Wednesday, August 28, 2013

जीमेल पर गलत ईमेल भेज दिया? ऐसे रोकिए

कितनी ही बार हम ईमेल भेज देते हैं और उसके बाद जाकर याद आता है कि उसमें कुछ गड़बड़ हो गई या किसी की जगह किसी और को ईमेल भेज दिया। ऐसे वक्त ख्याल आता है कि काश ऐसा हो सकता कि हम गलत ईमेल को रोक सकते।

 जीमेल में आप ऐसा कर सकते हैं। हालांकि, बहुत लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। जीमेल यूजर्स ईमेल भेजने के कुछ समय तक अपने मेल को रोक सकते हैं। बस सेटिंग्स में जाकर इस फीचर को ऐक्टिवेट करने की जरूरत है। आगे बताए गए स्टेप्स को फॉलो करें और गलत मेल भेजे जाने से रोकें...
जीमेल खोलिए। अपनी स्क्रीन में दाईं तरफ ऊपर बने गियर बटन को क्लिक करें। यह गियर बटन आपकी गूगल प्लस प्रोफाइल इमेज के ठीक नीचे दिखाई देता है। इसके ड्रॉपडाउन मेन्यू में से सेटिंग्स चुनिए।
अब आपके सामने कई सारे टैब्ड ऑप्शन होंगे। इनमें से 'Labs' को चुनें और नीचे तक स्क्रॉल करें।
नीचे से तीसरे नंबर पर आपके पास 'Undo Send' का ऑप्शन आएगा। इसे इनेबल कर लें।
दाईं तरफ से स्क्रीन नीचे की ओर स्क्रॉल करें और सेव चेंजेस बटन पर क्लिक करें। लेकिन प्रक्रिया अभी खत्म नहीं हुई है, बाकी है...
सेव चेंजेस पर क्लिक करने के बाद, आप इनबॉक्स पर फिर से पहुंच जाएंगे। पहला स्टेप दोहराएं और सेटिंग्स के ऑप्शन पर जाएं।
आपके सामने डिफॉल्ट 'जनरल' टैब खुलेगा। टैब में नीचे स्क्रॉल करें और लगभग बीच में आपको 'Undo Send' का ऑप्शन मिलेगा। इसपर टिक मार्क लगा होगा जिससे पता चलता है कि आपका पहला ऑप्शन सेव है। इस टिक मार्क के ठीक नीचे आप खुद चुन सकते हैं कि एक भेजे गए मेल को रोकने के लिए 5 सेकंड से लेकर 30 मिनट तक कितना समय चाहिए।
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एक बार आपने अपना समय चुन लिया हो, तो नीचे की तरफ स्क्रॉल करें और 'सेव चेंजेस' क्लिक करें। अब आप ऊपर तय किए गए समय तक अपना मेल रोक सकते हैं।

Friday, August 16, 2013

स्मार्टफोन का स्मार्टयूजर बना इंडिया

भारत में स्मार्टफोन का इस्तेमाल जिस तेजी से बढ़ रहा है उसके कारण अब भारत दुनिया में स्मार्टफोन इस्तेमाल करनेवाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है। अमेरिका और चीन के बाद अब भारत दुनिया का तीसरा ऐसा देश हैं जहां स्मार्टफोन सबसे अधिक इस्तेमाल हो रहे हैं। भारत में स्मार्टफोन की सालाना बढ़त दर 129 प्रतिशत है। स्मार्टफोन की बढ़त दर के मामले में भारत चीन से भी आगे निकल चुका है।
भारत में वर्तमान वित्तीय वर्ष के दूसरी तिमाही के जो आंकड़े सिंगापुर की एनेल्सिस फर्म कैनेलिस ने जारी किये हैं उसमें बताया है कि भारत में स्मार्टफोन के इस्तेमाल की दर चीन से भी आगे चली गई है। कैनेलिस का कहना है कि दूसरी तिमाही में चीन में स्मार्टफोन की बढ़त दर 108 प्रतिशत सालाना दर्ज की गई है जबकि भारत में यह स्मार्टफोन की विकास दर बढ़कर 129 प्रतिशत पहुंच गई है। जबकि अमेरिका में स्मार्टफोन की विकास दर घटकर 36 प्रतिशत रह गई है। इसके बाद जापान और इंग्लैण्ड हैं जहां ग्रोथ सिंगल डिजिट में सिमटकर रह गई है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत में स्मार्टफोन का इस्तेमाल जितनी तेजी से बढ़ रहा है वह इस वक्त दुनिया में सबसे तेज है। शायद यही कारण है कि दुनिया की सभी बड़ी स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां भारत पर अपना फोकस बढ़ा रही हैं। दुनिया की सबसे बड़ी स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरर कंपनी सैमसंग बनी हुई है और उसके कारोबार में इस वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में 55 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। सैमसंग के बाद एप्पल, लेनोवो, यूलोंग और एलजी कंपनियां दुनिया की शीर्ष पांच स्मार्टफोन मैन्युफैक्चर्रस में शुमार हैं। दुनिया की टॉप फाइव स्मार्टफोन मैन्युफैक्चर्स में नोकिया का नंबर नहीं आया है, जो कि भारत में स्थापित मोबाइल ब्रांड है।
भारत में स्मार्टफोन की बढ़त के लिए फर्म का मानना है कि इसमें माइक्रोमैक्स और कार्बन जैसी कंपनियों का अहम योगदान हैं जिन्होंने स्मार्टफोन का बजट बाजार विकसित किया है। स्मार्टफोन के इस बजट बाजार की पैदावार भी चीन में ही होती है जिसका फायदा वहां की दर्जनों स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरर कंपनियों को मिल रहा है।
सांभार - विस्फोट.कॉम

Thursday, August 8, 2013

जंग के मैदान में भारत पाक में कौन ताकतवर ?

भारत के हाथों चार बार बुरी तरह 'पिटने' के बाद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। ताजा घटनाक्रम में मंगलवार को पाकिस्तान की ओर से हुए हमले में भारत के 5 सैनिक शहीद हो गए। पाकिस्तान ने यह नापाक हरकत 17वीं बार की है और 57 बार वह संघर्षविराम का उल्लंघन कर चुका है। वह भारत की तरफ हर बार दोस्ती का हाथ बढ़ाकर पीछे से खंजर घोंप देता है। सैन्यशक्ति में काफी कमजोर पाकिस्तान में अब भारत के साथ सामने से युद्ध करने की हिम्मत नहीं है। 
इसलिए अब उसने छद्मयुद्ध की रणनीति अपनाई है। आतंकवाद को समर्थन भी पाकिस्तान की उसी रणनीति का हिस्सा है। पाकिस्तान के सैन्य शासक जिया उल हक ने कहा था कि भारत से युद्ध में भले ही हमें शिकस्त मिली हो, लेकिन आतंकवाद के जरिए हम भारत में इतने घाव देंगे कि वे नासूर बन जाएं। 
कायराना आतंकवादी हमले करते हुए वह भारत में दहशत फैलाता रहता है। मुंबई आतंकवादी हमला, संसद पर हमला जैसे शर्मनाक कृत्यों से वह अपने मंसूबों में कामयाब होना चाहता है। भारत के रक्षामंत्री एके एंटोनी के मुताबिक एलओसी पर पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष इन हमलों में 80 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। 
पाकिस्तान शायद यह भूल चुका है कि भारत के पास विश्व की सबसे बड़ी तीसरी फौज है, जो चार बार पाकिस्तान को धूल चटा चुकी है। पाकिस्तान शायद यह भी भूल चुका है कि 1971 में भारतीय सेना ने उसके 90 हजार सैनिकों से हथियार डलवाए थे। 
भारत सैन्य शक्ति में मुकाबला चीन से करता है, न कि पाकिस्तान से। पाकिस्तान सैन्य शक्ति में भारत से होड़जोड़ करता है। पाकिस्तान अपने जीडीपी का 3 प्रतिशत सैन्य शक्ति पर खर्च कर रहा है। आकड़ों से पता चलता है कि पाकिस्तान भारत के आगे कहीं नहीं ठहरता है। भारतीय सैनिक युद्धाभ्यास में इतने कुशल हैं कि अमेरिकी सैनिक भारतीय सेना से आतंकवाद से निपटने के गुर सीखते हैं। भारत के पास थलसेना में करीब 13 लाख 25 हजार सैनिक हैं और 9 लाख 50 हजार रिजर्व सैनिक हैं, जबकि पाकिस्तान के पास 6 लाख 17 हजार सैनिक हैं। भारत के पास पाकिस्तान से दुगनी ताकत है। भारतीय सेना के बेड़े में सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस, अग्नि, पृथ्वी, आकाश और नाग जैसी आधुनिक मिसाइलें हैं, वहीं पाकिस्तान के पास गौरी, शाहीन, गजनवी, हत्फ और बाबर जैसी मिसाइलें हैं। 
अग्नि 5 भारत की सबसे आधुनिक और घातक मिसाइल है। इस इंटरकॉन्टिनेटल बैलेस्टिक मिसाइल की मारक क्षमता 5000 ‍किमी है जबकि बाबर की मारक क्षमता केवल 1000 किमी है। भारत के पास 1600 टैंक हैं जबकि पाकिस्तान के पास 1000 टैंक हैं। वायुसेना की बात की जाए तो भारत इसमें पाकिस्तान से कहीं आगे है। भारतीय वायुसेना विश्व चौथी सबसे बड़ी वायुसेना है। चीन से भी बेहतर मानी जाने वाली वायुसेना के पास 1 लाख 27 हजार जवान हैं जबकि पाकिस्तान के पास सिर्फ 65 हजार वायुसैनिक हैं। विमानों की बात की जाए तो भारत के पास 1380 विमानों का बेड़ा है जिसमें सुखोई एम 30, मिग-29, मिग-27, मिग-21, मिराज और जगुआर जैसे आधुनिक विमान हैं। 
पाकिस्तान के पास चीनी एफ-7, अमेरिकी F-16 और मिराज शामिल हैं, लेकिन उसके पायलटों का तकनीकी ज्ञान कमजोर है, जबकि भारतीय पायलटों का लोहा पूरा विश्व मानता है। भारत के पास एक एयरकाफ्ट करियर भी है जबकि पाकिस्तान के पास नहीं है। भारत के पास करीब 58350 जलसैनिक हैं, जबकि पाकिस्तान के पास इनकी संख्या मात्र 25 हजार है। भारत के पास 27 पनडुब्बी जबकि पाकिस्तान के पास 10 पनडुब्बी हैं। भारत के पास 27 युद्धपोत है जबकि पाकिस्तान के पास कोई युद्धपोत नहीं है। भारत के पास 150 वॉरशिप, जबकि पाकिस्तान के पास 75 वॉरशिप। परमाणु हथियारों की अगर बात की जाए तो भारत के पास 50 से 90 परमाणु हथियार है जबकि पाकिस्तान के पास करीब 50 परमाणु हथियार हैं।

Tuesday, August 6, 2013

सरस्वती नहीं प्रयाग में फिर त्रिवेणी संगम क्यों कहते हैं?

इतनी नदियां जिसके अंदर बहती है उसे भारत कहते हैं- सिंधु 2,900 (किमी), ब्रह्मपुत्र 2,900 (किमी), गंगा 2,510 (किमी), गोदावरी 1,450 (किमी), नर्मदा 1,290 (किमी), कृष्णा 1,290 (किमी), महानदी 890 (किमी), कावेरी 760 (किमी) और सरस्वती। अब आप सोचिए इनमें से कौन कौन सी नदी हिंदुस्तान के बाहर बहती है।
देश की दो बड़ी नदियां गंगा और यमुना का जहां-जहां भी मिलन हुआ है वहां पर तीर्थ निर्मित हो गया है। सभी कहते हैं कि इस मिलन में सरस्वती भी शामिल है
, लेकिन सरस्वती नदी को कहीं नजर ही नहीं आती फिर उसे त्रिवेणी संगम क्यों कहते हैं? दूर-दूर तक सरस्वती का नामोनिशान तक नहीं है।

गंगा नदी : गंगा को धरती की नदी नहीं मानते हैं यह स्वर्ग से धरती पर उतरी है। गंगा नदी भारत और बांग्लादेश में मिलाकर 2510 किमी की दूरी तय करती हुई उत्तरांचल में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है। अर्थात यह गंगोत्री से निकलकर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। जहां यह समा जाती है उसे गंगा सागर कहते हैं।
स्वर्गलोक से अपनी थोड़ी सी चूक के कारण जब गंगाजी को धरती पर आना पड़ा तो भगवान ने उन्हें कहा कि पृथ्वी पर एक बरगद (अक्षयवट) का वृक्ष है। तुम उसके पास से होकर गुजरोगी तो उसके स्पर्श से तुम जितने प्राणियों के पाप धोकर पाप से ग्रस्त हो जाओगी, यह वृक्ष तुम्हारे उस पाप को दूर कर देगा। इस वृक्ष को छूकर तुम निर्मल बन जाओगी।

यमुना नदी : यमुना नदी को भी धरती की नदी नहीं मानते हैं। इसका उद्गम यमुनोत्री से हुआ। यह नदी पश्चिमी हिमालय से निकलकर उत्तरप्रदेश एवं हरियाणा की सीमा के सहारे 95 मील का सफर कर उत्तरी सहारनपुर (मैदानी इलाका) पहुंचती है। फिर यह दिल्ली, आगरा से होती हुई इलाहाबाद (प्रयाग) में गंगा नदी में मिल जाती है।
चार धामों में से एक धाम यमुनोत्री से यमुना का उद्गम मात्र एक किमी की दूरी पर है। यमुना पावन नदी का स्रोत कालिंदी पर्वत है। तीर्थ स्थल से एक किमी दूर यह स्थल 4421 मी. ऊंचाई पर स्थित है।

यह नदी भी आकाश मार्ग से धरती पर उतरी थीं। भगवान सूर्य देव की पत्नी संज्ञा जब सूर्य देव के साथ रहते हुए उनकी गर्मी नहीं बर्दाश्त कर सकीं तो उन्होंने अपनी ही तरह की एक छाया के रूप में एक औरत का निर्माण किया तथा उसे भगवान सूर्य के पास छोड़ कर अपने मायके चली गई। सूर्य देव छाया को ही अपनी पत्नी मानकर एवं जानकर उसके साथ रहने लगे। संज्ञा के गर्भ से दो जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया। उसमें लड़के का नाम यम तथा लड़की का नाम यमी पड़ा। यम तो यमराज हुए तथा यमी यमुना हुई। सूर्य की दूसरी पत्नी छाया से शनि का जन्म हुआ।
जब यमुना भी अपनी किसी भूल के परिणाम स्वरुप धरती पर आने लगी तों उसने अपने उद्धार का मार्ग भगवान से पूछा। भगवान ने बताया कि धरती पर देव नदी गंगा में मिलते ही तुम पतित पावनी बन जाओगी।

सरस्वती : महाभारत में सरस्वती नदी के मरुस्थल में 'विनाशन' नामक जगह पर विलुप्त होने का वर्णन आता है। महाभारत में मिले वर्णन के अनुसार सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर से थोड़ा ऊपर और शिवालिक पहाड़ियों से थोड़ा सा नीचे आदि बद्री नामक स्थान से निकलती थी।
भारतीय पुरातत्व परिषद् के अनुसार सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के ग्लेशियर से होता था। नैतवार में आकर यह हिमनद जल में परिवर्तित हो जाता था, फिर जलधार के रूप में आदि बद्री तक सरस्वती बहकर आती थी।
भूगर्भीय खोजों से पता चला कि किसी समय इस क्षेत्र में भीषण भूकंप आया था, जिसके कारण जमीन के नीचे के पहाड़ ऊपर उठ गए और सरस्वती नदी का जल पीछे की ओर चला गया। वैदिक काल में एक और नदी का जिक्र आता है, वह नदी थी दृषद्वती। यह सरस्वती की सहायक नदी थी।
इस भूकंप के कारण दोनों नदियों के बहाव की दिशा बदल गई और दृषद्वती नदी, जो सरस्वती नदी की सहायक नदी थी, उत्तर और पूर्व की ओर बहने लगी। इसी दृषद्वती को अब यमुना कहा जाता है, इसका इतिहास 4,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। यमुना पहले चम्बल की सहायक नदी थी। बहुत बाद में यह इलाहाबाद में गंगा से जाकर मिली। यही वह काल था जब सरस्वती का जल भी यमुना में मिल गया।

क्या सचमुच सरस्वती प्रयाग की गंगा-यमुना से मिली?

कुछ विद्वानों अनुसार सरस्वती पूर्व काल में स्वर्णभूमि में बहा करती थी। स्वर्णभूमि का बाद में नाम स्वर्णराष्ट्र पडा। धीरे-धीरे कालान्तर में यह सौराष्ट्र हो गया। किन्तु यह सौराष्ट्र प्राचीन काल में पैरा मारवाड़ भी अपने अन्दर समेटे हुए था। यहां सरस्वती प्रेम से रहती थी। चूंकि इस प्रदेश से सटा हुआ यवन प्रदेश (खाड़ी देश) भी था, अतः यहां के लोग यवन आचार-विचार के मानने वाले होने लगे।
सरस्वती इससे ज्यादा दुखी थीं ब उन्होंने ब्रह्माजी से अनुमति लेकर मारवाड़ एवं सौराष्ट्र छोड़कर प्रयाग में आकर बस गई। सरस्वती के वहां से चले आने के बाद वह पूरी भूमि ही मरूभूमि में परिवर्तित हो गयी जो आज राजस्थान के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी कथा भागवत पुराण में बतई गयी है। ऋग्वेद काल में सरस्वती समुद्र में गिरती थी।

इसलिए मिली सरस्वती प्रयाग में : जब सरस्वती को पता चला कि ऐसा वृक्ष प्रयाग में स्थित है जो सभी के पाप धोकर उनके उद्धार कर देता है तो वह भी ब्रह्माजी से अनुमति लेकर स्वर्णभूमि छोड़ कर आकर प्रयाग में इन दोनों नदियों में शामिल हो गयी।
एक कथा अनुसार हनुमान, भारद्वाज ऋषि और सरस्वती तीनों ही इसलिए प्रयाग के संगम पहुंच गए थे, क्योंकि वहां भगवान राम आने वाले थे।

लेकिन सच यह है? : प्रयाग में सरस्वती कभी नहीं पहुंची। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया जबकि यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है। वहां केवल दो नदियां हैं। सरस्वती कभी भी इलाहाबाद तक नहीं पहुंची।

अमेरिकी वैज्ञानिक वेबसाइट 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस' ने लिखा है कि वैज्ञानिकों ने अभी तक मिथक मानी जाने वाली सरस्वती नदी का पता लगा लिया है।

भारत, पाकिस्तान, ब्रितानिया, रोमानिया और अमेरिका के भूगर्भवेताओं, भूआकृति-वैज्ञानिकों, पुरातत्त्ववेताओं और गणितज्ञों ने यह सिद्ध कर दिया है कि आज की घग्घर नदी ही पहले की सरस्वती नदी थी।
अब यह नदी रेगिस्तानी इलाके में पहुंचकर गायब हो जाती है और सिर्फ एक बरसाती नदी बनकर रह गई है। नदी के तलछट की गाद के विश्लेषण, स्थालाकृति, मानचित्रों और अंतरिक्ष से खींचे गए चित्रों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि प्राचीनकाल में घग्घर नदी वास्तव में बहुत बड़ी नदी थी, जिसमें हमेशा भरपूर पानी बहता था।
हड़प्पा सभ्यता के काल में हिमालय से जन्म लेने वाली यह विशाल नदी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के रास्ते आज के पाकिस्तानी सिंधप्रदेश तक जाती थी।

क्या 1 करोड़ साल पहले जन्मीं थी सरस्वती नदी?


पुरातत्व, जियोलॉजिस्ट और भू-भौतिकी विद्वानों अनुसार था कि कैलाश से कच्छ तक बहने वाली सरस्वती नदी करीब चार हजार साल पहले लुप्त हो गई, लेकिन अब साइंटिस्टों ने नदी के बहाव क्षेत्रों और सहायक नदियों की बेसिन से चीन मूल की सायप्रिनिड मछलियों के जीवश्म के अध्ययन से यह बताया है कि लुप्त सरस्वती का जन्म 1.6 करोड़ वर्ष पहले हुआ था।

इस महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम देने वाले वाडिया संस्थान के साइंटिस्ट डॉ. बीएन तिवारी ने करीब दो दशक पहले इस दिशा में काम शुरू किया।
1982
में डॉ. तिवारी को धर्मशाला में 1.6 करोड़ वर्ष पुराने सायप्रिनिड मछली के जीवाश्म मिले। इसके बाद 1996 में लद्दाख में इसी मछली के 3.2 से 1.6 करोड़ पुराने जीवाश्म मिले। हाल ही में कच्छ सायप्रिनिड के 1.7 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म मिले हैं। तीनों स्थानों पर मिले सायप्रिनिड मछली के जीवाश्मों ने यह साबित कर दिया है कि ये मछलियां सरस्वती नदी और उसकी सहायक नदियों में निवास करती थीं।
सायप्रिनिड मछलियां अरली मॉयोसिन (1.6 से 1.7 करोड़) में पाई जाती थीं। लिहाजा साइंटिस्ट इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सरस्वती का जन्म 1.6 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। डॉ. बीएन तिवारी और अनसुया भंडारी के संयुक्त अध्ययन में बताया गया है कि चीन मूल की मछली का कच्छ में मिलना इस बात की ओर संकेत करता है कि ऐसी नदी निश्चित रूप से रही होगी।
केएस वल्दिया की पुस्तक 'सरस्वती द रिवर दैट डिसेपीयर्ड' और बीपी राधाकृष्णा व एसएस मेढ़ा की पुस्तक 'वैदिक सरस्वती' में कहा गया है कि मानसरोवर से निकलने वाली सरस्वती हिमालय को पार करते हुए हरियाणा, राजस्थान के रास्ते कच्छ पहुंचती थी।
इस नदी में पाई जाने वाली सायप्रिनिड मछलियां सहायक नदियों के जरिए करगिल, लद्दाख और धर्मशाला पहुंची। डॉ. तिवारी ने बताया कि मलाया और वेस्टर्न घाट की मछलियों की समानता को बताने के लिए स्व. डॉ. एसएल होरा ने करीब पांच दशक पहले सतपुरा परिकल्पना दी। सायप्रिनिड मछलियों के जीवाश्मों के अध्ययन से अब इस परिकल्पना की जरूरत नहीं रह गई है।

Friday, August 2, 2013

नीबू - ईश्वर का वरदान

नीबू - ईश्वर का वरदान 
नीबू हर रसोईघर की शान है। विटामिन-सी से भरपूर नीबू स्फूर्तिदायक और रोग निवारक फल है। नीबू हर व्यंजन का स्वाद बढ़ाता है। फिर चाहे वो आलू का शोरबा हो या मटन का कोरमा, पनीर की तरी  हो या चिकन की करी, साहब की जिन हो या मेडम की चाओमिन नीबू के बिना सब बेसुरे और बेस्वाद लगते ही हैं। पूरे विश्व में नीबू शौक से खाया जाता है। यह हर देश और धर्म के लोगों का चहीता फल है। चाहे स्त्री हो या पुरुष, बच्चा हो या बूढ़ा, अमीर हो या गरीब, नॉनवेज हो या वेज, स्ट्रगलर हो या स्मगलरड्राइवर हो या डाक्टर सभी नीबू के दीवाने हैं। अकेले निबुड़ा गीत ने ऐश्वर्य राय को रातों रात स्टार बना दिया था। नीबू के आचार की तो बात ही क्या है। जितनी किस्म के आचार नीबू के बनते हैं, शायद ही किसी और के बनते हों। नीबू के आचार को देखते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। गर्भवती स्त्रियां तो नीबू का आचार चटकारे लेकर खाती हैं।

   नीबू बहुत उपयोगी फल है और ईश्वर का वरदान है। इसके बिना जीवन ही रसहीन और फीका लगता है। इसका वानस्पतिक नाम साइट्रस लिमोनम है। इसे संस्कृत में लिम्बुका, अरेबिक में लेमुन और अंग्रेजी में लेमन कहते हैं। इसका रंग पीला या हरा तथा स्वाद खट्टा होता है। विश्व में सबसे अधिक नीबू का उत्पादन भारत में होता है। भारत विश्व के कुल नीबू उत्पादन का 16 प्रतिशत भाग उत्पन्न करता है। मलेशिया, मैक्सिको, अर्जन्टीना, ब्राजील एवं स्पेन अन्य मुख्य उत्पादक देश हैं। इसकी कई किस्में होती हैं, लेकिन कागजी नीबू, कागजी कलाँ, गलगल तथा लाइम सिलहट ही अधिकतर घरेलू उपयोग में आते हैं। इनमें कागजी नीबू सबसे अधिक लोकप्रिय है।

  इसमें विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में होता है। इसका प्राकृतिक विटामिन-सी सिंथेटिक विटामिन-सी की गोलियों से बहुत अधिक प्रभावशाली होता है। इसमें एक बायोफ्लेविनॉयड (जिसे विटामिन-पी भी कहते हैं) होता है, जो इसमें विद्यमान विटामिन-सी की गुणवत्ता को बढ़ाता है। नीबू में विटामिन-सी के अलावा एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व साइट्रिक एसिड (7.2%) होता है। इसके अलावा इसमें विटामिन-ए, नायसिन और थायमिन भी होते हैं।

   आयुर्वेद में नीबू को अनमोल फल माना है और प्राचीन ग्रंथों में इसके स्वास्थ्यवर्धक गुणों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। यह जबर्दस्त एंटीऑक्सीडेंट है और इम्युनिटी बढ़ाता है। नीबू खट्टा, गर्म, हल्का और तीखा होता है।  इसका मिजाज गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म अर्थात वातानुकूलित है। नीबू प्राकृतिक प्रिजर्वेटिव है। विटामिन-सी के सर्वोत्तम स्रोत नींबू का उपयोग भोजन के साथ सलाद, शर्बत, आचार एवं सौंदर्य प्रसाधन के अलावा दवाओं में भी होता है। नीबू स्वाद में अम्लीय लगता है, लेकिन शरीर पर इसका प्रभाव क्षारीय है। इसलिए यह शरीर में अम्लता को कम करता है।

Lemon’s Nutritional value per 100 g (3.5 oz)
Energy121 kJ (29 kcal)
Carbohydrates9.32 g
      -Sugars2.50 g
      - Dietary fiber2.8 g
Fat0.30 g
Protein1.10 g
Thiamine (vit. B1)0.040 mg (3%)
Riboflavin (vit. B2)0.020 mg (2%)
Niacin (vit. B3)0.100 mg (1%)
Pantothenic acid (B5)0.190 mg (4%)
Vitamin B60.080 mg (6%)
Folate (vit. B9)11 μg (3%)
Vitamin C53.0 mg (64%)
Calcium26 mg (3%)
Iron0.60 mg (5%)
Magnesium8 mg (2%)
Phosphorus16 mg (2%)
Potassium138 mg (3%)
Zinc0.06 mg (1%)

दांतों का वैद्य है नीबू - नीबू का रस लगाने से दांत के दर्द में आराम मिलता है। मसूड़ों पर नीबू का रस मलने से मसूड़ों से खून आना बंद हो जाता है। नीबू मुंह से आने वाली दुर्गंध में भी फायदा करता है। नीबू के सूखे छ्लकों को जला कर पीस ले और नमक मिला कर दन्त मंजन बनालें। यह मंजन दांतो को चमका देता है और कुछ ही दिनों में दांतो पर जमा गंदगी साफ हो जाती है।  नीबू का रस हमेशा पानी या किसी अन्य ज्यूस में मिला कर लेना चाहिये। सांद्र नीबू के रस में साइट्रिक एसिड होता है जो दांतों के ऐनामेल का नुकसान पहुँचा सकता है। पाचन विकार और कब्जी भगाये नीबू- यदि प्रातःकाल गुनगुने पानी में नीबू का रस और शहद मिला कर लिया जाये, तो पूरे शरीर का शोधन हो जाता है, पाचन क्रिया चुस्त हो जाती है और कब्ज भी ठीक हो जाती है। नीबू उदर विकार में तुरन्त फायदा पहुँचाता है। नीबू रक्त-शोधक है और शरीर के टॉक्सिन्स का उत्सर्जन करता है। आपको बहुत देर से हिचकी आ रही है, तो  नींबू के रस में 2 छोटे चम्मच काला नमक ,शहद का 1 छोटा चम्मच मिलाकर पीयें। यह पेट के कीड़े मार देता है। यह वमन का उपचार है और हिपेटाइटिस और अन्य रोगों में उपयोगी है।  भोजन के बाद नीबू पानी एक उत्कृष्ट पेय माना गया है।  जीवाणुओं का दुष्मन है नीबू  - नीबू का रस सर्दी, जुकाम और बुखार में फायदा करता है। डायबिटीज के रोगी को नीबू पानी पिलाने से उसकी प्यास शांत होती है। नीबू शक्तिशाली जीवाणुरोधी है। यह वैज्ञानिक शोध में साबित हो चुका है कि यह मलेरिया, हैजा, डिफ्थीरिया, टायफॉयड और अन्य रोगों के जीवाणुओं को मारने की क्षमता रखता है। हृदय का रखवाला है नीबू - नीबू में सेब या अंगूर से भी ज्यादा पोटेशियम होता है, जो हृदय के लिए बहुत हितकारी है। नीबू का रस तम और मन का शांत रखता है, इसलिए उच्च रक्तचाप, चक्कर, उबकाई में बहुत हितकारी है। यह हृदय और नाड़ियों का शांत करता है और हृदय की तेज धड़कन में राहत देता है। यह तनाव और अवसाद में लाभदायक है। यह विटामिन-पी रक्त-वाहिकाओं का कायाकल्प करता है और रक्तस्राव से बचाता हैइसलिए स्ट्रोक से बचा कर रखता है। बोन मेकर है नीबू - नीबू दांत और हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत बनाता है। विटामिन-सी कैल्शियम के चयापचय को सम्बल देता है। नीबू गठिया और गाउट के उपचार में प्राचीन काल से प्रयोग में लिया जाता है। यह मूत्रवर्धक है, इसलिए यह वृक्क और मूत्राशय के विकार में हितकारी माना गया है। इम्युनिटी बूस्टर है नीबू-  नीबू के जूस से शरीर की रोग-प्रतिरोधी क्षमता मजबूत होती है लेकिन इससे मोटापा नहीं बढ़ता है। पानी में नीबू और शहद मिला कर रोज पीने से आप बिना कमजोरी के वजन घटा सकते हैं।  केश श्रंगार का पार्लर है नीबू -  नींबू का रस बालों की तकलीफ के लिए बहुत उपयागी है।  बालों में नीबू का रस लगाने से डेन्ड्रफ, बाल झड़ना आदि रोग मिट जाते हैं और बाल तमक उठते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधिका है नीबू - नीबू एक प्राकृतिक संक्रमण रोधी होने के कारण त्वचा के अनेक विकारों में उपयोगी है।  नीबू का रस मुंहासे, दाद, खाज, एग्जीमा आदि में लाभदायक है। नीबू त्वचा का जीर्णोद्धार करता है और त्वचा की झाइयां, झुर्रिया और ब्लेक हेड्स मिटाता है। पानी में नीबू और शहद मिला कर पीने से त्वचा चमक उठती है। चेहरे पर कच्चे दूध में नीबू का रस मिला कर लगाने से चेहरे के सारे दाग मिट जाते हैं। कोहनी पर नींबू के छिलके से सफ़ाई करने से वो काले नहीं होते। गुनगुने पानी मे नींबू का रस डालकर पर रगड़ने से एडियां साफ़ हो जाती हैं। नीबू त्वचा की छोटी गांठो और कॉर्न आदि को ठीक कर देता है। अगर आपकी त्वचा तैलीय हैतो नींबू के रस मे बराबर मात्रा मे पानी मिलाकर चेहरा साफ़ करें। नीबू का रस मलने से जलने का निशान हल्के पड़ जाते हैं। नीबू त्वचा को ठंडक देता है और त्वचा की जलन में राहत पहुँचाता है। श्वसन विकार का उपचार है नीबू - नीबू अस्थमा और अन्य श्वसन रोगों में लाभदायक है। नीबू पर्वतारोहियों के लिए वरदान है। ऊँचे पर्वतों पर ऑक्सीजन की कमी के कारण सांस लेने में तकलीफ होती है, जिसमें नीबू बहुत राहत देता है। लवगुरू  है नीबू नीबू में अग्नि तत्त्व होते हैं इसलिए यह दिल-दिमाग और इन्द्रियों में भी उत्तेजना भर देता है। और इस कारण सब कुछ सुहाना लगने लगता है, घर प्यारा लगता है, पत्नी भी सुन्दर दिखती है और पति पर प्रेम भी उमड़ता है। कामेच्छा का इससे सीधा गहरा सम्बन्ध है। नींबू में इतने गुण है कि यह सारे लैंगिक-विकार जड़ से मिटा देता है। पति का ढीलापन और पत्नी की उदासीनता को दूर कर उन्हें प्यार और मिलन के लिए प्रेरित करता है।


कैंसर का विनाशक है नीबू - नीबू कैंसर कोशिकाओं का सफाया करने में भी चमत्कारी है। नीबू सभी प्रकार के कैंसर के बचाव और उपचार में बहुत कारगर है। यह कीमोथेरेपी से अधिक असरदार साबित हुई है। इसका स्वाद उमदा है और शरीर पर कोई कुप्रभाव भी नहीं होता है। नीबू का सेवन कीमो और रेडियो के कुप्रभावो को भी कम करता है।  यह महत्वपूर्ण जानकारी हमें एक बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनी द्वारा की गई शोध से मिली है। 1970 के बाद हुई इस शोध में अनुसंधानकर्ताओं ने नीबू में कुछ ऐसे तत्वों का पता लगाया है जो आंत, स्तन, प्रोस्टेट, फेफड़ा, अग्न्याशय आदि समेत 12 प्रकार के कैंसर में बहुत असरदार है। ये तत्व प्रचलित कैंसररोधी दवा एड्रियामाइसिन से 10,000 गुना असरदार है। विशेष बात यह है कि ये तत्व सिर्फ कैंसर कोशिका को ही मारते हैं, स्वस्थ कोशिकाओं पर कोई बुरा असर नहीं डालती हैं। अब वह कंपनी इन तत्वों को कृत्रिम रूप से बना कर मुनाफा कमाने की दिशा में काम कर रही है।