आज़ाद भारत पर सबसे ज्यादा सालों तक शासन करने का श्रेय कांग्रेस के पास है । घोटालेबाज और महंगाईगीरी में एकाधिकार वर्चस्व स्थापित कर चुकी कांग्रेस के पास एक ऐसी घास है जो पिछले कई दशकों से देश की लक्ष्मी को तो चाट रही है साथ ही भारतीयों को अस्थमा और फोड़े फुंसियां जैसी बीमारियाँ भी बोनस में दे रही है।
दरअसल, आज़ादी के बाद जब देश में गेहूं की कमी हो गयी थी । तब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने १९५० में अमेरिका से पी.एल - ४८० किस्म के गेहूं का आयात किया गया था । इस गेहूं के साथ अमेरिका ने एक घास भी भेज दिया था। इस घास का वैज्ञानिक नाम - पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस है। भारत में इसे गाजर घास के नाम से जाना जाता है। लेकिन सियासी मैदान में ये घास कांग्रेस घास के नाम से बहुचर्चित है। इस घास को सबसे पहले १९५६ में पुणे में देखा गया था।
कांग्रेस घास पिछले ५५ सालों में देश की करीब ३५० लाख हेक्टेयर भूमि पर फ़ैल चुकी है । इनमें से लगभग २० लाख हेक्टेयर जमीन खेती की है कारगिल से लेकर अंडमान निकोबार और दिल्ली तक इसने अपने पैर पसार लिए हैं।
फसल और इन्सान के लिए खतरनाक - कांग्रेस घास के पौधे की लम्बाई एक मीटर से डेढ़ मीटर तक होती है। एक पौधे में तकरीबन २५-३० हजार बीज पैदा होते हैं। और प्रकीर्णन के माध्यम से दूर - दूर तक पहुँच जाते हैं। जिसका इलाज वैज्ञानिक अभी तक नहीं ढूंढ पाए हैं। इसके कारण त्वचा काली पड़ जाती है। और उस पर फुन्सिया निकल आती हैं। इस घास के बीजों के संपर्क मेंआने से अस्थमा भी हो सकता है । जानवरों के लिए ये घास बेहद खतरनाक है। गाय और बकरी जैसे पशुओं की त्वचा में ये बुरा प्रभाव डालती हैं। दुधारू पशु जब इस घास को खाते हैं तो उनके दूध का स्वाद कसैला महसूस होता हैं। और लम्बे समय तक अगर ऐसे दूध का सेवन किया जाए तो मौत भी हो सकती है। कांग्रेस घास हर तरह की भूमि और जलवायु में उग सकती है। तकरीबन २५-३० डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसका अंकुरण हो सकता है। इस घास का प्रसार अनाज उत्पादन में कमी के लिए भी जिम्मेदार है । यह एक ऐसी खरपतवार है जो फसलों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है।
घास चरने की तैयारी - अब वैज्ञानिकों ने इसका नामो निशान मिटाने के लिए मक्सिको से जायागोग्रेम्मा बाइको लोराटा नाम के कीट के आयात का फैसला किया गया है। यह कीट कांग्रेस घास को चट कर जाता है। इसके ट्रायल के नतीजे अच्छे खासे रहे हैं। केमिकल्स की मदद से भी इसे ख़त्म करने की कोशिशें की जा रही हैं। लोगों को इस घास और इसके दुष्प्रभावों के बारे में बताया जा रहा है । इस कांग्रेस घास ने सरकारी खजाने को भी कायदे से साफ़ किया हैं। अब तक सरकारी खजाने से इस घास ने डेढ़ लाख करोड़ रुपये चाट चुकी है। जानकारों की मानें तो अभी इस घास से मुक्ति पाने के लिए भारी भरकम रकम खर्च करने की ज़रुरत है। जिसमें मजदूरों पर तकरीबन १६,८०० और रासायनों पर ११,900 करोड़ रुपये का मोटा खर्च होने की उम्मीद है।
अब महंगाई के इस सर्पदंश से खेल रहे देश के आम नागरिकों के साथ कांग्रेस की घास औरकांग्रेस के कीड़े क्या नया शिगूफा रचेंगे ये भी देखना दिलचस्प रहेगा।
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