बोतलबंद पानी से कमा रहे हैं अरबों डॉलर...
प्रकृति ने मनुष्य को मिट्टी, हवा, पानी, रोशनी जैसी जीवनदायी सुविधाएं मुफ्त में दी थी लेकिन बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा हर बुनियादी वस्तु को उत्पाद बनाकर बेचने की प्रवृत्ति के चलते समूचे जीव जंतुओं की यह सम्पदा कारोबारियों और कंपनियों की तिजोरियां भरने का जरिए बन गई है।
इससे जुड़े बहुत सारे तथ्य ऐसे हैं जिन्हें जानकार आपको हैरानी होगी कि बोतलों में बंद कर बेचे जाने वाला पानी कितने बड़े कारोबार का हिस्सा है। यह कारोबार अंतरराष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक पहुंच गया है।
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि पिछले दशक से कुछ अधिक समय के अंतराल में बोतलबंद पानी की बिक्री नाटकीय तरीके से बढ़ी है और यह कारोबार 100 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक राशि का हो गया है।
वर्ष 1999 से लेकर 2004 तक सारी दुनिया में बिकने वाले बोतलबंद पानी की खपत करीब 118 अरब लीटर से बढ़कर 182 अरब लीटर से अधिक तक हो गई है।
विकासशील विश्व के बहुत से शहरों में बोतलबंद पानी की खपत बढ़ती जा रही है क्योंकि शहरों का स्थानीय प्रशासन पर्याप्त मात्रा में पानी होने के बावजूद लोगों को समुचित मात्रा में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने में असफल रहा है। इसके परिणाम स्वरूप विकासशील देशों में बोतलबंद पानी का उत्पादन करने वाली कंपनियां बड़े पैमाने पर पैसा कमा रही हैं।
वर्ष 2004 में अमेरिका में बोतलबंद पानी की बिक्री अन्य किसी देश से ज्यादा थी। 30.8 अरब लीटर पानी के लिए 9 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि चुकाई गई। यह मात्रा इतनी अधिक है कि इससे कंबोडिया की समूची जनसंख्या की पानी की सालाना जरूरतें पूरी हो सकती हैं।
बोतलबंद पानी की सबसे ज्यादा खपत वाले दस शीर्ष देशों में अमेरिका, मेक्सिको, चीन, ब्राजील, इटली, जर्मनी, फ्रांस, इंडोनेशिया, स्पेन और भारत हैं।
बोतलबंद पानी का उपयोग करने वालों से जब पूछा जाता है कि वे पानी पर इतना अधिक पैसा क्यों खर्च करते हैं जबकि उन्हें नल का पानी आसानी से मुफ्त में मिल सकता है? उनका कहना है कि वे बोतलबंद पानी को इसलिए वरीयता देते हैं क्योंकि वह अधिक शुद्ध और स्वास्थ्यकर होता है।
ज्यादातर कंपनियां अपने उत्पाद को यह कहकर बेचती हैं कि वह नल के पानी से ज्यादा सुरक्षित है लेकिन इस मामले में विभिन्न अध्ययनों का कहना है कि बोतलबंद पानी से जुड़े नियम वास्तव में इतने अपर्याप्त हैं कि वे शुद्धता या सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं। इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि वास्तव में बोतलबंद पानी में म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के नल के पानी की तुलना में अधिक बेक्टेरिया हो सकते हैं।
अमेरिका में जिन मानकों के आधार पर पानी को मापा जाता है उसे अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के द्वारा नियमित किया जाता है़, ये मानक वास्तव में नल के पानी से भी नीचे हैं जिन्हें पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी द्वारा तय किया जाता है।
पानी भरने के काम में आने वाली ज्यादातर बोतलों को रिसाइकल, फिर से नया बनाया जाता है। इन बोतलों को बनाने में जो पोलीएथलीन टेरेप्थलेट (पीईटी) इस्तेमाल किया जाता है, उसका केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही रिसाइकल किया जा सकता है। इसके अलावा पीईटी उत्पादन प्रक्रिया से हानिकारक रसायन निकलते हैं जिससे वायु की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है।
अनुमानित तौर पर ऐसा माना जाता है कि यूनान में पानी पीने की 1 अरब प्लास्टिक बोतलें प्रतिवर्ष फेंक दी जाती हैं जोकि वातावरण में प्रतिकूल असर छोड़ती हैं।
चीन की कम से कम 70 फीसदी नदियां और झीलें प्रदूषित हैं और बोतलबंद पानी की माँग करने वाले ज्यादातर शहरों के निवासी होते हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इतने गरीब हैं कि वे इतना महंगा पानी खरीद कर नहीं पी सकते हैं।
मतलब कहा जा सकता है कि कभी सभी को उपलब्ध साफ पानी अब सर्वसाधारण की संपत्ति नहीं रहा। कैपिटलिज्म के इस जमाने में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता।
इससे जुड़े बहुत सारे तथ्य ऐसे हैं जिन्हें जानकार आपको हैरानी होगी कि बोतलों में बंद कर बेचे जाने वाला पानी कितने बड़े कारोबार का हिस्सा है। यह कारोबार अंतरराष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय स्तर तक पहुंच गया है।
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि पिछले दशक से कुछ अधिक समय के अंतराल में बोतलबंद पानी की बिक्री नाटकीय तरीके से बढ़ी है और यह कारोबार 100 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक राशि का हो गया है।
वर्ष 1999 से लेकर 2004 तक सारी दुनिया में बिकने वाले बोतलबंद पानी की खपत करीब 118 अरब लीटर से बढ़कर 182 अरब लीटर से अधिक तक हो गई है।
विकासशील विश्व के बहुत से शहरों में बोतलबंद पानी की खपत बढ़ती जा रही है क्योंकि शहरों का स्थानीय प्रशासन पर्याप्त मात्रा में पानी होने के बावजूद लोगों को समुचित मात्रा में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने में असफल रहा है। इसके परिणाम स्वरूप विकासशील देशों में बोतलबंद पानी का उत्पादन करने वाली कंपनियां बड़े पैमाने पर पैसा कमा रही हैं।
वर्ष 2004 में अमेरिका में बोतलबंद पानी की बिक्री अन्य किसी देश से ज्यादा थी। 30.8 अरब लीटर पानी के लिए 9 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि चुकाई गई। यह मात्रा इतनी अधिक है कि इससे कंबोडिया की समूची जनसंख्या की पानी की सालाना जरूरतें पूरी हो सकती हैं।
बोतलबंद पानी की सबसे ज्यादा खपत वाले दस शीर्ष देशों में अमेरिका, मेक्सिको, चीन, ब्राजील, इटली, जर्मनी, फ्रांस, इंडोनेशिया, स्पेन और भारत हैं।
बोतलबंद पानी का उपयोग करने वालों से जब पूछा जाता है कि वे पानी पर इतना अधिक पैसा क्यों खर्च करते हैं जबकि उन्हें नल का पानी आसानी से मुफ्त में मिल सकता है? उनका कहना है कि वे बोतलबंद पानी को इसलिए वरीयता देते हैं क्योंकि वह अधिक शुद्ध और स्वास्थ्यकर होता है।
ज्यादातर कंपनियां अपने उत्पाद को यह कहकर बेचती हैं कि वह नल के पानी से ज्यादा सुरक्षित है लेकिन इस मामले में विभिन्न अध्ययनों का कहना है कि बोतलबंद पानी से जुड़े नियम वास्तव में इतने अपर्याप्त हैं कि वे शुद्धता या सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं। इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि वास्तव में बोतलबंद पानी में म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के नल के पानी की तुलना में अधिक बेक्टेरिया हो सकते हैं।
अमेरिका में जिन मानकों के आधार पर पानी को मापा जाता है उसे अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के द्वारा नियमित किया जाता है़, ये मानक वास्तव में नल के पानी से भी नीचे हैं जिन्हें पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी द्वारा तय किया जाता है।
पानी भरने के काम में आने वाली ज्यादातर बोतलों को रिसाइकल, फिर से नया बनाया जाता है। इन बोतलों को बनाने में जो पोलीएथलीन टेरेप्थलेट (पीईटी) इस्तेमाल किया जाता है, उसका केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही रिसाइकल किया जा सकता है। इसके अलावा पीईटी उत्पादन प्रक्रिया से हानिकारक रसायन निकलते हैं जिससे वायु की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है।
अनुमानित तौर पर ऐसा माना जाता है कि यूनान में पानी पीने की 1 अरब प्लास्टिक बोतलें प्रतिवर्ष फेंक दी जाती हैं जोकि वातावरण में प्रतिकूल असर छोड़ती हैं।
चीन की कम से कम 70 फीसदी नदियां और झीलें प्रदूषित हैं और बोतलबंद पानी की माँग करने वाले ज्यादातर शहरों के निवासी होते हैं क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इतने गरीब हैं कि वे इतना महंगा पानी खरीद कर नहीं पी सकते हैं।
मतलब कहा जा सकता है कि कभी सभी को उपलब्ध साफ पानी अब सर्वसाधारण की संपत्ति नहीं रहा। कैपिटलिज्म के इस जमाने में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता।
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