बीएचयू के सैकड़ों छात्रों ने वाराणसी के रेड लाइट इलाके शिव्दाश्पुर के कोठों पर सुनियोजित ढंग धावा बोलकर कई नाबलिंग लड़कियों को इस अमानवीय पेशे से मुक्ति दिलाने का दावा कर तहलका मचा दिया। वहीं मुम्बई के रेस्कुई फाउंडेशन ने रेड लाइट इलाके भिवंडी से सेक्स का प्रीपेड टोकन से लड़कियों को मुक्त कराया। इस तरह से मुक्त करे गयी बालिकाओं मै से ज्यादातर वैधानिक रस्म अदायगी व पुलिसिया दोहन के बाद देर- सबेरे या हालत से लचर होकर फ़िर इस दोजख में नहीं लौट आएँगी । लड़कियों द्व्रारा अपने मुक्त सेनानियों से पूँछे गए यक्ष प्रश्न का जवाब किसी के पास नहीं था की पुलिस तो हमसे पैसा खाती है , पर क्या तू मुझसे शादी करेगा ?
हम कुलमिलाकर एक हिपोक्रेट समाज के अभिन्न अंग हैं। ढिंढोरा तो हम पीटतें हैं , गरीबी हटाने का , मगर अब तक अनुभव यही बयान करता है की हमारी व्यवस्था गरीबों को ही हटा देती है। कहा जाता है वेश्यावृत्ति दुनिया का सबसे पुराना धंधा है, यह एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जिसके सामने मनो दुनिया भर की संभावनाएँ नजरें नीची किए , सिर झुकाएं खड़ी हैं। एक ऐसा कर्म की वेश्या के रूप में पुरूष भी करता कारक हैं। मानवीयता पर कलंक इस व्यवसाय को ख़त्म करने के मकसद से पुरूष प्रधान हमारे समाज की कुल कवायद वेश्याओं के इर्द गिर्द ही मंडराती रहती है।
जबकि इसे पसरने व पनपने के लिए ईंधन मुहैया करवाने वाले एक विशाल वर्ग (ग्राहंक) सदैव नजर अंदाज़ कर दिया जाता है । नतीजन जख्म ऊपर से ठीक हो जाता है। और अन्दर से हरा ही रहा जाता है। मौका पते ही नासूर बनकर उभरने लगता है। जब तक बाज़ार में खरीददार मौजूद है, वेश्यावृत्ति का खत्म भला कैसे संभव है।
किसी ज़माने में मनीला के मेयर ने वहां के तकरीबन तीन सौ बार बंद करावा कर कई तरह की पाबंदियाँ लगाव दी थीं । मुम्बई समेत महारास्त्रमें बार बालाओं पर शिकंजा कसने की सरकारी कवायद सालों से देश में सुर्खियों में रही । करांची में मानवाधिकार से जुड़े वकीलों ने कभी ऐसे गिरोह के खिलाफ जनमत टायर किया था। जिन्होंने हजारों बंगलादेशी लड़कियों का अपहरण कर वेश्या बना दिया था । मगर क्या इन सबसे से उन देशों में इस कारोबार की खात्मा हुआ? उल्टे इलाज कराने की कसरत में मर्ज़ ही लाईलाज़ होता जा रहः है।
एक बार इस दोजख में कदम रख देने वाली औरत को क्या हमारा समाज इस कदर परिपक्व है की उन्हें चैन से कोई और कारोबार कर रोजी रोटी कमाने देगाइन सरे सवालों के जवाब नहीं है। फ़िर क्या यह संभव नहीं है की लचर होकर वे लड़कियों के तौर तरीके बदलकर फ़िर इस पेशे को ही विस्तार दे।इस देश में अपराध को रोंकने के लिए कानून बनने वाले के मुकाबले उसे तोड़ने वाली प्रतिभाएं कहीं ज्यादा कुशाग्र बुद्धि संपन्न है। अगर ऐसा ना भी हुआ तो पुलिस उन्हें तलाश-तराश कर देती है।
अब सवाल यह उठता है की अगर हम पेशा छोंड दे तो क्या सरकार हमें रोजी रोटी की गारंटी देगी इस तरह के तमाम सवाल के जवाब नहीं मिल रहे है। यक्ष सवाल यह है की हम वेश्यावृत्ति को ख़त्म करना चाहतें है या वेश्याओं को ।
इसके लिए सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, व राजनीतिक मोर्चों पर हमने कितना होमवर्क किया । अगर हमने कोई तैयारी नहीं किया तो ऑपरेशन शिव्दाश व रेस्कुई फाउंडेशन सरिखें अभियान मीडिया मै क्षणिक कौताहल पैदा कराने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते।
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