Wednesday, December 24, 2014

भारत रत्न को क्या-क्या मिलता है?

भारत रत्न को क्या-क्या मिलता है?
भारत रत्न पाने वालों को भारत सरकार की ओर से सिर्फ़ एक प्रमाणपत्र और एक तमगा मिलता है। इस सम्मान के साथ कोई रकम नहीं दी जाती। इसे पाने वालों को सरकारी महकमे सुविधाएं मुहैया कराते हैं। उदाहरण के तौर पर भारत रत्न पाने वालों को रेलवे की ओर से मुफ्त यात्रा की सुविधा मिलती है।
भारत रत्न पाने वालों को अहम सरकारी कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए न्यौता मिलता है। सरकार वॉरंट ऑफ़ प्रिसिडेंस में उन्हें जगह देती है। जिन्हें भारत रत्न मिलता है,उन्हें प्रोटोकॉल में राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति,प्रधानमंत्री,राज्यपाल,पूर्व राष्ट्रपति,उपप्रधानमंत्री,मुख्य न्यायाधीश,लोकसभा स्पीकर,कैबिनेट मंत्री,मुख्यमंत्री,पूर्व प्रधानमंत्री और संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता के बाद जगह मिलती है।
क्या सुविधाएं मिलती है?
वॉरंट ऑफ़ प्रिसिडेंस का इस्तेमाल सरकारी कार्यक्रमों में वरीयता देने के लिए होता है। राज्य सरकारें भारत रत्न पाने वाली हस्तियों को अपने राज्यों में सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। मसलन दिल्ली सरकार डीटीसी बसों में उन्हें मुफ़्त सफ़र करने की सुविधा देती है।
ये पुरस्कार पाने वाले अपने विज़िटिंग कार्ड पर यह लिख सकते हैं, 'राष्ट्रपति द्वारा भारत रत्न से सम्मानित'या'भारत रत्न प्राप्तकर्ता'। सबसे पहला भारत रत्न सी राजागोपालाचारी को दिया गया था। 25 दिसंबर को अटल बिहारी बाजपेयी और मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न का सम्मान दिया जाएगा।
कैसा होता है भारत रत्न
भारत रत्न एक तांबे के बने पीपल के पत्ते जैसा होता है,जो59 मिमी. लंबा, 48मिमी. चौड़ा और 3.मिमी. मोटा होता है। इसमें सामने की तरफ प्लेटिनम से सूरज का चित्र बना होता है। पूरे रत्न की किनारी को प्लेटिनम से बनाया जाता है। भारत रत्न के सामने की तरफ सूरज के चिह्न के साथ हिन्दी में 'भारत रत्न'लिखा होता है। इसके पीछे की तरफ अशोक स्तम्भ का चिह्न बना होता है और साथ में'सत्यमेव जयते'लिखा होता है।
इसके साथ ही एक सफेद रंग का रिबन भी लगा होता है,ताकि इसे आसानी से गले में पहना जा सके।1954 में भारत रत्न35 मिमी. का एक गोल सोने का मेडल था,जिस पर चमकते सूरज के चिह्न के साथ'भारत रत्न'लिखा होता था और पीछे की तरफ अशोक स्तंभ के साथ'सत्यमेव जयते'लिखा होता था। हालांकि,इसके साल भर बाद ही इसका डिजाइन बदल दिया गया था।
यह उपाधि दिसंबर2011 से पहले तक सिर्फ कला,साहित्य,विज्ञान और समाज सेवा में कार्य करने वाले लोगों को दिया जाता था,लेकिन दिसंबर2011 में इसमें संशोधन किया गया। अब भारत रत्न किसी खास क्षेत्र तक सीमित नहीं है। अब किसी भी क्षेत्र में बिना किसी भेदभाव के एक व्यक्ति को उसके काम के लिए भारत रत्न दिया जा सकता है।
कौन देता है भारत रत्न
किसी भी व्यक्ति को भारत रत्न देश के राष्ट्रपति देते हैं। भारत रत्न किसे देना चाहिए,इसके लिए नाम का प्रस्ताव देश के प्रधानमंत्री देते हैं। एक साल में प्रधानमंत्री अधिक से अधिक तीन लोगों को भारत रत्न देने का प्रस्ताव राष्ट्रपति को दे सकते हैं।

Wednesday, November 5, 2014

दातून के इन फायदों को जानिये


आज कल हर घर में दांत साफ करने के लिए लोग टूथब्रश का इस्तेमाल करने लगे हैं। जबकि दातुन के इतने फायदे हैं जिसे जानकर आप टूथब्रश की बजया दातुन का इस्तेमाल करने लगेंगे। दातुन न सिर्फ आपकी सेहत और बौद्घिक क्षमता के लिए बेहतर है बल्कि दातुन धर्म और अध्यात्म की दृष्टि से भी उत्तम बताया गया है। यही कारण है कि व्रत, त्योहार के दिन बहुत से लोग ब्रश की बजाय दातुन से दांत साफ करते हैं।
धार्मिक दृष्टि से दातुन का महत्व इसलिए बताया गया है कि क्योंकि दातुन जूठा नहीं होता जबकि टुथब्रश आप हर दिन नया नहीं प्रयोग करते। एक ही टूथब्रश को धोकर आप कई बार इस्तेमाल करते हैं। इससे ब्रश शुद्घ और पवित्र नहीं रह जाता है। इसलिए व्रत और त्योहार के दिन ब्रश करना शास्त्रों की दृष्टि से उचित नहीं है। जबकि आयुर्वेद के अनुसार दातुन करने का फायदा चौंकाने वाला है।
1 - 
आयुर्वेद में बताया गया है कि दातुन सिर्फ आपके दांतों को ही चमकाता नहीं है बल्कि यह आपकी बौद्घिक क्षमता और स्मरण शक्ति को भी बढ़ता है। जो लोग अपनी याद्दाश्त बढ़ाना चाहते हैं उन्हें अपामार्ग के दातुन से दांतों का साफ करना चाहिए। इससे बुध ग्रह का दोष भी दूर होता है।

2 - 
मसूड़ों और दांतों की मजबूती के लिए बबूल के दातुन से दांत साफ करना बड़ा ही फायदेमंद होता है। बबूल शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करता है। इसलिए ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि शनि दोष से मुक्ति के लिए सुबह शाम बबूल के दातुन से दांत साफ करें।

3 - 
आयुर्वेद में बताया गया है कि 'निम्बश्च तिक्तके श्रेष्ठः'। नीम का दातुन दांतों को ही स्वस्थ नहीं रखता बल्कि इससे पाचन क्रिया और चेहरे पर भी निखार आता है। यही कारण है कि आज भी गांवों में बहुत से लोगों नियमित नीम की दातुन इस्तेमाल करते हैं।

4 - 
आयुर्वेद में बताया गया है कि बेर के दातुन से नियमित दांत साफ करें तो आवज साफ और मधुर हो जाती है 'बदर्या मधुरः स्वरः'। इसलिए जो लोग वाणी से संबंधित क्षेत्रों में करियर बनाने की सोच रहे हैं या इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। यानी अपनी आवाज का कैरियर के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं उन्हें बेर के दातुन का नियमित इस्तेमाल करना चाहिए।

5 -
मार्कण्डेय पुराण में बताया गया है कि 'प्रक्षाल्य भक्षयेत् पूर्वं प्रक्षाल्यैव तु तत्त्यजेत' यानी दातुन करने से पहले और दातून करने के बाद इसे पानी से धो लेना चाहिए। कारण यह है कि बिना धोए दातुन करने से दातुन पर बैठे हानिकारक कीटों से नुकसान हो सकता है। जबकि दातुन करने के बाद इसलिए धोकर फेंकना चाहिए क्योंकि सुबह मुख विषैला होता है इससे इस्तेमाल किए दातून के संपर्क में आने से दूसरे जीवों को नुकसान हो सकता है।

Monday, October 20, 2014

चीन की दीवाली, भारत का दीवाला

चीन की दीवाली, भारत का दीवाला

इस सप्ताह जब आप दीवाली की खरीदारी के लिए बाजार जाएँ तो ज़रा इस स्थिति पर गंभीरता और बारीकी से गौर करें कि क्या आप वही दीवाली मना रहे हैं जो दीवाली मनाने की परंपरा थी? शायद नहीं. आज के दौर में नई दीपावली को चीनी ओद्योगिक तंत्र ने पूरी तरह से बदल दिया है. दीया, झालर, पटाखे, खिलौने, मोमबत्तियां, लाइटिंग, लक्ष्मी जी की मूर्तियाँ आदि से लेकर त्यौहारी कपड़ों तक सभी कुछ चीन हमारे बाजारों में उतार चुका है और हम इन्हें खरीदकर दीवाली के दिन भारत की अर्थव्यवस्था का दीवाला निकाल रहे हैं. ये हालात तब हैं जब चीन का उत्पादन चीन में बनकर भारत आ रहा है किन्तु अब तो स्थिति और अधिक गंभीर हो रही है. गत सप्ताह हमारे प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने अपनी चीन यात्रा के दौरान इस करार पर हस्ताक्षर कर दिया है कि भारत में अब एक चाइनीज ओद्योगिक परिसर बनेगा जहां चीनी उद्योग ही लगेंगे जिन्हें सरकार अतिरिक्त छूट और रियायतें प्रदान करेगी.
यदि आप गौर करेंगे तो पायेंगे कि दीपावली के इन चीनी सामानों में निरंतर हो रहे षड्यंत्र पूर्ण नवाचारों से हमारी दीपावली और लक्ष्मी पूजा का स्वरुप ही बदल रहा है. हमारा ठेठ पारम्परिक स्वरुप और पौराणिक मान्यताएं कहीं पीछें छूटती जा रहीं हैं और हम केवल आर्थिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक गुलामी को भी गले लगा रहें हैं. हमारें पटाखों का स्वरुप और आकार बदलनें से हमारी मानसिकता भी बदल रही है और अब बच्चों के हाथ में टिकली फोड़ने का तमंचा नहीं बल्कि माउजर जैसी और ए के ४७ जैसी बंदूकें और पिस्तोलें दिखनें लगी है. हमारा लघु उद्योग तंत्र बेहद बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. पारिवारिक आधार पर चलनें वालें कुटीर उद्योग जो दीवाली के महीनों पूर्व से पटाखें, झालरें, दिए, मूर्तियाँ आदि-आदि बनानें लगतें थे वे तबाही और नष्ट हो जाने के कगार पर है. कृषि और कुटीर उत्पादनों पर प्रमुखता से आधारित हमारी अर्थ व्यवस्था पर मंडराते इन घटाटोप चीनी बादलों को न तो हम पहचान रहे हैं ना ही हमारा शासन तंत्र. हमारी सरकार तो लगता है वैश्विक व्यापार के नाम पर अंधत्व की शिकार हो गई है और बेहद तेज गति से भेड़ चाल चल कर एक बड़े विशालकाय नुकसान की और देश को खींचे ले जा रही है.
केवल कुटीर उत्पादक तंत्र ही नहीं बल्कि छोटे, मझोले और बड़े तीनों स्तर पर पीढ़ियों से दीवाली की वस्तुओं का व्यवसाय करनेवाला एक बड़ा तंत्र निठल्ला बैठनें को मजबूर हो गया है. लगभग पांच लाख परिवारों की रोजी रोटी को आधार देनेवाला यह त्यौहार अब कुछ आयातकों और बड़े व्यापारियों के मुनाफ़ातंत्र का केंद्र मात्र बन गया है. बाजार के नियम और सूत्र इन आयातकों और निवेशकों के हाथों में केन्द्रित हो जानें से सड़क किनारें पटरी पर दुकानें लगानें वाला वर्ग निस्सहाय होकर नष्ट-भ्रष्ट हो जानें को मजबूर है. यद्दपि उद्योगों से जुड़ी संस्थाएं जैसे-भारतीय उद्योग परिसंघ और भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) ने चीनी सामान के आयात पर गहन शोध एवं अध्ययन किया और सरकार को चेताया है तथापि इससे सरकार चैतन्य हुई है इसके प्रमाण नहीं दिखई देते हैं.
आश्चर्य जनक रूप से चीन में महंगा बिकने वाला सामान जब भारत आकर सस्ता बिकता है तो इसके पीछे सामान्य बुद्धि को भी किसी षड्यंत्र का आभास होनें लगता है किन्तु सवा सौ करोड़ की प्रतिनिधि भारतीय सरकार को नहीं हो रहा है. सस्ते चीनी माल के भारतीय बाजार पर आक्रमण से चिन्ता व्यक्त करते हुए एक अध्ययन में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) ने कहा है, "चीनी माल न केवल घटिया है, अपितु चीन सरकार ने कई प्रकार की सब्सिडी देकर इसे सस्ता बना दिया है, जिसे नेपाल के रास्ते भारत में भेजा जा रहा है, यह अध्ययन प्रस्तुत करते हुए फिक्की के अध्यक्ष श्री जी.पी. गोयनका ने कहा था, "चीन द्वारा अपना सस्ता और घटिया माल भारतीय बाजार में झोंक देने से भारतीय उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है. भारत और नेपाल व्यापार समझौते का चीन अनुचित लाभ उठा रहा है.'
चीन द्वारा नेपाल के रास्ते और भारत के विभिन्न बंदरगाहों से भारत में घड़ियां, कैलकुलेटर, वाकमैन, सीडी, कैसेट, सीडी प्लेयर, ट्रांजिस्टर, टेपरिकार्डर, टेलीफोन, इमरजेंसी लाइट, स्टीरियो, बैटरी सेल, खिलौने, साइकिलें, ताले, छाते, स्टेशनरी, गुब्बारे, टायर, कृत्रिम रेशे, रसायन, खाद्य तेल आदि धड़ल्ले से बेचें जा रहें हैं. दीपावली पर चीनी आतिशबाजी और बल्बों की चीनी लड़ियों से बाजार पटा दिखता है. पटाखे और आतिशबाजी जैसी प्रतिबंधित चीजें भी विदेशों से आयात होकर आ रही हैं, यह आश्चर्य किन्तु पीड़ा जनक और चिंता जनक है. आठ रुपए में साठ चीनी पटाखों का पैकेट चालीस रुपए तक में बिक रहा है, सौ सवा सौ रूपये घातक प्लास्टिक नुमा कपड़ें से बनें लेडिज सूट, बीस रूपये में झालरें-स्टीकर और पड़ चिन्ह पंद्रह रुपए में घड़ी, पच्चीस रुपए में कैलकुलेटर, डेढ़-दो रुपए में बैटरी सेल बिक रहें हैं. घातक सामग्री और जहरीले प्लास्टिक से बनी सामग्री एक बड़ा षड्यंत्र नहीं तो और क्या है?
तिरुपति से लेकर रामेश्वरम तक की सड़क मार्ग की यात्रा में निर्धनता और अशिक्षा भरे वातावरण में इस उद्योग ने जो जीवन शलाका प्रज्ज्वलित कर रखी है वह एक प्रेरणास्पद कथा है. लगभग बीस लाख लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार और सामाजिक सम्मान देनें वाला शिवाकाशी का पटाखा उद्योग केवल धन अर्जित नहीं करता-कराता है बल्कि इसनें दक्षिण भारतीयों के करोड़ों लोगों को एक सांस्कृतिक सूत्र में भी बाँध रखा है. परस्पर सामंजस्य और सहयोग से चलनें वाला यह उद्योग सहकारिता की नई परिभाषा गढ़नें की ओर अग्रसर होकर वैसी ही कहानी को जन्म देनें वाला था जैसी कहानी मुंबई के भोजन डिब्बे वालों ने लिख डाली है; किन्तु इसके पूर्व ही चीनी ड्रेगन इस समूचे उद्योग को लीलता और समाप्त करता नजर आ रहा है. यदि घटिया और नुकसानदेह सामग्री से बनें इन चीनी पटाखों का भारतीय बाजारों में प्रवेश नहीं रुका तो शिवाकाशी पटाखा उद्योग इतिहास का अध्याय मात्र बन कर रह जाएगा.
भारत में २००० करोड़ रूपये से अधिक का चीनी सामान तस्करी से नेपाल के रास्तें आता है इसमें से दीपावली पर बिकनें वाला सामान की हिस्सेदारी लगभग ३५० करोड़ रु. की है. इतनें बड़े व्यवसाय पर प्रत्यक्ष कर निदेशालय की नजर न पड़ना और वित्त, विदेश, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालयों का आँखें बंद किये रहना सिद्ध हमारी शुतुरमुर्गी प्रवृत्तियों और इतिहास से सबक न लेनें की और गंभीर इशारा करता है. विभिन्न भारतीय लघु एवं कुटीर उद्योगों के संघ और प्रतिनिधि मंडल भारतीय नीति निर्धारकों का ध्यान इस ओर समय समय पर आकृष्ट करतें रहें है. दुखद है कि विभिन्न सामरिक विषयों पर हमारी सप्रंग सरकार और इसके मुखिया मनमोहन सिंह चीन के समक्ष बिलकुल भी प्रभावी नहीं रहें हैं और विभिन्न मोर्चों पर चीन के समक्ष सुरक्षात्मक ही नजर आतें रहें हैं तब इस शासन से कुछ बड़ी आशाएं व्यर्थ ही हैं किन्तु फिर भी इस दीवाली के अवसर पर यदि शासन तंत्र अवैध रूप से भारतीय बाजारों में घुस आये सामानों पर और इस व्यवसाय के सूत्रधारों पर कार्यवाही करे तो ही शुभ-लाभ होगा.
(कहीं से प्रप्त हुआ है ये लेख, नाम नहीं मालूम, जागरूकता फैलाने के मकसद से पोस्ट कर रहा हूं...  )

Wednesday, July 30, 2014

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE)

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE)
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज दुनिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है। इसमें करीब 6000 स्टॉक्स लिस्टेड है, जिसमें 30 स्टॉक हैं। सेंसेक्स में शामिल शेयरों में बाजार पूँजी और ट्रेडिंग वॉल्यूम के मुताबिक बदलाव होता रहता है। बीएसई के शेयरों को A, B1, B2, C, F  और Z ग्रुप में बाँटा गया है। ए ग्रुप के शेयर वे हैं जिन्हें कैरी फारवर्ड सिस्टम यानी बदला में शामिल किया गया है। जेड ग्रुप के शेयर ब्लैक लिस्टेड कंपनियों के हैं। एफ ग्रुप फिक्स इन्कम सिक्यूरिटीज यानी डेट मार्केट का प्रतिनिध्व करता है।
सेंसेक्स की तरह बीएसई के कुछ और भी इंडेक्स हैं -----       
= BSE PSU
= BSE MIDCAP
=BSE SMALL CAP
=BSE BANKEX
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE)
1992 में जब हर्षद मेहता घोटाला सामने आया तो बाजार में उथल-पुथल हुई और हजारों निवेशक डूब गये । तब सरकार को एक ऐसे स्टॉक एक्सचेंज की जरूरत हुई जो इन खामियों को दूर करे और पारदर्शी हो । इसी को देखते हुए 1992 में एनएसई की स्थापना हुई और इसे अप्रैल 1993 में स्टॉक एक्सचेंज का दर्जा मिला। जून 1994 में इस पर होल सेल डेट मार्केट में कारोबार शुरू हुआ । नवंबर 1994 में कैपिटल मार्केट सेगमेंट में भी कारोबार शुरू हो गया। जून 2000 में इस पर फ्यूचर एंड ऑपशंस में ट्रेडिंग शुरू हो गई ।
एनएसई में करीब 1500 कंपनियों के शेयर लिस्टेड हैं। एनएसई का प्राइमरी इंडेक्स S & P CN NIFTY शेयर है। एनएसई के ट्रेडिंग सिस्टम को नीट (NEAT) कहते हैं, जिसे नेशनल एक्सचेंज फॉर ऑटोमेटेड ट्रेडिंग ( National Exchange for Automated Treading) कहते हैं।
रोलिंग सेटलमेंट साइकल –  इसमें हर ट्रेडिंग दिन को ट्रेडिंग पीरियड की तरह लिया जाता है और दिन हुए सौदों को टी+ 2 के आधार पर निपटाया जाता है। जैसे कि आज कोई सौदा हुआ है तो परसों उसका सैटलमेंट हो जायेगा । जैसे सोमवार को शेयर बेचे हैं तो बुधवार को उसके एकाउंट में पैसे जमा हो जायेंगे। इसी तरह किसी ने सोमवार को शेयर खरीदे हैं तो बुधवार को उसके डीमैट खातों में शेयरों की डिलीवरी हो जायेगी। इसमें छुट्टी का दिन शामिल नहीं किया जाता। BSE के लिए सोमवार से शुक्रवार और NSE के लिए बुधवार से मंगलवार सैटलमेंट सत्र होता है।
इंडेक्स(Index) – यह बाजार के दिशा का सूचक है। जो यह बताता है कि बाजार किस तरफ जा रहा है। बीएसई का सेंसेक्स और एनएसई का निफ्टी ही दो बड़े इंडेक्स हैं।
प्राइमरी मार्केट – जब कोई कंपनी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए नये शेयर या डिबेंचर जारी करके सीधे निवेशकों से पैसा उगाही करती है तो इसे कहते हैं कि कंपनी प्राइमरी मार्केट से पैसा उगाह रही है।
सेकेंड्री मार्केट – आईपीओ (IPO) के बाद भी कोई कंपनी नये शेयर जारी करके प्राइमरी मार्केट से पैसा उठा सकती है । जब कोई कंपनी एक बार प्राइमरी मार्केट में IPO इश्यू करती है तो कंपनी लिस्टेड हो जाती है । फिर उसी खरीद-फरोख्त को सेकेंड्री मार्केट कहते हैं।
Remark – प्राइमरी मार्केट में कंपनी अपने शेयर सीधे निवेशकों को बेचती है जबकि सेकेंड्री मार्केट में स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से शेयर बेचती है।
बाय टुडे सैल टुमारो – आज खरीदा है तो आप उसे अपनी इच्छा के मुताबिक डिलीवरी मिलने के बाद कभी भी बेच सकते हैं।
इंट्रा डे – खरीदी और बिक्री उसी दिन करनी होती है। 
राइट्स इश्यू – यह शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनी के लिए अतिरिक्त पूँजी जुटाने के जरिया है। राइट्स इश्यू के तहत कंपनी आम निवेशकों के बजाय सिर्फ अपने शेयर धारकों को कंपनी अपने नये शेयर खरीदने का अधिकार देती है । शेयर धारकों के पास कंपनी के जितने शेयर होते हैं उसी अनुपात में उन्हें शेयर जारी किये जाते हैं।
डुअल लिस्टिंग – उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसके तहत कोई कंपनी दो अलग – अलग देशों के स्टॉक एक्सचोजों में खुद को सूचीबद्ध कराती है । जब दो देशों की दो कंपनियों के बीच कारोबार को लेकर समझौता होता है तो डुअल लिस्टिंग के जरिये दोनो ही देशों में इन कंपनियों के शेयर सूचीबद्ध बने रहते हैं।

वोलैटिलिटी (Voliatility) -  बाजार में पल – पल बदलते हवा के रूख को उठा पटक या वोलैटिलिटी कहा जाता है। यानी शेयर की कीमत में आने वाले बदलाव की दर...   

Friday, May 2, 2014

दिल के रोगियों के लिए घरेलू नुस्खे

पीपल के 15 पत्ते लें जो कोमल गुलाबी कोंपलें न हों, बल्कि पत्ते हरे, कोमल व भली प्रकार विकसित हों। प्रत्येक का ऊपर व नीचे का कुछ भाग कैंची से काटकर अलग कर दें। पत्ते का बीच का भाग पानी से साफ कर लें। इन्हें एक गिलास पानी में धीमी आँच पर पकने दें। जब पानी उबलकर एक तिहाई रह जाए तब ठंडा होने पर साफ कपड़े से छान लें और उसे ठंडे स्थान पर रख दें, दवा तैयार।
इस काढ़े की तीन खुराकें बनाकर प्रत्येक तीन घंटे बाद प्रातः लें। हार्ट अटैक के बाद कुछ समय हो जाने के पश्चात लगातार पंद्रह दिन तक इसे लेने से हृदय पुनः स्वस्थ हो जाता है और फिर दिल का दौरा पड़ने की संभावना नहीं रहती। दिल के रोगी इस नुस्खे का एक बार प्रयोग अवश्य करें।

* पीपल के पत्ते में दिल को बल और शांति देने की अद्भुत क्षमता है।
* इस पीपल के काढ़े की तीन खुराकें सवेरे 8 बजे, 11 बजे व 2 बजे ली जा सकती हैं।
* खुराक लेने से पहले पेट एक दम खाली नहीं होना चाहिए, बल्कि सुपाच्य व हल्का नाश्ता करने के बाद ही लें।
* प्रयोगकाल में तली चीजें, चावल आदि न लें। मांस, मछली, अंडे, शराब, धूम्रपान का प्रयोग बंद कर दें। नमक, चिकनाई का प्रयोग बंद कर दें।
* अनार, पपीता, आंवला, बथुआ, लहसुन, मैथी दाना, सेब का मुरब्बा, मौसंबी, रात में भिगोए काले चने, किशमिश, गुग्गुल, दही, छाछ आदि लें।

Tuesday, April 8, 2014

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यूं तो कभी विवादों से मुक्त नहीं रही लेकिन भारत के चुनाव आयोग ने हमेशा इसे सुरक्षित और सही माना। भारत की जनता भी चुनाव आयोग से सहमत है। यदा-कदा राजनेता चुनावों में ईवीएम के खिलाफ बोलते रहे हैं लेकिन किसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी ने इसके खिलाफ कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है।

हर ईवीएम के दो हिस्से होते हैं। एक हिस्सा होता है बैलेटिंग यूनिट जो कि जो मतदाताओं के लिए होता है। दूसरा होता है कंट्रोल यूनिट जो कि पोलिंग अफसरों के लिए होता है। ईवीएम के दोंनो हिस्से एक पांच मीटर लंबे तार से जुड़े रहते हैं। बैलेट यूनिट ऐसी जगह रखी होती जहां कोई वोटर को वोट डालते समय देख ना सके।

इसके अलावा संवेदनशील पोलिंग बूथ पर वोटिंग का सीधा प्रसारण होता है जो कि कहीं से भी देखा जा सकता है। ईवीएम पर अधिकतम 64 प्रत्याशी तक दर्शाए जा सकते हैं। किसी लोकसभा क्षेत्र में 64 से ज्यादा प्रत्याशी होने पर चुनाव आयोग कागज के बैलट का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य है।
ईवीएम अंदर से : 
1. मतदाता वाले हिस्से पर प्रत्याशियों के नाम और उनका क्रमांक या सीरियल नंबर लिखा होता है। नाम एक दो या तीन भाषाओँ में लिखे जाते हैं। जिस इलाके में जो भाषा प्रचलित है उस भाषा का इस्तेमाल होता है। नाम के साथ ही प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह भी होता है। चुनाव चिन्ह उन वोटरों को ध्यान में रख कर बनाए गए हैं जो पढ़ लिख नहीं सकते। चुनाव चिन्हों को लेकर चुनाव आयोग के नियम बेहद सख्त है। मसलन कोई भी प्रत्याशी या पार्टी 'सूअर' या 'नोट की गड्डी' के चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ सकता।

एक ही नाम के एक से ज्यादा उमीदवार होने पर नाम के आगे ब्रैकेट में उम्मीदवार के घर या पेशे के बारे में लिखा जाता है ताकी मतदाता चकराए ना। पहली बार हर ईवीएम में अंतिम बटन नोटा या ऊपर दिए नामों में से कोई नहीं ही होगा।

2. नाम के आगे एक नीला बटन होता है जो वोट देने के लिए दबाया जाता है। जिस खाते में वोट दर्ज हुआ है उस नाम के सामने लगी एक छोटी सी बत्ती भी चमक उठती है। नंबर पहली बार हर ईवीएम पर ब्रेल में नीले बटन के ही बगल में ब्रेल लिपि में उम्मीदवार का सीरियल नंबर लिखा गया है। जो नेत्रहीन उमीदवार ब्रेल नहीं जानते वो अपने साथ किसी सहायक को ले जा सकते हैं।

3. कंट्रोल यूनिट : जहां वोट दरअसल दर्ज होते हैं। ईवीएम का यह हिस्सा पोलिंग ऑफिसर के पास होता है। किसी भी वोटर के वोट देने के पहले पोलिंग ऑफिसर बैलट बटन दबा कर मशीन को वोट दर्ज करने के लिए तैयार करता है। बैलट बटन के ऊपर एक ढक्कन के अंदर तीन बटन बंद होते हैं। पहला होता है 'क्लोज' का। इस बटन को दबाने के बाद मशीन नए वोट दर्ज करना पूरी तरह से बंद कर देती है।

ये बटन केवल एक ही बार दबाया जा सकता है। इस बटन को या तो वोटिंग खत्म होने के बाद शाम को या फिर बूथ कैप्चरिंग की हालत में दबाया जा सकता है।
क्लोज के बटन के बगल में एक अलग खाने में दो बटन होते हैं जो वोटों की गिनती के वक्त हर प्रत्याशी को मिले मिले वोटों की संख्या बताते है। इन परिणामों का प्रिंट आउट भी लिया जाता है और ये परिणाम बैलट यूनिट के ऊपर लगी एक स्क्रीन पर भी देखे जा सकते हैं।
बैलट यूनिट में बटन वाले हिस्से के ऊपर ढक्कन के अंदर छह वोल्ट की अल्कलाइन बैटरी बंद होती है जिसकी मदद से ईवीएम उन इलाकों में भी काम करती हैं जहां बिजली नहीं होती। हर बैलट बटन के पास एक स्पीकर भी होता है जो की हर वोट के सही ढ़ंग से दर्ज होने के बाद तेज आवाज करता है।

मशीन के साथ छेड़छाड़ और सुरक्षा कैसे,

4.चुनाव आयोग ये दावा कभी नहीं करता की इस मशीन के अंदर मौजूद सॉफ्टवेयर के साथ छेड़-छाड़ नहीं की जा सकती। लेकिन चुनाव आयोग ये दावा जरूर करता है कि छेड़-छाड़ करने के लिए ईवीएम किसी के हाथ में नहीं लग सकतीं। चुनाव आयोग का कहना है कि इस मशीन को पूरी प्रक्रिया सुरक्षित बनाती है ना की केवल कोई एक पुर्जा।

सुरक्षा के इंतजाम : 

वोटिंग के पहले और बाद में हर मशीन को कड़ी निगरानी में कैद रखा जाता है। वोट डलने के बाद शाम को कई लोगों की मौजूदगी में पोलिंग ऑफिसर इस मशीन को सील बंद करता है। हर वोटिंग मशीन को एक खास कागज से सील जाता है। ये कागज करंसी नोट की तरह ही खास तौर पर बने होते हैं। करंसी नोट की ही तरह हर कागज़ के ऊपर एक खास नंबर होता है।
कई लोग सवाल करते हैं कि जब करंसी नोट नकली बन सकते हैं तो ये कागज क्यों नहीं। ये विशेष कागज सुरक्षा की अंतिम कड़ी नहीं होते। इन कागजों से सील करने के बाद भी इस मशीन को एक सैकड़ों साल पुराने तरीके से सील किया जाता है। हर मशीन के परिणाम वाले हिस्से में एक छेद होता है जिसे धागे के मदद से बंद किया जाता है और उसके बाद उसे कागज और गर्म लाख से एक खास पीतल की सील लगा कर बंद किया जाता है।
सील करने के बाद हर पोलिंग मशीन को किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री की तरह की सुरक्षा के घेरे में मतगणना केंद्र तक लाया जाता है। मतगणना केन्द्रों पर हर मशीन मई 16 तक कड़े पहरे में रहेगी। मई 16 को एक साथ सुबह 6 बजे पूरे देश में वोटों की गिनती होगी।

ईवीएम : कुछ रोचक तथ्य :

* 2004 के आम चुनावों में पहली बार पूरे भारत के वोटरों ने ईवीएम के जरिये वोट डाले थे।
* ईवीएम इस तरह से बनाई गई है कि बिना पढ़े-लिखे वोटर भी चुनाव चिन्ह के आगे लगे बटन को दबा कर वोट डाल सकें।
* हर ईवीएम के अंदर एक छह वोल्ट की अल्कलाइन बैटरी होती है जो बिजली ना होने पर भी मशीन को चालू रखती है।
* एक ईवीएम अधिकतम 3840 वोट दर्ज कर सकती है. सामान्यतः किसी भी पोलिंग बूथ पर 1500 से अधिक वोटर नहीं होते।
* ईवीएम पर अधिकतम 64 प्रत्याशी तक दर्शाए जा सकते हैं।
* किसी लोकसभा क्षेत्र में 64 से ज्यादा प्रत्याशी होने पर चुनाव आयोग कागज के बैलट का इस्तेमाल करने के लिए बाध्य है।
* पहली बार हर ईवीएम में अंतिम बटन 'नोटा' या 'ऊपर दिए नामों में से को कोई नहीं' ही होगा।

* ईवीएम के अंदर 10 सालों तक परिणामों को सुरक्षित रखा जा सकता है।

Thursday, January 23, 2014

'ॐ' धर्म का नहीं सेहत का भी मंत्र है

'ॐ' किसी धर्म से जुड़ा न होकर ध्वनिमूलक है। माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में केवल यही एक ध्वनि ब्रह्मांड में गूंजती थी। 

     जब हम 'ॐ' बोलते हैं, तो वस्तुतः हम तीन वर्णों का उच्चारण करते हैं: 'ओ', 'उ' तथा 'म'। 'ओ' मस्तिष्क से, 'उ' हृदय से तथा 'म' नाभि (जीवन) से जुड़ा है।

मन, मस्तिष्क और जीवन के तारतम्य से ही कोई भी काम सफल होता है। 'ॐ' के सतत उच्चारण से इन तीनों में एक रिदम आ जाती है।

      जब यह तारतम्य आ जाता है, तो व्यक्ति का व्यक्तित्व पूर्ण हो जाता है। उसका आभामंडल शक्तिशाली हो जाता है, इंद्रियां अंतरमुखी हो जाती हैं। 

    जैसे किसी पेड़ को ऊंचा उठने के लिए जमीन की गहराइयों तक जाना पड़ता है, ठीक उसी तरह व्यक्ति को अपने भीतर की गहराइयों में झाँकने हेतु (अपने संपूर्ण विकास के लिए) 'ॐ' का सतत जाप बहुत मदद करता है। ॐ आध्यात्मिक साधना है। इससे हम विपदा, कष्ट, विघ्नों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।

ॐ' के जाप से वह स्थान जहां जाप किया जा रहा है, तरंगित होकर पवित्र एवं सकारात्मक हो जाता है। इसके अभ्यास से जीवन की गुत्थियाँ सुलझती हैं तथा आत्मज्ञान होने लगता है।

मनुष्य के मन में एकाग्रता, वैराग्य, सात्विक भाव, भक्ति, शांति एवं आशा का संचार होता है। इससे आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ प्राप्त होती हैं। 'ॐ' से तनाव, निराशा, क्रोध दूर होते हैं। 

मन, मस्तिष्क, शरीर स्वस्थ होते हैं। गले व साँस की बीमारियों, थायरॉइड समस्या, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, स्त्री रोग, अपच, वायु विकार, दमा व पेट की बीमारियों में यह लाभदायक है। 

विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता हेतु एकाग्रता दिलाने में भी यह सहायक है। इन दिनों पश्चिमी देशों में नशे की लत छुड़ाने में भी 'ॐ' के उच्चार का प्रयोग किया जा रहा है।

ध्यान, प्राणायाम, योगनिद्रा, योग आदि सभी को 'ॐ' के उच्चारण के बाद ही शुरू किया जाता है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए दिन में कम से कम 21 बार 'ॐ' का उच्चारण करना चाहिए। 

Tuesday, January 14, 2014

पृथ्वी को सनस्क्रीन पहनाने की योजना

सूरज की रोशनी से बचने के लिए जैसे त्वचा पर सनस्क्रीन लोशन लगाया जाता है, अगर पूरी पृथ्वी के साथ भी वैसा ही कुछ कर दिया जाए, तो क्या बढ़ते तापमान का मुकाबला हो सकता है। सुनने में दिलचस्प पर क्या हकीकत में संभव।

बुधवार को जारी रिसर्च में कहा गया है कि अगर ऐसा किया जा सके, तो यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में तो बहुत फायदा हो सकता है लेकिन इक्वेटर यानि विषुवत रेखा के आस-पास मौसम पर बुरा असर पड़ सकता है। इतना कि दक्षिणी अमेरिका में ऊष्णकटिबंधीय वन सूख सकते हैं। अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में सूखा पड़ सकता है। ब्रिटेन की रीडिंग यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञानी एंड्रयू चार्लटन पेरेज का कहना है, "इस तरह की जियो इंजीनियरिंग के भयंकर जोखिम हैं।"

साल 1997 में अमेरिकी भौतिकशास्त्री एडवर्ड टेलर और दूसरे वैज्ञानिकों ने सलाह दी कि वायुमंडल के ऊपरी परत स्ट्रेटोस्फेयर में सल्फेट पार्टिकल का छिड़काव कर दिया जाए, तो धरती पर गिरने वाली सूर्य की कुछ किरणें परिवर्तित होकर अंतरिक्ष में लौट जाएंगी। इससे धरती के तापमान के बढ़ते स्तर पर अंकुश लग सकती है। स्ट्रेटोस्फेयर धरती के वायुमंडल की दूसरी परत है।

राख जैसा एरोसोल : प्रस्तावित सनस्क्रीन उसी तरह काम करेगा, जैसा ज्वालामुखी फटने से निकलने वाली राख करती है। इसकी वजह से भी तापमान पर रोक लगती है लेकिन अगर सनस्क्रीन का इस्तेमाल किया गया, तो लागत बहुत कम आएगी। फिर कोयला, गैस और तेल के खर्च में ज्यादा कटौती की जरूरत नहीं पड़ेगी। जियो इंजीनियरों के बीच यह एक लोकप्रिय अवधारणा है, जो इसे आखिरी उपाय की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं।

विज्ञान की पत्रिका एनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स में ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने कहा है कि एरोसोल नाम के पदार्थ से तापमान बढ़ने की प्रक्रिया रोकी जा सकती है। एक्सेटर यूनिवर्सिटी के अनगुस फेरारो का कहना है, "वैश्विक तापमान को कम करने के लिए भारी संख्या में एरोसोल के इंजेक्शन की जरूरत पड़ेगी।" थ्योरी है कि साल 1991 में माउंट पिनाटूबो ज्वालामुखी की विस्फोट से जितनी राख निकली, हर साल उससे पांचगुनी मात्रा में एरोसोल का इस्तेमाल करना होगा। माउंट पिनाटूबो को मिसाल इसलिए बनाया गया है क्योंकि पिछले 25 साल का यह सबसे बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट है।

यह मॉडल इस तरह तैयार किया गया है कि जलवायु में मौजूद कार्बन डायोक्साइड की मात्रा प्रति 10 लाख कण में 1,022 कम कर दी जाए, यानी प्रति दिन 400 कणों की कमी। इसके बाद धरती का तापमान चार डिग्री तक कम हो सकता है।

मर जाएंगे जंगल : लेकिन जांच में यह भी पता चला है कि एरोसोल की भारी मात्रा से विषुवत रेखा के आस पास भारी असर पड़ सकता है। इसकी वजह से स्ट्रेटोस्फेयर का तापमान बेहिसाब बढ़ सकता है। सबसे ज्यादा असर यहां होने वाली बारिश पर होगा।

चार्लटन पेरेज कहते हैं, "ऊष्णकटिबंधीय इलाके में 30 फीसदी बारिश घट जाएगी। मतलब कि करीब हर दिन बरसात देखने वाला इंडोनेशिया इतना सूख जाएगा कि सूखे जैसे हालात हो जाएंगे। विषुवत रेखा के आस पास का मौसम पृथ्वी पर सबसे नाजुक है। हम देखते हैं कि यहां इतनी तेजी से बदलाव होता है कि लोगों को इसके मुताबिक खुद को ढालने में वक्त लग जाता है।"

अगस्त 2012 में इसी पत्रिका में प्रकाशित कीमतों के मुताबिक एरोसोल के छिड़काव की बुनियादी तकनीक मौजूद है और इस काम में हर साल पांच अरब डॉलर से कम खर्च होगा। इसकी अगर मौजूदा योजना से तुलना करें, तो 2030 में 200 अरब से 2,000 अरब डॉलर के बीच खर्च होंगे। हालांकि एरोसोल छिड़काव में मौसम को होने वाले नुकसान को नहीं जोड़ा गया है।

साल 2009 में ब्रिटेन की विज्ञान अकादमी यानी रॉयल सोसाइटी की एक समीक्षा आई, जिसमें कहा गया था कि एरोसोल के छिड़काव का काम बहुत जल्दी हो सकता है और इसका नतीजा साल भर के अंदर आ सकता है। लेकिन इससे कार्बन डायोक्साइड की मात्रा पर लगाम नहीं लग सकेगी, जिसके दूसरे खराब नतीजे हो सकते हैं। और इसका असर धरती की ओजोन परत पर भी पड़ सकता है।                          एजेए/आईबी (एएफपी)