Tuesday, July 6, 2010

मनमोहन माफ़ कर दो गलती मारे से हो गई

देश की बागडोर अर्थशास्त्री के हाथ में हैं। अर्थशास्त्र ही इतना पेचीदा हो गया है किइस शास्त्र में कितने पेंच फंसे हुए हैं। ये तो अर्थशास्त्री ही जाने। लेकिन भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र और सभी शास्त्रों की कुंडली मारे बैठे इस अर्थशास्त्र ने देश कि आम जनता के बीच आतंक का अर्थशास्त्र बन बैठा हैं। जब भी कोई गृहणी घर में खाना बना रही होती हैं। तो उसे ऐसा लगता हैं कि घर में खाना नहीं बना रही बल्कि गणित की परीक्षा दे रही हैं।
कहते हैं यूपीए आई महंगाई लाई। उम्मीद थी कि देश के प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह अपने अर्थशास्त्र के तीर से महंगाई को मारेंगे। लेकिन मनमोहन सिंह जी का ब्रम्हास्त्र फेल हो गया। और महंगाई मारने के बजाय आंकड़े बाजी का खेल शुरू हो गया । यानी कहीं न कहीं लगता है कि मनमोहन सिंह,प्रणब मुखर्जी और मोंटेक सिंह अहूलवालिया (जो देश के अर्थशास्त्री जनक हैं ) अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल आंकड़े बाजी का खेल खेलने में कर रहे हैं। शायद यही वजह है कि चीते कि रफ्तार से भाग रही महंगाई पर ये बूढ़े शेर हाँफते नज़र आ रहे हैं।
हाल ही में महंगाई ने जिस तरह से अपना रंग दिखाया हैं उससे विपक्ष में उबाल आ गया हैं। और जब सरकार ने तेल के दाम गरम कर दिए हैं तो ५ जुलाई को पूरा देश खौलने लगा देश कि जनता खून खौल रहा हैं और माकपा ने ' पेट्रोल उत्पादों kee कीमत-झूठों के पीछे छुपा सच' नामक पुस्तिका जारी कर दी हैं । अगर इस पुस्तिका में लिखी हुयी बातें सच हैं तो इसका मतलब हाथ अब भारत का हाथ नहीं बल्कि सात समंदर पार का हाथ हैं।
दरअसल इस पुस्तिका में माकपा ने सारे तथ्य गिनाये हैं कि सरकार किस तरह से जनता से चालबाजी कर रही हैं। माकपा का आरोप है कि सरकार पेट्रोलियम क्षेत्र की सरकारी कम्पनियों को डुबोना चाहती है। ताकि देश में निजी क्षेत्र और विदेशी कम्पनियों का वर्चस्व स्थापित हो सके। वामपंथी नेताओं ने कहा है की देश की किसी भी तेल कंपनी को हाल के वर्षों में कोई घटा नहीं हुआ हैं। बल्कि साल २००८-०९ में इंडियन आयल कारपोरेशन को २९५० करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ हैं। ३१ मार्च २०१० को समाप्त वित्तीय वर्ष में आईओसी को शुद्ध मुनाफा १०९९८ करोड़ रुपये का हुआ हैं। एचपीसी और बीपीसी को क्रमशः ५४४ और ८३४ करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया हैं। इसके अलावा माकपा ने ये भी दावा किया हैं क़ि सरकार सरासर झूठ है पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्यवृद्धि पर सरकार ५३,००० करोड़ रुपये का बोझ सहने को मजबूर होगी । २००९-१० में पेट्रोलियम सेक्टर द्वारा कर,ड्यूटी,लाभंस इत्यादि के रूप में सरकारी खजाने में ९०,000 करोड़ जमा हुए । २०१०-११ में सरकार को १,२०,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का आय होने का अनुमान हैं । पिछले दो सालों में कच्चे तेल की कीमत ७० पैसा प्रति लीटर बढ़ी है। जबकि सरकार ने पेट्रोल में साढ़े छह रुपये और डीजल में साढ़े चार रुपये की बढ़ोत्तरी की हैं। वाम नेताओं ने पूछा हैं क़िपिछले तीन महीने ,में विश्व बाज़ार में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुयी तो फिर यह ताज़ा मूल्य वृद्धि क्यों की गई ? दुनिया के कई देश पेट्रोलियम पदार्थ खरीदते हैं और अपने यहाँ रिफाइन व् प्रोसेस करने क़ि जहमत नहीं उठाते। यदि यह देश अपने यहाँ इन पदार्थों का वैश्विक भाव पर बेंचे तो बात समझ में आती हैं लेकिन भारत अपनी ज़रुरत का ८० फ़ीसदी कच्चा तेल खरीदता है। जिसे भारत में ही रिफाइन किया जाता हैं। ऐसी हालत में कच्चे तेल की कीमत और रिफाइनरी लागत जोड़कर ही तेल का दाम तय किया जाना चाहिए। लेकिन सरकार चालाकी से तैयार पेट्रोल व डीजल का वैश्विक मूल्य यहाँ की जनता पर थोपना चाहती हैं। अब ऐसे में सरकार को माकपा के आरोपों का जवाब देना चाहिए। माकपा के इन आरोपों पर भरोसा किया जा सकता हैं क्योंकि माकपा सरकार को लम्बे समय तक बहार से समर्थन देती रही हैं। इसलिए वह संप्रग का सारा घालमेल जानती होगी। ऐसे में सरकार से यही कहना होगा क़ि दाई से पेट नहीं छिपाया जा सकता हैं। लेकिन जनता को तो अब यही गाना याद आ रहा हैं की छत पे सोया था बहनोई जीजा समझकर सो गई राना राना जी माफ़ करना गलती मारे से हो गई। लिहाजा अब आम आदमी की पैरवी करने वाली इस सरकार से आज आम आदमी यही कह रहा क़ि मनमोहन जी माफ़ कर दो इस बार गलती से आपको सत्ता क़ि चाभी दे दिया। इसलिए माफ माफ़ माफ़ कर दो .....................