Sunday, June 24, 2012

मंत्रालय ने किया अग्निदाह

जिस देश में आई. पी. सी. की धारा 309 के तहत आत्महत्या करना दण्डनीय अपराध है, और वो अपराधी महाराष्ट्र के विदर्भ में सबसे ज़्यादा हैं। अब इसी अपराध का गुनहगार महाराष्ट्र मंत्रालय भी हो गया है। सामान्यतौर पर हम अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ते रहते हैं कि गृह कलह से ऊबकर युवती ने आग लगाकर की आत्महत्या, कर्ज में फंसे किसान ने की आत्महत्या यानि किसी न किसी समस्या से ग्रसित इंसान जब मौत को गले लगाता है तो कहीं न कहीं वो उस व्यवस्था का शिकार हो जाता है, जिसका वो सामना नहीं कर पाता। कुछ इसी तरह की समस्यायें जैसे भ्रष्टाचार, घोटाला, अवैध वसूली जैसी फाइलों से मंत्रालय ग्रसित हो गया तब मंत्रालय ने आग लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश की। यानि अब महाराष्ट्र में आम इंसानों की तरह महाराष्ट्र मंत्रालय भी अग्निदाह के लिए निकल पड़ा है।


मंत्रालय में लगी आग----- 21 जून को दोपहर 2 बजकर 40 मिनट का वक़्त था। उमस भरी दोपहर, खचाखच भरा मंत्रालय, मुख्यमंत्री समेत अधिकांश मंत्रियों की मीटिंग्स चल रही थी। पसीने से तर आम लोग अपने कामकाज के चक्कर में एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर की परिक्रमा कर रहे थे। तभी 55 वर्षीय इस मंत्रालय का सब्र का बांध टूट गया और चौथी मंज़िल के आदिवासी विकास मंत्री बबनराव पाचपूते के दफ्तर से अग्निप्रवेश हो गया । मंत्रालय लकड़ी के फर्नीचर से सुसज्जित है। लिहाजा अग्नि देवता को मंत्रालय लीलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा, और देखते ही देखते मंत्रालय धू-धू कर जलने लगा। आठ करोड़ जनता को संचालित करने वाला मंत्रालय चौथी मंजिल से छठी मंजिल को जला बैठा। मंत्रियों के भारी भरकम बजट से बनने वाले ये दफ्तर चंद समय में आग के आगोश में समाते चले गये। यह मंत्रालय है जहाँ भ्रष्टाचार को शिष्टाचार में पूजा जाता है। मंत्रालय में मंत्रियों की योजनायें भ्रष्टाचार और घोटालों से लबालब भरी गठरियों को रखने की जगह जब कम पड़ गयी, समाज कल्याण विभाग जनता का कम मंत्री जी का कल्याण ज़्यादा कर रहा हो, सहकार विभाग मंत्रियों का मनचाहा मैदान बन गया हो, नगर विकास विभाग बिल्डरों का चारागाह बन गया हो, आवास मंत्रालय मुनाफाखोरी का अड्डा बना दिया गया हो, मुख्यमंत्री का कार्यालय खुद किसी मरियल से कम न हो, क्योंकि सबसे ज़्यादा फाइलें मुख्यमंत्री के पास हैं, जिन पर मुख्यमंत्री महोदय को एक चिड़िया (हस्ताक्षर करना) बैठाना है। गृह मंत्रालय की नपुंसकता है कि सैकड़ों बेगुनाह भारतीय नागरिकों को कीड़े-मकोड़ों की तरह मारने वाला कसाब दिनों दिन पहलवान होता जा रहा है। बेशर्मी की हद तो तब पार हो जाती है जब डिजॉस्टर मैनेजमेंट भी आग में खाक हो जाता है। डिजॉस्टर मैनेजमेंट जिसका काम पूरे प्रदेश में राहत देना होता है, लेकिन वो खुद अपना घोसला नहीं बचा सका। कई ऐसे विभाग हैं, जिससे आम जनता को कोई फायदा नहीं है। किसान महंगाई के रफ़्तार से आत्महत्या कर रहे हैं। आम नागरिक भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फड़फड़ा रहा है। कबीरदास जी ने भी लिखा है कि “ दुर्बल को न सताइये, जाके मोटी हाय, मुई खाल की स्वास से सार भसम होई जाये ” यानि बेगुनाह आम नागरिकों को जब बेवजह परेशान किया जाये तो ये उनकी “आह” है जो मंत्रालय को लग गयी, और जब मंत्रालय लालाफीताशाही के कुकर्मों से बाहर नहीं निकल पाया तब मंत्रालय ने आग लगा कर आत्महत्या करने की कोशिश की।

अध्याय अभी यहीं पर ही नहीं खत्म होता है। भ्रष्टाचार और घोटालों से सम्बन्धित फाइलें भले ही राख हो गयीं हों, इसका मतलब ये नहीं है कि भ्रष्टाचार और घोटालों का खाता (Account) बंद हो गया हो। बल्कि अब ब्याज़ सहित नये सिरे से खाता खुलने के चांस बढ़ गये हैं।

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