हिंदुस्तान का घोटाला और फिक्सिंग जैसे संस्कारों से चोली दामन का रिश्ता है। देश आज़ाद हुआ कि सबसे पहले घोटालों के पंख लग गये। इसके बाद इन्हीं पंखों के सहारे देश उड़ान भरने लगा। भारत को विकासशील देश की श्रेणी में गिना जाने लगा। जिन घोटालों की सीढ़ी बनाकर देश को आगे बढ़ाया गया था आज इतने घोटाला होने के बावजूद भी विकासशील ही बने हुए हैं। इसी रास्ते से आगे निकलते हुए मैच फिक्सिंग नामक संस्कारों से संस्कारित होने लगे। विकास की गाथा गढ़ी जा रही थी कि मैदान में आई.पी.एल. नाम की दवा पिल पड़ी । अब इस दवा से एक नई सामग्री निकली है स्पॉट फिक्सिंग । वैसे तो स्पॉट फिक्सिंग की दवा कई साल पहले इज़ाद कर दी गई थी। जिससे सटोरियों को माल कूटने में आसानी रहे ।
अब सबसे पहले समझते हैं कि आखिर स्पॉट फिक्सिंग है क्या बला ?
क्या है स्पॉट फिक्सिंग?
स्पॉट फिक्सिंग मैच के अंदर ही किसी गतिविधी को फिक्स करने की कोशिश होती है। इसका बेहतरीन उदाहरण साल 2009 में हुई पाकिस्तानी गेंदबाज द्वारा की गयी स्पॉट फिक्सिंग है। तीनों गेंदबाज ने ओवर की एक निर्धारित गेंद नो बॉल डाली।
मैच के दौरान किसी ओवर में नो बॉल, वाइड बॉल या फिर मिस फील्ड करना स्पॉट फिक्सिंग के दायरे में आता है। इसके लिए किसी टीम का सिर्फ एक सदस्य ही काफी है पूरे 11 खिलाड़ियों के लिए यह फिक्सिंग नहीं होती।
क्या हो सकती है स्पॉट फिक्स?
- बल्लेबाज दहाई का आंकड़ा छूने से पहले आउट होने की स्पॉट फिक्सिंग कर सकता है।
- गेंदबाज किसी निर्धारित ओवर में नो बॉल या वाइड गेंद डाल सकता है।
- कोई खिलाड़ी गेंद को मिस फील्ड करने की स्पॉट फिक्सिंग भी कर सकता है।
मैच फिक्सिंग से कैसे भिन्न है स्पॉट फिक्सिंग
मैच फिक्सिंग मैच का नतीजा बदलने के लिए उपयोग में लायी जाती है। इसमें पूरे 11 खिलाड़ियों का शामिल होना जरुरी है। ज्यादातर इस तरह की फिक्सिंग में बुकी कप्तान के जरिए खिलाड़ी तक पहुंचता है। वहीं स्पॉट फिक्सिंग में एक खिलाड़ी ही काफी होता है पर वह मैदान की किस गतिविधी जो उसके दायरे में आती है उस को फिक्स कर सकता है। जैसे कि नो बॉल डालना या जल्दी आउट हो जाना।
मुशकिल है पता लगाना
टी 20 या क्रिकेट के किसी भी फॉर्मेट में इसका पता लगाना काफी मुश्किल है। बुकी को इसमें कप्तान या किसी बिचौलिये के जरिए खिलाड़ी तक पहुंचने की जरुरत नहीं पड़ती। खिलाड़ियों द्वारा फिक्सिंग की पुष्टि के बाद यह जानकारी सटोरियों तक पहुंच जाती है। इसके जरिए सट्टेबाज पैसा कमाते हैं।
तो फिर ये रही स्पॉट फिक्सिंग की रामकहानी।
अब सबसे पहले समझते हैं कि आखिर स्पॉट फिक्सिंग है क्या बला ?
क्या है स्पॉट फिक्सिंग?
स्पॉट फिक्सिंग मैच के अंदर ही किसी गतिविधी को फिक्स करने की कोशिश होती है। इसका बेहतरीन उदाहरण साल 2009 में हुई पाकिस्तानी गेंदबाज द्वारा की गयी स्पॉट फिक्सिंग है। तीनों गेंदबाज ने ओवर की एक निर्धारित गेंद नो बॉल डाली।
मैच के दौरान किसी ओवर में नो बॉल, वाइड बॉल या फिर मिस फील्ड करना स्पॉट फिक्सिंग के दायरे में आता है। इसके लिए किसी टीम का सिर्फ एक सदस्य ही काफी है पूरे 11 खिलाड़ियों के लिए यह फिक्सिंग नहीं होती।
क्या हो सकती है स्पॉट फिक्स?
- बल्लेबाज दहाई का आंकड़ा छूने से पहले आउट होने की स्पॉट फिक्सिंग कर सकता है।
- गेंदबाज किसी निर्धारित ओवर में नो बॉल या वाइड गेंद डाल सकता है।
- कोई खिलाड़ी गेंद को मिस फील्ड करने की स्पॉट फिक्सिंग भी कर सकता है।
मैच फिक्सिंग से कैसे भिन्न है स्पॉट फिक्सिंग
मैच फिक्सिंग मैच का नतीजा बदलने के लिए उपयोग में लायी जाती है। इसमें पूरे 11 खिलाड़ियों का शामिल होना जरुरी है। ज्यादातर इस तरह की फिक्सिंग में बुकी कप्तान के जरिए खिलाड़ी तक पहुंचता है। वहीं स्पॉट फिक्सिंग में एक खिलाड़ी ही काफी होता है पर वह मैदान की किस गतिविधी जो उसके दायरे में आती है उस को फिक्स कर सकता है। जैसे कि नो बॉल डालना या जल्दी आउट हो जाना।
मुशकिल है पता लगाना
टी 20 या क्रिकेट के किसी भी फॉर्मेट में इसका पता लगाना काफी मुश्किल है। बुकी को इसमें कप्तान या किसी बिचौलिये के जरिए खिलाड़ी तक पहुंचने की जरुरत नहीं पड़ती। खिलाड़ियों द्वारा फिक्सिंग की पुष्टि के बाद यह जानकारी सटोरियों तक पहुंच जाती है। इसके जरिए सट्टेबाज पैसा कमाते हैं।
तो फिर ये रही स्पॉट फिक्सिंग की रामकहानी।
1 comment:
लोग जाने कैसे कैसे कर लेते हैं ये फिक्सिंग ...सबकुछ होते हुए भी पैसों का मोह मति भ्रष्ट कर देता है ..बढ़िया जानकारी
Post a Comment