मुम्बई की भागती, दौड़ती, हांफती ज़िंदगी अब फ़िर से अतीत को याद कर सकती है। जिस शहर के लोगों ने ९० साल तक ट्राम में सफर किया हो, अब उसी शहर को फ़िर से ट्राम का लुत्फ़ मिल सकता है। ऐसे में बीते ज़माने की बन चुकी ट्राम एक बार फ़िर सर मुम्बई की सडकों में दौड़ सकती है। हालांकि अभी ये योजना अपने शुरुवाती दौर में है। मुम्बई में तेज़ी से बढ़ती आबादी की वजह से यहाँ यातायात की समस्या भयानक होती जा रही है। इसके समाधान के लिए शुरू की गई मास रैपित त्रंजिस्त सिस्टम के तहत वर्सोवा- अँधेरी - घाटकोपर क्षेत्र में ट्राम चलने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। इसके लिए कोल्कता में चल रहे ट्राम का अध्धयन कराने के लिए मुम्बई से टीम भी गयी थी। जिसमे ये पता चला की कोलकाता की तरह मुम्बई में ट्राम नहीं चलाई जा सकती है। ये काफ़ी पुरानी है। और घटे में चल रही है।
ऐसे में अब ये कहा जा रहा है की यूरोपीय देशों में चलने वाली आधुनिक ट्रामों की तर्ज़ में चलाया जा सकता है। दुनिया के कई देशों में आज भे ट्राम लोगों को उनके मंजिल तक पहुंचा रही है। मेट्रो के अलावा मुम्बैकारों को अब ट्राम का भी इंतजार रहेगा। मुम्बई में ट्राम शुरू कराने का प्रारूप ऍम ऍम आर डी ऐ ने किया है , जिसको अमली जामा पहनाने का काम ऍम आर टी एस को करना है। यदि ये योजना लागू हो पाई तो ४० साल बाद मुम्बई में फ़िर से ट्राम की वापसी होगी। ट्राम के चलने में जहाँ खर्च कम आता है तो वहीं प्रदूषण से भी निजात मिल सकती है।
अब वैसे तो ट्राम मुम्बई के अलावा कानपूर, नाशिक और चेन्नई जैसे शहरों में यात्रा का मुख्य साधन हुआ करती थी। मुम्बई में १८७४ में बिटिश शाशन के दौरान ट्राम की शुरुआत हुई थी। शुरुआत में ट्राम घोडों के जरिये चलाई जाती थी। इसके बाद १९०५ में घोडों से चलने वाली ट्राम की विदाई हो गयी। और १९०७ में एलेत्रनिक ट्राम की शुरुवात हुई। धीरे - धीरे ट्राम में यात्रियों की तादाद बढ़ गई। टैब १९२० में डबल देकर टर्म चलने लगी। लेकिन बाद में ट्राम का चलना मुश्किल हो गया ॥ और १९६४ में मुम्बई से ट्राम की विदाई हो गई ॥ इस तरह से मुम्बई के लोगों ने 90 सालों तक ट्राम की सवारी की। .........
No comments:
Post a Comment