Monday, May 31, 2010

मीठी नदी बन गई राजनीति का जायका

हर साल मानसून आने के पहले मीठी नदी को लेकर राजनीति शुरू हो जाती हैं। मई महीने का आखिरी सप्ताह सभी दलों के नेताओं के लिए एक पिकनिक केंद्र बन जाती हैं। हर दिन नेताओं का काफिला लावलश्कर के साथ पहुंचता हैं.और शुरू हो जाता हैं एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला। मीठी नदी का विकास मनपा और एम्.एमार.डी ए कर रही है। लिहजा कोई भी अपनी जिम्मेदारी ढंग से निभाने के बजे एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ना उचित समझते हैं।

संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यानसे निकलकर माहिम की खाड़ी में समाहित होने वाली मीठी नदी का अस्तित्व डेढ़ सौ साल पुराना हैं। मुंबई में पानी कि ज़रुरत को पूरा करने के लिए १८६० में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने विहार जलाशय का निर्माण करवाया था। जलाशय के लबालब होने के बाद बरसात का पानी मीठी नदी के जरिये अरब सागर में जाने लगा। उस समय मुंबई के उपनगरों कि आबादी बहुत कम थी। साकीनाका,मरोल,कुर्ला का काफी इलाका घने जंगलों से घिरा था। जिसके कारण बारिश के मौसम में मीठी नदी स्वच्छंद रूप से बहा करती थी। इसका पानी पीने के उपयोग में भी आता था। सामान्य रूप से मीठी नदी में केवल ४ माह ही पानी बहता था। बांकी समय में यह लगभग सूखी ही रहती थी.,जिसके कारण लोग इस नदी के बारे में बहुत कम जानते थे। मुंबई में हुयी औद्योगिक क्रांति के बाद शहर कि आबादी में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई। मीठी नदी जिस जगह से होकर बहती थी। लोगों ने वहां झोपड़े बना लिए। मीठी नदी के इर्द-गिर्द कल कारखानों ने अपनी जगह बना ली। और कारखानों का कचरा सधे इसी नदी में प्रवाहित होने लगा। इतना ही नहीं मरोल,अँधेरी,कुर्ला और साकीनाका के कई बड़े नालों को भी इससे जोड़ दिया गया। जिसके कारण मीठी नदी बदबूदार नदी के रूप में अपनी पहचान बनाने लगी। घरों का कचरा,प्लास्टिक,मकानों का मलबा आदि जमा होने के कारण नदी के पानी का प्रवाह धीरे - धीरे कम होता गया। लेकिन इस तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया। मानसून आने के पहले महानगरपालिका कि तरफ से थोड़ा बहुत कचरा निकाल कर साफ़ कर दिया जाता था। जिससे पानी निकलकर अरब सागर में चला जाता था।
२६ जुलाई २००५ को मुंबई में ९३४ सेमी से अधिक बारिश हुई और उसी समय समुद्र में मानसून का सबसे ऊंचा ज्वार भी उठा। बारिश का पानी समुद्र में जाने के बजे रिहायशी इलाकों में भरने लगा। देखते ही देखते मुंबई में बाढ़ आ गयी। और इसका ठीकरा मीठी नदी पर फोड़ दिया गया। ५० से अधिक लोगों की मौत और करोड़ों रुपये की सम्पत्ति के नुक्सान के बाद इसके कायाकल्प की कवायद शुरू हो गई। मुंबई महानगर पालिका,राज्यसरकार और केंद्र सरकार ने मिलकर सयुंक्त परियोजना पर काम शुरू किया। ५ साल का समय गुजर जाने के बाद भी मीठी नदी के स्वरूप में कोई विशेष फर्क नहीं आया। लेकिन ये अलग बात हैं कि मीठी नदी विकास परियोजना से जुड़े जन प्रतिनिधियों,अधिकारियों और ठेकेदारों का विकास तेजी से हुआ।
२६/७ की बाढ़ के बाद मुंबई mein बरसाती पानी की निकासी को लेकर कवायद शुरू ho गई। शहर के ५० से अधिक नालों को ब्रिम्स्तोवोड़ परियोजना से जोड़ा गया। जिसके लिए केंद्र सरकार ने १२०० करोड़ रुपये कि व्यवस्था कि हैं। जबकि १८ किलोमीटर लम्बी नदी को चौड़ा और गहरा दोनों तरफ सुरक्षा दीवार बनाने, प्रभावितों को दूसरी जगह बसाने अदि को लेकर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मीठी नदी विकास प्राधिकरण बनाया गया। और मुंबई मनपा, एम्.एम्.आर.डी.ए.और एअरपोर्ट अथोरती को सयुंक्त रूप से इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। अब तक मीठी नदी के नाम पर ६०० करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। एक हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया जाना बाकी हैं । लेकिन इसका स्तर अभी भी किसी बदबूदार नाले से ऊपर नहीं उठ पाया है । मानसून के पहले राजनीति शुरू होती हैं और नदी में राजनीती की बदबू आने लगती हैं।

शुरूआती दौर में मीठी नदी के विकास का खर्च ७०० करोड़ रुपये आंका गया था। इसमें से २०० करोड़ रुपये केंद्र सरकार की तरफ से मिलने थे। लेकिन नदी और नालों को लेकर केंद्र सरकार कि तरफ से रूपये मिलने में देरी होती गयी। खर्च का दायरा बढ़ता गया। और ये खर्च बढ़कर १६५७ करोड़ रुपये हो गया। १८ किलोमीटर लम्बी नदी का विकास ११.८ किलोमीटर हिस्से का विकास मुंबई महानगर पालीका कर रही हैं।
नदी को फिर से जीवीत रखने की कवायद शुरू ho गयी हैं। विहार लेक, पवई से माहिम तक बहाने वाली मीठी नदी में ४३ नालों से लाखों तन कचरा बहता हैं। जिससे नदी के पानी में ओक्सिजन की मात्रा कम हो गई हैं लिहाजा मछलियों को ओक्सिजन देने के लिए एम.एम्.आर.डी.ए.ए.ने ओक्सिजन डालने काम शुरू किया। और अमेरिकी कम्पनी इन्वायरमेंटल कंसल्टिंग टेक्नालोजी इंक से डेढ़ करोड़ रुपये कि लगत वाली २ मशीने किराये पर ली थी। जो प्रति मिनट ८ से दस गैलन पानी में ओक्सिजन डाल सकती हैं। हालाँकि मीठी नदी के प्रदुषण को रोकने के लिए निरी भी जुटा हुआ हैं। ताकि प्रदुषण को रोका जा सके।

कुल मिलाकर मीठी नदी राजनीतिक दलों के लिए सिर्फ जयका बनता जा रहा हैं।

Friday, May 28, 2010

माया के आगे ओबामा फिस्स

गले में नोटों की माला पहनने वाली माया वाकई में मालामाल हैं। भारत के गरीब राज्यों शुमार उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री ने दुनिया के सबसे अमीर देश के राष्ट्रपति को दौलत के मामले में पछाड़ दिया हैं। मायावती के पास अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तुलना में तीन गुना ज्यादा सम्पत्ति हैं। उत्तर प्रदेश की विधान परिषद् के लिए दाखिल नामांकन पत्रके साथ पेश किये गए हलफनामें में मुख्यमंत्री मायावती ने ८८.०६ करोड़ रुपये की चल एवं सम्पत्ति की घोषणा की हैं। मायावती के पास ७५.४७ करोड़ रुपये के व्यावसायिक आवासीय भवन एवं सम्पत्ति हैं। माया की सबसे बड़ी सम्पत्ति नई दिल्ली के नेहरू रोड इलाके में ३९८७.७८ वर्गमीटर जमीन हैं। जिसकी कीमत ५४ करोड़ रुपये हैं। ५४ साल की माया के पास एक किलो सोना व् तमाम हीरे जवाहरात हैं। जिसकी कीमत ८८ लाख रुपये हैं। चार लाख रुपये का चांदी का डिनर सेट हैं। जिसका वजन १८ किलो हैं। पेंटिंग्स और भित्त्चित्र(म्यूरल्स) भी हैं। जिसकी कीमत १५ लाख हैं। ११.३९ करोड़ रुपये विभिन्न बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों में जमा हैं। साल २००७ में एम्.एल.सी के उपचुनाव में नामांकन के साथ भरे गए शपथ पत्र में मायावती ने ५२ करोड़ रुपये से कुछ अधिक सम्पत्ति की घोषणा की थी। मगर आज भी उनके पास अपना कोई निजी वाहन नहीं हैं। मायावती का विधान परिषद् में जुलाई में कार्यकाल ख़त्म हो रहा हैं । यूं.पी में १३ सीटों के लिए १० जून को एम्.एल.सी के चुनाव हैं। और इसी के नामांकन पत्र में मायावती ने ये जानाकारी दी हैं।
अब अगर माया की तुलना ओबामा से करें तो जहां माया के पास ८८ करोड़ की सम्पत्ति हैं वहीँ ओबामा की निजी सम्पत्ति ५६ लाख डालर यानी २६ करोड़ ३० लाख ६० हजार रुपये हैं। ओबामा की पत्नी मिशेल की सम्पत्ति और परिवार से मिली सम्पत्ति को भी जोड़ दिया जाये तो कुल रकम 77 लाख डालर यानी करीब ३६ करोड़ 17 लाख रुपये बैठती हैं । मायावती भारत के सबसे अमीर नेताओं में शुमार हैं। जबकि ओबामा अपने देश के सबसे गरीब राष्ट्रपति हैं। ओबामा से पहले जोर्ज डब्ल्यू बुश सीनियर सबसे कम सम्पत्ति वाले अमेरिकी राष्ट्रपति थे। मायावती की सम्पत्ति बढ़ने की रफ़्तार भी गजब की हैं। उन्होंने २०११ में ११ करोड़ की सम्पत्ति की घोषणा की थी और अब अपनी सम्पत्ति ८८ करोड़ बता रही हैं। यानी सात साल में ८०० फ़ीसदी इजाफा। सालाना करीब ११४ फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी । तभी तो राजनीति का चस्का सबको खाए जा रहा हैं। ना ज्यदा पढने लिखने की ज़रुरत। और आराम से मालामाल हो जाओ।