Tuesday, December 29, 2009

एन.एस.ई.बनाम बी.एस.ई.

नॅशनल स्टाक एक्सचेंज कारोबारी समय बढ़ाने के नाम पर बाज़ार के कारोबारियों और नियामकों को भ्रम के जाल में फंसा रहा हैं। एन.एस.ई.और बी.एस.ई। में कारोबारी समय बढ़ाने की होड़ नहीं हैं। होड़ अपने वर्चस्व और एकाधिकार को साबित करने की हैं।

दरअसल एन.एस.ई। ने बी.एस.ई को कई मामले में पीछे छोड़ दिया हैं। और उसके बाज़ार हिस्से को हड़प लिया हैं। इसलिए बी.एस.ई इससे पहले की कुछ नया कर पाये एन.एस.ई पूरी तरह से हावी होना चाहता हैं। इस कोशिश में भले ही देश का नुकसान हो। बाज़ार के जानकारों के अनुसार एन.एस.ई ने एक बड़ी रणनीति और अपने एकाधिकार के बल पर दूसरे सभी एक्सचेंजों, निवेशकों, बाज़ार के सहभागियों आदि के अलावा पूँजी बाज़ारके नियामकों को भी ताकपर रख दिया हैं। कारोबारी समय बढ़ाने के पीछे एन.एस.ई एस.जी.एक्स। के साथ तालमेल बिठाने का तर्क दे रहा हैं। ताकि एन.एस.ई एस.जी.एक्स में होने वाले निफ्टी के कारोबार को खींच सके। गौरतलब हैं की सिंगापुर एक्सचेंज (एस.जी.एक्स ) में निफ्टी के वायदा सौदे हो रहे हैं। जबकि इन सौदों के लिए एन.एस.ई ने ही एस.जी.एक्स को लाइसेंस दिया हैं। साफ़ हैं किएन.एस.ई को इससे लाइसेंस फीस और ट्रांजैक्शन फीस के रूप में आमदनी हो रही हैं। सिंगापुर एक्सचेंज सुबह साढ़े सात बजे खुलता हैं । और जब tak भारत के एक्सचेंज खुलते हैं, एस.जी.एक्स में निफ्टी के अच्छे खासे वायदा सौदे हो जाते हैं। अब एन.एस.ई चाहता हैं कि ये सौदे उसके एक्सचेंज पर हों,इसलिए उसने भारतीय एक्सचेंज सुबह नौ बजे खुलने का राग अलापने लगा हैं। और सेबी और ब्रोकरों के सामने आवाज़ उठाना शुरू कर दिया हैं। कि भारत के सौदे एस जी एक्स में जा रहे हैं। एन.एस.ई चाहता तो एस.जी.एक्स के साथ मिलकर निफ्टी के अनुबंधों को संशोधित करके भारतीय समय के अनुकूल बना सकता था। और यदि एस.जी.एक्स को इसमें कोई एतराज होता तो एन.एस.ई उक्त अनुबंध को रद्द भी कर सकता था। लेकिन वह ऐसा नहीं कर रहा हैं।
एन.एस.ई ने अपने हित में सेबी को सुबह नौ बजे एक्सचेंज खोलने का प्रस्ताव किया हैं। जबकि एस.जी.एक्स भारतीय समय से ढाई घंटे पहले खुलता हैं। सिंगापूर एक्सचेंज में नौ बजे खुलने के समय भारत में सुबह साढ़े सात बजे होते हैं। सपष्ट हैं भारत के एक्सचेंजों के ९ बजे खुलने पर भी सिंगापुर के ढाई घंटे के सौदे को एन.एस.ई कवर नहीं कर पायेगा।
यदि कवर हो भी जाए तो इससे देश को क्या हाशिल होगा? सिवाय सट्टेबाजी के वर्चस्व की इस लड़ाई का खामियाजा आम निवेशकों, छोटे कारोबारियों और कर्मचारियों को ही भुगतना हैं। ट्रेडिंग बढ़ने से फ़ायदा केवल विदेशी निवेशकों और एक्सचेंजों को ही होगा। इसलिए शेयर बाजारों में कारोबारी समय बढ़ाना कतई उचित नहीं होगा।





Tuesday, December 15, 2009

तेलंगाना जैसी पाइप लाइनों में भड़की आग

देश में २९ वें राज्य के रूप में तेलंगाना के उदय होने से तेलंगाना जैसी पाइप लाइनेगरम होना शुरू हो चुकी हैं। जिस पाइप लाइन से पहले धुंआ निकलता था। और पृथक राज्य बनाए जाने की मांग शैनः शैनः हो रही थी। अब वहाँ चिंगारी निकालनी शुरू हो गयी हैं। एक ओर जहाँ महाराष्ट्र में विदर्भ को अलग कराने के लिए बीजेपी ने आन्दोलन को राशन पानी देना शुरू कर दिया हैं। तो उत्तर-प्रदेश में मायावती ने भी हरित प्रदेश और बुंदेलखंड को पृथक राज्य बनाये जाने की मांग को हवा पानी देना शुरू कर दिया हैं। मायावती ने तो प्रधानमन्त्री को पत्र लिखकर अलग राज्य बनाये जाने की मांग भी कर डाली हैं।
दरअसल तेलंगाना को अलग राज्य बनाए जाने की हरी झंडी मिलना जनाकांक्षाओं की जीत हैं। चंद्र शेखर राव के तेजस्वी और जोशीले नेतृतवमें केवल आठ वर्षों में तेलंगाना नेतृत्व अपनी लक्ष्य प्राप्ति तक जा पहुचा। और विदर्भ, बुंदेलखंड और हरित प्रदेश को बनाए जाने के आन्दोलन में नयी जान आ गयी। अगर तेंगाना के बारे में जाने तो तेलंगाना का तात्पर्य हैं - तेलगू की भूमि। महाभारत में तेलंगाना के लिए तेलिंगा राज्य का जिक्र किया गया हैं। और यहाँ के निवासियों को तेल्वाना से संबोधित किया गया हैं। माहाभारत और रामायण दोनों में तेलंगाना का उल्लेख मिलता हैं।
वैसे पृथकका आन्दोलन १९६९ में शुरू हुआ था। लेकिन इसे दबा दिया गया। १९९८ के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने एक वोट दो राज्य का नारा देकर आन्दोलन को तेल देना शुरू कर दिया। २००१ में केचंद्रशेखर राव के नेतृत्व में तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन हुआ। आन्ध्र प्रदेश विधान सभा की २९४ सीटों में से ११९ सीटें तेलंगाना की हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश की ४२ लोकसभा सीटों में से १७ तेलंगाना की हैं। राव के आमरण अनशन ने केन्द्र सरकार की हवा निकल दी। राव के दृढ विश्वाश और फौलादी इरादों की बदौलत मनमोहन सरकार को अलग राज्य बनाये जाने का सिगनल देना पड़ा॥
जाहिर हैं दिल्ली दरबार के सिग्नल देते ही नागपुर में चल रहे शीतकालीन सत्र में रोशनी की आस जाग गयी। और मायावती ने भी केन्द्र सरकार के पाले में यार्कर गेंद फेंक दी। क्योंकि राहुल बाबा बुंदेलखंड का गुणगान करते की मायावती भंजाने के फिराक में जुट गयी।

अब एक नजर डालते हैं की पाइप लाइन में कितने हैं तेलंगाना-
बुंदेलखंड - पिछले ५० साल से अलग बुंदेलखंड बनाये जाने को लेकर आन्दोलन चल रहा हैं। इलाके की आबादी तकरीबन ६ करोड़ से ऊपर हैं इसका कुछ हिस्सा उत्तर परदेश का हैं तो कुछ मध्य प्रदेश का हैं। अपार खनिज संपदा होने के बावजूद यह इलका काफ़ी पिछड़ा हुआ हैं और गरीब हैं। यहाँ किसानों के नाम पर अलग राज्य की मांग उठती रही हैं।
पूर्वांचल - उत्तर मध्य भारत का यह हिस्सा यूंपी के पूर्वी छोर पर बसा हैं। यह उत्तर में नेपाल पूर्व में बिहार दक्षिण में मध्य प्रदेश बुंदेलखंड क्षेत्र और पश्चिम में यूपी के अवध क्षेत्र से लगा हुआ हैं। पूराव्चल के तीन भाग हैं पश्चिम में अवधी क्षेत्र, पूर्व में भोजपुरी और दक्षिण में बुंदेलखंड क्षेत्र।
विदर्भ - पूर्वी महाराष्ट्र का यह इलाका अमरावती और नागपुर डिवीजन से मिलकर बना हैं। यहाँ अलग राज्य की मांग के पीछे राज्य सरकार द्वारा क्षेत्र की उपेक्षा बड़ा कारन हैं। एन.के.पी साल्वे और वसंत साथे अलग राज्य की मांग के हक़ में हैं। लेकिन राजनीतिक हलकों ने इसकी खास रुचि नहीं दिखाई। हालाँकि युति में बीजेपी ने अलग राज्य बनाये जाने की मांग को जोर दिया हैं। लेकिन शिवसेना संयुक्त महाराष्ट चाहती हैं।

हरित प्रदेश - पश्चिम यूपी के जिलों को मिलाकर अलग हरित प्रदेश या पश्चिमांचल बनने की मांग उठती रही हैं। हालाँकि १९५५ में बी आर अमेडकर ने तीन हिस्सों में बांटने की वकालत की थी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पर अलग-अलग राज्य बनाये जाने की मांग आज भी जिन्दा हैं। और इसे अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल पुरजोर तरीके से तेल पानी दे रही हैं।
बोडोलैंड - असममें अलग राज्य बोडोलैंड के गठन की मांग ६० के दशक से चली आ रही हैं। बोडोलैंड की सीमायें ब्रम्हपुत्र नदी के उत्तरी छोर से लेकर भूटान और अरुणाचल प्रदेश से लगे तराई वाले इलाके तक हैं। इलाके की ज्यादातर आबादी बोडो भाषी हैं।
रायलसीमा- आन्ध्र प्रदेश के इस इलाके में कुरनूल, कडपा,अंतपुर,चित्तूर,नेल्लोर और प्रकाशम् जिले का कुछ क्षेत्र आता हैं। इस इलाके से राज्य के कई सी एम् रहे चुके हैं। इनमें वाई.एस आर रेद्द्दी और चंद्र बाबू का नाम भी शामिल हैं।

सौराष्ट्र- गुजरात के इस अंदरूनी हिस्से की अलग राज्य के गठन की मांग ज्यद्फातर बुलंद नहीं रही। इसकी वजह लोगों की एक्जुता और लोगों की सम्पन्नता भी रही हैं। साथ ही सौराष्ट्र में आम गुजराती बोली बोली जाती हैं। और संस्कृति और परम्परा भी आम गुजरती की तरह ही हैं।
मिथिलांचल- नेपाल से सटे कुछ इलाकों के अलावा बिहार का आधे से ज्यादा इलाका मिथिलांचल क्षेत्र में आता हैं। इसके बड़े शहरों में जनकपुर, दरभंगा,मधुबनी,समस्तीपुर,मधेपुरा,बेगुसराय,सीतामढी,वैशाली,मुंगेर शामिल हैं। मिथिलांचल मूल रूप से मिथिली भाषी इलाका हैं। अलग पारम्परिक लिपि होने के कारण मैथिली बोलने वालों की तादाद ४.५ करोड़ हैं।
गोरखालैंड- हालांकि दार्जिलिंग गोरखा हिल कौंसिल के तहत गोरखा लैंड को कुछ स्वायत्ता मिली हुयी हैं। पर दार्जलिंग और आसपास के क्षेत्र के लोगों की आक्शान्यें पूरी नहीं हो सकी हैं। यही वजह हैं की एक अलग राज्य मांग यहाँ जोर पकड़ रही हैं। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा इस मान का झंडा बुलद किए हुए हैं।
कुर्ग- कर्नाटक में कुर्ग राज्य बनाने की मान मूलतः इस प्रदेश की संस्कृति विशिष्टता के कारन हैं.बांकी जगह की तरह यहान्न अलग राज्य की मांग के लिए भेदभाव नहीं हैं। हालाँकि ५० के दसक में इसके गठन की मांग उठाती रही हैं। पर इसने कभी मुखर रूप नहीं लिया। शायद इसकी वजह इस क्षेत्र का अधिक संपन्न होना भी रहा।
तुलुनादू-यह कर्नाटक और केरल का वह इअलाका हैं जो अपनी अलग संस्कृति और भाषाई पहचान रखता हैं। तुलु भाषी लोगों की संस्कृति कर्नाटक से काफी भिन्न हैं। क्षेत्र के वासियों की पहचान को बचाने और उपेक्षा की भावना को ख़त्म करने के लिए कर्णाटक और केरल सरकार ने तुलु साहित्य अकादमी भी बनाई हैं।