जाने क्या बात है बम्बई तेरी शबिस्तान में
कि हम शाम -ऐ अवध और सुबह ऐ बनाराश छोंड आए हैं........
तेरी सड़कों पे सोये, तेरी बारिश में नहाये हैं
तुझे ऐ बम्बई हम फ़िर भी सीने से लगाये हैं........
अली सरदार जाफरी
कुछ इसी जज्बात के साथ मुम्बई के बारे में याद दिलाता हूँ। मुम्बई महिम, कुलाबा, छोटा कुलाबा मझागोवं, वरली, परेल और माटुंगा सात छूते टापुओं का समूह है। ऐसे सात टापू में से कुलाबा, मझगांव और महिम ये तीनो सभी सभी द्रष्टि से महत्वपूर्ण थे। इन सभी टापुओं पर ज्यादातर लोगों कि संख्या कोली समाज कीथी। आज एस कोली समाज की बस्ती ऐसे स्थानों पर मौजूद है। एस कोली समाज के कुल देवता का नाम मुम्बई आई है। और अंग्रजों ने इसका अपभ्रंश मुम्बई किया।
मुम्बई की खोज प्रशिध्ध भूगोल शास्त्री पिन्तोल मीने ने इ.स। १५० में की थी । खिस्ती शत पूर्व २७३-२३२ इधर मौर्या काल का शासन रहा। ८१० से १२६० तक शिलाहरा का राज्य चला। २३-१२ १९३४ को सुलतान बहादुर शाह ने पुर्तगाल को ८५ पौंड लगन भरने की शर्त पर हमेशा के लिए दे डाला। उसके बाद उस दौर में डच और अंग्रेज भी आ गए। केरल किनारे के मलबारी यहाँ आकर बस गए । और जिस टेकडी पर उनका अड्डा है , वो प्रसिद्ध मालाबार हिल है।
१६६१ में अंग्रजों को राजकुमारी कैथरीन का चार्ल्स दूसरे से विवाह में दहेज़ के रूप में दिया गया। इसके बाद अंग्रजों nऐ इसे ईस्ट इंडिया कंम्पनी को १० पौंड वार्षिक राशी पर पत्ते पर दे दिया। सन१६१२ में अंग्रजों ने अपना मुख्य कार्य क्षेत्र सूरत से हटाकर मुम्बई करेदिया। आज इस शहर को गिलियान तिन्दल ने " सिटी आफ गोल्ड " की उपाधि दी। एक ओर जहाँ ये महानगर लंदन और पेरिश से टक्कर लेता है वहीं दूसरी ओर निर्धनता की पराकाष्ठा भी दर्शाता है। यहाँ एक ओर वैभव शाली अत्तालिकाए, चमचमाती शानदार कारें और पाँच सितारा होटल वहीं दूसरी ओर झुग्गी , झोपदियाँहैं। यहाँ है वैभव एश्वर्या और चमक - दमक का साम्राज्य है। देश के सबसे सम्र्ध्ध औधोगिक घरानों जैसे बिड़ला, टाटा अम्बानी के मुख्यालय यहाँ स्थित है। यहीं पर मुम्बई फ़िल्म उद्योग को चकाचौंध कराने वाले स्टूडियो हैं। जो बहरत वर्ष के कोने - कोने से युवक- युवतियों को आकर्षित करते हैं। कुछ सपने पूरे होकर वो प्रशिधी की ऊंचाई में पहुँच जाते है। लेकिन जादातर लोगों का जीवन थोंकारे खाकर गरीबी में ही गुजर जाते हैं। सारे देश से लोग अपना भाग्य बनने यहाँ आते हैं। कहतें हैं मुम्बई म,एन सोना बिखरा पड़ा है। .उसे टू खोजने वाले और उठाने वाले चाहिए। इतिहास ऐसे कई लोगों को उदाहरण पेश करता है। की कैसे लोग यहाँ लोटा डोर लेकर यहाँ आए, और अपने पुरुषार्थ और व्यापर कौशल पर बुलंदी पर पहुँच गए।
मुम्बई शहर के मूल निवाशियों की अधिष्ठात्री मुम्बा देवी के नाम से मुम्बई का नाम पड़ा। देश में रेल का मुंह देखने का श्रेय इसेसहर को मिलहुआ है। टैब से लेकर अब तक मुम्बई में कई परिवर्तन हो गए हैं। एस शहर ने बाढ़, विस्फोट, dange झेले हैं लेकिन न थामने वाली मुम्बई मुस्कराते हुए अपने रफ्तार पर बनी रही और आज मुम्बई सिर्फ़ एक ही धर्म जानती है - काम कारन और चलते रहना।
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