Saturday, October 30, 2010

हीरो की ज़रुरत है नीरो की नहीं

हिंदुस्तान के जिस राज्य को विशेषाधिकार प्राप्त राज्य घोषित किया गया है जहां जीवनावश्यक वस्तुएं सस्ते दामों पर मुहैया कराई जाती हैं आज उस राज्य में आग के गोले बरस रहे हैं । जम्मू का जमूरा आज सत्ताधारी दल के पास नहीं है । मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला हों या प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह कश्मीर के नीरो बने हुए हैं। आज कश्मीर को नीरो कि नहीं हीरो कि ज़रुरत है। जो वहां दहकते शोलों को बुझाकर रहनुमाई दे सके । अब अगर कश्मीर के baare में ज्यादा जानकारी चाहिए, तो उसके अतीत को जानना ज़रूरी होगा। तभी कश्मीर क्यों जल रहा है का सटीक विश्लेषण हो सकेगा ।
राजतरंगिणी ( कल्हण ) तथा नीलमत पुराण के अनुसार , कश्मीर की घाटी पहले बहुत बड़ी झील थी । भू गर्भ शास्त्रियों के मतानुसार , भूगर्भीय परिवर्तों के कारण खादियानुसार , बारामुला में पहाड़ों के घर्षण से झील का पानी बहार निकल गया। फलतः घटी का निर्माण हो गया। पौराणिक आख्यान के अनुसार, कश्यप मुनि के नाम पर कश्मीर का naam प्रचलित हुआ।
ईसा पूर्व तीसरी सदी में सम्राट अशोक ने कश्मीर में बौद्धधर्म का प्रचार किया । छठी शताब्दी के आरम्भ में कश्मीर पर हूणों का अधिकार हो गया। इसके बाद यहाँ पर कार्कोट, उत्पल और लोहार वंशीय राजाओं ने शाशन किया। हिन्दू राजाओं में ललितादित्य मुक्तापीद ( सन 697 से 738 ) सबसे प्रसिद्ध राजा हुए । कश्मीर में इस्लाम का आगमन 13 वीं शताब्दी और 14वीं शताब्दी में हुआ। यहाँ के मुश्लिम शाशकों में जैन-उल आबदीन (१४२०-७०) ससबसे प्रसिद्ध शासक हुआ। सन १८५७ में कश्मीर मुग़ल शासकों के हाथ से निकलकर अहमद शाह अब्ब्दाली के पास चला गया । पठानों ने ६७ वर्ष तक कश्मीर पर शासन किया।

सन १७३३ से १७५२ तक राजा रणजीत सिंह ने जम्मू पर शासन किया। बाद में उन्होंने इसे पंजाब में मिलकर डोगरा शाही परिवार के एक व्यक्ति गुलाब सिंह को जम्मो सौंप दिया। गुलाब सिंह रणजीत सिंह के गवर्नरों में सबसे शक्तिशाली बन गया। सन १९४७ तक जम्मो पर डोगरा शासकों का आधिपत्य रहा। भारत द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद महाराजा हरि सिंह ने १९४७ में कश्मीर राज्य ko भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर किये।
महाराजा के पुत्र कर्ण सिंह १९५० में रेजिडेंट बने और आनुवंशिकी शासन की समाप्ति (१७ अक्टूबर १९५२) पर उन्हें सद्र - ए - रियासत पद की शपथ दिलाई गयी । भारत के संविधान में उल्लेखित धारा ३७० के अंतर्गत यह एक विशेषाधिकार प्राप्त राज्य है। जम्मू कश्मीर राज्य का संविधान २६ जनवरी १९५७ से लागू हुआ।
अब आज जम्मू के क्या हालत हैं ये सभी जान रहे हैं। क्या कहा जाए की १९५७ से अब तक नाटक चल रहा हैं और आगे भी चलता रहेगा। जब जम्मू में आग दहकने लगी तो केंद्र सरकार ने ताजा स्थिति का जायजा लेने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल भेजने का फैसला किया। ताज्जुब इस बात का रहा की किसी ने भी उमर अब्ब्दुल्ला सरकार को बर्खास्त करने की मांग तक नहीं की । इस पूरे बैठक में नेताओं के दिमाग में कितना दीवालियापन है ये भी साबित हो गया । माकपा, भाकपा, जदयू, राजद , लोजपा जैसी वामपंथी और समाजवादी विचार धारा चरने चरने वाली पार्टियों ने कश्मीर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून तथा जनसुरक्षा क़ानून पूरी तरह वापस लेने की मांग की हैं। यक्ष सवाल यहाँ पर ये उठता है कि देश के इन नेताओं को कितना ज्ञान है। कश्मीर में सुर्क्षों बालों को मिले जिन विशेषाधिकारों पर हो हल्ला मचा हुआ है। वे पहले ही ख़त्म हो चुके हैं। १९९८ में राज्य की नेशनल कांफ्रेस सरकार ने इसे अपने आप ही समाप्त हो जाने दिया था । और इसकी अवधिको आगे नहीं बढ़ाया था। मौजूदा समय में सरकारी रिकार्ड के मुताबिक़ जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बालों को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हैं। अब जिन लोगों को दोबारा भेजा हैं उन लोगों ने तो अलग ही राग अलापना शुरू कर दिया । उन्हें पाकिस्तान पापा नजर आ रहा हैं। जिसे राजा हरि सिंह ने कभी घास नहीं डाला उसे हमारे देश के बुद्धजीवी तत्व सब अमृत मान रहे हैं। लेखिका अरुंधती ने अपनी लेखनी के जरिये एक अलग ही शिगूफा रच दिया हैं। अरुंधति रॉय को वर्ष १९९७ के मैं बुकर पुरस्कार की विजेता हैं। अब उनको भारत की राज्य प्रणाली ही बुरी दिख रही हैं। माओवादियों की चिंता सताने के बाद अब जम्मू कश्मीर पर भी कलम फेर दिया हैं। जिन लोगों को सरकार ने जम्मू में दौरा करने के लिए भेजा हैं और जान रेपर्ट देने के लिए कहा हैं वही कह रहे हैं की जम्मू को पाकिस्तानी चश्में से देख रहे हैं। इस बंटवारे की वकालत करने वालों को एक बात बहुत बारीकी से समझना होगा दुनिया के जितने भी देस्शों का बंटवारा हुआ हैं सभी जनसंख्या या भू भाग के अधर पर हुआ हैं लेकिन इसे धर्म के नाम पर बाँट रहे हैं। और ये धर्म के नाम पर बांटने वाले सिर्फ अपना व्यक्तिगत उल्लू ही सीधा करेंगे। पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर में कितना विकास किया हैं और भारत के कश्मीर में कितना विकास हुआ हैं ये पहले देख लो। अलगाववादी क्यों पैदा हुए और किसने पैदा किया ? सरकार कश्मीर का इलाज ढूँढने के बजाय इसे लाइलाज छोड़ना चाहती हैं । देश के नेताओं ke दिमाग mein भरा हुआ hai की जब 63 साल से चल रहा hain तो आगे bhi चलता रहेगा। आज ज़रुरत हैं कश्मीर के हालत को ठीक अकरने के लिए। लेकिन सभी वहाँ जाकर नीरो बन कर काम कर रहे हैं। ज़रुरत हैं सही दिशा में काम करने की ।