सकल घरेलू उत्पाद बढ़ने से देश का विकास हो जाएगा। ऐसा सोचना या समझना ग़लत हैं। बचपन भले ही भूखा रहे,नौजवान भले ही निराश हों,किसान आत्महत्या कर लें पर सकल घरेलू उत्पाद बढ़ जता हैं तो हम यह कहतें नहीं थकते किहम विकास के रास्ते पर शानदार तरीके से आगे चल रहे हैं। भारत आर्थिक महाशक्ति बनने जा रहा हैं। सपनों की दुनिया और हकीकत में फर्क हैं। भारत में २० से २५ फीसदी आबादी भूखी या कहना चाहिए कि वह कुपोषण का शिकार हैं। बाज़ार में खाद्यान्न उपलब्ध हैं। पर क्रियशक्ति नहीं हैं। यदि लोगों के पास पर्याप्त खाद्य पदार्थ खरीदने के लिए पैसे नहीं है तो भूखे रहने के सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं हैं। गरीबी भूख का सबसे बड़ा कारण हैं। सामान्य कुपोषण की दृष्टि से भारत की स्थिति अफ्रीकी देशों से भी बदतर हैं। अफ्रीका में बार बार अकाल पड़ने के बावजूद भी वहाँ का पोषण स्तरभारत की तुलना में अच्छा है। देश में ५० फीसदी वयस्क महिलाएं रक्त अल्पता से पीड़ित हैं। माताओं में कुपोशन, शिशुओं का वजन अपेक्षा से कम होना एवं जीवन के बाद के दिनों में रोगों के होने की दृष्टि से भारत सबसे ख़राब रिकार्ड वाले देशों में गिना जाता हैं। कम आय, बढाती कीमतें,ख़राब स्वास्थ्य सेवाएं, और बुनियादी शिक्षा की उपेक्षा आदि ने भारत में भूख और कुपोशन को बढाया हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले, शहर के कर्मचारी,अंशकालिक मजदूर ग्रामीण और कृषि श्रमिक , ग्रामीण क्षेत्र के शिल्पी इन सबकी ज़िन्दगी बदतर होती चली गयी हैं। इस देश में मुठ्ठी भर लोग मालामाल होकर अमीरी के शिखर पर भले ही पहुँच गए हों। पर आम आदमी बदहाल ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं। सही बात तो ये हैं कि केवल २० फीसदी लोग ही सबकुछ लुटे जा रहे हैं। और ८० फीसदी के पास कुछ भी नहीं हैं। जमीनी सच्चाइयां शब्दों के मायाजाल से कहीं अलग हैं।
जीडीपी से आगे हमें सोचना होगा। क्योंकि जीडीपी का आकलन करते समय बुनियादी स्वास्थ्य, बुनियादी, शिक्षा ,साफ़ पीने का पानी औसत आयु,मात्र-शिशु जीवन दर जैसे विषयों पर ध्यान नहीं दिया जाता। देश की प्रगति को आर्थिक आंकड़ों से नापा जाता हैं। जीडीपी के आंकलन में इस तथ्य की पूरी उपेक्षा की जाती हैं कि वहाँ के लोग वास्तव में कितने शिक्षित हैं, स्वास्थ्य, सुखी और संतुष्ट हैं। हमें यह समझना होगा कि ज़िन्दगी में आर्थिक विकास में नहीं हो सकता। जीडीपी हमारे देश की बढ़ रही हैं पर साथ ही गरीबी रेखा से नीचे जीवन निरवाह करने वालों की संख्या भी प्रतिवर्ष बढ़ रही हैं। काम पाने के लिए आतुर करोड़ों पढ़े लिखे नौजवान बेकार होकर पड़े हैं। अमीर और गरीब का अन्तर इतना बढ़ता जा रहा हैं कि उसे देखकर मन में कम्पन शुरू हो जाता हैं। सुखी जीवन जीने के बजाय गर्त की तरफ बढ़ रहे हैं. सामाजिक जीवन में नैतिकता मानो ख़त्म हो चुकी हैं. जीडीपी के धर्म दर्शन के बजाय हमें यह देखना चाहिए की वहां के लोग वास्तव में कितने शिक्षित , स्वास्थ्य,सुखी और संतुष्ट हैं. समय आया गया हैं की हम जीडीपी के बजे देखें की आम आदमी की हैसियत में बढ़ोत्तरी हुयी या नहीं.
2 comments:
त्रेता युग में भगवान रामजी ने किन्नरों को एक वरदान दिया था 'कलयुग में राज' होगा। आज येही किन्नर राजनेता अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए जी डी पी कि ताली पीट देते हैं ......अब रामजी ही बचाए इन से ....
bahut behtarin likha hai aapne bharat ki zameeni haqeeqat ko utara hai aapne
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