महाराष्ट्र में राजनीतिक ज़मीन तलाश रही महाराष्ट्र नव निर्माण सेना रास्ता भटक चुकी है। अपनी पहचान बनने के लिया जो मन में आया वही मनमानी शुरू कर दी। मराठी अस्मिता की लडाई लड़ने वाले राज ठाकरे से बढाकर शायद ही कोई ढोंगी बिल्ला इस दुनिया में मिले। जिसे हमेश मराठी का भूत स्वर रहता है। उसके ज़बान में मराठी भाषा है, लेकिन दिल में कोई और भाषा है।
कहते हैं की बालक प्रथम पाठशाला मांहोती है। और बाद में उसका स्कूल। मराठी रोटी खाने वालर राज ठाकरे अन्दर से जर्मन की रोटी खाते हैं। ये सुनकर आपको भी ताज्जुब होगा की जो व्यक्ति मराठी भाषा के लिए स्कूल में तोड़फोड़ करता है। और कहता है की केवल मराठी भाषा पढो। वहीं पर राज ठाकरे के बेटे अमित ने जर्मन भाष को चुना है। ग्यारहवीं में पढ़ने वाले अमित को मराठी भाष ज्यादा रास नहीं आयी। सूत्रों से जानकारी मिली है की अमित की मां ने ही अमित को जर्मन भाषा में पढ़ने के लिए सलाह दी है। अब इसका निचोस यह निकालता है की जिस परिवार में केवल मराठी के आलावा कुछ नहें सूझता वहाँ मराठी भाषा ही हाशिये पर है। अब आप भी ख़ुद विचार विमर्श कीजियेगा की मराठी के लिए कौन लड़ रहा है।
अब इस पूरे मामले में मिझे यही समझ आ रहा है की राज ठाकरे को ख़ुद मराठी भाषा में भरोषा नहें है। वो जानते है की मराठी भाषा का कार्ड लम्बी पारी के लिए नहीं खेला जा सकता है। केवल सुर्खियों में आने के लिए यही एक हथियार है , हमेश एक ब्रेकिंग न्यूज़ बने रहो। लेकिन ऐसे सोंच वाले नेता क्या करेंगे । आजाद भारत में नेताओं की कोई जाती नहें होती, कोई मज़हब नहें होता, कोई धरम नही होता। क्या वो अगर कल नेता होगा तो केवल मराठी भाषियों का ही भरण पोषण करेगा। हमारे स्वतन्त्रता सेनानियों ने केवल जाती की लडाई नहें लड़ीउनकी ऐसे सोंच नहीं रही की केवल मराठी को आजाद कर दो, बांकी को गुलाम रखो,या पंजाब को आजाद करो, बांकी पर राज करो। उन्होंने पूरे भारत के लिए लडाई लड़ी है। तो कम से कम उनसे कुछ तो सीख लो, उनकी लाज बचा लो। आब बात भाषा की है तो क्या सेनानियों मराठी भाषा का इस्लेमाल नहीं क्या, काया उन्होंने अंग्रेजी नहीं बोली, क्या हिन्दी का इस्तेमाल नहें हुआ तो फ़िर लडाई किस बात की।
अब रही बात जाया बच्चन के बोलने पर तो जहाँ पर सब कोई अंग्रजी में बोल रहे थे अगर वहां पर कोई हिन्दी में बोल देता है तो जुर्म कर दिया। बल्कि राष्ट्र का सम्मान किया। ऐसे में नेताओं को समझन होगा की मराठी को आदे हनथो क्यों ले रहे हो। कल गुजराती भी जहेगा की गुज़राती भाषा का अपमान हुआ है, अंग्रेजी वाला कहेगा अंगरेजी का अपमान हुआ है। बंगाली कहेगा बंगाल का अपमान हुआ है। आख़िर यी तेताओं की कौन सी समझदारी है। यी समझदारी अभी तक मुझे समझ में नहें आ रही है। सवाल ये उठता है की क्या महाराष्ट्र नव निर्माण सेना पहले महाराष्ट्र में तोड़फोड़ करेगी , भाईचारे की भावना में जहर घोलिएगी, फ़िर इसके बाद महाराष्ट्र में नव निर्माण करेगी । राज ठाकरे बेटे को जर्मन सिखा रहे है मतलब वो मकल का भविष्य जर्मन में तलाश रहें है, तो गिर आने वाले समय में मरथिई कौन बोलेगा ॥ आप्काके घर में मराठी का भविष्य क्या होगा, ये मनसे के कार्यकर्ताओं को तलाशना होगा।
4 comments:
यह जानकर बहुत ताज्जुब हुआ कि वे अपने बच्चे को जर्मन पढ़ा रहे हैं। जिस परिवार में केवल मराठी के आलावा कुछ नहें सूझता वहाँ मराठी भाषा ही हाशिये पर है।
आजकल नेताओं की फितरत ऐसी है की वे बाहर भाषा अथवा क्षेत्रीयता आधारित सिद्धांत की राजनीति को ढोंग करते हुए नही अघाते हैं , किंतु ख़ुद और ख़ुद के घर मैं अपनी सिद्धांतों की धज्जियाँ उडाते हैं . अच्छी बात राखी है आपने , बधाई .
kya kare bhai
jamaana hi aisa hai
log ab khane men pizza burger khayenge to bachchhe ko makke ki roti nahi khilayege na
har rajneta ko pata hai ki beta videsh men nahi padhega to aam bhartiya kisan majdoor par shaasan karenge
confused hai bechara
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