Saturday, June 23, 2018

ट्रंप की ‘टंप’ चाल से, ‘अमेरिकी फर्स्ट नीति’ की को बढ़ावा


ट्रंप की टंप चाल से, अमेरिकी फर्स्ट नीति को बढ़ावा

ताश के पत्ते खेलते समय स्थानीय भाषा में एक शब्द इस्तेमाल होता है टंप चाल, इस टंप चाल का अर्थ यह है कि जब कोई भी टंप चाल के तहत किसी पत्ते का नाम ले लेता है, तो फिर उसी पत्ते के सहारे जीत तय करनी होती है। यानी वही टंप चाल पूरे खेल के दौरान ताश के पत्तों के रूप में फेंटा जाता है। इन दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अमेरिकी नीतियों को ताश के पत्तों की तरह फेंट रहे हैं। मोदी सरकार के चुनावी नारों की तरह लुभावने नारे देकर राष्ट्रपति का चुनाव जीतने वाले ट्रंप ने पूरे विश्व में व्यापार युद्ध करने की लकीर खींच दी है। ये एक ऐसी लकीर है जिससे अमेरिकियों को भले ही चुनावी फायदा मिल जाये, लेकिन दीर्घकालीन तो नुकसान दायक ही सिद्ध होगा।

  दरअसल, अमेरिका ने भारत के स्टील पर 25 फीसदी और एल्यूमिनियम पर 10 फीसदी की इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी थी। इससे भारत पर 24.1 करोड़ डॉलर का टैक्स बोझ बढ़ गया। भारत ने इसका जवाब देते हुए अमेरिका से आने वाले कई उत्पादों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी । इन उत्पादों में बंगाली चना, मसूर दाल और आर्टेमिया शामिल है। मटर और बंगाली चने पर टैक्स 60 फीसदी और मसूर दाल पर 30 फीसदी कर दिया गया है। जबकि आर्टेमिया पर टैक्स 15 फीसदी बढ़ गया है। अपने कदम को जायज ठहराते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका ऐसे मुक्त व्यापार को मंजूरी नहीं देगा, जिसमें उसे भारी नुकसान उठाना पड़े। इन बयानों से पता चलता है कि इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने का निर्णय अमेरिकी फर्स्ट नीति का ही एक अंग है, जिसके जरिए ट्रंप अपने श्रम-सघन उद्योगों को मजबूती देते हुए दिखाना चाहते हैं। इससे भले ही अमेरिकी स्टील और एल्यूमिनियम उद्योग को थोड़ा गति मिल जाये, लेकिन चीन और भारत के जवाबी कार्रवाई से अमेरिका को नुकसान उठाना पड़ सकता है। कुल मिलाकर यह व्यापार युद्ध काम धंधे पर बुरा असर ही डालेगा। ट्रंप की मुश्किल सबसे बड़ी यह है कि वो दूरगामी सोच नहीं पैदा कर पाते। अभी उनकी नज़र तीन महीने बाद अमेरिका में होने वाले संसदीय चुनावों पर है, जिन्हें वो अपने नारेबाज़ी के दम पर जीतना चाहते हैं। ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में आज विश्व जिस शिखर पर पहुंचा है, उससे पीछे आने में पूरी दुनिया को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। व्यापारिक मामलों में सभी देशों को एक दूसरे से तालमेल बिठाकर काम करना होता है। भारत ने इस तालमेल में कोई कसर नहीं छोड़ी। हाल ही में एक ताज़ा के खबर के मुताबिक भारत ने अमेरिका से व्यापार युद्ध समाप्त करने के लिए 1,000 नागरिक विमान खरीदने का प्रस्ताव रखा है। भारत ने अगले 7 से 8 साल में विमान खरीदने की योजना बनाई है। इसके अलावा अमेरिका से तेल और गैस खरीद में भी इज़ाफ़ा करने की बात की जा रही है। वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु ने अमेरिकी समकक्ष के साथ मीटिंग में यह बात कही है। हालांकि भारत का कहना है कि जो भी इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाई गई है वो सभी विश्व व्यापार संगठन के मिले अधिकार का प्रयोग है।

 इस व्यापार युद्ध की शुरुआत अमेरिका ने ही भारत से आयात होने वाले स्टील और एल्यूमिनिय पर की थी। अब ऐसे में सवाल यही उठता है कि आख़िर भारत ही हमेशा दरियादिली क्यों दिखाता है। अमेरिकी ने तो इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाकर अपने नागरिकों की हितों पर ध्यान दिया, लेकिन भारत ने टैक्स बढ़ाने के बाद व्यापार युद्ध को खत्म करने के लिए ग्रहक भी बन गया।  

                                                  

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