Friday, June 5, 2015

मैट यानी मिनिमम अल्टरनेटिव टैक्स और उससे जुड़ा विवाद


         इन दिनों मैट को लेकर काफी चर्चा है। यह पिछली बार 1997 में शुरू हुआ था, तब भी
कंपनियों ने इसका खासा विरोध किया था। तब उदारीकरण  केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार थी। वित्तमंत्री रहते हुए पी. चिदंबरम ने इसे फिर शुरू किया था। जब इसकी घोषणा हुई, तब इसे कोई समझ नहीं पाया था, जबकि यह हमारे देश में 1988 में प्रयोग में लाया जा चुका है। लेकिन लागू होने पर  काफी विरोध हुआ और शेयर बाजार में भी खासी गिरावट आई थी। हालांकि अभी भी एक कमेटी इस पर  विचार के लिए बनाई गई है।

मैट क्या है?
भारत में कंपनी दो प्रकार से आय की गणना करती हैं। कंपनी एक्ट के अनुसार, जिसे ‘बुक प्रॉफिट’ कहा जाता है और इनकम टैक्स एक्ट के अनुसार जिसे ‘टैक्सेबल प्रॉफिट’ कहा जाता है। - कई कंपनियां हजारों करोड़ रु. का बुक प्रॉफिट बताती थीं, और शेयरधारकों को डिविडेन्ड देती थीं। लेकिन इनकम टैक्स में मिली छूटों, कटौतियों एवं भत्तों के कारण अपना टैक्सेबल प्रॅफिट शून्य बता कर टैक्स का भुगतान नहीं करती थीं। इन्हें जीरो टैक्स कंपनी कहा जाता था। जिसका श्रेय ये अपने प्रभावी टैक्स मैनेजमेंट को देती थीं।
   इन कंपनियों को कर भरने के लिए बाध्य करने के लिए सरकार ने वर्ष 1988-89 से मैट लागू कर दिया।

वर्तमान में मैट 20 फीसदी

वर्तमान में प्रत्येक कंपनी को कम से कम अपने बुक प्रॉफिट का 18.5 फीसदी (जो कि अब शिक्षा उपकर और सरचार्ज मिलाकर 20 फीसदी है) मैट का भुगतान करना होगा। यदि किसी कंपनी का बुक प्रॉफिट 1000 करोड़ रु. है और टैक्सेबल प्रॉफिट शून्य है, तो भी कंपनी को 200 करोड़ रु. मैट का भुगतान करना होगा।
- 1990 में मैट खत्म कर दिया गया था, जिसे 1 अप्रैल 1997 से पुन: लागू किया गया। भारत में कई कंपनियां जैसे डाबर, गोदरेज कंज्यूमर, एनटीपीसी, जेएसडब्ल्यू एनर्जी आदि मैट का भुगतान
करती हैं।

ऐसे शुरू हुआ मैट:-
अमेरिका में सरकार ने 1969 में पाया कि उच्च आय वाले 155 परिवार आयकर के रूप में कुछ भी नहीं
देते हैं। इन परिवारों ने आयकर कटौतियों का भरपूर लाभ उठाया, जबकि कई मध्यम व निम्न आय परिवार आयकर का भुगतान कर रहे थे। जिन व्यक्तियों व कॉर्पोरेट करदाताओं की आय पूंजी लाभ पर आधारित थी, वे आयकर की कई कटौतियों का लाभ उठा पाए। जबकि उत्पादन व सेवा क्षेत्र से लगभग उतनी ही आय कमाने वाले व्यक्ति व कॉर्पोरेट करदाताओं को ये टैक्स कटौतियां उपलब्ध नहीं थी, जिसके कारण उन्हें कर का भुगतान करना पड़ा। इन्हीं विसंगतियों को दूर करने के लिए अमेरिकी सरकार ने 1970 से मिनिमम टैक्स लागू किया। केवल 155 परिवारों को 1970 में टैक्स भरने को बाध्य करने के लिए इसे शुरू किया गया। वर्तमान में अमेरिका में 40 लाख करदाता मिनिमम टैक्स देते हैं।

मैट की मांग 
अभी तक मैट उन घरेलू कंपनियों पर लगाया जाता था, जिनका स्थायी कामकाज भारत में है और साथ
ही जो भारतीय कंपनी कानून के अनुसार बहीखाते बनाकर रखती हैं। मैट लागू करने के इतने वर्षों बाद आयकर विभाग ने अचानक मार्च 2015 में एफपीआई को मैट की मांग का नोटिस भेजना शुरू कर दिया। जबकि एफपीआई का न तो भारत में स्थायी कामकाज है, न ही ये कंपनियां भारतीय कंपनी कानून के अनुसार बहीखाते या बुक्स ऑफ अकाउंट्स मैंटेन करती हैं। नोटिस मिलने पर कई एफपीआई ने इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया है।

मामला अदालत में

आयकर विभाग द्वारा नोटिस भेजने का कारण था अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग्स द्वारा केसलटन इंवेस्टमेंट्स के बारे में वर्ष 2012 में दिया गया आदेश, जिसमें कहा गया था कि केसलटन इंवेस्टमेंट्स को मैट का भुगतान करना चाहिए। यह प्रकरण अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग्स की स्थापना
नॉन रेसीडेंट्स के आयकर निर्धारण एवं लंबित मामलों के त्वरित निराकरण के लिए की गई है। वर्ष 2013 में महालेखा परीक्षक ने इस मुद्दे को अपनी रिपोर्ट में उठाया। तब आयकर विभाग ने एफपीआई को मैट मांग का नोटिस भेजना शुरू कर दिया। हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि एफपीआई पर 1 अप्रैल 2015 से मैट आरोपित नहीं किया जाएगा। लेकिन आयकर विभाग एफपीआई से पिछले सात साल, यानी 2008-09 से मैट की मांग कर सकता है, जो कि लगभग 40 हजार करोड़ रु. है।

सरकार द्वारा उठाए कदम
 सरकार ने स्पष्ट किया है कि मैट उन देशों के एफपीआई पर लागू नहीं होगा, जिनकी भारत के साथ कर संधि है। इनमें सिंगापुर व मॉरिशस शामिल हैं। भारत में 30 फीसदी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश कर संधि वाले देशों से आता है। पिछले सप्ताह सरकार ने निर्देश दिया है कि अब राजस्व विभाग नए मैट की मांग नहीं करेगा। साथ ही अभी तक जारी मैट नोटिस पर कोई कार्यवाही नहीं करेगा, जब तक
कि एपी शाह कमेटी विदेशी निवेशकों पर मैट लागू करने के संबंध में अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश नहीं कर देती।
- फैक्ट - भारत में एफपीआई पर अल्पावधि इक्विटी लाभ पर 15 फीसदी, बॉण्ड लाभ पर 5 फीसदी कर लागू है, जबकि लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ पर कोई कर नहीं देना होता है। मेट लगने पर इन सभी लाभों पर एफपीआई को 20% कर देना होगा।

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