Thursday, June 18, 2009

स्विस को स्विच करो. ..

एक कविता सुना था खाए जाओ घूस दनादन कौन पकड़ने वाला। लेकिन यहाँ पर घूस खा रहे हैं साथ ही स्विट्जर्लैंड को भारत का देसी घी भी पिला रहे हो। अब यहाँ भले सूखी रोटी खा रहे हों। लेकिन देश के मलाईदार लोग ख़ुद मलाई खाने के आलावा विदेश को भी मलाई खिला रहे हैं जैसे उनका कोई क़र्ज़ खाया हो।
चुनाव के पहले स्विस बैंक ने खूब सुर्खियाँ बटोरी लेकिन नतीजे आते ही सबके दिमाग से स्विस का स्विच ऑफ़ हो गया। स्विस बैंक में जमा काला धन जग जाहिर हैं । अगर बैंक में जमा राशि के बारे में बात किया जाए तो सबसे पहले दुनिया के सामने २००६ में रिपोर्ट आयी थी। उस रिपोर्टके मुताबिक १४५६ बिलियन डॉलरयानी करीब ७४ लाख ९८ करोड़ रूपया भारत का स्विस बैंक में जमा है। और यह राशि दुनिया के सभी देशों की जमा राशि से ज्यादा है।
एक मोटे अनुमान के मुताबिक पूर्व राष्ट्रपति डॉ। शर्मा के जमाने में इस राशि का अनुमान एक लाख करोड़ रुपया था। इसके बाद श्री के.आर.नारायण के ज़माने में अनुमान दो लाख करोड़ रूपया का था। और साल २००६ में ये राशि बढ़कर तकरीब ७५ लाख रुपये में पहुँच गयी थी। और २००९ में मार्च माह के अंत में २३ लाख करोड़ रुपये की बढोत्तरी की संभावनाएं मिली हैं। यानी भारत की लगभग ९७ लाख करोड़ रुपये स्विट्जर्लैंड मैं जमा है।
अब यक्ष सवाल ये उठता है की इतनी भारी भरकम राशि वहाँ पडी हुयी है इधर देश के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने वर्ल्ड बैंक से बड़ी रकम क़र्ज़ के रूप में उठाने का फैसला किया है। बताया जा रहा है कि यह रकम लगभग ४.२ अरब अमेरिकी डॉलर होगी। आर्थिक मंदी से जूझ रहे बैंक व्यवसाय को राहत पहुचाने के लिए ये कदम उठाया जा रहा है। अब ऐसे में यही लगता है हम कर्ज में मरेंगे क्योंकि मनमोहन सरकार कर्ज की धार से मारेगी। वैसे भी भारत वर्ल्ड बैंक का ही घी पीता रहा है । आज भी हम मानसिक गुलामी का दंश ६० साल बाद भी झेल रहे है। और देश बहाली के बजाय बदहाली की ओर जा रहा है ऐसे में जरूरत है कि हम अपने पैसों को ही लाने की करवाई क्यों न करें जिससे कर्ज के मर्ज से बचा जा सके साथ ही काला धन भी देश में आ जाएगा इसी लिए भारत सरकार को जरूरत है कि स्विस बैंक की स्विच को ऑन करें।



No comments: