आखिर ऊँट पहाड़ के नीचे आ ही गया। यानी दुनिया का तानाशाह औकात पर आ गया। कल तक जो भारत की तरफ आँखें तरेरता था अब उसकी आँखों में पानी भर आया हैं। और आँखों में पानी भरने कि वजह भी साफ़ हैं । जब राजा के यहाँ बेरोजगारी मुह फैलाकर खड़ी होने लगी तो भारत कि तरफ आस जागी। और इसी आस के साथ इस व्यापारी ने भारत से कारोबार करके अब अमेरिकी बाज़ार को गुलजार करेगा। " जय हिन्द, बहुत धन्यवाद,नमस्ते" जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके और लच्छीदार भाषण पिलाकर भारत से जो उसे चाहिए था वो ले लिया। और भारत भी उसके इस भाषण से लट्टू हो गया। और भारत को जिस तरह कि उम्मीद थी वो मिल गयी। ओबामा ने आज भारत को विश्व पटल में एक नया आयाम दिया हैं। और इसकी बानगी यही हैं कि भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थाई सदस्यता के लिए ओबामा ने वकालत भी कर दी। यानी सुरक्षा परिषदमें भारत कि दावेदारी पर मोहर लगा दी हैं। सुरक्षा परिषद के क्या दाँव पेंच हैं इसे समझने के लिए सबसे पहले सुरक्षा परिषद के बारे में जाना जरूरी होगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख अंग
सयुंक्त राष्ट्र संघ के संविधान में इसके छह प्रमुख अंगों का वर्णन किया गया हैं ।
१ - महासभा
२ - सुरक्षा परिषद
३- आर्थिक व सामाजिक परिषद
४- न्याशी परिषद
५- अंतरर्राष्ट्रीय न्यायलय
६- सचिवालय
सुरक्षा परिषद
सुरक्षा परिषद विश्व शांति एवं सुरक्षा से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र संघ के दायित्वों को पूरा करने वाला आदेशात्मक संस्था है। इसके १५ सदस्य हैं। जिनमें पांच स्थायी सदस्य हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, साम्यवादी चीन, फ़्रांस और रूस । अस्थायी सदस्यों को सयुंक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा दो वर्षों के लिए चुना जाता है। अस्थायी सदस्यों में सामान्यतः पांच अफ्रीकी एशियाई देशों से, दो लैटिन अमेरिका, दो पश्चिमी यूरोप तथा एक पूर्वी यूरोप से चुने जाते हैं। अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरों के क्रम से सभी देश एक-एक मास के लिए सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता करते हैं। सुरक्षा परिषद के अंतर्गत प्रक्रिया संबंधी सामान्य विषयों पर किन्ही ९ सदस्यों के समर्थन से कोई प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा से सम्बंधित किसी विषय पर उन नौ सदस्यों में पांचो स्थायी सदस्यों का समर्थन हासिल होना आवश्यक हैं। यदि स्थायी सदस्यों में से किसी ने प्रस्ताव के खिलाफ समर्थन कर दिया तो प्रस्ताव पारित नहीं माना जाएगा। इस प्रकार स्थायी सदस्यों को वीटो शक्ति का निषेधाधिकार दिया गया हैं। जिसका प्रयोग करके वो किसी मुद्दे पर प्रस्ताव पारित करने या किसी कारवाई को रोक देते हैं।
अपने दायित्वों को पूरा करने के क्रम में सुरक्षा परिषद सर्वप्रथम शांतिपूर्ण उपायों से विवादों के समाधान का प्रयास करती हैं। जिनमें विचार विमर्श, मध्यस्थता आदि शामिल हैं। यह क्षेत्रीय संगठनों को भी विवादों के समाधान हेतु प्रोत्साहित करती है। शांतिपूर्ण उपायों द्वारा विवादों का समाधान न होने पर यह दोषी राष्ट्रों के विरुद्ध कूटनीतिक, आर्थिक व वित्तीय दंड निर्धारित करती है एवं अंतिम उपाय के रूप में सैनिक कारवाई का आदेश भी दे सकती है।
सुरक्षा परिषद में सुधार का प्रश्न - वर्तमान समय में विश्व की बदली हुई राजनैतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के अनुरूप सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग लगातार की जा रही हैं। जिससे अफ्रीका, एशिया तथा लैटिन अमेरिकी देशों को उचित प्रतिनिधत्व प्राप्त हो सके । संयुक्त राष्ट्र के अस्तित्व में आने के छह दशकों के दौरान विश्व व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव आ गया है। दूसरे विश्व युद्ध के खलनायक देश जापान और जर्मनी की अर्थ व्यवस्था क्रमशः विश्व की दूसरी और तीसरी बड़ी अर्थ व्यवस्था बन चुकी है। दूसरी ओर भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, व मैक्सिको जैसे देश विश्व की तेजी से बढ़ती हुई अर्थ व्यवस्था वाले देश बनकर उभरे हैं । जहां तक भारत की सुरक्षा परिषद में दावेदारी का प्रश्न है अमेरिका व चीन को छोड़कर अन्य तीन स्थायी सदस्यों ने खुलकर समर्थन किया हैं ( अमेरिका ने अब समर्थन किया हैं ) । जबकि विश्व के अन्य प्रमुख देशों सहित विकासशील देशों ने ऐसी ही मंशा जतायी हैं। हालाँकि सुरक्षा परिषद में सुधार के स्वरूप को लेकर देशों के बीच मतभेद हैं कुछ का मानना है कि सुरक्षा परिषद के नए सदस्यों को वीटो पावर न दिया जाए। जबकि सदस्यता के इच्छुक भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका,जापान व जर्मनी इस शक्ति के बगैर सुरक्षा परिषद की सदस्यता को उचित नहीं मानते।
लेकिन अब अमेरिका ने भारत के दावेदारी को मजबूती प्रदान कर दी हैं। लिहाजा विरोध झेलना है केवल चीन का । इस लिहाज से स्थायी सदस्यता की राह खुलती नजर आ रही हैं। लेकिन अभी राह आसान नहीं हैं । केवल उम्मीद जाग गयी हैं । और उम्मीद पर तो पूरी दुनिया टिकी है। लेकिन जैसे ही ओबामा ने खुल कर समर्थन किया तो दावेदारी के अन्य सदस्यों की भौंहें तन गयी हैं । इस सीट के लिए प्रबल दावेदारों में शुमार किये जा रहे जापान और जर्मनी ने आरोप लगाया है कि उनकी अनदेखी की जा रही है। भारत के धुर विरोधी पाकिस्तान ने तो अमेरिकी राजदूत से मिलकर अपना विरोध औपचारिक रूप से भी दर्ज करा दिया हैं। जब कि तथ्य यही है कि अभी ये तो दूर की कौड़ी हैं। लेकिन अन्य देशों की नीद हराम हो गयी हैं।
ओबामा की नब्ज - ओबामा ने भारत को एक उभर चुका देश कहा हैं। यानी अब हम विकसित देश की कतार में शामिल हो गए। लेकिन ऐसा नहीं हैं। अमेरिका ने अभी स्थायी सदस्यता के लिए जापान का समर्थन किया है। जब कि जी - ४ का विरोध किया है । इस समूह में जापान, जर्मनी , भारत और ब्राजील शामिल हैं। इस तरह ओबामा ने भारत के दावे का समर्थन करके अपना रूख तो स्पष्ट कर दिया है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि जी- ४ मामले में अमेरिका भारत का समर्थन करेगा।
कौन किसके खिलाफ - सयुंक्त राष्ट्र की स्थायी सदस्यता चाहने वालों में आपस में ही एक दूसरे के विरोधी हैं । जैसे - जापान और भारत की दावेदारी के खिलाफ चीन हैं। ब्राजील को मैक्सिकोऔर अर्जेंटीन का विरोध झेलना पड़ रहा है। अफ्रीका में दक्षिण अफ्रीका सबसे प्रबल दावेदार हैं । लेकिन कुछ और देश अपनी दावेदारी पेश कर सकते हैं। इधर इसके स्थायी सदस्य ज्यादातर यूरोपीय देशों के हैं। और वो चाहते हैं कि विश्व के हर हिस्से के देशों को इसका प्रतिनिधत्व दिया जाए ।
इन सब तमाम पेंच को देखकर लगता हैं कि कहीं स्थायी सदस्यता खैनी पुलाव न साबित हो लेकिन ऐसा नहीं होगा। और ओबामा के जय हिन्द ने भारत को एक नयी ऊर्जा दी हैं और उसी सकारात्मक ऊर्जा के साथ भारत को अपने कदम आगे बढ़ाना होगा।
No comments:
Post a Comment