दाढ़ी शब्द सुनते से ही चेहरों पर करोड़ों बालों के जंगल का चित्र मन में उभर आता है। दाढ़ी को परिभाषित करे तो बालों का ऐसा झुंड जिसने गाल को ढक रखा है , कह कर आप मन को सांत्वना दे सकते हैं। लेकिन मन में सवाल उठता है कि ये दाढ़ी आखिर चीज़ क्या है? कुछ लोग दाढ़ी क्यों रखते हैं? सभी लोग दाढ़ी क्यों नहीं रखते? क्या लोग चेहरे की किसी कमी को छुपाने के लिए दाढ़ी रखते है? क्या लोग विद्वान, दार्शनिक, महान दिखने के लिए दाढ़ी रखते है? या लोगों को दढ़ियल कहलाने का शौक होता है? और न जाने कितने सवाल है जो हमारे मन में कौतूहल पैदा करते हैं।
दाढ़ी का अध्ययन pogonology कहा जाता है। इतिहास के पन्ने पलटे तो दाढ़ी को पुरुषों की बुद्धि और ज्ञान, यौन पौरूष, पुरुषत्व, या उच्च सामाजिक स्थिति के प्रतीक के रूप में देखा जाता था।, वहीं दूसरी तरफ दाढ़ी को गंदगी, एक सनकी स्वभाव से भी जोड़ा जाता थाइ प्राचीन इजिप्ट के लोगों को दाढ़ी रखने का शौक था वे लाल और सुनहरे रंग की ढाई लगाकर अपनी दाढ़ी को सजाते थे। 3000 से 1580 BC तक नकली दाढ़ी पहनने का फैशन था। खास मौकों पर राजा और रानी भी नकली दाढ़ी पहनते थे।
मेसोपोटामिया सभ्यता
मेसोपोटामिया सभ्यता के लोग अपनी दाढ़ी को तरह-तरह से सजाते संवारते थे और दाढ़ी को नया लुक देने की कोशिश करते थे। फारसी लोग लंबी दाढ़ी रखते थे। राजा लंबी दाढ़ी को देखकर खुश होते थे।
प्राचीन भारत
प्राचीन भारत में लंबी दाढ़ी सम्मान और विद्वता का प्रतीक मानी जाती थी। साधु-संत लंबी दाढ़ी रखते थे और उनकी दाढ़ी में तपस्या और त्याग का भाव झलकता था। दाढ़ी वाले संतों के प्रति आम जनमानस में विशेष श्रद्धा होती थी। प्राचीन भारत के कुछ इलाकों में दाढ़ी को लेकर विशेष परंपरा प्रचलित थी लोग अपनी दाढ़ी का विशेष ख्याल रखते थे और कई स्टाइल से उसे संवारते थे। यहां तक की दाढ़ी को अपने आत्म सम्मान से जोड़कर देखते थे। दाढ़ी के महत्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कर्ज़ न चुकाने वाले व्यक्ति की सजा के तौर पर आम जनता के समाने दाढ़ी मुंड दी जाती थी। और दाढ़ी को बचाने को लेकर लोगों के मन में इतना भय था कि वे सारा कर्ज चुका देते थे।
सिकंदर महान का समय
सिकंदर महान के समय में क्लीन सेव की परंपरा शुरू हुई और सिकंदर ने अपने सैनिकों को क्लीन सेव रहने का आदेश दिया था।
प्राचीन रोम
प्राचीन रोम की कहानी कुछ अलग है कहा जाता है कि 299BC तक रोम में दाढ़ी बनाने का प्रचलन ही नहीं था। पहली बार 299 BC के लगभग एक नाई को रोम बुलाया गया और Scipio Africanus पहले रोमन नागरिक थे जिन्होंने नाई से दाढ़ी बनवाई। और उसके बाद क्लीन सेव की हवा पूरे रोम में ऐसे फैली कि दाढ़ी के जंगल सपरचट्ट मैदान में रातों-रात तब्दील हो गए और चिकने चेहरे रोम की पहचान बन गये।
प्राचीन जर्मनी
जर्मन में जंगलों में रहने वाली पिछड़ी जनजाति समाज में ये परंपरा थी की जब तक नौजवान अपने समाज के एक दुश्मन को मौत के घाट नहीं उतार देता तब तक वो अपनी दाढ़ी नहीं कटवा सकता था। लोग लंबी दाढ़ी रखते थे और अपनी अपनी दाढ़ी की कसमें खाते थे। और दाढ़ी की कसम खाने का विशेष महत्व समझा जाता था।
प्राचीन यूरोप
15वी शताब्दी में ज्यादातर यूरोपवासी क्लीन सेव थे लेकिन 16वीं शताब्दी में यूरोप में लंबी-लंबी और स्टाईलिश दाढ़ी रखने का फैशन था। ऐसे-ऐसे स्टाइल प्रचलित थे कि अगर आप उस जमाने के लोगों की फोटो देखें तो आपकी नजर सबसे पहले दाढ़ी पर ही पड़ेगी और जितना समय आप उस फोटो को देखेंगे ज्यादा -से- ज्यादा बार आपकी नजर दाढ़ी पर ही टिकी रहेगी। दाढ़ी की कुछ स्टाइल Spanish spade beard, English square cut beard, The forked beard और Stiletto beard यूरोप में प्रचलित थी।
नेपोलियन के जमाने में दाढ़ी फिर परवान चढ़ी। राजा और सेना के बड़े अधिकारी भी स्टाइलिश दाढ़ी रखने का शौक रखते थे। 19वीं शताब्दी के दौरान का दाढ़ी फैशन आम जनता के बीच खूब प्रचलित था।
हिप्पी आंदोलन 1960
पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में सन 1960 में हिप्पी आंदोलन के दौरान लंबी दाढ़ी समाज के उच्चवर्ग में खासी लोकप्रिय थी।
अमेरिका
19वीं शताब्दी में अमेरिका में दाढ़ी का प्रचलन ज्यादा नहीं था। अब्रहम लिंकन से पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने दाढ़ी का शौक नहीं पाला था। प्रथम विश्व युद्ध के समय सन 1910 में केमिकल हथियारों के प्रयोग की आशंका के चलते सैनिकों को क्लीन सेव रहने की हिदायत दी थी।
वियतनाम युद्ध के समय दाढ़ी को फिर लौटने का मौका मिला। सन 1970 के दौरान हिप्पियों और व्यापारियों ने स्टाइलिश दाढ़ी रख कर अपने चेहरे की रौनक बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। संगीतकारों ने स्टाइलिश दाढ़ी को संगीत के सुर से जोड़ कर ऐसा समा बांधा की सारी दुनिया में मशहूर हो गये। The Beatles और Barry White इसमें अग्रणी हैं। 1909 से 1913 के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति रहे William Howard अंतिम राष्ट्रपति ने जिन्होंने दाढ़ी रखी थी। इस तरह दाढ़ी की दास्तां निराली हैं।
दाढ़ी और धर्म
कई धर्मों में दाढ़ी का विशेष महत्व है।
सिख धर्म
सिख धर्म में दाढ़ी का विशेष महत्व है ऐसी मान्यता है कि दाढ़ी पुरुष के शरीर का अभिन्न भाग है और उसे सम्मान के साथ अच्छे से रखना चाहिए। गुरु गोविंद सिंह ने दाढ़ी को सिखों की पहचान कहा।
हिंदू धर्म
हिंदू धर्म में तपस्वी, साधु-संत लंबी दाढ़ी रखते हैं। ऋषि-मुनि प्राय: जंगल में तपस्या करते थे। चेहरे पर लंबी-लंबी दाढ़ी और सिर पर जटाएं होती थी। हिंदू धर्म में दाढ़ी रखने वाले संतों को आज भी बहुत सम्मान प्राप्त है।
यहूदी धर्म
यहूदी धर्म में रेज़र से दाढ़ी बनाने पर निषेध है। कैची से दाढ़ी के बाल काटे जा सकते हैं। क्लीन सेव रहने के लिए बहुत से यहूदी धर्म के लोग इलेक्ट्रॉनिक रेज़र का इस्तेमाल करते हैं। यहूदी धर्म में दाढ़ी को पवित्रता से जोड़ा जाता है।
ईसाई धर्म
चित्र और मूर्तियों में ईशा मसीह को हमेशा दाढ़ी में दिखाया गया है। ईसाई धर्म के संतों में कुछ लंबी दाढ़ी रखते और कुछ पादरी दाढ़ी नहीं रखते हैं।
मुस्लिम धर्म
मुस्लिम धर्म में दाढ़ी रखने को बढ़ावा दिया जाता है। कुछ लोग दाढ़ी रखते हैं और मूछें नहीं रखते हैं। काज़ी साहब, शाही इमाम ज्यादातर दाढ़ी रखते हैं। इस्लाम धर्म में गहरी आस्था रखने वाले लोग दाढ़ी रखना पसंद करते हैं।
दाढ़ी और पत्रकार
पत्रकार बिरादरी में दाढ़ी की दास्तां गजब की है लगता है कि चूसे हुए आम के चेहरे वाले पत्रकारों ने दाढ़ी रखकर अपने चेहरे को सही शक्ल देने की कोशिश की होगी। कुछ पत्रकारों ने खुद को विद्वान, महाज्ञानी और दार्शनिक दिखने की लालसा में दाढ़ी का जंगल उगाने में कोई कसर नहीं रखी। भले ही बड़ी-बड़ी दाढ़ी में वो कार्टून शो के डरावने किरदार से कम न लगते हो। मंत्री का संत्री गेट पर न रोके इसलिए स्टाइलिश दाढ़ी से ऐसा रोबदार चेहरा गढ़ने में कुछ भाई लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके चक्कर में भले ही वो तालिबानी कुनबे के सदस्य क्यों न लगते हो? कुछ लोगों को हो सकता है अपनी योग्यता पर इतना गहरा शक हो कि जब तक वो दाढ़ी नहीं रखेंगे तब तक लोग उन्हें पत्रकार मानेंगे ही नहीं। कभी - कभी ये सोचकर हैरानी होती है कि अगर दाढ़ी रखने से ही कोई बहुत बड़ा ज्ञानी और विद्वान हो जाता तो शायद दुनिया का पहला दार्शनिक एक बकरा ही होता। खैर आजाद देश के आजाद पत्रकार भाई लंबी-लंबी दाढ़ी रखें पर उसको शैम्पू से जरूर धोएं और इत्र लगाना न भूले ताकी उनके अगल-बगल बैठे भले मानुषों को बदबू का दंश न जेझना पड़े।
दाढ़ी का दंभ
आज कल के दाढ़ी रखने वाले कुछ लोग खुद को क्या समझते हैं? यो वो खुद ही जानते होंगे । पर ऐसा लगता है कि भाई लोगों को रोब झाड़ने का इतना शोक होता है कि दाढ़ी बढ़ाकर खुद को आम दुनिया से अलग समझने लगते हैं और दाढ़ी में हाथ फेरते हुए रौब दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं। दाढ़ी फैलाकर और छाती तान कर ऐसे चलते जैसे दाढ़ी में ही सारा ज्ञान छुपा हो। और जब कभी पहाड़ खोदा जाता है तो चुहिया भी नहीं निकलती। कई लोग तो दाढ़ी बढ़ाकर अपने आपको उस खेमे में शामिल करना चाहते हैं जिससे उनका दूर-दूर तक वास्ता न करनी में न कथनी में होता है। कोई उनकी उपमा महान दार्शनिक या विद्वान से कर दे तो वो फूल के कुप्पा हो जाते हैं। उन्हें लगते लगता है कि विश्व के महान दार्शनिक भी उनके जैसे ही रहे होंगे।
दाढ़ी और पेशा
दाढ़ी का इस्तेमाल लोग दुनिया को उल्लू बनाने में खूब कर रहे हैं। आजकल बाबा बनने की पहली सीढ़ी है आप दाढ़ी बढ़ा ले, लंबी दाढ़ी और लंबे बाल देखकर लोग आपको संत समझने में देर नहीं करेंगे। और फिर आप उपदेश और सतसंग के धंधे में उतर जाएं। मालामाल होने में देर नहीं लगेगी। इतनी तेजी से धन देऊ प्रोफेशन और कोई नहीं है। बाबागीरी के पेशे में आप रातो-रात अपनी झोली भर सकते हैं। और दुनिया के सारे सुख आपको ये दाढ़ी का जंगल दिला सकता है। इसके प्रत्यक्ष उदाहरण आप लोग टीवी में देख रहे होंगे। और आगे भी देखेंगे इसमें कुछ कोई शक नहीं है। इच्छाधारियों की इच्छाओं के बारे में बताने की जरूरत नहीं है। दाढ़ी का असली रहस्य लगता है इन तथाकथित बाबाओं को ही मालूम है बाकी सब फेल हैं।
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