राम और रावण भी
अपने समय के प्रबुद्ध राजनीतिकार थे। उन्होंने भी अपनी राजनीति की बदौलत ही वंश,
या प्रजा की रक्षा हेतु काम किये। यानी रामायण में वो सभी आयाम हैं, जो एक
स्वस्थ्य समाज के लिए शासन करना, समाज का निर्धारण करना, असुर शक्तियों से निपटना यह
सब कुछ निहित है। अब इस आलेख में राम,
रावण और मोदी की राजनीतिक चाल का विश्लेषण करके यह बताने का प्रयास करुंगा कि
राजनीति होती क्या है ? क्या है नीति! और क्या है राज ?
तो सबसे पहले
भगवान श्री राम के राजनीतिक जीवन पर चर्चा ---
मर्यादा
पुरुषोत्तम राम --- भगवार राम को कई नामों से पुकारा गया है, वो
भगवान तो थे ही, लेकिन एक कुशल राजनीतिक भी थे। राम के राजनीतिक जीवन को समझने के
लिए सीता परित्याग और अश्वमेध यज्ञ नामक दो घटनाएं राजनीतिक जीवन को समझने के लिए
पर्याप्त हैं। कहते हैं लंका जीतकर जब राम वापस अयोध्या आये तो कुछ समय बाद राम ने
लक्ष्मण को आदेश दिया कि माता सीता को वापस वन में भेज दो। लक्ष्मण ने मना कर
दिया, तो भगवान राम ने लक्ष्मण को राज धर्म का आदेश याद दिलाया और इसे अनिवार्य
बताया। सवाल यह है कि आखिर राम ने सीता को वन में क्यों भेजा, अब यहां पर समझने की
बारी है। माता सीता जब वन में गई और लक्ष्मण ने कहा कि अब हम तुमको यहीं पर छोड़कर
जा रहे हैं तो माता सीता रोने लगी और नदी में अपनी जीवन लीला समाप्त करने के बारे
में सोच-विचार कर रही थी, तभी उनकी नजर महर्षि बाल्मीकि पर पड़ गई और बाल्मीकि के
आश्रम में सीता रहने लगी। जहां पहले से ही कई देवियां वास करती थी। बाल्मीकि
पशोपेश में फंस गए कि रामायण में अभी और क्या लिखना शेष है ? सीता को वापस वन भेजने में राम
का क्या उद्देश्य है ? वो इस गुत्थी को सुलझाने में लगे हुए
थे कि तभी पता चला कि सीता ने दो पुत्रों को जन्म दिया । बाल्मीकि प्रसन्न हुए और
बच्चों का नामकरण लव और कुश में किया। वो लगे बच्चों को शिक्षा-दीक्षा देने में।
बच्चों को शस्त्रभ्यास करते हुए 11 साल गुजर गये थे। दोनो लड़के शिक्षा-दीक्षा में
निपुण हो गये थे । उसी समय भगवान राम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा बाल्मीकि के आश्रम
में आया। लड़कों ने देखा कि अश्व के गले में एक संदेश लिखा है, पढ़ने पर ज्ञात हुआ
कि इस अश्व को जो पकड़ेगा या बांधेगा उसे युद्ध करना पड़ेगा। लव और कुश इसी फिराक
में थे, कि इतने साल से सीख रहे हैं, आखिर विद्या कब काम आयेगी। शत्रुघ्न ने युद्ध
न करने के लिए लड़कों को समझाया, लेकिन आखिर लड़के कहां मानने वाले थे युद्ध शुरु हुआ, लक्ष्मण मूर्छित हो गए। क्रमश: सुग्रीव, विभीषण भी लव कुश से पराजित हो गये। आयोध्या से लक्ष्मण आये युद्ध
के लिए। लक्ष्मण भी पराजित हो गये। यह दृश्य हनुमान भी देख रहे थे, तभी हनुमान ने
ध्यान किया। ध्यान में उन्हें पता चला कि भगवान राम के ये दोनो लड़के हैं। आखिर
में भगवान राम स्वयं आये और लड़कों से अश्व को छोड़ने के लिए कहा। लड़कों ने कह
दिया युद्ध करो। भगवान राम अपने धनुष बाण चढ़ाये ही थे कि महर्षि बाल्मिकी प्रकट
हो गये और राम को कहा कि राम! बच्चों से मचलना आपको शोभा नहीं देता। माना कि राज हठ होता है, किंतु उससे
बाल हठ टकराये तो राज हठ को पीछे हट जाना चाहिए। राम ने बाल्मीकि की आज्ञा को
शिरोधार्य करते हुए अपने कदम वापस खीच लिये। महर्षि के कहने पर बालकों ने अश्व को
मुक्त कर दिया। तब लव ने भगवान राम से एक प्रश्न पूछने की आज्ञा मांगी। राम ने कहा
पूछो। लव ने कहा – जिस सीता ने स्वर्णिम लंका को तिनके के समान समझा, चक्रवर्ती
सम्राट राजसी ऐश्वर्य को तिलांजलि दी। कांटों के पथ पर नंगे पांव छाया की तरह आपकी
अनुगामिनी रही, अग्नि परीक्षता सीता का परित्याग क्यों किया ? उनका अपराध क्या था ?
राम
ने समझाया –
बच्चों! वह थी राजनीति! राजनीति के सूत्र अत्यंत
सूक्ष्म होते हैं। जिन्हें बड़े होने पर तुम समझोगे। सीता परित्याग
के माध्यम से उन्होंने महर्षि के दिव्यास्त्रों को प्राप्त कर लिया। चक्रवर्ती
सम्राट उन शस्त्रों की भिक्षा तो मांग नहीं सकता था। वो दिव्य शास्त्र ऋषि के लिए
भार स्वरूप हो चुके थे। अनावश्यक रूप से भजन छोड़कर उधर ही ध्यान दिया करते थे कि
कोई उनका दुरुपयोग न कर दे। वे सारे दिव्य शास्त्र उन्हें मिल गये। बच्चों के पालन-पोषण
के लिए मां से श्रेष्ठ संरक्षिका विधाता की सृष्टि में कोई आज तक है ही नहीं।
उन्होंने सोचा, सिंहासन की अपेक्षा वन में बच्चों की देख-रेख करना सीता के लिए
अधिक श्रेयस्कर है। देखरेख सीता से हो रही थी और
विद्या अध्ययन गुरुदेव से। यह थी राम की सूक्ष्म राजनीति। परित्याग तो उन्होंने
सीता का किया ही नहीं।
रावण की
राजनीतिक चाल – राम रावण के
युद्ध के बाद जब राम ने लक्ष्मण को रावण के पास राजनीति के गुर सीखने के लिए भेजा
तो पहली बार लक्ष्ण को कुछ नहीं मिला, क्योंकि राम लक्ष्मण रावण के सिर के पास
खड़े थे, वापस आ गये। राम ने रावण के चरणों के पास खड़े होने के लिए कहा – जब
लक्ष्मण मरणासन्न अवस्था में रावण के चरणों के पास खड़े हुए तो रावण के शरीर में
अचानक बिजली दौड़ गई और लक्ष्मण पर झपटकर कहा कि तुम अगर राम के अनुज न होते तो
मैं तुम्हें मार देता। इसलिए राजनीति की पहली शिक्षा यह है कि शत्रु चाहे मरणासन्न हो या
मर ही क्यों न गया हो जब भी जाओ तो सावधान मुद्रा में ही जाओ। लक्ष्मण
ने व्यंग्य करते हुए कहा – उपदेश तो बहुत अच्छा कर लेते हो, किंतु नीति का पालन
आपसे नहीं हो सका। एक स्त्री के व्यामोह में अपने वंश का नाश करवा डाला। रावण ने
समाधान करते हुए कहा – नहीं लक्ष्मण ! यह तुम्हारी भूल है। वंश की रक्षा के लिए ही मैने विभीषण को
राम की शरण में जाने के लिए विवश कर दिया था। लक्ष्मण ने कहा – क्या लातों से
मारकर भेजने का अच्छा तरीका था ? रावण ने कहा – नहीं लक्ष्मण
! यदि मैं प्रेम से भेजता तब यह रहस्य कुछ लोग जान जाते। मेरा
अभीष्ट पूर्ण न होता। राजनीति का नियम है कि योजना
किसी पर भी प्रकट न हो। वह न समझ में आये और उसके द्वारा जो सिद्ध होने वाला कार्य
है वह सामने दिखाई पड़े। इसलिए मैंने विभीषण को प्रताड़ित कर निष्कासित
किया। मैं उसे बंदी गृह में भी तो डाल सकता था। लक्ष्मण ने कहा- चलिए मान भी लेते
हैं कि वंश की सुरक्षा के लिए आपने अपनी योजना के अनुसार ही भेजा था। तो कल विभीषण
पर मरणान्तक शक्ति का प्रहार क्यों किया ? रावण ने कहा –
लक्ष्मण ! मुझे संदेह था कि राम मेरे वंश की रक्षा कर पायेंगे
या नहीं, इसी की परीक्षा के लिए मैंने शक्ति का प्रहार किया। राम जी ने अपने
वक्षस्थल पर उस शक्ति को झेल लिया। इससे मैं आश्वस्त हो गया कि अब मेरा वंश
सुरक्षित है। लक्ष्मण ! मेरे द्वारा पहले किये गये युद्ध
शक्ति प्रहार के पश्चात किये गये युद्ध कौशल में अंतर तो तुमने देखा ही होगा।
लक्ष्मण ने कहा – हां राजन! शक्ति प्रहार के पश्चात का
संग्राम देखकर संदेह होने लगा था कि कभी भी आप मरेंगे ही नहीं। रावण ने कहा – यही
उसका कारण था कि मेरा वंश सुरक्षित हो गया। इसलिए जितने भी दिव्य शास्त्र मैने
छिपा रखे थे, सभी मैने उड़ेल दिये। मैं जानता था कि रामजी का तो कुछ बिगड़ने वाला
है नहीं है। व्यर्थ ही इतने अस्त्र-शस्त्र का संग्रह क्या करना है ? कम से कम लोग यह भी तो देख लें कि रावण कितना पराक्रमी है। दिव्यास्त्रों
का ज्ञाता है। राम से युद्ध का निर्णय तो मैंने शूर्पणखा की सूचना से ही कर लिया
था। रावण राम को भगवान न मानने का अभिनय करता था। रावण आगे कहता है कि – हे
लक्ष्मण ! लंका के सभी निवासी मेरा अनुसरण करते थे। हमने पाप
किया और सबसे कराया। मैंने सोचा – क्यों न प्रभु के धाम का मार्ग सबको सुलभ करा
दूं। इसलिए पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, इत्यादि सभी को मैंने राम के बाणों के समक्ष
धकेल दिया। मैं ज्योतिष का भी आचार्य हूं। मुझे ज्ञात था कि आयु के कितने दिन शेष
है ? जाना तो पड़ेगा ही। स्वर्णिम लंका कब तक हमारी रहेगी ?
इसको तो छूटना ही था। प्रश्न था कि भगवान के धाम जाऊं या नरक में ? धाम के लिए हमने मार्ग प्रशस्त कर लिया। लक्ष्मण !
तुम धाम जाओगे तो वहां मैं तुमसे मिलूंगा। यह
राजनीति थी लक्ष्मण। न हमने विभीषण का अपमान किया न माता जी का अपहरण, हमें तो
अपने लक्ष्य की सिद्धी करनी थी। लक्ष्मण
ने लौटकर राम को वृतांत सुनाया और कहा भैया ! वह तो महान राजनीतिज्ञ है। उसने तो माता सीता का हरण किया ही नहीं। उसने तो अपना लक्ष्य पूर्ण कर
लिया। भगवान इस रहस्य को जानते थे। उन्हें संदेहयुक्त अपने ऐसे सेवकों का भी
उद्धार करना ही था।
मोदी की राजनीति
--- मोदी की राजनीति
हो या किसी की भी, सभी अपने अभीष्ट को प्राप्त करने के लिए ही राजनीति करते हैं।
राजनीति के लिए कम से कम 20 साल पहले योजना बनाकर चलना पड़ता है। मोदी भी इस
फार्मूले को अपनाने में पीछे नहीं है। वर्तमान में मोदी के राजनीतिक कदम कब आगे-पीछे
किस दिशा में बढ़ जाते हैं किसी को कानों कान खबर तक नहीं पहुंचती। 2014 के लोकसभा
चुनाव के पहले मोदी लव लेटर लिखना बंद करो की आवाज़ बुलंद कर रहे थे, लेकिन शपथ
ग्रहण समारोह में लव लेटर वालों को न्योता दे दिया। इतना ही नहीं गोपनीय तरीके से
पाकिस्तान जाकर उपहार भी दे आये। इसके बाद जो फैसले हुए वो कभी किसी को पता ही नहीं
चला। नोटबंदी हो, विदेश यात्रा, योगी को मुख्यमंत्री बनाना, ये सभी फैसले सुनते ही
लोग चौंक गये। लेकिन मोदी अपनी रफ्तार से ही आगे बढ़ रहे हैं। उनकी आगे की क्या
रणनीति है, ये किसी को नहीं पता। गोवा में अल्पमत में होते हुए भी भाजपा ने सरकार
बना ली, और उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत में होते हुए भी मुख्यमंत्री ढूंढ़ने में
इतने दिन लग गये। ये सभी राजनीति के अंग हैं। इससे भी बड़ी बात ये है कि विधायकों
ने अपने दल का जो नेता चुना वो भी विधायक दल से बाहर का। यानी मुख्यमंत्री और दोनो
उपमुख्यमंत्री भी विधायक श्रेणी से बाहर के। तो फिर क्या मोदी को राजनीति का
चाणक्य कहा जाये या फिर मोदी ही दूसरे चाणक्य है। अगर वर्तमान परिदृश्य को ही
राजनीतिक चश्मे से विश्लेषण करें तो उत्तर प्रदेश विधान सभा में सभी राजनीतिक दलों
ने चुनाव के पहले ही एक तरीके से सरेंडर कर दिया । यानी सभी दलों ने मिलकर भाजपा
को जिताने में सहायता की। सपा ने अपने घर में गृह युद्ध किया। सुना है कि इस गृह
युद्ध के लिए सात समंदर पार से किसी पॉलिटिकल पॉलिसी के प्रणेता को बतौर फीस देकर
युद्ध कराया गया। यानी सपा ने चुनाव के पहले ही साइकिल को पंचर कर दिया। बहन जी ने
हाथी पर ऐसे महावत बैठा दिये जो हाथी को आगे बढ़ाने में असक्षम थे। तो फिर क्या
घूम फिर कर सवाल यही नाच रहा है कि आखिर मोदी की ऐसी कौन सी राजनीतिक चाल रही जो
माया, मुलायम, अखिलेश जान बूझकर सरेंडर करते नजर आये। परिणाम आने के पहले ही
अखिलेश सिंह ने साइकिल पर हाथी की सवारी का इशारा कर दिया।
प्यार
की गलियों में आई लव यू और सियासी गलियारे में सीबीआई। ये तीन शब्द
मीडिया के लिए जादुई शब्द हैं। यही तीन शब्द राजनीतिक जीवन का भविष्य तय करते हैं।
आईलवयू (नेताओं के सेक्स कांड) और सीबीआई इन
शब्दों के फंदे में कई बड़े नेता फंसे हुए हैं। सवाल यह उठता है कि क्या मुलायम
सिंह ने स्वयं चुनाव के पहले व्यूह रचा। चाचा-भतीजे का झगड़ा, पिता-पुत्र का
झगड़ा। किसी न किसी अभीष्ट फल की प्राप्ति दे रहा था। सियासी गलियारे में कुछ लोग
इसे सकारात्मक पहल में ले रहे थे। कह रहे थे कि इस झगड़े से साइकिल मजबूत हई है तो
फिर क्या झगड़ा भी किसी सीरियल की पटकथा की तरह लिखा गया था। साइकिल और हाथी मैदान
में उतरना भी चाहते हों और कमल खिलने की दुआ भी करते हों । कुछ ऐसे ही चुनाव की
शुरुआत हुई थी। सभी पार्टियों ने खूब प्रचार-प्रसार किया। लेकिन मोदी के आगे सब नतमस्तक
हो गये। मोदी जिधर गये। लाइन वहीं से शुरु हो गई। यदि मोदी ने भोले बाबा की पूजा
की तो साइकिल और पंजे वाले भी बम बम भोले बोलने लगे। यानी हिंदुत्व के चेहरे को
मुखार बिंदु पर लाने के लिए मोदी ने बिल्कुल भी नहीं सोचा कि क्या प्रभाव पड़ेगा,
उल्टे धर्मनिरपेक्ष विचार धारा वाले भी हर हर बम बम और हवन यज्ञ पर आ गये। तो क्या
मोदी की रणनीति भी वही है जो भगवान श्री राम ने किया कि राजनीति में योजना प्रकट न
हो, लेकिन परिणान सामने होना चाहिए। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पहले सियासी
गलियारे में कुछ ऐसी सोच थी कि वर्तमान परिदृश्य में देश की राजनीति को अगर समझना
है तो देश के नजरिए से अगर इस दौर में सरकार को परिभाषित किया जाये तो पहले देश
बेचना फिर देश की फिक्र करना और अब फिक्र करते हुए देश को अंगुलियों पर नचाना
सरकार का राजनीतिक हुनर है। यही हुनर था राजनेताओं का। शायद यही वजह है कि जो नेता
पहली बार चुनाव के पहले शपथ पत्र देते थे, दूसरी बार के चुनाव में मूसलाधार बारिश
की तरह संपत्ति बढ़ती देखी गई है। यानी अपना विकास करने के मकसद से अगर देश में
कुछ विकास हो जाता है तो वही विकास की श्रेणी में गिना जायेगा। लेकिन अब तो विकास
की परिभाषा ही बदल गई है। और विकास देश के अंतिम छोर में खड़े नागरिक तक पहुंचाने
का प्रयास किया जा रहा है और पहुंच भी रही है। उज्ज्वला योजना और शौचालय जैसी
योजनाएं गांवों तक पहुंच रही हैं।
तो फिर क्या मोदी की चाल को भी अभी भी राजनीतिक
पंडित नही समझ पा रहे हैं। मोदी की रणनीति के सूत्र अत्यंत सूक्ष्म हैं, जो मीडिया
या राजनीतिक दल को नहीं पता चल पाता। यानी कि त्रेतायुग की राजनीतिक चाल से लेकर
अब कलियुग तक की राजनीतिक चाल का अध्ययन करें तो पायेंगे कि राजनीतिक सूत्र पता नहीं कब एक और एक को जोड़कर दो बना देते
हैं और कब भौतिकी के गेट के सूत्र की तरह 1 और 1 को जोड़ने पर 11 बना देते हैं।
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