Thursday, July 23, 2009

पवार का पावर गुल

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यह बात अब केवल किताबों में ही सीमित रह गयी है। कृषि प्रधान देश का झुनझुना बजता रहता है। किसान आत्महत्या करते रहते हैं। खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छू रहे हैं। देश वासियों की थाली से आज दाल की कटोरी गायब होती जा रही है। और देश के कृषि मंत्री जी के पास अभी तक कृषि से सम्बंधित कोई नीति नहीं बनी है।

दरअसल किसी नेता की पहचान उसके कार्य कलापों से होती है। केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार भी इसके अपवाद नहीं हैं। महाराष्ट्र की राजनीति के चतुर खिलाड़ी , राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार का मतलब क्रिकेट, शक्कर कारखाने और जमीन तक सीमित रह गया है। और इसी में उनकी रुचि है। यही वजह है की कृषि और किसान उनके चछु से ओझल हैं। अगर वाकई पवार अपना पावर (ताकत) कृषि विभाग पर लगाते तो आज किसान आत्म ह्त्या नहीं करते। जिस तरह रोम जलाता रहा और सम्राट नीग्रो बेफिक्र बासुरी बजाते रहे। वैसे ही शरद पवार भी गेंद-बल्ला और राजनीति में इतने उलझे हुए हैं कि किसानो के प्रति हितैषी नीति बनाने के लिए उनके पास फुरसत ही नहीं मिलती महाराष्ट्र के अलावा अन्य राज्यों में भी किसानो ने आत्म हत्या की है। बुंदेलखंड में तो सूखा पीड़ित किसानो को २५-३० रुपये के चेक देकर उनकी असहायता का माखौला उड़ाया गया है। महाराष्ट्र के कपास ,संतरा उत्पादक किसानो की अत्यन्त दुर्दशा हुई है। कर्ज के बोझ और अपमान जनक तकाजों से तंग आकर हजारों किसानो ने मौत को गले लगाना बेहतर समझा । जबकि पवार को यह देखने का मौका ही नहीं मिला कि किसानो के घर में चूल्हा जला या नहीं। जब ज्यादा मुसीबत आयी तो विदेश से घटिया गेहूं मंगा लिया । जिसे जानवर भी खाए तो मर जाए और इंसानों को परोस दिया। इतने सालों से पवार ने अभी तक ऐसी कोई कृषि नीति नहीं बनायी है जिससे दलहन और तिलहन का उत्पादन बढाया जा सके। आज लोगों की थाली से दाल की कटोरी गायब होती जा रही है। शक्कर के दाम अनाप शनाप हैं। यह गोरख धंधा पवार भी जानते हैं। कृषि मंत्री जी को केवल गन्ना और अंगूर उत्पादक किसान ही नजर आते हैं। कपास उत्पादक किसानो की और वो नहीं देखते।और विदर्भ के किसानो की ओर देखना पसंद ही नहीं करते। अगर अंगूर से बनने वाली शराब को बढ़ावा दिया जा सकता है तो क्या पवार साहब विदर्भ के आदिवासी क्षेत्रों में महुए से मदिरा को बढावा देना क्या ग़लत है? पवार जी को केवल बारामती जिले में ही पूरा देश नज़र आता है।
अब यक्ष सवाल ये उठाता है की आख़िर किसानो को राहत कब मिलेगी। क्या जनता ने गलती कर दिया जो चुनकर भेज दिया ? या फ़िर पवार साहब जानते ही न हों की कृषि क्या बला है?

3 comments:

Unknown said...

bahut sahi
bahut sateek................
abhinandan !

संगीता पुरी said...

बहुत सही विश्‍लेषण किया है आपने !!

yaduyadavkosh said...

बहुत सही विश्‍लेषण है !!