Tuesday, December 25, 2012

कारोबार ज्ञान

डाक विभाग ने शुरू की मोबाइल मनी ट्रांसफर सेवा

डाक विभाग ने 15 नवम्बर 2012 को भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के साथ मिलकर मोबाइल मनी ट्रांसफर सेवा शुरु की है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने दिल्ली और केरल के बीच भारतीय डाक की इस सेवा को लांच किया । इस सेवा के माध्यम से कोई भी व्यक्ति डाकघरों में मोबाइल फोन के जरिये दूसरे व्यक्ति को तत्काल पैसे भेज सकेगा।

एफआईआई के लिए करेंसी हेजिंग हुई आसान
भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी संस्थागत निवेशकों ( एफआईआई) के लिए भारत में करेंसी हेजिंग की सुविधा को और आसान बना दिया गया है । इसके अंतर्गत आरबीआई ने एफआईआई को किसी भी बैंक की किसी भी शाखा के माध्यम से करेंसी हेजिंग करने की अनुमति दे दी है। अभी तक एफआईआई की यह सुविधा केवल उन्हीं बैंक शाखाओं के जरिये करेंसी हेजिंग कर सकते थे, जिनमें उनके खाते होते थे ।

क्या होंगी शर्ते -
एफआईआई को अपने निवेश की वैल्यू का सर्टिफिकेशन एडी कैटगरी के किसी बैंक से कराना होगा ।
एफआईआई को यह भी घोषित करना होगा कि उनकी सम्पूर्ण ग्लोबल आउटस्टैंडिंग हेजिंग व एडी कैटेगरी के सभी बैंकों से रद्द किये गये डेरिवेटिव कॉण्ट्रैक्ट निवेश की इसी मार्केट वैल्यू के अंतर्गत है।
.एफआईआई को तिमाही आधार पर कस्टोडियन बैंक के पास अपने डेरिवेटिव कॉण्ट्रैक्ट और अपने निवेश को मार्केट वैल्यू को अपडेट कराना होगा।
निष्कर्ष – पहले एफआईआई केवल अपने खाते वाले बैंक के माध्यम से हेजिंग कर सकते थे । लेकिन अब रिजर्व बैंक ने किसी भी बैंक की किसी भी शाखा के माध्यम से हेजिंग की अनुमति दे दी है।
अब नये चेक बुक का करना होगा इस्तेमाल
भारतीय रिजर्व बैंक की नयी व्यवस्था के अंतर्गत अब नये वर्ष में होने वाले वित्तीय लेन-देन केवल नये चेक बुक से ही हो सकेंगे। आर. बी. आई. ने दिसंबर 2012 तक इस योजना को प्रभावी करने के आदेश जारी किये थे लेकिन बाद में आरबीआई ने इसकी अवधि 31 मार्च तक बढ़ा दी है। आरबीआई ने कहा है कि इक्वेटेड मंथली इंस्टॉलमेंट (ईएमआई) के भुगतान के लिए पोस्ट डेटेड चेक भी बैंकों को इसी अनुरूप बदलने होंगे । नयी व्यवस्था के अंतर्गत चेक में किसी भी प्रकार परिवर्तन या सुधार अब मान्य नहीं होगा । अंकों में या शब्दों में राशि और अदाकर्ता के नाम में परिवर्तन के लिए ग्राहक को नया चेक काटना होगा ।
गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ साल पहले सभी बैंकों को निर्देश दिया था कि ग्राहकों को सीटीएस – 2010 मानक के चेक जारी किये जायें ।
क्या है सीटीएस 2010 मानक
चेक ट्रंकेशन सिस्टम-2010 (सीटीएस-2010 मानक) के अनुसार चेक का आकार एमआईसीआर बैंड कागज की किस्म, पेण्टाग्राफ आदि एकसमान होना चाहिये ।
सभी चेक पर एक मानक वाटरमार्क होता है।
सीटीएस इण्डिया शब्द रोशनी के सामने देखा जा सकता है ।
बैंक का लोगो पराबैगनी स्याही में मुद्रित होता है। जो यूवी युक्त स्कैनर या लैंप में दिखता है। इससे ऑप्टिकल रिकॉग्निशन से डाटा शीघ्र प्रोसेस करने में आसानी होती है ।
भारत में कारोबार करना बेहद मुश्किल – विश्व बैंक
विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) की 23 अक्टूबर 2012 की की प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की विकास गति विश्व के अन्य देशों की तुलना में तीव्र है मगर यहाँ कारोबार करना अब भी बेहद मुश्किल है । नियामकीय बाधाओं में कमी लाने और सीमा पर व्यापार को बढ़ावा देने के बाद भी कम्पनियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस मामले में भारत पड़ोसी देश नेपाल और पाकिस्तान से भी पीछे है । 185 देशों की इस सूची में भारत को इस मामले में 132वाँ स्थान मिला है ।
कैसे करें नकली नोटों की पहचान
नकली नोटों के प्रति आम लोगों को जागरूक करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने एक वेबसाइट शरु की है। जिसमें नकली नोटों की पहचान के तरीकों का उल्लेख किया गया है। वेबसाइट के डाउनलोड सेक्शन में नोटों के पोस्टर लगाये गये है जिन्हें डाउनलोड कर नकली नोटों की पहचान की जा सकती है । इस वेबसाइट का पता www.paisaboltahairbi.org.in है ।
इसमें नकली नोटों की संख्या का भी उल्लेख है। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार भारत में 6457.70 करोड़ के नकली नोट प्रचलन में है ।
पाँच राज्यों में दस रुपये के प्लास्टिक नोट जारी करेगा आरबीआई
नकली नोटों के चलन तथा कागजी नोटों के खराब होने की समस्या से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक पाँच राज्यों में प्लास्टिक के नोट जारी करने का निर्णय लिया है । पायलट प्रोजेक्ट के तहत राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंग तथा हरियाणा में दस रुपये के प्लास्टिक नोट जारी किये जायेंगे । ये प्लास्टिक नोट पाँच वर्षों तक चलन में रहेंगे और खराब नहीं होंगे ।
प्लास्टिक नोट पॉलीमर से बना होता है ।
पहली बार आस्ट्रेलिया में वर्ष 1993 में इसे प्रचलन में लाया गया ।
पॉलीमर नोट ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, पापुआ न्यू गिनी, रोमानिया, बरमूडा, ब्रुनेई और वियतनाम में प्रचलन में है ।

Tuesday, October 9, 2012

भारतीय बैंकिंग

भारतीय बैंकिंग


भारत में आधुनिक बैंक का प्रादुर्भाव सौ साल से कुछ पहले हुआ । ब्रिटिश शासन में सबसे पहले जिन संस्थाओं ने बैंकिंग कार्य किये थे, वे एजेंसी हाऊस थे । जिन्होंने कारोबारी काम के अलावा बैंक का भी काम करते थे । इसमें तीन मुख्य प्रेसीडेंसी बैंक थे, जो बैंकिंग संकट काल में 1919 में इंपीरियल बैंक में मिला दिये गये ।

भारत में पहला बैंक अवध कॉमर्शियल बैंक था, जिसकी स्थापना 1818 में की गयी थी । उसके बाद 1894 में पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना हुई । 1906 में शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन ने बहुत से वाणिज्यिक बैंकों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया । सन 1913-17 के बैंकिंग संकट काल और 1949 में समाप्त होने वाले दशक में विभिन्न राज्यों के 588 बैंकों की असफलता ने वाणिज्यिक बैंकों के नियम और नियंत्रण की आवश्यकता पर बल दिया । जनवरी 1946 में बैंकिंग कंपनी अधिनियम पारित हुआ, जो बाद में बैंकिंग नियमन अधिनियम के नाम से संसोधित हुआ । 1955 में भारतीय स्टेट बैंक की स्थापना की गयी । उसके बाद 1960 में 8 क्षेत्रीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर उन्हें स्टेट बैंक के सहायक बैंक का दर्जा दिया गया ।


भारत सरकार ने सामाजिक दायित्व और उद्देश्यों की पूर्ति के लिए 14 बड़े व्यावसायिक बैंकों के प्रबंधन को आर्थिक विकास की मुख्य धारा में लाने की दृष्टि से 19 जुलाई 1969 को उनका राष्ट्रीय करण कर दिया गया । सितंबर 1993 में न्यू बैंक ऑफ इंडिया को पंजाब नेशनल बैंक में मिला दिया गया । इस समय देश में देश में सार्वजनिक क्षेत्र या राष्ट्रीय बैंकों की संख्या 27 है।


भारतीय रिजर्व बैंक – यह देश का केंद्रीय बैंक है। इसकी स्थापना ‘ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1934’ के अंतर्गत 1 अप्रैल 1935 को की गयी । उसके बाद 1 जनवरी 1949 को इसका राष्ट्रीय करण किया गया । एक रुपये के सिक्के/नोटों और छोटे सिक्कों को छोड़कर भारत में मुद्रा जारी करने का एकमात्र अधिकार रिजर्व बैंक को प्राप्त है । इसके प्रमुख गर्वनर होते हैं जिनके जरिये सरकार पूरे अर्थतंत्र पर नियंत्रण रखती है। आरबीआई का संचालन सेंट्रल बोर्ड के जरिये होता है जिनकी नियुक्ति भारत सरकार चार साल के लिए करती है । सेंट्रल बोर्ड में गर्वनर और डिप्टी गवर्नर समेत 20 सदस्य होते हैं ।


मौद्रिक नीति या क्रेडिट पॉलिसी – एच. जी. जॉनसन के अनुसार मौद्रिक नीति वह नियंत्रण नीति है, जिसके द्वारा केंद्रीय बैंक सामान्य आर्थिक नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से मुद्रा की पूर्ति पर नियंत्रण रखता है। साल में दो बार क्रेडिट पॉलिसी की घोषणा रिजर्व बैंक करता है। लेकिन इस दौरान जरूरत के मुताबिक दो से कई बार भी बदलाव हो रहे हैं।


रेपो रेट – यह वह दर होती है जिस जिस पर रिजर्व बैंक दूसरे बैंकों को कर्ज देता है। अगर रेपो रेट बढ़ाया जाता है तो साफ है कि बैंकों को रिजर्व बैंक से महंगी दर पर कर्ज मिलेगा। इस तरह कर्ज महंगे हो जायेंगे ।


रिवर्स रेपो रेट – वह दर जिस पर बैंक रिजर्व बैंक को कर्ज देते हैं । अक्सर बैंक अपना सरलतम कैश रिजर्व बैंक को देना पसंद करते हैं क्योंकि एक तो उन्हें ब्याज मिलता है और ऊपर से पैसा एकदम सुरक्षित रहता है।


नकद आरक्षित अनुपात (कैश रिजर्व रेशियो CRR) - बैंकों को अपनी जमा का जो हिस्सा केंद्रीय बैंक के पास रखना होता है। उसे नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं। अगर सीआरआर बढ़ाया जाता है तो इसका मतलब यह है कि बैंकों को ज्यादा बड़ी राशि रिजर्व बैंक के पास रखनी होगी । यानी बाजार में पूँजी प्रवाह कम हो जायेगा ।

सर्वाधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) – एसएलआर के तहत बैंकों को अपने पास की जमा राशि का एक निश्चित हिस्सा अनिवार्य रूप से सरकारी प्रतिभूतियों में लगाना होता है।


Wednesday, September 12, 2012

सरोगेट मदर्स : किराए की कोख का पनपता धंधा

विज्ञान आज भगवान का रुप ले चुका है. पहले तो इसने सिर्फ मारने के साधन बनाए थे लेकिन अब उसने जन्म देने की कला भी सिखा दी. विज्ञान ने हमारी जीवनशैली को एक नई ऊंचाई दी है और यह सही भी है क्योंकि प्रगति और विकास के माध्यम से स्थापित होने वाली जीवन-शैली ही आधुनिकता कहलाती है, जिसके प्रभाव से समय-समय पर मानवीय जीवन-मूल्यों में कभी थोड़े-बहुत तो कभी ज्यादा परिवर्तन आते ही हैं. अब इसी विज्ञान का नया कमाल है कि जो दपंत्ति संतान के सुख से विहीन थे उनके लिए सरोगेसी की सुविधा.
सरोगेसी यानी वास्तविक मां की जगह एक दूसरी महिला बच्चे को जन्म देने के लिए अपनी कोख का इस्तेमाल करे. सरोगेसी को वह महिलाएं अपनाती हैं, जो बच्चे को जन्म देने में असमर्थ होती हैं.
आज जहां सब बिकता है हमने मां और ममता को भी बेच दिया. कितना आगे निकल गया ना मानव ? भगवान की भी जरुरत नहीं. ममता जिस शब्द पर भगवान भी नतमस्तक हो जाते है आज बिकने लगी. लेकिन आज भारत जैसे गरीब और विकासशील देश में यह प्रकिया एक धंधे की भांति हो गयी है. जरा इन आंकड़ों पर नजर डालिए कि संपूर्ण दुनिया में प्रतिवर्ष 500 बच्चे सरोगेसी के जरिए पैदा होते हैं और उनमें से 200 बच्चों का जन्म भारत में होता है. इसकी कुछ विशेष वजहें भी हैं जैसे कानूनी मान्यता, कम खर्च आदि.
तो आइए जानते हैं कि क्यों और कैसे भारत में ममता बिकाऊ हो गई और क्या सरोगेसी ने हमें नई उपलब्धि दी है:

सरोगेसी है क्या
सरोगेसी का शाब्दिक अर्थ होता है किसी और को अपने काम के लिए नियुक्ता करना.इस प्रकिया में वास्तविक मां की जगह एक दूसरी महिला बच्चे को जन्म देने के लिए अपनी कोख देती है. सरोगेसी को वह महिलाएं अपनाती हैं, जो बच्चे को जन्म देने में असमर्थ होती हैं. शुक्राणु और अंडाणु को निषेचित करा कर भ्रूण को उस महिला की कोख में डाल दिया जाता है.
इसमें एक प्रतिशत अंश भी सरोगेट मदर का नहीं होता है. इस प्रक्रिया से बच्चों के साथ उनका जेनेटिक संबंध बरकरार रहता है. इस प्रक्रिया से जन्मे बच्चे का रंग, लंबाई, बालों का रंग और प्रकृति, आनुवांशिक गुण आदि सभी जेनरिक मां-बाप के होते हैं.

सरोगेसी के प्रकार
ट्रेडिशनल सरोगेसी: इस प्रकिया में दंपत्ति में से पिता के शुक्राणुओं को एक स्वास्थब महिला के अंडाणु के साथ प्राकृतिक रूप से निषेचित किया जाता है. शुक्राणुओं को सरोगेट मदर के नेचुरल ओव्युुलेशन के समय डाला जाता है. इसमें जेनेटिक संबंध सिर्फ पिता से होता है.
गेस्टे शनल सरोगेसी: इस पद्धति में माता-पिता के अंडाणु व शुक्राणुओं का मेल परखनली विधि से करवा कर भ्रूण को सरोगेट मदर की बच्चेददानी में प्रत्यातरोपित कर दिया जाता है. इसमें बच्चेस का जेनेटिक संबंध मां और पिता दोनों से होता है. इस पद्धति में सरोगेट मदर को ओरल पिल्सह खिलाकर अंडाणु विहीन चक्र में रखना पड़ता है जिससे बच्चाइ होने तक उसके अपने अंडाणु न बन सकें.

आखिर क्यों बिकती और खरीदी जाती है कोख
सरोगेसी की सबसे बड़ी वजह है गरीबी. गरीब महिलाओं की पैसों की चाहत उन्हें इस काम के लिए राजी करवा देती है. जब पुरुष गरीबी की वजह से अपना खून और किडनी बेचने को तैयार हो जाता है ताकि उनके घर में चूल्हा जल सके तो ठीक वैसे ही महिलाएं भी गरीबी के कारण अपनी कोख में दूसरे के बच्चे को पाल लेती हैं.
बांझपन भी सरोगेसी की एक बड़ी वजह मानी जाती है. बांझपन के कारण महिलाएं भी अपने पति का इस कृत्य कदम में साथ देने को तैयार हो जाती हैं. विश्व की तो बात ही नहीं सिर्फ भारत में ही हर वर्ष जितनी शादियां होती है उसमें से 10 % महिलाएं बांझपन से ग्रस्त होती हैं.

कौन बनती है सेरोगेट मदर
सेरोगेट मदर की खोज के लिए पहले डॉक्टर की सलाह ली जाती है फिर विभिन्न अखबारों में और आज-कल तो इंटरनेट पर भी सरोगेट मां की खोज की जा रही है. उसके बाद महिला की पूरी मेडिकल जांच की जाती है कि कहीं उसे कोई रोग तो नहीं. सरोगेट मां की उम्र अमूमन 18 साल से 35 साल के बीच होती है.

एक कोख की कीमत
सरोगेट मां का सारा खर्च वही लोग उठाते हैं जिन्हें बच्चा चाहिए. किराए पर कोख लेने का खर्च भारत में जहां तीन-चार लाख तक होता है वहीं दूसरे देशों में कम से कम 35-40 लाख रुपए तक खर्च आता है. खर्च ज्यादा होने के कारण अब विदेश से भी लोग भारत की तरफ रुख करने लगे हैं और देखते ही देखते यह कारोबार पूरे हिंदुस्तान में फैल चुका है खासकर दक्षिण भारत में.

भारत में इसका फैलाव
सेरोगेसी भारत के कुछ खास स्थानों में सबसे ज्यादा फैला है जैसे उड़ीसा, भोपाल, केरल, तमिलनाडु, मुंबई आदि. एक चीज जो ध्यान देने योग्य है वह है सेरोगेसी ऐसे राज्यों में ज्यादा देखने को मिली जहां पर्यटक ज्यादा आते हैं यानी भारत विदेशियों के लिए एक ऐसी जगह बन चुका है जहां सेरोगेट मदर्स आसानी से मिल जाती हैं. और अब तो सरोगेसी ने पर्यटन का रुप ले लिया है. इच्छुक पैरेंट्स को टूर ऑपरेटर पूरा पैकेज ऑफर करते हैं. भारत के नर्सिंग होम्स से उनका संपर्क रहता है.
भारत में सरोगेसी इसलिए भी आसान है क्योंकि हमारे यहां अधिक कानून नहीं हैं और जो हैं उनकी नजर में यह मान्यता प्राप्त है. इसके कुछ नियम निम्न हैं:
1. सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे पर जेनेटिक माता-पिता का हक होगा. गोद लेने वाले मामलों की तरह इसमें किसी घोषणा की जरूरत नहीं होती.
2. बच्चे के जन्म-प्रमाण पत्र में केवल जेनेटिक माता-पिता का ही नाम होना चाहिए.
3. सरोगेसी कांट्रेक्ट में सरोगेट मां के जीवन बीमा का उल्लेख निश्चित रूप से किया जाना चाहिए.
4. यदि सरोगेट बच्चे की डिलीवरी से पहले जेनेटिक माता-पिता की मृत्यु हो जाती है, उनके बीच तलाक हो जाता है या उनमें से कोई भी बच्चे को लेने से मना कर दे, तो बच्चे के लिए आर्थिक सहयोग की व्यवस्था की जाए.

आखिर विवाद किस बात पर
आज सरोगेसी एक विवादास्पाद मुद्दा बनता जा रहा है. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें सरोगेट मदर ने बच्चाा पैदा होने के बाद भावनाओं के आवेश में आकर बच्चेस को उसके कानूनी मां-पिता को देने से इंकार कर दिया.
ऐसे मामले तो सबसे ज्यादा गंभीर हैं जबकि बच्चाा विकलांग पैदा हो जाए या फिर करार एक बच्चेा का हो और जुड़वा बच्चेब हो जाएं तो जेनेटिक माता-पिता बच्चे को अपनाने से इंकार करने लगते हैं. भारत में एक बात और विवाद का विषय है वह है विदेशी ग़े-दंपतियों को बच्चा कैसे दिया जाए? सबसे ज्यादा दिमाग चकराने वाला विषय है यह.

क्या कोई कानून है जो सरोगेट मां को भी ध्यान में रखे
अब सवाल हम सब के लिए कि क्या नौ महीने तक पेट में रखने और जन्म देने वाली सरोगेट मदर का बच्चेए के प्रति भावनात्म क प्रेम क्या कानूनी कागजों में दस्तंखत कराने के बाद खत्मे किया जा सकता है? और क्या जन्म से पहले पता होता है कि बच्चा विकंलाग होगा या जुड़वा?
सरोगेट मां तो सिर्फ अपने कोख में दूसरे के भ्रूण को पालती है यह कुछ ऐसा होता है जैसे आपने सब्जी दूसरे के घर से ली और पकाया अपने ऑवन में. अब सब्जी कैसी होगी आप कैसे जान सकते हैं. अगर बच्चा विकलांग है या जुड़वा है तो इसमें दोष तो जेनेटिक मां-बाप का हुआ न. सेरोगेट मां तो पैसों के लालच में आकर अपनी कोख उधार देती है अब चाहे उसमें से कुछ भी जन्में. एक गरीब मां अपनी गरीबी में आकर नौ महीने तक अपनी, समाज और परिवार के नजरों के तीखे तीरे झेल कर एक बच्चे को जन्म देती है और अगर बच्चे में कुछ दोष होने पर लेने वाला मना कर दे तो ऐसे में उस गरीब मां पर क्या बीतेगी. आखिर कैसे कोई अपनी ही औलाद को लेने से मना कर सकता है. और एक और चीज गे-दंपति भी अगर जुड़वा बच्चे या विकलांग बच्चा होने पर उसे लेने से मना करें तो क्या हो? एक तो पहले वह उसका देखभाल कर नहीं सकते और अगर छोड़ देते है तो यह सरोगेट मां पर जुल्म होगा. आखिर क्या ममता की यही कीमत है. आज के युग में जहां सब बिकता है अब क्या ममता भी बिकेगी. यह विषय आज के समाज का सबसे बडा सवाल है क्योंकि हमारा आने वाला कल इससे प्रभावित होने वाला है जहां जीवन में सफलता और कैरियर की भाग-दौड में महिलाएं बच्चा पैदा करने से बचेंगी, तब ऐसे मामले भी बढ़ सकते हैं. अगर समय रहते इस विषय पर कानून नहीं बना तो भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है.

महिला के कोख की कीमत क्या हो सकती है
क्या दुनिया में कहीं भी किसी भी मां की कोख का व्यापारिक सौदा हो सकता है? या क्या दुनिया में किसी भी मां की कोख की कीमत महज 6 से 7 लाख रुपए हो सकती है? शायद नहीं, फिर क्यों भारतीय महिलाओं की कोख को व्यापार बना दिया गया है !!.
ब्रिटेन के मशहूर अख़बार ‘द डेली मेल’ की वेबसाइट पर ‘सरोगेसी’ (किराए की कोख) के मुद्दे पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में भारत को ‘बेबी फॉर्म‘ और ‘बेबी फैक्ट्री‘ जैसे बेहद आपत्तिजनक नामों से पुकारा गया है. यही नहीं, अपनी कोख किराए पर दे रही भारतीय महिलाओं को बेहद गरीब भी बताया गया है. आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल ही भारत में करीब 2000 बच्चों ने किराए की कोख से जन्म लिया. एक अनुमान के मुताबिक इनमें से आधे बच्चे ब्रिटिश नागरिकों के थे. हालांकि, किराए की कोख से बच्चे पैदा करने वालों में अधिकतर ‘समलैंगिक’ होते हैं और वे अपने बच्चे के लिए स्पर्म या फीमेल एग डोनर का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ऑक्टाविया के मामले में ‘एग’ उनका था और ‘स्पर्म’ उनके पति का. यानि इस मामले में मां ने सिर्फ अपनी कोख ही किराए पर दी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारतीय महिलाओं के प्रति अपमानजनक बातों और आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए हमारे देश का कानून नहीं जिम्मेदार है? भारत में साल 2002 में सरोगेसी को मान्यता दे दी गई थी. लेकिन अभी तक इसे लेकर कोई पुख्ता कानून नहीं है. सरोगेसी बिल अगले साल 2013 में संसद में पेश किया जा सकता है.

बेबी फैक्ट्री या कोख का व्यापार
एक महिला की कोख को बेबी फॉर्म या बेबी फैक्ट्री या कोख का व्यापार जैसे शब्द दिए जा रहे हैं. सवाल यह है कि गरीबी की मजबूरी क्या इस हद तक आ जाती है कि एक महिला अपनी कोख बेचने के लिए मजबूर हो जाती है. यदि एक महिला किसी मजबूरी के कारण कोख को बेचने जैसा कदम उठाती है तो समाज उसे कोख का व्यापार जैसे शब्द दे देता है. सच तो यह है कि यदि यह मान लिया जाए कि महिला ने अपनी कोख को कुछ पैसे के लिए बेचा है तो खरीदने वाला यह क्यों भूल जाता है कि उसने भी किसी महिला की कोख को खरीदा है. आखिरकार जिम्मेदार दोनों ही हैं फिर सिर्फ महिला के लिए कोख का व्यापार करने जैसे शब्द क्यों? “मैं अपने बच्चे की सरोगेट मां के बारे में न ज्यादा जानती हूं और न ही ज्यादा जानना चाहती हूं. यह एक व्यापारिक रिश्ता है जिसमें मैंने एक गरीब भारतीय महिला की कोख किराये पर ली है. मुझे अपने परिवार के लिए बच्चा मिल जाएगा और गरीब महिला को पैसा.”
यह शब्द उस ब्रिटिश महिला के हैं जिसके बच्चे को जन्म भारतीय महिला दे रही है. उस ब्रिटिश महिला के लिए कोख किराये पर लेना सिर्फ एक व्यापारिक रिश्ता है. यह कैसा व्यापारिक रिश्ता है जिसमें जन्म देने वाली मां अपने बच्चे को अपना बच्चा नहीं कह सकती है ना जन्म लेने वाला बच्चा अपनी जन्म देने वाली मां को मां कह सकता है. समाज पर भी हैरानी होती है कि वह हर चीज की कीमत लगा देता है और अब तो मां की कोख की भी कीमत लगा दी गई है.
यदि सेरोगेसी शब्द से भावनात्मक बातों को निकाल दिया जाए तो यह सच है कि यदि भारतीय महिलाओं को विदेशों में कोख के व्यापार के लिए जाना जाएगा तो वो दिन भी बहुत पास ही होगा जब भारतीय महिलाओं का अपहरण किया जाएगा वो भी कोख को किराये पर लेने के लिए या फिर जबरदस्ती भारतीय महिलाओं की कोख पर अपना हक जमा कर अपना बच्चा पैदा कराने के लिए.

आज के युग में जहां सब बिकता है अब क्या ममता भी बिकेगी?

Tuesday, September 11, 2012

चंदे बाज गिरोह

भारत में करोड़ों लोग अभी भी 20 रुपए से कम में प्रतिदिन गुजारा करते है, लाखों लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पाता, लेकिन देश की राजनीतिक पार्टियां चंदे के रूप में हजारों करोड़ रुपए कमा रही हैं।
ये खुलासा राजनीतिक दलों की आयकर रिपोर्ट और उनके द्वारा चुनाव आयोग में चंदा देने वालों के बारे में दी गई जानकारी के अध्ययन के बाद हुआ है। भारत की राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर 2004 के बाद से 4662 करोड़ रुपए चंदा वसूला है। ये रकम 2011-12 के केंद्रीय बजट में माध्यमिक शिक्षा के लिए आवंटित 3124 करोड़ रुपए से कहीं ज्यादा है।
चंदा वसूलने की दौड़ में सत्ताधारी कांग्रेस सबसे आगे है। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस ने साल 2004 के बाद से अब तक 2008 करोड़ रुपए चंदा वसूला है। संसद में विपक्ष की भूमिका निभा रही बीजेपी दूसरे नंबर है। बीजेपी ने इस दौरान 994 करोड़ रुपए चंदे के रूप में इकट्ठा किया है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और इलेक्शन वॉच नाम के दो गैर सरकारी संगठनों ने एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बारे में जानकारी दी है। इन संगठनों ने देश की 23 राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे के बारे में जानकारी इकट्ठा की और फिर उस पर रिपोर्ट तैयार की।
इस रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस की ज्यादातर आमदनी कूपन बेचने से हुई है। खासतौर से जबसे कांग्रेस सत्ता में आई है तब से तो कूपन पर मिलने वाला चंदा और बढ़ गया है। इस दौरान उसे दान के रूप में महज 14.42 प्रतिशत ही मिले हैं। कांग्रेस को दान देने वालों में टाटा और जिंदल से लेकर एअरटेल का भारती ट्रस्ट और अडानी ग्रुप शामिल हैं।
हालांकि बीजेपी की कहानी इसके उलट है। बीजेपी ने ज्यादातर चंदा कॉर्पोरेट घरों से वसूला है। इसकी कमाई का 81.47 फीसदी हिस्सा चंदे से आया है। बीजेपी को चंदा देने वालों में विवादित कंपनी वेदांता भी शामिल है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक सदस्य प्रो. जगदी छोकर कहते हैं कि ये राजनीतिक दलों का ब्लैक बॉक्स है। इस देश में भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत राजनीतिक दान है। राजनीतिक दलों को मिलने वाले पैसों को नियंत्रित करके भ्रष्टाचार को समाप्त तो नहीं किया जा सकता लेकिन उसे काफी हद तक कम किया जा सकता है।
एनजीओ की रिपोर्ट में सबसे दिलचस्प बात ये उभर कर सामने आई है कि कुछ संगठन ऐसे हैं जिन्होंने कांग्रेस और बीजेपी दोनों को चंदा दिया है। आदित्य बिड़ला ग्रुप से जुड़े हुए जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ने कांग्रेस को 36.4 करोड़ का चंदा दिया तो बीजेपी को इसी ट्रस्ट ने 26 करोड़ का चंदा दिया। चंदे की दौड़ में राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां सबसे आगे हैं तो क्षेत्रीय पार्टियां भी पीछे नहीं। 2004 से 2011 के बीच में दलितों की बहुजन समाज पार्टी ने 484 करोड़ का चंदा इकट्ठा किया। इसके ठीक बाद नंबर आता है गरीबों और मजदूरों की राजनीति करने वाली सीपीएम का। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 2004 से 2011 के बीच 417 करोड़ रुपये बतौर चंदा इकट्ठा किया। इस पायदान पर समाजवादी पार्टी 278 करोड़ के साथ सीपीएम से पीछे है। चंदा इकट्ठा करने के मामले में सबसे कमजोर सीपीआई है। सीपीआई इन सालों में 6.7 करोड़ रुपए का ही चंदा इकट्ठा कर सकी।
दूसरी राजनीतिक पार्टियों जैसे तृणमूल ने इस दौरान 9 करोड़, शिवसेना ने 32 करोड़, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने 4 करोड़, लालूप्रसाद यादव की पार्टी राजद ने 10 करोड़ और फॉरवर्ड ब्लॉक ने 98 लाख रुपए का चंदा हासिल किया है। गैर सरकारी संगठनों की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कुछ ऐसे क्षेत्रीय दल भी हैं जिन्होंने कभी चुनाव आयोग को अपनी आय के स्रोतों के बारे में जानकारी ही नहीं दी है।

Monday, September 3, 2012

अनेक देशों का शिक्षक दिवस

भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है जबकि अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस का आयोजन 5 अक्टूबर को होता है। रोचक तथ्य यह है कि शिक्षक दिवस दुनिया भर में मनाया जाता है लेकिन सबने इसके लिए एक अलग दिन निर्धारित किया है। कुछ देशों में इस दिन अवकाश रहता है तो कहीं-कहीं यह कामकाजी दिन ही रहता है। यूनेस्को ने 5 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस घोषित किया था। साल 1994 से ही इसे मनाया जा रहा है। शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से इसकी शुरुआत की गई थी।

भारत में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश के द्वितीय राष्ट्रपति रहे राधाकृष्णन का जन्मदिवस होता है।
चीन में 1931 में नेशनल सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शिक्षक दिवस की शुरूआत की गई थी। चीन सरकार ने 1932 में इसे स्वीकृति दी। बाद में 1939 में कन्फ्यूशियस के जन्मदिवस, 27 अगस्त को शिक्षक दिवस घोषित किया गया लेकिन 1951 में इस घोषणा को वापस ले लिया गया।

साल 1985 में 10 सितम्बर को शिक्षक दिवस घोषित किया गया। अब चीन के ज्यादातर लोग फिर से चाहते हैं कि कन्फ्यूशियस का जन्मदिवस ही शिक्षक दिवस हो।
रूस में 1965 से 1994 तक अक्टूबर महीने के पहले रविवार के दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता रहा। साल 1994 से विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को ही मनाया जाने लगा।
अमेरिका में मई के पहले पूर्ण सप्ताह के मंगलवार को शिक्षक दिवस घोषित किया गया है और वहां सप्ताहभर इसके आयोजन होते हैं।
थाइलैंड में हर साल 16 जनवरी को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाया जाता है। यहां 21 नवंबर, 1956 को एक प्रस्ताव लाकर शिक्षक दिवस को स्वीकृति दी गई थी। पहला शिक्षक दिवस 1957 में मनाया गया था। इस दिन यहां स्कूलों में अवकाश रहता है।
ईरान में वहां के प्रोफेसर अयातुल्लाह मोर्तेजा मोतेहारी की हत्या के बाद उनकी याद में दो मई को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। मोतेहारी की दो मई, 1980 को हत्या कर दी गई थी।
तुर्की में 24 नवंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वहां के पहले राष्ट्रपति कमाल अतातुर्क ने यह घोषणा की थी। मलेशिया में इसे 16 मई को मनाया जाता है, वहां इस खास दिन को 'हरि गुरु' कहते हैं।

Sunday, June 24, 2012

मंत्रालय ने किया अग्निदाह

जिस देश में आई. पी. सी. की धारा 309 के तहत आत्महत्या करना दण्डनीय अपराध है, और वो अपराधी महाराष्ट्र के विदर्भ में सबसे ज़्यादा हैं। अब इसी अपराध का गुनहगार महाराष्ट्र मंत्रालय भी हो गया है। सामान्यतौर पर हम अक्सर समाचार पत्रों में पढ़ते रहते हैं कि गृह कलह से ऊबकर युवती ने आग लगाकर की आत्महत्या, कर्ज में फंसे किसान ने की आत्महत्या यानि किसी न किसी समस्या से ग्रसित इंसान जब मौत को गले लगाता है तो कहीं न कहीं वो उस व्यवस्था का शिकार हो जाता है, जिसका वो सामना नहीं कर पाता। कुछ इसी तरह की समस्यायें जैसे भ्रष्टाचार, घोटाला, अवैध वसूली जैसी फाइलों से मंत्रालय ग्रसित हो गया तब मंत्रालय ने आग लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश की। यानि अब महाराष्ट्र में आम इंसानों की तरह महाराष्ट्र मंत्रालय भी अग्निदाह के लिए निकल पड़ा है।


मंत्रालय में लगी आग----- 21 जून को दोपहर 2 बजकर 40 मिनट का वक़्त था। उमस भरी दोपहर, खचाखच भरा मंत्रालय, मुख्यमंत्री समेत अधिकांश मंत्रियों की मीटिंग्स चल रही थी। पसीने से तर आम लोग अपने कामकाज के चक्कर में एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर की परिक्रमा कर रहे थे। तभी 55 वर्षीय इस मंत्रालय का सब्र का बांध टूट गया और चौथी मंज़िल के आदिवासी विकास मंत्री बबनराव पाचपूते के दफ्तर से अग्निप्रवेश हो गया । मंत्रालय लकड़ी के फर्नीचर से सुसज्जित है। लिहाजा अग्नि देवता को मंत्रालय लीलने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा, और देखते ही देखते मंत्रालय धू-धू कर जलने लगा। आठ करोड़ जनता को संचालित करने वाला मंत्रालय चौथी मंजिल से छठी मंजिल को जला बैठा। मंत्रियों के भारी भरकम बजट से बनने वाले ये दफ्तर चंद समय में आग के आगोश में समाते चले गये। यह मंत्रालय है जहाँ भ्रष्टाचार को शिष्टाचार में पूजा जाता है। मंत्रालय में मंत्रियों की योजनायें भ्रष्टाचार और घोटालों से लबालब भरी गठरियों को रखने की जगह जब कम पड़ गयी, समाज कल्याण विभाग जनता का कम मंत्री जी का कल्याण ज़्यादा कर रहा हो, सहकार विभाग मंत्रियों का मनचाहा मैदान बन गया हो, नगर विकास विभाग बिल्डरों का चारागाह बन गया हो, आवास मंत्रालय मुनाफाखोरी का अड्डा बना दिया गया हो, मुख्यमंत्री का कार्यालय खुद किसी मरियल से कम न हो, क्योंकि सबसे ज़्यादा फाइलें मुख्यमंत्री के पास हैं, जिन पर मुख्यमंत्री महोदय को एक चिड़िया (हस्ताक्षर करना) बैठाना है। गृह मंत्रालय की नपुंसकता है कि सैकड़ों बेगुनाह भारतीय नागरिकों को कीड़े-मकोड़ों की तरह मारने वाला कसाब दिनों दिन पहलवान होता जा रहा है। बेशर्मी की हद तो तब पार हो जाती है जब डिजॉस्टर मैनेजमेंट भी आग में खाक हो जाता है। डिजॉस्टर मैनेजमेंट जिसका काम पूरे प्रदेश में राहत देना होता है, लेकिन वो खुद अपना घोसला नहीं बचा सका। कई ऐसे विभाग हैं, जिससे आम जनता को कोई फायदा नहीं है। किसान महंगाई के रफ़्तार से आत्महत्या कर रहे हैं। आम नागरिक भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फड़फड़ा रहा है। कबीरदास जी ने भी लिखा है कि “ दुर्बल को न सताइये, जाके मोटी हाय, मुई खाल की स्वास से सार भसम होई जाये ” यानि बेगुनाह आम नागरिकों को जब बेवजह परेशान किया जाये तो ये उनकी “आह” है जो मंत्रालय को लग गयी, और जब मंत्रालय लालाफीताशाही के कुकर्मों से बाहर नहीं निकल पाया तब मंत्रालय ने आग लगा कर आत्महत्या करने की कोशिश की।

अध्याय अभी यहीं पर ही नहीं खत्म होता है। भ्रष्टाचार और घोटालों से सम्बन्धित फाइलें भले ही राख हो गयीं हों, इसका मतलब ये नहीं है कि भ्रष्टाचार और घोटालों का खाता (Account) बंद हो गया हो। बल्कि अब ब्याज़ सहित नये सिरे से खाता खुलने के चांस बढ़ गये हैं।

Thursday, May 24, 2012

तेल में लगी आग का अंकगणित

संप्रग सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल की तीसरी वर्षगांठ पूरे होते ही मंहगाई की मार झेल रही जनता को जोरदार झटका देते हुए पेट्रोल के भाव 7.50 पैसे प्रति लीटर बढ़ा दिए। लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या सरकार तेल कंपनियों को फायदा पहुंचाने के नाम पर जनता को लूट रही है या तेल कंपनियों ने अपने फायदे के लिए सरकार को गुमराह किया है...
दरअसल एक ही झटके में की जाने वाली यह अब तक की सबसे बड़ी वृद्धि है। सरकार का कहना है कि डॉलर के मुकाबले रुपए की विनिमय दर में भारी गिरावट और तेल कंपनियों को हो रहे भारी नुकसान को देखते हुए यह वृद्धि जरूरी हो गई थी। जहां प्रणब मुखर्जी ने इस मामले से पल्ला झाड़ते हुए इसका ठीकरा तेल कंपनियों के सिर मढ़ा है वहीं संप्रग सरकार के सहयोगी दलों ने इस वृद्धि पर नाराजगी जताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है।
मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती है, पेट्रोल के साथ ही सरकार ने एलपीजी, केरोसिन और डीजल के दाम में भी इजाफे की तैयारी ली है। सरकारी सूत्रों के अनुसार एलपीजी के दाम में लगभग 100 रुपए (प्रति सिलेंडर), केरोसिन व डीजल के दाम में 5-7 रुपए प्रति लीटर की बढोत्तरी करने का प्रस्ताव है।
इस समय एलपीजी पर सरकार को प्रति घरेलू सिलेंडर पर लगभग 479 रुपए का घाटा होता है। वहीं, केरोसिन की बिक्री पर सरकार को प्रति लीटर 31.41 रुपए और डीजल की बिक्री पर 13.64 रुपए प्रति लीटर का घाटा हो रहा है।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि 2011 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक प्रमुख तेल उत्पादन कंपनियों जैसे आईओसी को टैक्स भरने के बाद भी 7445 करोड़, एचपीसीएल को 1539 करोड़ और बीपीसीएल को 1547 करोड़ रु. मुनाफा हुआ। इस तरह से देखा जाए तो तेल कंपनियों का घाटा होने का दावा झूठा सिद्ध होता है; साथ ही सरकार डीजल, गैस और केरोसीन पर सब्सिडी देती है तो इन पर घाटे की बात में भी दम नहीं लगता।
पिछले 2 सालों में सरकार और कंपनियों ने मिलकर महंगे क्रूड ऑयल की दुहाई देते हुए पेट्रोल के दाम 14 बार बढ़ाए हैं। सरकार द्वारा 26 जून 2010 को पेट्रोल नियंत्रण मुक्त किया था। तब तेल कंपनियों ने कहा था कि कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों को ध्यान में रखकर देश में पेट्रोल के दाम तय होंगे।
लेकिन सच यह है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड का दाम 124 डॉलर प्रति बैरल था, तब भी तेल कंपनियां घाटा बता रही थीं, आज क्रूड का भाव 91.47 तब भी घाटा हो रहा है।
सबसे हैरानी की बात है कि पड़ोसी देश जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन में मुद्रा के डॉलर के मुकाबले टूटने पर भी सिर्फ एक या दो बार ही पेट्रोल के दाम बढ़े। आर्थिक रूप से जर्जर हो चुके पाकिस्तान में तो अभी पेट्रोल के दाम घटाने की बात हो रही है।

Monday, March 19, 2012

बजट बनने का मकडजाल

वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में बजट पेश कर दिया है। इस बार बजट पर मिली-जुली प्रतिक्रिया मिल रही है। पर क्या आप जानते हैं कि बजय कैसे तैयार किया जाता है। आइए जानते हैं-
केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियां तय करने का काम प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार का एक कोर ग्रुप करता है। इस कोर ग्रुप में प्रधानमंत्री के अलावा वित्त मंत्री और वित्त मंत्रालय के अधिकारी होते हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष को भी इस ग्रुप में शामिल किया जाता है।
बजट पर वित्त मंत्रालय की नियमित बैठकों में वित्त सचिव, राजस्व सचिव, व्यय सचिव, बैंकिंग सचिव, संयुक्त सचिव (बजट) के अलावा केन्द्रीय सीमा एवं उत्पाद शुल्क बोर्ड के अध्यक्ष हिस्सा लेते हैं। वित्तमंत्री को बजट पर मिलने वाले योजनाओं और खर्चों के सुझाव वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग को भेज दिए जाते हैं जबकि टैक्स से जुड़े सारे सुझाव वित्त मंत्रालय की टैक्स रिसर्च यूनिट (टीआरयू) को भेजे जाते हैं।
इस यूनिट का प्रमुख एक संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी होता है. प्रस्तावों और सुझावों के अध्ययन के बाद यह यूनिट कोर ग्रुप को अपनी अनुशंसाएँ भेजती है।
पूरी बजट निर्माण प्रक्रिया के समन्वय का काम वित्त मंत्रालय का संयुक्त सचिव स्तर का एक अधिकारी करता है। बजट के निर्माण से लेकर बैठकों के समय तय करने और बजट की छपाई तक सारे कार्य इसी अधिकारी के ज़रिए होते हैं।
कैदखाने में तब्दील हो जाता है मंत्रालय
बजट पेश होने से दो दिन पहले वित्त मंत्रालय को पूरी तरह से सील कर दिया जाता है। बजट निर्माण की प्रक्रिया को इतना गोपनीय रखा जाता है कि संसद में पेश होने तक इसकी किसी को भनक भी न लगे।
वित्त मंत्रालय दो दिन पहले पूरी तरह सील कर दिया जाता है। इस गोपनीयता को सुनिश्चित करने के लिए वित्त मंत्रालय के नार्थ ब्लाक स्थित दफ्तर को बजट पेश होने के कुछ दिनों पहले से एक अघोषित 'क़ैदखाने' में तब्दील कर दिया जाता है।
बजट की छपाई से जुड़े कुछ कर्मचारियों को यहां पुलिस व सुरक्षा एजेंसियो के कड़े पहरे में दिन-रात रहना होता है.
बजट के दो दिन पहले तो नार्थ ब्लाक में वित्त मंत्रालय का हिस्सा तो पूरी तरह सील कर दिया जाता है। यह सब वित्त मंत्री के बजट भाषण के पूरा होने और वित्त विधेयक के रखे जाने के बाद ही समाप्त होता है।
बजट तैयारी के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं -
1.वित्त मंत्री का बजट भाषण
संसद में वित्त मंत्री का बजट भाषण अगले वर्ष के लिए सरकार की प्रस्तावित नीतियों का एक विस्तृत ब्यौरा होता है। यह भाषण बजट का दिशा निर्देशक कहा जा सकता है।
2.बजट का सार
लगभग 15 पृष्ठों के इस दस्तावेज़ को केन्द्र सरकार की बैलेंस-शीट कह सकते हैं। इसमें केन्द्र सरकार की आय, प्राप्तियों और खर्च का अनुमान होता है। केन्द्र सरकार का धन कहाँ से आता है और कहाँ जाता है, इसकी रूपरेखा इसी दस्तावेज़ में होती है।
3.केंद्र सरकार की अनुदान माँगें
इस दस्तावेज़ में भारत सरकार की समेकित निधि के द्वारा सभी मंत्रालयों और विभागों के खर्च का ब्यौरा होता है। प्रत्येक मांग में ज़्यादातर एक सेवा के लिए आवश्यक धनराशि दिखाई जाती है। अर्थात इसमें राजस्व खाते का व्यय और उस सेवा के लिए पूंजी खाते का व्यय (ऋण सहित) दिखाए जाते हैं।
4.व्यय बजट
यह केन्द्र सरकार के बजट का व्याख्यात्मक ज्ञापन है। इसके तीन भाग होते हैं। पहला सामान्य भाग, दूसरा आयोजना भिन्न-व्यय और तीसरा आयोजना परिव्यय।
5. प्राप्ति बजट
इस दस्तावेज़ के दो मुख्य भाग होते हैं. राजस्व प्राप्तियां और पूंजी। भाग 'ख' में बाजार ऋण, विदेशी सहायता, अल्प बचतें, सरकारी भविष्य निधियां, विभिन्न जमा खातों की संवृद्धियां तथा रेलवे जैसे विभागों की प्रारक्षित निधियां शामिल हैं। इसी भाग में केन्द्रीय करों और शुल्कों में राज्यों के हिस्से का राज्यवार विवरण दिया जाता है।
6. वित्त विधेयक
बजट के ज़रिए किए जाने वाले वित्तीय बदलावों की संसद से वित्त विधेयक के ज़रिए मंजूरी ली जाती है। इस विधेयक के पारित होने के बाद ही बजट पास माना जाता है। वित्त विधेयक के दूसरे खंड में इसका विस्तृत व्याख्यात्मक विवरण होता है।
7. अन्य दस्तावेज़
बजट के साथ पेश किए जाने वाले अन्य दस्तावेज़ों में पिछले वर्ष के लिए केन्द्र सरकार के सालाना वित्तीय विवरण पर एक संक्षिप्त ज्ञापन पेश किया जाता है। इस विवरण में पिछले वर्ष के बजट अनुमानों और वास्तविक व्यय व प्राप्तियों का ब्यौरा होता है।

Tuesday, February 14, 2012

यूरोपीय संघ के नौ देशों की ऋण साख घटी

रेटिंग एजेंसी मूडीज ने इटली, स्पेन और पुर्तगाल की ऋण साख घटा दी है और फ्रास, ब्रिटेन तथा ऑस्ट्रिया को जोखिम पर रखा है।
मूडीज ने कहा कि ये सभी देश यूरो क्षेत्र के ऋण संकट से प्रभावित हो सकते हैं। मूडीज के इस कदम से यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या यूरोपीय नेता क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र को उबारने के लिए समुचित प्रयास कर रहे हैं। इसके साथ ही मूडीज ने स्लोवेनिया, स्लोवाकिया और माल्टा की रेटिंग भी सोमवार को घटा दी।
रेटिंग एजेंसी ने इसके लिए क्षेत्र की कमजोर आर्थिक संभावनाओ को कारण बताया है। साथ ही कहा है कि क्षेत्र को उबारने के लिए घरेलू स्तर पर मितव्ययता कार्यक्रम और ढाचागत सुधारो को बढ़ाने की जरूरत है, तभी प्रतिस्पर्धा बढ़ सकेगी। मूडीज ने यूरोप द्वारा इस संकट से निपटने के लिए उचित संसाधनो को जुटाने के प्रयासो पर भी सवाल खड़ा किया है। ऑस्ट्रिया, फ्रास और ब्रिटेन की ट्रिपल ए रेटिंग को कायम रखा गया है, पर उसे नकारात्मक परिदृश्य दिया गया है। यह इस बात का संकेत है कि यदि स्थिति और खराब होती है, तो इन देशो की रेटिंग घट सकती है।
इटली की रेटिंग को ए3 से घटाकर ए2 किया गया है, स्पेन की रेटिंग ए3 से ए और पुर्तगाल की बीए3 से बीए2 की गई है। स्लोवाकिया और स्लावेनिया की रेटिंग को एक पायदान घटाकर ए2 किया गया है, वहीं माल्टा की रेटिंग को भी एक कदम खिसकाया गया है।
खास बात यह है कि मूडीज ने यह कदम उस समय उठाया है जब यूनान और यूरोप ने एक बड़ी बाधा पार की है। यूनानी संसद ने एथेंस और अन्य शहरो में दंगों के बावजूद कड़ा मितव्ययता पैकेज पर सहमति जताई है।