आज देश का आम नागरिक अपनी कमाई से एक चौकीदार भी रखने में हिचकता है। लेकिन हमारे लोकतंत्र के पुजारी एन एस जी को अपनी हिफज्ज़त में लगाने के लिए बिल्कुल भी नहीं हिचकते हैं। २६ नवम्बर को मुंबई में समुद्री रस्ते से आतंकी ज़हर घुल गया।फ़िर कितने बेगुनाहों का खून बह गया। कितने निहत्थे जजन गवां कर चले गए। इसके बाद एन एस जी ने कमान सभाली और और आतंकियों के चंगुल से मुंबई को मुक्त करा दिया। लेकिन इसके बाद जो नेताओं को एन एस जी का चस्का लगा है की अब अपनी हिफाजत के एन एस जी लेकर चलेगें। पहले भी एक जेड प्लस सुरक्षा पाए नेता को २० से २५ जवान लगते थे। जरूरत पड़ी तो ५० से १०० तक बढ़ा लिया।यानी की हमें अपनी पड़ी है। जिसके टैक्स का पैसा लेकर आराम फरमा रहे है, उन्हें एन एस जी देने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें तो बस हमेश सड़क पर खून बहाना होगा।
सन १९८५ में एन एस जी का गाथा किया गया था। आतंकवाद से निपटने के लिए,बंधकों को छुडाने के लिए, सरहद पर लड़ने के लिए। लेकिन बुध्जीवी नेताओं ने एन एस जी से क्या कम लेना शुरू किया आप भी देख लीजिये । ८७ के बाद से ही इसमे राजनीतिक जमा चढाने लगा था। और फ़िर चुनाव के समय सभाओं की रखवाली करना,लडाई झगडे में मोर्चा संभालना ऐसे तमाम धंधे पर लगा दिया। और केवल सरकार की हिफाज़त कराने में सुरक्छा के प्रति सालाना १८ करोड़ रूपये खर्च हो जाते है। ये खर्च केवल देश के ३० नेताओं पर होता है। यानी की नेता जी को सलाम कराने में ही करोड़ों बह जाते हैं। और जनता का खून सड़क पर बहता है।
अब बात समझ में आ गयी होगी की एन एस जी कैसे हो गयी है नेता security gaurd । क्या नेताओं को आज सुरक्षा की ज़रूरत है। एक तरफ़ तो महोदय कहतें हैं की नेताओं का काम नहीं है लड़ना , यानी की देश की हिफाज़त के लिए सेना का जवान ही मरेगा। नेता नहीं जायेंगे.अब ऐसे में यक्ष सवाल मेरा ये है की क्या इन्हे सत्ता में बने रहने का अधिकार है।
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