पसीने की
बदबू से छुटकारा पाने के लिए लोग तरह-तरह के उपाय बरसों से करते रहे हैं। कभी टेलकम
पाउडर का सहारा लिया, तो कभी कपूर का। पिछले कुछ बरसों से डिओडरेंट पुरजोर इस्तेमाल
में है। लेकिन खुशबू फैलाने वाले डियो के इस्तेमाल के कुछ नुकसान भी हैं। डियो के
नुकसान और उसके विकल्पों बारे में पूरी जानकारी
कपड़े, बैग और फुटवियर की तरह डिओडरंट भी हमारे रोजमर्रा का एक
अहम हिस्सा है। जैसी गर्मी और उमस है इन दिनों, ऐसे में युवा घर से बाहर निकलते
वक्त ब्रेकफास्ट करें-न-करें, डियो लगाना कतई नहीं भूलते। इस बात से इनकार नहीं
किया जा सकता कि डियो ने हर मौसम में बदबू को शरीर से दिन भर दूर रख पाने का भरोसा
और दूसरों से खुलकर मिलने का कॉन्फिडेंस दिया है, मगर इसके दूसरे पहलू को भी
नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बदबू से बचने के लिए डियो और पसीना रोकने वाले
उत्पादों पर, जिसे ऐंटिपर्सपिरेंट कहते हैं, लोग साल में हजारों रुपये खर्च कर रहे
हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि अनजाने ही उन्होंने एक गलत टैक पकड़ ली है, जिससे
वे सख्त बीमार भी पड़ सकते हैं।
पसीना और बदबू
-बदबू हमारे शरीर में
पसीने के जरिए पनपती है।-हालांकि पसीना अपने आप में बदबूरहित होता है। जब शरीर पर
पनपने वाले माइक्रोस्कोपिक बैक्टीरिया इसके साथ मिलते हैं, तब बदबू पैदा होती
है।
-पसीने की बदबू के लिए कई बार शरीर के कुछ हार्मोन जिम्मेदार होते हैं, तो
कई बार खानपान या वातावरण इसकी वजह बनता है।
-लेकिन बदबू पनपने की सबसे बड़ी वजह
है पसीने के साथ बैक्टीरिया का मिलना, जो हमारे शरीर में ही रहते हैं और पसीने के
साथ मिलकर तेजी से बढ़ते हैं।
डियो का रोल
-डियो शरीर में बदबू फैलाने
वाले बैक्टीरिया पर असर डालता है। हालांकि यह पसीना आने से नहीं रोक
पाता।
-इसमें मौजूद केमिकल्स खुशबू पैदा करते हैं।
डियो से
नुकसान
-कंज्यूमर एजुकेशन ऐंड रिसर्च सोसायटी (सीईआरएस) की मैगजीन इनसाइट में
छपी रिपोर्ट के मुताबिक कुछ डियोडरेंट या ऐंटिपर्सपिरेंट स्किन, आंखों और लिवर को
नुकसान पहुंचा सकते हैं।
-डियो में इस्तेमाल होने वाले कुछ केमिकल अल्जाइमर और
कैंसर जैसी बीमारियों का कारण भी बन सकते हैं।
-डियो में इस्तेमाल होने वाला
ऐंटि-बैक्टीरियल फेफड़े और लिवर डैमेज की वजह बन सकता है।
-यूएस एफडीए के
मुताबिक गुर्दे की बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए डियो का नियमित इस्तेमाल खतरनाक
हो सकता है। इसमें इस्तेमाल होने वाला ऐल्युमिनियम उनके लिए काफी नुकसानदायक हो
सकता है।
-डियो से कपड़ों का रंग खराब होने के अलावा कॉटन और लिनेन जैसे फैब्रिक
का फाइबर खराब होने का खतरा भी रहता है।
ऐंटिपर्सपिरेंट का
रोल
-ऐंटिपर्सपिरेंट हमारे शरीर के पसीने की ग्रंथियों को बंद कर त्वचा तक पसीना
पहुंचने से रोकने के लिए डिजाइन किए गए हैं।
-ऐसा मुमकिन होता है ऐंटिपर्सपिरेंट
में इस्तेमाल किए जाने वाले ऐल्युमिनियम की वजह से। ऐल्युमिनियम शरीर के रोम छिद्र
बंद कर देता है, ताकि पसीना इनसे बाहर न आ सके।
ऐंटिपर्सपिरेंट के
नुकसान
-ऐंटिपर्सपिरेंट में ऐल्युमिनियम, जिंक और जिरकोनियम, जो कि ऐस्ट्रिंजेंट
सॉल्ट होते हैं, त्वचा में खुजली, जलन, सूजन और रैशेज की वजह बन सकते
हैं।
-ज्यादा मात्रा में जिंक, जिरकोनियम और जिरकोनिल अगर सांस के जरिए शरीर के
भीतर जाता है, तो फेफड़ों और शरीर के दूसरे अहम अंगों के लिए जहरीला साबित हो सकता
है।
-ऐल्युमिनियम वाले कई ऐंटिपर्सपिरेंट से कपड़ों पर पीले दाग पड़ जाते हैं।
अगर आप किसी दोस्त या परिवार के सदस्य के कपड़ों पर पीलापन देखकर हैरान होते हैं,
तो इसकी वजह ऐल्युमिनियम कॉम्प्लेक्स को पसीने के साथ मिलाइए, जवाब खुद-ब-खुद मिल
जाएगा।
-जिन उत्पादों के ऐंटिपर्सपिरेंट और डियो दोनों होने का दावा किया जाता
है, इनमें इस्तेमाल होने वाला प्रोपलेंट गैस अगर ज्यादा मात्रा में सांस के जरिए
शरीर के भीतर जाता है, तो दिल की धड़कनों को प्रभावित कर सकता है। इसे कार्डिएक
एरिद्मिया कहते हैं।
-ऐल्युमिनियम का संबंध ब्रेस्ट कैंसर और अल्जाइमर से भी
बताया जाता है। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इसकी पुष्टि के लिए और रिसर्च की
जरूरत है।
डियो और परफ्यूम का फर्क
-बाजार में मौजूद ज्यादातर डियोडरेंट
में अल्कोहल और एंटी बैक्टिरियल होते हैं, ताकि ये आपको बदबू से बचा
सकें।
-परफ्यूम से ऐसा नहीं होता, लेकिन उसकी खुशबू लंबे वक्त तक रहती
है।
-डियोडरेंट की खुशबू थोड़ी देर बाद ही उड़ जाती है। लगभग सभी तरह के
सस्ते-महंगे डियोडरेंट में 6 से 15 पर्सेंट खुशबू वाले ऑइल, 80 पर्सेंट अल्कोहल के
साथ मिले होते हैं।
-परफ्यूम में 15 से 25 पर्सेंट खुशबू वाले ऑइल होते
हैं।
इनसे भी बचिए अल्कोहल बेस्ड स्प्रे
-डियोडरेंट पसीने की नमी में
पनपने वाले बैक्टीरिया से आने वाली दुर्गंध को रोकते हैं। चूंकि ऐल्युमिनियम
कंपाउंड्स और अल्कोहल त्वचा पर जल्दी सूखते हैं और ठंडक देते हैं, ऐसे में ज्यादातर
डियोडरेंट में इनका इस्तेमाल होता है। -कुछ लोगों में इन चीजों से एलर्जी होती है,
जिससे सेहत संबंधी बड़ी दिक्कत हो सकती है।
-इससे अंडर आर्म में जलन होती है और
त्वचा दूसरे किसी स्प्रे के लिए भी सेंसेटिव हो जाती है।
-अगर आपको भी ऐसी कोई
दिक्कत हो रही है, तो फौरन किसी डर्मेटोलॉजिस्ट से मिलें।
केमिकल्स मिथाइल
पैराबीन, प्रोपाइल पैराबीन, इथइल पैराबीन जैसे केमिकल, जो बहुत सारे कॉस्मेटिक
प्रॉडक्ट्स में इस्तेमाल होते हैं, इनसे ब्रेस्ट कैंसर की आशंका रहती
है।
डियो के बगैर ऐसा नहीं है कि डियोडरेंट ही पसीने की बदबू दूर करने का
एकमात्र तरीका है। अब जब आप इसके नुकसान जान गए हैं, आइए कुछ उन विकल्पों के बारे
में जानें, जो डियो के बगैर भी आपको पसीने की बदबू से बचा सकते हैं :
बेकिंग
सोडा
-बेकिंग सोडा एक प्राकृतिक क्लींजर और डिओडरेंट है।
- बगल की बदबू से
बचाव के नुस्खे के तौर पर इसका काफी इस्तेमाल होता रहा है।
- इसमें प्रयुक्त
सोडियम बाईकार्बोनेट पसीना आने से नहीं रोकता, लेकिन बदबू पनपने से जरूर बचा लेता
है।
- नहाने से पहले अपने अंडर आर्म में थोड़ा बेकिंग सोडा छिड़कें और असर
देखें।
-आप इसे एक साफ कपड़े पर भी छिड़क सकते हैं और जरूरत पड़ने पर इससे अंडर
आर्म पोंछ सकते हैं।
एलोवेरा
-एलोवेरा त्वचा की सेहत सुधारता है।
-यही
वजह है कि तमाम अच्छे सौंदर्य उत्पादों में इसका इस्तेमाल होता है।
-यह त्वचा को
पर्याप्त नमी और पोषण देता और नए स्किन टिश्यू को जल्दी बनने में मदद करता
है।
-ज्यादातर लोग एलोवेरा के बाहरी इस्तेमाल से वाकिफ होते हैं, जबकि एलुवेरा
जूस पीने से खून की अशुद्धियां दूर होती हैं और त्वचा में कुदरती निखार आता
है।
-यह त्वचा की सेहत दुरुस्त कर बदबू वाले बैक्टीरिया के पनपने को काबू कर
सकता है।
कपूर
-डियो का एक अच्छा विकल्प कपूर भी है।
-यह आपके स्वेट
ग्लैंड पर हानिकारक असर डाले बिना पसीने की बदबू को रोकता है।
-कपूर को आप अंडर
आर्म में रगड़ सकते हैं। इसके अलावा पानी में डालकर भी नहा सकते
हैं।
फिटकरी
-कपूर की तरह ही इसे भी पानी में डालकर नहाने के अलावा आप
अंडर आर्म में रगड़ कर भी लगा सकते हैं।
गुलाब जल
-नहाने के बाद एक मग
पानी में गुलाब जल की दस बूंदें मिला कर उसे शरीर पर।
-यह लंबे वक्त तक आपको
ताजगी का अहसास कराएगा और डियो के कुदरती विकल्प के तौर पर काम करेगा।
आसान
कुदरती तरीका
-सर्दी के दिनों में कम-से-कम एक बार और गर्मी में दो बार जरूर
नहाएं। इससे न सिर्फ पसीना धुल जाएगा, बल्कि शरीर पर पनपने वाले बैक्टीरिया भी कम
होंगे।
-हर बार साफ धुले हुए कपड़े पहनें।
-सीधे धूप में बैठने से
बचें।
-कॉटन जैसे नेचरल फाइबर से बने कपड़े ही पहनें। इसमें हवा आसानी से पास
होती है। सिंथेटिक, नायलॉन या लायक्रा जैसे फैब्रिक पहनने से बचें, इनमें हवा की
आवाजाही ठीक से नहीं हो पाती।
-योग को अपनी नियमित दिनचर्या में शामिल करें।
इससे तनाव कम होगा। गर्मी से तनाव बढ़ता है और इससे पसीना अधिक आता है। ऐसे में योग
फायदेमंद हो सकता है।
जब नहा न पाएं
-अगर आपके पास कई बार नहाने का वक्त
नहीं है, तो टब में पानी भरें और इसमें 4 चम्मच बेकिंग सोडा डालें। इसके बाद पानी
में एक स्पॉंज या वॉश क्लॉथ डुबाएं और इससे रगड़कर पसीने वाली जगहों को साफ कर
लें।
-अगर आपके पैरों से बदबू आती है, तो ओडोर-एब्जॉर्बिंग इंसोल अपने फुटवियर
में रखकर पहनें। ऐसे इंसोल केमिस्ट की दुकान से मिल सकते हैं।
खान-पान
बदलें
-शरीर की बदबू का रिश्ता हमारे खान-पान से भी होता है।
-प्रॉसेस्ड फूड
मसलन रिफाइंड शुगर, मैदा और वनस्पति घी जैसी चीजें बदबू की वजह हो सकती है। इनसे
परहेज करना चाहिए।
-रेड मीट, लो फाइबर वाली चीजें, अल्कोहल, कैफीन, जीरा और
लहसुन जैसी चीजें कम खाएं।
-साबुत अनाज, हरी सब्जियां, फल, सोया प्रॉडक्ट,
अंकुरित अनाज और बादाम आदि खाएं।
-अपने नियमित खानपान में मूली शामिल
करें।
-शरीर में मैग्नीशियम या जिंक की कमी और मीट, अंडा, फिश लिवर, बींस,
प्याज, लहसुन, तली हुई और फैटी चीजों का ज्यादा इस्तेमाल भी बदबू बढ़ा सकता है।
इन्हें कम इस्तेमाल में लाएं।
-कुछ मसाले भी सांस और शरीर की बदबू की वजह बन
सकते हैं।
-काफी तेज खुशबू वाले मसाले और लहसुन, प्याज अगर ज्यादा मात्रा में
लें, तो यह शरीर में जाकर आमतौर पर सल्फर गैस बनाते हैं, जो कि खून में घुल जाते
हैं और फेफड़े और रोम छिद के जरिए बाहर निकलते हैं। इनसे तीखी बदबू आती
है।
चूंकि बदबू का सीधा रिश्ता पसीने से है, जानिए किसको कितना पसीना आता है
:
किसको कितना पसीना
-एक शख्स को कितना पसीना आता है, यह इस बात पर
निर्भर करता है कि उसकी स्वेट ग्लैंड यानी पसीना छोड़ने वाली ग्रंथियां कितनी
सक्रिय हैं।
-लेकिन ऐसा देखा गया है कि एक स्वस्थ पुरुष को एक स्वस्थ महिला की
तुलना में ज्यादा पसीना आता है।
-एक समान स्वेट ग्रंथियां सक्रिय होने के बावजूद
महिलाओं को कम पसीना आता है।
-एक फिट शख्स को एक्सर्साइज के दौरान ज्यादा पसीना
आता है, लेकिन उनके शरीर का तापमान इस दौरान कम रहता है। वहीं अगर एक मोटापे का
शिकार शख्स उतनी ही देर मेहनत करता है, तो उसके शरीर का तापमान ज्यादा बढ़ जाता है
और पसीना भी ज्यादा आता है।
-मोटापे के शिकार शख्स को सामान्य वजन वाले शख्स की
तुलना में वैसे भी पसीना ज्यादा आता है, क्योंकि उनके शरीर का फैट ऊष्मारोधी की तरह
काम करता है और इसके चलते शरीर का असल तापमान बढ़ जाता है।
ज्यादा पसीना यानी
हाइपरथर्मिया
-कुछ लोगों को बहुत ही ज्यादा पसीना आता है।
-यह एक आम-सी है,
जिसे हाइपरथर्मिया कहते हैं।
-इससे पीड़ित लोगों की हथेली, पैर, पीठ और चेहरा
हमेशा पसीने से डूबा रहता है। यहां तक कि ठंडे मौसम में भी उन्हें इससे निजात नहीं
मिलती।
-अगर ऐसी समस्या है, तो फौरन इलाज के विकल्प जानने के लिए फैमिली डॉक्टर
से मिलें।
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