Thursday, October 1, 2009

कम खर्च का चोला

कम खर्च और भ्रष्टाचार एक बार फ़िर से बहस का मुद्दा बन गया है। बोफोर्स काण्ड में सी.बी.आई. की तोप ही फिस्स हो गयी।और कई दशक से चला आ रहा कांड अब अपने अन्तिम संस्कार पर पहुँच रहा है। सवाल ये है की मंत्री जी फाइव स्टार होटल में हैं और दलील दे रहे हैं कि यहाँ का खर्चा वे अपनी जेब से भर रहे हैं। एक दिन का लाखों में खर्च और करोड़ों का बिल बन चुका था। ऐसे में क्या मंत्री जी की आमदनी इतनी ज्यादा है कि वे इतना व्यय सहन कर सकते हैं। या फ़िर इसका भुगतान कोई अज्ञात व्यक्ति कर रहा हैं।
खैर कम खर्चे में सोनिया गाँधी से लेकर सभी मंत्री सोनिया जी की राह पर निकल पड़े। राहुल बाबा ने तो उड़नखटोला को ही बाय बोल दिया। और रेल से ही निकल पड़े। लेकिन इससे सरकार ने कितने रुपये बचाए। किसका फायदा हुआ। ये भी एक सवाल है। ये वही पार्टी जिसमें महात्मा गाँधी जी ने एक धोती पहनकर पूरा देश घूमा है। ऐसे में आखिरकार इस पार्टी के नेता कैसे पंचसितारा होटल के आदि हो गए कि गांधीजी के सिद्धांत को तिलांजलि दे दी। ख़बर ये भी है कि दो अक्टूबर को कांग्रेसी स्लम में जायेंगे । और बांकी दिन कहाँ रहेंगे। क्या आदिवासी के घर जाकर वहाँ का खाना खाकर खर्चा कम होगा। तो फ़िर सबसे पहले अपने सुरक्षा रक्षक हटा दो। जिस जनता ने चुनकर भेजा है उसी जनता से डर है और सुरक्षा भारी होना चाहिए,ये भी नेताओं की मांग है ।

एक सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि सबसे ज्यादा खर्च सरकार, उसके मंत्री और अफसर करते हैं। लगभग ७५ फीसदी राशि तो यही लोग उड़ा देते है। २००७-०८ में केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा १८२ करोड़ रुपया खर्च किया गया। यह खर्च २००६ -०७ में १२१ करोड़ और २००५-०६ में ९८ करोड़ का हुआ। यात्रा व्यय पर २००७-०८ में १३८ करोड़ खर्च हुए। २००६-०७ में ८२ करोड़ और २००६-०५ में ६१ करोड़ खर्च हुए। राज्य मंत्रयों के वेतन पर १.७५ करोड़, १.54 करोड़ और १.२० करोड़ खर्च हुए। एक अनुमान के मुताबिक यदि प्रधानमन्त्री पर दस फीसदी की कटौती की जाए तो लगभग १८ से २० करोड़ रुपये की बचत हो सकती है।
ये सारे आंकड़े सीधे खर्च के हैं। इन पर परोक्ष रूप से आंकड़े पाना कठिन है। सुरक्षा और यात्राओं के के दौरान विभिन्न मंत्रालयों द्वारा किए गए खर्च का आंकडा मिलना मुश्किल है। क्योंकि वे विभिन्न मदों में दर्ज होते हैं। एक समय आदर्श स्थिति रहती थी कि प्रसासनिक खर्च ३० फीसदी से ज्यादा मंजूर नहीं होता था। आज लगभग ७० फीसदी प्रसासनिक खर्च हो रहा है। कम खर्च का चोला ओढ़ने वाले विधायक,सांसद क्या संकल्प लेंगे कि वे अपना वेतन और सुविधाएं नहीं बढायेंगे।

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