Thursday, May 24, 2012

तेल में लगी आग का अंकगणित

संप्रग सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल की तीसरी वर्षगांठ पूरे होते ही मंहगाई की मार झेल रही जनता को जोरदार झटका देते हुए पेट्रोल के भाव 7.50 पैसे प्रति लीटर बढ़ा दिए। लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार तेल कंपनियों को फायदा पहुंचाने के नाम पर जनता को लूट रही है या तेल कंपनियों ने अपने फायदे के लिए सरकार को गुमराह किया है...
दरअसल एक ही झटके में की जाने वाली यह अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि है। सरकार का कहना है कि डॉलर के मुकाबले रुपए की विनिमय दर में भारी गिरावट और तेल कंपनियों को हो रहे भारी नुकसान को देखते हुए यह वृद्धि जरूरी हो गई थी। जहां प्रणब मुखर्जी ने इस मामले से पल्ला झाड़ते हुए इसका ठीकरा तेल कंपनियों के सिर मढ़ा है वहीं संप्रग सरकार के सहयोगी दलों ने इस वृद्धि पर नाराजगी जताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है।
मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती है, पेट्रोल के साथ ही सरकार ने एलपीजी, केरोसिन और डीजल के दाम में भी इजाफे की तैयारी ली है। सरकारी सूत्रों के अनुसार एलपीजी के दाम में लगभग 100 रुपए (प्रति सिलेंडर), केरोसिन व डीजल के दाम में 5-7 रुपए प्रति लीटर की बढोत्तरी करने का प्रस्ताव है।
इस समय एलपीजी पर सरकार को प्रति घरेलू सिलेंडर पर लगभग 479 रुपए का घाटा होता है। वहीं, केरोसिन की बिक्री पर सरकार को प्रति लीटर 31.41 रुपए और डीजल की बिक्री पर 13.64 रुपए प्रति लीटर का घाटा हो रहा है।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि 2011 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक प्रमुख तेल उत्पादन कंपनियों जैसे आईओसी को टैक्स भरने के बाद भी 7445 करोड़, एचपीसीएल को 1539 करोड़ और बीपीसीएल को 1547 करोड़ रु. मुनाफा हुआ। इस तरह से देखा जाए तो तेल कंपनियों का घाटा होने का दावा झूठा सिद्ध होता है; साथ ही सरकार डीजल, गैस और केरोसीन पर सब्सिडी देती है तो इन पर घाटे की बात में भी दम नहीं लगता।
पिछले 2 सालों में सरकार और कंपनियों ने मिलकर महंगे क्रूड ऑयल की दुहाई देते हुए पेट्रोल के दाम 14 बार बढ़ाए हैं। सरकार द्वारा 26 जून 2010 को पेट्रोल नियंत्रण मुक्त किया था। तब तेल कंपनियों ने कहा था कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों को ध्यान में रखकर देश में पेट्रोल के दाम तय होंगे।
लेकिन सच यह है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड का दाम 124 डॉलर प्रति बैरल था, तब भी तेल कंपनियां घाटा बता रही थीं, आज क्रूड का भाव 91.47 तब भी घाटा हो रहा है।
सबसे हैरानी की बात है कि पड़ोसी देश जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन में मुद्रा के डॉलर के मुकाबले टूटने पर भी सिर्फ एक या दो बार ही पेट्रोल के दाम बढ़े। आर्थिक रूप से जर्जर हो चुके पाकिस्तान में तो अभी पेट्रोल के दाम घटाने की बात हो रही है।