत्री नायडू ने पूर्व सैन्यकर्मियों से आंदोलन खत्म करने की अपील करते हुए कहा, ‘‘सरकार बातचीत की हमेशा इच्छुक है। मुख्य मुद्दे का समाधान कर लिया गया है। बातचीत के जरिए दूसरे मुद्दों को भी हल किया जा सकता है।गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ओआरओपी को लेकर अगर कोई कमी है

5. चीन की सेना से हटेंगे 1.70 लाख अधिकारी:- चीन द्वारा अपने सैनिकों की संख्या में कटौती करने की नए पहल से करीब 1.70 लाख अधिकारी कम हो जाएंगे क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी सेना अपनी वर्तमान सात कमान और तीन कोर में से दो को खत्म करने की योजना बना रही है ताकि सुरक्षा बल को व्यवस्थित किया जा सके। वर्तमान में चीनी सैनिकों की संख्या 23 लाख है।हांगकांग के साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने अज्ञात सैन्य अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि राष्ट्रपति शीन जिनपिंग द्वारा पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को व्यवस्थित करने की योजना में तीन लाख सैनिकों में से करीब आधे अधिकारी हैं जिन्हें हटाया जाना है। पोस्ट ने चीन के अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि वर्तमान सात सैन्य कमान और तीन सैन्य कोर में से दो को खत्म कर देने से चीन की थलसेना में लेफ्टिनेंट से लेकर कर्नल तक 1.70 लाख अधिकारी हटा दिए जाएंगे। उन्हें समय पूर्व सेवानिवृत्ति के पैकेज की पेशकश की जाएगी।हर सैन्य कमान में दो से तीन सैन्य कोर हैं और हर कोर में 30 हजार से 50 हजार सैनिक हैं। दो कमान को हटा देने का मतलब है कि करीब एक लाख 20 हजार सैनिक कम हो जाएंगे। बड़ी संख्या में सैनिकों को कम करने की योजना का उद्देश्य थल सेना के पायलटों का वायुसेना और नौसेना में विलय करना है क्योंकि पीएलए संयुक्त अभियान युद्धकौशल की योजना बना रही है। दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताकत पीएलए इस महीने के अंत तक सैनिकों को कम करने के ब्यौरे की घोषणा कर सकता है। जापान के खिलाफ जीत की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर शी द्वारा तीन लाख सैनिकों को कम करने की घोषणा के तुरंत बाद रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता यांग युजुन ने स्पष्ट किया कि इस पहल का उद्देश्य सेना का आधुनिकीकरण और पुनर्गठन करना है तथा कटौती की प्रक्रि या 2017 तक पूरी हो जाएगी। पोस्ट ने खबर दी है कि पेइचिंग सेना को छोड़कर सभी प्रांतीय और निगम की सेनाओं को बंद कर दिया जाएगा और 50 हजार सैनिकों को बर्खास्त किया जाएगा। पेइचिंग सेना पीएलए के शक्तिशाली सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के तहत आती है और राजधानी की रक्षा करती है।सूत्रों ने कहा, चिकित्सा, संचार और कला ब्रिगेड जैसी गैर युद्धक इकाइयों के कम से कम एक लाख सैनिक हटाए जाएंगे और सीमा पर तैनात 50 हजार सैनिकों का पीपुल्स आम्र्ड पुलिस में विलय किया जाएगा। जिन्हें हटाया जाएगा उन्हें अच्छा पैकेज दिया जाएगा और 50 हजार सैनिकों का नागरिक पदों पर स्थानांतरण किया जाएगा। कुछ को जल्द सेवानिवृत्त होने के लिए भी आकर्षक पैकेज मिलेगा। सेना का पुनर्गठन पूरा होने पर पीएलए में पांच मुख्य सैन्य कमान होंगे। अधिकारियों ने बताया, इन पांच कमान के अंदर बचे 15 सैन्य कोर वायुसेना और नौसेना के अधिकारियों की भर्ती कर संयुक्त अभियान कमान को मजबूती देंगे। चीन को अमेरिका और रूस के बाद तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति माना जाता है। दुनिया के सुपर पावर अमेरिका के पास 14 लाख सैन्यकर्मी हैं जबकि 11 लाख रिजर्व सैनिक हैं।

6. अमेरिका, सऊदी जारी रखेंगे सुरक्षा सहयोग:- अमेरिका और सऊदी अरब मध्य पूर्व में विशेषकर ईरान से क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे का मुकाबला करने के लिए सुरक्षा सहयोग जारी रखेंगे। व्हाइट हाउस के मुताबिक, सऊदी अरब के शाह सलमान बिन अब्द अल अजीज ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से साथ मुलाकात की। दोनों देशों ने एक संयुक्त बयान में क्षेत्र में सुरक्षा, संपन्नता और स्थिरता को कायम रखने के प्रयास की जरूरत बताई। शाह ने ईरान और विश्व के प्रमुख छह देशों के बीच समझौते के तहत संयुक्त व्यापक कार्ययोजना का समर्थन किया। दोनों देशों ने कहा कि इसके पूरी तरह लागू हो जाने पर ईरान के परमाणु हथियार बनाने पर रोक लगेगी और क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ेगी। अमेरिका और सऊदी अरब की दोस्ती से केवल दो देशों को फायदा नहीं होगा बल्कि संपूर्ण विश्व को इससे फायदा होगा। दोनों ने आतंकी संगठन आईएस से मुकाबले के लिए भी सैन्य सहयोग जारी रखने का समर्थन किया। ईरान को फिलहाल राहत नहीं : अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आइएईए) द्वारा परमाणु समझौते के सत्यापन तक ईरान को प्रतिबंध से राहत नहीं मिलेगी। अमेरिका के वित्त मंत्री जैकब लिउ ने जापान के उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री तारो असो के साथ मुलाकात के दौरान यह जानकारी दी। जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक से इतर दोनों नेताओं ने संयुक्त व्यापक कार्ययोजना पर भी चर्चा की। लिउ ने कहा कि ईरान के खिलाफ आतंकवाद और क्षेत्रीयता अस्थिरता के खतरे को लेकर लगाया गया प्रतिबंध अभी जारी रहेगा।