देश के नजरिये से अगर इस दौर में सरकार को परिभाषित किया जाये तो पहले देश बेचना, फिर देश की फिक्र करना और अब फिक्र करते हुये देश को अपनी अंगुलियो पर नचाना ही सरकार का राजनीतिक हुनर है।
Tuesday, April 29, 2008
मुम्बई तुझे सीने से लगाये हैं
कि हम शाम -ऐ अवध और सुबह ऐ बनाराश छोंड आए हैं........
तेरी सड़कों पे सोये, तेरी बारिश में नहाये हैं
तुझे ऐ बम्बई हम फ़िर भी सीने से लगाये हैं........
अली सरदार जाफरी
कुछ इसी जज्बात के साथ मुम्बई के बारे में याद दिलाता हूँ। मुम्बई महिम, कुलाबा, छोटा कुलाबा मझागोवं, वरली, परेल और माटुंगा सात छूते टापुओं का समूह है। ऐसे सात टापू में से कुलाबा, मझगांव और महिम ये तीनो सभी सभी द्रष्टि से महत्वपूर्ण थे। इन सभी टापुओं पर ज्यादातर लोगों कि संख्या कोली समाज कीथी। आज एस कोली समाज की बस्ती ऐसे स्थानों पर मौजूद है। एस कोली समाज के कुल देवता का नाम मुम्बई आई है। और अंग्रजों ने इसका अपभ्रंश मुम्बई किया।
मुम्बई की खोज प्रशिध्ध भूगोल शास्त्री पिन्तोल मीने ने इ.स। १५० में की थी । खिस्ती शत पूर्व २७३-२३२ इधर मौर्या काल का शासन रहा। ८१० से १२६० तक शिलाहरा का राज्य चला। २३-१२ १९३४ को सुलतान बहादुर शाह ने पुर्तगाल को ८५ पौंड लगन भरने की शर्त पर हमेशा के लिए दे डाला। उसके बाद उस दौर में डच और अंग्रेज भी आ गए। केरल किनारे के मलबारी यहाँ आकर बस गए । और जिस टेकडी पर उनका अड्डा है , वो प्रसिद्ध मालाबार हिल है।
१६६१ में अंग्रजों को राजकुमारी कैथरीन का चार्ल्स दूसरे से विवाह में दहेज़ के रूप में दिया गया। इसके बाद अंग्रजों nऐ इसे ईस्ट इंडिया कंम्पनी को १० पौंड वार्षिक राशी पर पत्ते पर दे दिया। सन१६१२ में अंग्रजों ने अपना मुख्य कार्य क्षेत्र सूरत से हटाकर मुम्बई करेदिया। आज इस शहर को गिलियान तिन्दल ने " सिटी आफ गोल्ड " की उपाधि दी। एक ओर जहाँ ये महानगर लंदन और पेरिश से टक्कर लेता है वहीं दूसरी ओर निर्धनता की पराकाष्ठा भी दर्शाता है। यहाँ एक ओर वैभव शाली अत्तालिकाए, चमचमाती शानदार कारें और पाँच सितारा होटल वहीं दूसरी ओर झुग्गी , झोपदियाँहैं। यहाँ है वैभव एश्वर्या और चमक - दमक का साम्राज्य है। देश के सबसे सम्र्ध्ध औधोगिक घरानों जैसे बिड़ला, टाटा अम्बानी के मुख्यालय यहाँ स्थित है। यहीं पर मुम्बई फ़िल्म उद्योग को चकाचौंध कराने वाले स्टूडियो हैं। जो बहरत वर्ष के कोने - कोने से युवक- युवतियों को आकर्षित करते हैं। कुछ सपने पूरे होकर वो प्रशिधी की ऊंचाई में पहुँच जाते है। लेकिन जादातर लोगों का जीवन थोंकारे खाकर गरीबी में ही गुजर जाते हैं। सारे देश से लोग अपना भाग्य बनने यहाँ आते हैं। कहतें हैं मुम्बई म,एन सोना बिखरा पड़ा है। .उसे टू खोजने वाले और उठाने वाले चाहिए। इतिहास ऐसे कई लोगों को उदाहरण पेश करता है। की कैसे लोग यहाँ लोटा डोर लेकर यहाँ आए, और अपने पुरुषार्थ और व्यापर कौशल पर बुलंदी पर पहुँच गए।
मुम्बई शहर के मूल निवाशियों की अधिष्ठात्री मुम्बा देवी के नाम से मुम्बई का नाम पड़ा। देश में रेल का मुंह देखने का श्रेय इसेसहर को मिलहुआ है। टैब से लेकर अब तक मुम्बई में कई परिवर्तन हो गए हैं। एस शहर ने बाढ़, विस्फोट, dange झेले हैं लेकिन न थामने वाली मुम्बई मुस्कराते हुए अपने रफ्तार पर बनी रही और आज मुम्बई सिर्फ़ एक ही धर्म जानती है - काम कारन और चलते रहना।
Monday, April 28, 2008
महाराष्ट्र स्थापना दिवस
एक मई १९६० को महाराष्ट्र प्रथक राज्य बना
महाराष्ट्र का इतिहास काफी पुराना है। इसके लिखित इतिहास के अनुसार सबसे पहले इस राज्य में सातावाहन राजवंश और उसके बाद वाकाटक वंश का राज्य रहा है। इसके पश्चात इस क्षेत्र पर कलचुरी, चालुक्य, यादव, दिल्ली के खिलजी और बहमिनी वशों ने शासन किया। इसके बाद केंद्रीय सत्ता बिखरकर छोटी-छोटी सल्त्नतों में बदल गई।
सत्रहवीं शताब्दी में शिवा जी के प्रभावशाली बनने के बाद आधुनिक मराठा राज्य का उदय हुआ। शिवाजी ने बिखरी ताकतों को एकजुट कर शक्तिशाली सैन्य बल का संगठन किया। इस सेना की मदद से मुग़लों को दक्षिण के पत्थर से आगे बढ़ने से रोका । लेकिन, शिवाजी की मृत्यु के बाद मराठा शक्ति बिखरने लगी। शिवाजी के उत्तराधिकारियों की विफलता के कारण पेशावओं ने सत्ता पर अधिकार कर लिया। सन 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठा शक्ति पूरी तरह से बिखर गई। अंततः 1818 तक अंग्रेजों ने सम्पूर्ण मराठा क्षेत्र पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। फिर से 1875 में नाना साहब के सैनिकों ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गाँधी और तिलक ने महाराष्ट्र के लोगों को सक्षम नेत्रत्व प्रादन किया। स्वंत्रता प्राप्ति के बाद बम्बई प्रान्त में महाराष्ट्र और गुजरात शामिल थे। बाद में बम्बई पुनर्गठन अधिनियम १९६० के अंतर्गत एक मई १९६० को इस सम्मलित प्रान्त को महाराष्ट्र और गुजरात नामक दो प्रथक राज्यों में बाँट दिया गया। पुराने बम्बई राज्य की राजधानी नए महाराष्ट्र राज्य की राजधानी बन गई। सन १९९५ में बम्बई का नाम बदलकर मुम्बई कर दिया गया।
अगर महाराष्ट्र के भौगोलिक क्षेत्र में नजर डालें तो महाराष्ट्र देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। राज्य के पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में कर्नाटक दक्षिण पूर्व में आंध्र प्रदेश और गोवा , उत्तर पशिम में गुजरात और उत्तर में मध्य प्रदेश स्थित है। महाराष्ट्र का तटीय मैदानी भाग कोंकण कहलाता है। कोंकण के पूर्व में सह्याद्री की पड़ी श्रंखला सागर के समांतर स्थित है। आज महाराष्ट्र में विधान सभा की सीटें २८८, विधान परिषद् की सीटें ७८ ,लोकसभा की सीटें ४८ ,और राज्य सभा की १९ सीटें हैं। और महाराष्ट्र में ३५ जिले है।
अब अगर वर्तमान राजनीतिक बात करें तो महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश स्थापना दिवस मनाने पर हमेश बवाल उठता है। इसी वज़ह से उत्तर भारतीयों ने महाराष्ट्र सथापना दिवस मनाने का फैसला भी किया है। उत्तर प्रदेश, बिहार झारखंड के सांस्कृतिक मंच ने महाराष्ट्र सथापना दिवस मनाने का फैसला किया है। जाहिर है इस कार्यक्रम से मराठी और गैर मराठियों में बढ़ रही खाई कम होने की उम्मीद जताई जा सकती है।
Sunday, April 27, 2008
इस बार आग उगलेगा सूरज
इप्च्क यानि इंटर गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लीअमेत चेंज की रिपोर्ट भी यही कहती है की ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ये सब हो रहा है। रिपोर्ट ने ये संकेत दे दिए हैं की इसबार पारा ४५ के पार रहेगा। मुम्बई जैसे शहर में जहाँ सम शीतोष्ण रहता है, वहां भी पारा ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। अभी अप्रैल का महीना ख़त्म होने के कगार में चल रहा है। और यहाँ गर्मी ने सबका कचूमर निकालना शुरू कर दिया है। लोकल ट्रेन में भेड़ बकरी की तरह ठुंसे रहने वाले यात्रियों की जबान बदल गई है.पहले कहते थे गर्दी (भीड़) बहुत ज्यादा है। अब कहतें हें- गर्मी ज्यादा है.अब अगर उत्तर भारत की बात करें तो तो वहाँ गर्मी और ठंढी का गढ़ माना जाता है। गर्मी में जहाँ जाने जाती है तो वहां ठंढी में भेड़ जाने जाती है। लेकिन अभी तक वहाँ तपन मई में शुरू होती थी। और बारिश के पहले तक असर रखती थी। लेकिन इस बार मई के बिना इन्तजार किए ही गर्मी ने दस्तक दे दी। और पारा अभी से ही ४५ के पार हो गया। अगर में में तो लोग पारा के ऊपर चढाने से बहाल हो गए हैं।
अब सवाल ये उठता है की प्रकृति का परिवर्तन है, होता रहता है.लेकिन ये परिवर्तन घातक क्यों साबित हो रहा है।
धरती को गर्म से बचानेकी पहल पर पर ग्लोबल वार्मिंग के चलते दुनिया कई लोग जागरूक भी हो गए हैं। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरों के चलते जागरूकता निर्माण कराने के लिए एक घंटे के लिए बिजली का उपयोग नहीं क्या गाया। "अर्थ अवर " नाम से किए गए इस प्रयोग में विश्व के ३७१ देशों में रात्रि ८ से ९ बजे तक बिजली का उपयोग नहीं किया गया । इस तरह से ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लिए तमाम तरह के प्रयोग किए जाते हैं। लेकिन जरूरत है की प्रकृति से छेड़- छाड़ नहीं करे। अगर अपनी आदतों में सुधर नहीं हुआ तो कितना भी जागरूकता फैला लो , सूर्य देवता तो आग उगलेंगे ही ।
Saturday, April 26, 2008
भज्जी का थप्पड़ जग जाहिर
Friday, April 25, 2008
महाराष्ट्र में यौन शिक्षा
एक बात गौर करने कि है यौन भावना और यौन जानकारी का आपस में कोई संबंध है कि नहीं। बहुतों का कहना है कि यौन जानकारी बच्चों में ग़लत भावनाओं को उभारेगी। ये भारतीय संस्कृति को दूषित करेगी । लेकिन यौन जानकारी के बिना भी यौनेछा तो उपजेगी ही। तब इसे समझना और संयमित करना और मुश्किल हो जाएगा । क्योंकि चोरीछिपेहशील कि गयी जानकारी कैसे होगी ये कल्पना से बाहर है।
कई बार ये भी कहा जाता है कि बच्चो को इन सबकें के बारें में बड़े लोगों से जानकारी मिल जाती है। लेकिन हमारा तथाकथित पढ़ा लिखा वर्ग भी किस तरह कि जानकारी रखता है ये किदी से छिपा नहीं है ।
माहवारी आने पर कपडा बाँध लेने कि बात ही यौन शिक्षा तक सीमित नहीं है। हमारा महिला समाज अपनी देह को सुंदर दिखाने में जीतनी रुचि लेता है उसकी चौथाई भी अगर शरीर कि समस्याओं को समझनेमें लेता तो कई ऐसेबीमारियों से बचा सकता है। जो बाद में जानलेवा साबित होती है। इसलिए पुरषों कि तुलना में महिलाओं को तो यौन जानकारी देना और भी जरूरत है।
एक बात ये भी है कि यौन शिक्षा का जो विरोध हो रहा है , उसके पीछे भी पुरुषवादी मानसिकता ही ज्यादा कम करती है । लेकिन यक्ष एक बात मानना होगा कि यौन जानकारी देने वाली शिक्षा न केवल ख़ुद में आत्म विश्वाश लाती है, बल्कि इससे सामाजिक स्वास्थ्य भी बेहतर होगा।
Tuesday, April 22, 2008
मुझे सरकारी गुंडों से बचाओ
Wednesday, April 16, 2008
जाति- प्रथा समता मूलक समाज की स्थापना में सबसे बड़ी बाधा है
हिंदू समाज में ये तीनो प्रायः वर्जित हैं। हम रोटी दे सकते हैं, बेटी नहीं । अस्प्रश्य जातियों के लिए सदियों से मन्दिर में प्रवेश निषिद्ध रहा है। खान-पान का भेद पहले से बहुत कम हुआ है। आधुनिक जीवन की अनेक ऐसी बाध्याताये हैं की कुछ कट्टर मान्यताओं वाले अपवादों को छोंड़कर इसका पालन करना सहज नहीं है। किंतु आज भी सभी जातियों के लोग एक ही पंगत में बैठकर भोजन करें , ऐसे बहुत कम देखने को मिलाता है। जहां तक वैवाहिक संबंधों की बात है , इसमे जाति बन्धन का टूटना लगभग असंभव है। अपने ही वर्ण और वर्ग में ही लोग ऊंच-नीच का बहुत विचार करते हैं। ऐसे में अन्य जाति के विषय में सोंचना बहुत दूर की बात है। इस्लाम, ईसाई और सिखों में धार्मिक स्तर पर जाति प्रथा का पूरी तरह खंडन है। और ऊंच- नींच की भावना का पूरी तरह निषेध है। किंतु ये समुदाय भी दो पड़ाव पार करने के बाद तीसरे पड़ाव पर पहुंचकर ठिठक जाते हैं। अगर हम मुसलमानो की बात करते हैं तो कुरान, मस्जिद में यह स्पष्ट है की "इस्लाम में जाति के आधार पर सामाजिक बंटवारे का कोई स्थान नहीं है।
भारत के अधिसंख्यक मुसलमान यहीं के धर्मान्तरित लोग थे , विशेष रूप से सूद्र जाति से। भारत में लोगों की संख्या बहुत कम है, जो अपना संबंध उन पूर्वजो से जोड़ते हैं। जो अरब तुर्की , इरानी या अफगानिस्तान से यहाँ आए थे । ये लोग अशरफ कहलाते थे । और मुसलमानों को अपने से बड़ा मानते हैं। जो स्थानीय है ऐसे मुसलमानों को अज्लाफ़ कहा जाता है। सैयद , पठन, शेख, मुग़ल आदि अशरफ कहे जाते हैं। अंसारी, धुनिया लोहार बढ़ाई जैसे मुस्लमान जो अपने को राजपूतों और जातों की संतान मानते हैं, अन्य धर्म परिवर्तित मुसलमानों से श्रेष्ठ मानते हैं.कहीं न कहीं जाति प्रथा अपनी सभी बुराइयों के साथ इनमें भी विद्यमान है । पूजा- पाठ के समान अधिकार और लंगर की व्यवस्था के बावजूद वैवाहिक संबंधों में सिख समाज में भी वही जड़ता व्याप्त है, जो इस देश में सदियों से चली आ रही हैं।
बोली का बोलबाला
आई पी एल का संग्राम १८ अप्रैल से शुरू हो रहा है। आई पी एल का मंडी में सभी खिलाड़ी मैदान मरने की तैयारी में जुट गए हैं। आई पी एल की पैदाइश है। बीसीसीआई ने जिस तरह के हथ्कोंदे अपनाए, उसने मिटटी को भी सोना बनाया है। और उसे सोना के भाव में बेंचा भी है। पहले तो आई पी एल का बाज़ार सजाया । जाने माने कारोबारियों ने पानी की तरह पैसा बहाया । जिन्होंने कभी कारोबार नहीं किया उन्होंने भी हाँथ साफ कराने की कोशिश की है। खिलाड़ियों की बोली लगी । और कंपनी चहेते खिलाड़ियों के लिए पानी की तरह पैसा बहाया। इसके बाद सभी कंपनियों ने ताम झाम के साथ टीम लॉन्च की। कोई कसार न रह जाए इसके लिए ब्रांड एम्बेसडर भी बनाये गए। खिलाड़ियों और दर्शकों के मनोरंजन के लिया सरे बंदोबस्त किए गए हैं। खिलाड़ियों की बोली के समय से ही कंपनियों का बोलबाला शुरू हो गया था। इस बोली में सबसे महंगे थे धोनी। जिन्हें चेन्नई की टीम ने छह करोड़ रुपये में ख़रीदा। इस बोली में भारत के ३३ खिलाड़ी शामिल हैं। आस्ट्रेलिया के १३ दक्षिण अफ्रीका के ११, पाक के ८, श्रीलंका के ९, न्यूजीलैंड के ६, वेस्ट इंडीज़ के ३ और बंगलादेश के २ खिलाड़ी शामिल हैं। जबकि जहाँ क्रिकेट पैदा हुआ है यानी इंग्लैंड के अक भी खिलाड़ी शामिल नहीं हुए हैं। इसमें आई कान खिलाड़ियों को भी दर्जा भी दिया गया है। और ये दर्जा मिला है सचिन, सौरव, राहुल, युवराज और वीरेंद्र को। और अब ललित मोदी की जादू १८ अप्रैल से शुरू हो रहा है। जो की १ जून २००८ की ख़त्म हो रहा है।
अब अगर विचार करें तो आई सी एल के खुन्नस के कारन ही आईपीएल को बीसीसीआई ने पैदा किया है। और बीसीसीआई के रंग के आगे आई सी एल फींका पड़ गया है। और दे दनादन , दनादन चल रहा है। इस आईपीएल से जहाँ देश में छिपी प्रतिभा को इंटरनेशनल खिलाड़ियों के साथ हुनर दिखाने मौका मिलेगा। तो वहीं सबसे बड़ी बात उभरकर सामने ये आरही है की जिनके ऊपर नस्लवाद का आरोप लगता था , और जो मढ़ते थे वो सब एक ही थाली में खाएँगेयानी एक साथ जब मैदान में उतरेंगे .तो जिस तरह की गलतफहमियां पैदा हो चुकी थी । हो सकता है उन्हें पटने का मौका मिल जाएँ। और सबको एक ही धागे में बांधकर तू दिखा हुनर ......
Tuesday, April 15, 2008
वेश्यावृत्ति को खत्म करना चाहतें हैं या वेश्याओं को
हम कुलमिलाकर एक हिपोक्रेट समाज के अभिन्न अंग हैं। ढिंढोरा तो हम पीटतें हैं , गरीबी हटाने का , मगर अब तक अनुभव यही बयान करता है की हमारी व्यवस्था गरीबों को ही हटा देती है। कहा जाता है वेश्यावृत्ति दुनिया का सबसे पुराना धंधा है, यह एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जिसके सामने मनो दुनिया भर की संभावनाएँ नजरें नीची किए , सिर झुकाएं खड़ी हैं। एक ऐसा कर्म की वेश्या के रूप में पुरूष भी करता कारक हैं। मानवीयता पर कलंक इस व्यवसाय को ख़त्म करने के मकसद से पुरूष प्रधान हमारे समाज की कुल कवायद वेश्याओं के इर्द गिर्द ही मंडराती रहती है।
जबकि इसे पसरने व पनपने के लिए ईंधन मुहैया करवाने वाले एक विशाल वर्ग (ग्राहंक) सदैव नजर अंदाज़ कर दिया जाता है । नतीजन जख्म ऊपर से ठीक हो जाता है। और अन्दर से हरा ही रहा जाता है। मौका पते ही नासूर बनकर उभरने लगता है। जब तक बाज़ार में खरीददार मौजूद है, वेश्यावृत्ति का खत्म भला कैसे संभव है।
किसी ज़माने में मनीला के मेयर ने वहां के तकरीबन तीन सौ बार बंद करावा कर कई तरह की पाबंदियाँ लगाव दी थीं । मुम्बई समेत महारास्त्रमें बार बालाओं पर शिकंजा कसने की सरकारी कवायद सालों से देश में सुर्खियों में रही । करांची में मानवाधिकार से जुड़े वकीलों ने कभी ऐसे गिरोह के खिलाफ जनमत टायर किया था। जिन्होंने हजारों बंगलादेशी लड़कियों का अपहरण कर वेश्या बना दिया था । मगर क्या इन सबसे से उन देशों में इस कारोबार की खात्मा हुआ? उल्टे इलाज कराने की कसरत में मर्ज़ ही लाईलाज़ होता जा रहः है।
एक बार इस दोजख में कदम रख देने वाली औरत को क्या हमारा समाज इस कदर परिपक्व है की उन्हें चैन से कोई और कारोबार कर रोजी रोटी कमाने देगाइन सरे सवालों के जवाब नहीं है। फ़िर क्या यह संभव नहीं है की लचर होकर वे लड़कियों के तौर तरीके बदलकर फ़िर इस पेशे को ही विस्तार दे।इस देश में अपराध को रोंकने के लिए कानून बनने वाले के मुकाबले उसे तोड़ने वाली प्रतिभाएं कहीं ज्यादा कुशाग्र बुद्धि संपन्न है। अगर ऐसा ना भी हुआ तो पुलिस उन्हें तलाश-तराश कर देती है।
अब सवाल यह उठता है की अगर हम पेशा छोंड दे तो क्या सरकार हमें रोजी रोटी की गारंटी देगी इस तरह के तमाम सवाल के जवाब नहीं मिल रहे है। यक्ष सवाल यह है की हम वेश्यावृत्ति को ख़त्म करना चाहतें है या वेश्याओं को ।
इसके लिए सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, व राजनीतिक मोर्चों पर हमने कितना होमवर्क किया । अगर हमने कोई तैयारी नहीं किया तो ऑपरेशन शिव्दाश व रेस्कुई फाउंडेशन सरिखें अभियान मीडिया मै क्षणिक कौताहल पैदा कराने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते।
महंगाई के साइड इफेक्ट
बाज़ार में घुसते ही जिस चीज़ के दर्शन सबसे पहले होते हैं वह है महंगाई। महंगाई देखकर आदमी यह मनाने को विवश हो जाता है कि दुनिया तेजी से तरक्की कर रही है। पहले जेब में पैसा लेकर बाज़ार जाते थे और सौदा थैला में भरकर लाते थे । आज थैला भरकर पैसा ले जाओ सौदा मुठ्ठी में भरकर लाओ । हो सकता आने वाले समय में आटा कैप्सूल में मिलाने लगे और दाल का पानी इंजेक्शन में मिलाने लगेगा
हमेश छुई मुई और लगाने वाली श्रीमातियाँ भी महंगाई के नाम पर गुस्से से फनफना उठती है । उनकी मुठ्ठियाँ बाँध जाती है। बेचारे श्रीमान जी थोड़े और बेचारे हो जाते है। सरकार गृहस्थों का कोपभाजन बन जाती है। कभी लहसुन टू कभी प्याज़ , कभी आलू तो कभी चीनी उसकी भेंट ले लेते हैं।
महंगाई सरकारों के आने और जाने की बहाना बन जाती है। महंगाई मनोरंजन का भी सस्ता एवं सर्व सुलभ साधन है। भारतवासी कुस्ती देखने के बड़े शौकीन होते है। जब भी जनता के पेट में दर्द होता है सरकार उसे अस्वाशन का सीरप पिला देती है । हम महंगाई के खिलाफ लडेंगे । सुनकर जनता को दो पल के लिए राहत महसूस होती है । वह नंगी आंखों से सरकार और महंगाई का मल्ल्युध्धा देखती रहती है।