बजट सत्र के दौरान विधान मंडल में यौन शिक्षा देने की बात शिक्षा मंत्री बसंत पुरके ने की। लेकिन जब विपक्ष नहीं माने तो सरकार को पीछे हटाना पड़ा। और अब सरकार ने एक समिति गठन करने का फैसला लिया है , और समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही विचार किया जायेगा। लेकिन यक्ष सवाल ये है की जिस देश में १८ साल की उम्र में सरकार चुनने का अधिकार है , तो क्या इस उम्र में यौन शिक्षा देने कि जरूरत नहीं है। इस उम्र में एक आम लड़की कि शादी शादी हो जाती है। तो क्या एसे में ये जरूरी नहीं है कि पहले ही उसे दांपत्य जीवन के बारे में जरूरतों और सावधानियों कि जानकारी दे दी जाए ।
एक बात गौर करने कि है यौन भावना और यौन जानकारी का आपस में कोई संबंध है कि नहीं। बहुतों का कहना है कि यौन जानकारी बच्चों में ग़लत भावनाओं को उभारेगी। ये भारतीय संस्कृति को दूषित करेगी । लेकिन यौन जानकारी के बिना भी यौनेछा तो उपजेगी ही। तब इसे समझना और संयमित करना और मुश्किल हो जाएगा । क्योंकि चोरीछिपेहशील कि गयी जानकारी कैसे होगी ये कल्पना से बाहर है।
कई बार ये भी कहा जाता है कि बच्चो को इन सबकें के बारें में बड़े लोगों से जानकारी मिल जाती है। लेकिन हमारा तथाकथित पढ़ा लिखा वर्ग भी किस तरह कि जानकारी रखता है ये किदी से छिपा नहीं है ।
माहवारी आने पर कपडा बाँध लेने कि बात ही यौन शिक्षा तक सीमित नहीं है। हमारा महिला समाज अपनी देह को सुंदर दिखाने में जीतनी रुचि लेता है उसकी चौथाई भी अगर शरीर कि समस्याओं को समझनेमें लेता तो कई ऐसेबीमारियों से बचा सकता है। जो बाद में जानलेवा साबित होती है। इसलिए पुरषों कि तुलना में महिलाओं को तो यौन जानकारी देना और भी जरूरत है।
एक बात ये भी है कि यौन शिक्षा का जो विरोध हो रहा है , उसके पीछे भी पुरुषवादी मानसिकता ही ज्यादा कम करती है । लेकिन यक्ष एक बात मानना होगा कि यौन जानकारी देने वाली शिक्षा न केवल ख़ुद में आत्म विश्वाश लाती है, बल्कि इससे सामाजिक स्वास्थ्य भी बेहतर होगा।
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